रविवार, 28 दिसंबर 2008

हम युद्ध न होने देंगे- शरद आलोक्

हम गांधी के वंशज हैं , हम युद्ध न होने देंगे- शरद आलोक
आज भारत की समस्या केवल भारत की नहीं रही। यह पूरे विश्व की समस्या बन गयी है। इस सम्बन्ध में हम आपको एक बात बताते हैं। यह संस्मरण ओस्लो में आयोजित ग्लोबल सम्मलेन २००८ का है, जहाँ मुझे भी भाग लेने का अवसर मिला। यहाँ मुझे एक चीज की बेहद खुशी हुई जब नार्वे की सुंदर युवतियां भारत में सभी को पीने के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए एक अभियान चला रही थीं। सुंदर युवतियों के जागरण अभियान को देखकर लगा की यदि देवियाँ इस दुनिया में हैं तो उनसे ये दूर नहीं। चाहे पाकिस्तान और बांग्लादेश में गरीबी और धर्मान्धता के कारण युवकों को अपराध के लिए भड़काया जाता हो या भारत में या फ़िर सोमालिया अथवा श्रीलंका तथा चीन में मानवाधिकार के लिए लाखों करोड़ों को बलि का बकरा बनाया जाता है तो ये सारी की सारी समस्याएं मेरी दृष्टि में जितनी भौगोलिक हैं उतनी मेरी निजी अपनी हैं क्योंकि ये मानवता और मानवाधिकार से सम्बन्ध रखती है। कुछ साल पहले नेपाल के साहसिक और लोकप्रिय नेता माधव सिंह नेपाल से बात हुई और जब एक सप्ताह पहले नेपाल के शिक्षा सचिव से मिला तो मेरे सामने काठमांडू से लेकर पोखर तक की याद आ गयी। सुंदर प्यारा सा नेपाल बेहाल क्यों है। काठमांडू के मार्ग टूटे थे। चौराहों पर प्याऊ का नामोनिशान नहीं था पर शराब हर चौराहे पर उपलब्ध था। अब भारत में भी कई बस्तियों का हाल का भी यही हाल है। बच्चों के नंगे पैर धुलने वाले, जूते पहनाने वाले तथा उन्हें भरपेट भोजन देने वाले रक्षक कहाँ चले गए।
मुस्लिम आबादी गरीब है। मुझे इस बात का बहुत दुःख है ठीक इसी तरह कि हमारा पड़ोसी, हमारे भाई -बहन गरीब है। मैं इस समस्या के लिए समाज को और सबसे ज्यादा माता-पिता को दोषी मानता हूँ। समाज को इसलिए कि उसने महिला और पुरूष में भेदभाव करके महिलाओं और युवतियों तथा बालिकाओं को क्यों नहीं पढाया ? अशिक्षा के कारण परिवार बड़े हैं और आर्थिक स्थिथि का माताएं ध्यान नहीं दे पातीं और पुरूष औरत को अपनी ज्याजाद समझते हैं। फलस्वरूप बच्चों कि परवरिश ठीक से नहीं हो पाती। स्वामी दयानंद ने कहा था कि महिलाओं को वेदों को पढ़ा दो और पढ़ने दो स्त्रियाँ अपने आप आत्मनिर्भर हो जायेंगी।
कितने मंदिरों में वेदों को पढाया जाता है और क्या सभी धर्मों के लिए सभी धार्मिक स्थानों के दरवाजे खुले हैं?
क्या धार्मिक स्थानों का प्रयोग बच्चों को बेसिक शिक्षा देने और माता पिता को साक्षर बनाने में प्रयोग नहीं किया जा सकता? राजनैतिक नेता और धार्मिक नेता बेसिक शिक्षक नहीं बन सकते? हम जिस देश में रहते हैं उस देश कि भाषा और कानून को मानते हुए मानवाधिकार की रक्षा नहीं कर सकते? आख़िर क्यों? हम सभी को स्वयं आत्मनिर्भर तो बनना ही है साथ ही पधोसी पड़ोसी को भी आत्मनिर्भर बनाना है। पड़ोसी भूखा है तो क्या आप खुश रह सकते हैं? पड़ोसी की चिंता स्वाभाविक है वह दखल नहीं है। (ओसलो , 2८.1२.०८) फ़िर मिलेंगे। अपने विचार भेजिए परन्तु दूसरे के मानवीय विचारों का आदर करें।

विदेश से प्रकाशित स्पाइल-दर्पण भारत में सेमिनार आयोजित करेगी -शरद आलोक

इस लेख में दो बातों पर रौशनी डाल रहा हूँ। १- स्पाइल- दर्पण के २० वर्ष पर ओस्लो में कार्यक्रम। २-भारत में स्पाइल-दर्पण द्वारा विदेशों में हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता पर विभिन्न नगरों में कार्यक्रम आयोजित होंगे।
स्पाइल- दर्पण के २० वर्ष पर ओस्लो में कार्यक्रम:
ओस्लो , नार्वे में भारतीय- नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फॉरम और स्पाइल-दर्पण के संयुक्त प्रयास से १२ से १३ दिसम्बर तक दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न हुए। १२ दिसम्बर को लेखक सेमिनार हुआ जिसमें निम्न विषयों पर विद्वानों ने अपने लेख पढे : १) हिन्दी डाटाबेस २) स्पाइल-दर्पण का हिन्दी पत्रकारिता में योगदान। ३) नार्वे में आठवें दशक में नार्विजन भाषा के प्रवासीय साहित्य में सुरेशचंद्र शुक्ल का योगदान। ४) प्रवासी [इतहास में स्पाइल-दर्पण का योगदान। ५) आजादी के बाद का हिन्दी साहित्य। ६) दलित और नारी विमर्श ७) भारत का हिन्दी साहित्य किस तरह विदेशों में प्रसारित किया जाए। ये सभी लेख भारत में नहीं वरन ओस्लो में चार प्रोफेसरों और लेखाखों द्वारा पढ़े गए।
२ भारत में आप यदि किसी विश्वविद्द्यालय से जुड़े हैं या युवा और उदारवादी हैं, हमने विदेश में २५ वर्ष तक नार्वे की नार्वेजीय पत्रकारिता से जुड़े रहकर हिन्दी पत्रकारिता की निशुल्क सेवा की है? आप भी कुछ कीजिये!


रविवार, 14 दिसंबर 2008

विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का स्वर्ण दिन "स्पाइल- दर्पण" ने २० वर्ष पूरे किए- शरद आलोक .

नार्वे में स्पाइल - दर्पण पत्रिका ने प्रकाशन के २० वर्ष पूरे किए। - शरद आलोक
नार्वे से प्रकाशित द्वैमासिक पत्रिका "स्पाइल-दर्पण २० पूरे किए। इस अवसर पर चार दिनों तक नार्वे की राजधानी ओस्लो में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह सिलसिला ११ दिसम्बर को आरम्भ हुआ। १० दिसम्बर को तो विश्व के इतिहास में शान्ति के लिए फिनलैण्ड के पूर्व राष्ट्रपति और स्कांदिनेविया और विश्व में भाईचारा बढाने वाले मथाई को ओस्लो में पुरस्कार लेते देखने का अलग आनंद था। इसीके साथ-साथ स्पाइल-दर्पण के २० वर्ष पूरे होने पर हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में , विशेषकर विदेशों में मील का पत्थर साबित होती हुई पत्रिका ने इतिहास रच दिया।
११ दिसम्बर को स्पाइल -दर्पण के संपादक यानी इस लेख के लेखक और
के लेखक भारत से रूहेलखंड विश्वविद्यालय , के डा महेश दिवाकर ने संयुक्त रूप से पत्रिका के जुबली अंक नार्वे की वित्तमंत्री क्रिसतीन हाल्वूर्सेंन को एस ऐ एस होटल में भेट की।
१२ दिसम्बर २००८ को भारत नार्वे लेखक सेमीनार आयोजित हुआ और १३ दिसम्बर को सेमीनार ने विशाल रूप लिया। इन दोनों कार्यक्रमों में भारतीय राजदूत बी ऐ राय , ओस्लो विश्वविद्द्यालय के प्रो क्लाउस जोलर, नार्वे की राईटर यूनियन की आन्ने , राईटर सेंटर की इन्ग्विल्ड, लखनऊ के कालीचरण स्नेही , महेश दिवाकर , सत्येंदर कुमार सेठी, कैलाश सत्यार्थी , फ्रेंच गयाना के शिक्षा मन्त्री, नार्वे के सांसद , समाचारपत्र के संपादक , प्रो क्नुत शेल स्ताद्ली , नार्वे के बहुत से लेखक, प्रवासी लेखक गन सहित बहुत सी हस्तियों ने अपने विचार , अपने लेख प्रस्तुत किए ।
आगामी २० वर्षों के लिए पत्रिका की संभावनाओं पर विचार किया गया।
शेष आगामी दिनों में इस ब्लाग में देखते रहिये।

बुधवार, 3 सितंबर 2008

मनचली कोसी कहर ढा रही. - शरद आलोक

मनचली कोसी कहर ढा रही। - शरद आलोक
सोया सारा नगर, गाँव
जीवन की नौका
खे रही नाव
डूब गई नैया, कौन है खिवैया
दूर तक खोजती हैं, अपनों की आहट
चाहत के नयनों में खून लकीर
मिटा गई कोसी उनकी तक़दीर।

खोजते हैं द्वार-द्वार
गूंजती पुकार
आ जा मेरे प्रिय
आसरा तुम्हार।
नेपाल से निकली
मनचली कोसी
धधक् बरपे कहर

पुकारता हूँ बार-बार
लोटो तुम एक बार।

बुधवार, 6 अगस्त 2008

नार्वे में नए भारतीय राजदूत बन्दित राय - माया भारती

स्पाइल-दर्पण के संपादक सुरेशचंद्र शुक्ल ने ५ अगस्त को ओस्लो एयर पोर्ट पर भारतीय राजदूत बन्दित राय का फूल भेंट कर स्वागत किया। भारत से मध्य प्रदेश के जाने माने शिक्षक नेता राजेंद्र सिंह रघुवंशी जी भी भारत से एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मलेन में भाग लेने आए हुए हैं। रघुवंशी जी का स्वागत अर्जुन और सुरेशचंद्र शुक्ल जी ने किया जिनके स्वागत में ८ अगस्त को एक गोष्ठी का आयोजन भारतीय नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फॉरम द्वारा किया जा रहा है।
- माया भारती

गुरुवार, 31 जुलाई 2008

नार्वे में प्रेमचंद जी की १२८वीं जयंती मनायी गयी

नार्वे में प्रेमचंद जी की १२८वीं जयंती मनायी गयी
भारतीय नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक मंच के तत्वाधान में आज ३१ जुलाइ २००८ को मुंशी प्रेमचंद जी की १२८ वीं जयंती मनायी गई।
इस अवसर पर सुरेशचंद्र शुक्ल "शरद आलोक" ने प्रेमचंद जी को साहित्य पर प्रकाश डाला। मुंशी प्रेमचंद का जन्म ३१ जूलाई1८३६ को वाराणसी जिले के गमही नामक गावं में हुआ था और मृत्यु ८ अक्टूबर १९३६ म३न हुआ था। हिन्दी कहानी को प्रतिष्ठित करने में मुंशी प्रेमचंद का प्रमुख स्थान है। अपनी कहानियो और उपन्यासों के लिए मशहूर प्रेमचंद के उपन्यास गबन और गोदान बहुत पसंद किया जाता है।
इस अवसर पर शाहेदा बेगम और सुरेशचंद्र शुक्ल "शरद आलोक" ने अपनी कहानियाँ सुनाईं । इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन ने अपनी कवितायें सुनाईं। संगीता ने सभी को फूल भेट किए। राजकुमार भट्टी, वासदेव और अलका भारत, माया भारती और करिश्मा ने अपने विचार प्रगट किए।
- माया भारती

बुधवार, 9 जुलाई 2008

मनमोहन सिंह जी ने इतिहास रचा

प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आज जी-८ देशों की बैठक में भाग लेने जापान आए हुए हैं। जी-८ में आर्थिक सम्पन्न देशों की एक समिति है जो विश्व के आर्थिक विकास में अपनी अहम् भूमिका अदा करता है। कल यहाँ एक बात उठाई गयी थी कि भारत और चीन को भी जी-८ देशों में शामिल करके इसे विस्तार दिया जाए और इसका नाम जी-१० हो जाए। देखिये मनमोहन जी को इसमें सफलता मिलती है कि नहीं। पर यह एक ऐतिहासिक कदम है जिसके लिए मनमोहन सिंह को इसका श्रेय कुछ हद तक दिया जा सकता है, परन्तु यह भारत कि पूर्ण राजनीत का हिस्सा है।
भारत को विकास के लिए बिजली की बहुत जरूरत है। विकास के लिए पंडित नेहरू ने कहा था कि तीन बहुत आवश्यक बातें हैं: बिजली , इस्पात और शिक्षा। सस्ती बिजली के लिए परमाणु उर्जा जरूरी है क्योंकि कम लागत में अधिक बिजली देता है जिसके लिए यूरेनियम की जरूरत होती है। मनमोहन सिंह के अमेरिका के साथ परमाणु समझौता के बाद हमको उरेनियम मिलने का रास्ता खुल जायेगा और हमारा देश भी बिजली उत्पादन में महत्वपूर्ण देश बन जायेगा जो प्रगति के लिए बहुत जरूरी है। मनमोहन और सोनिया गाँधी तथा कांग्रेस बधाई की पात्र है और इसको समर्थन देने वाली पार्टियाँ भी बधाई की पात्र हैं।
- शरद आलोक
ओस्लो, नार्वे

बुधवार, 2 जुलाई 2008

लोकप्रिय संपादक, सृजनशील कवि मित्र कन्हैया लाल नंदन को ७५वा जन्मदिन मुबारक

भइया कन्हैया लाल नंदन को बहुत -बहुत शुभकामनाएं - शरद आलोक
जब भी कहीं कविसम्मेलन, पत्रकार सम्मेलन और लेखक सम्मलेन हो और वहां सबके प्रिय कन्हैया लाल नंदन जी उपस्थित हों तो वह अपने संचालन से समां बाँध देतो हैं। जब भी हिन्दी की पत्रकारिता की बात हो और कन्हैया लाल नंदन का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता।
मेरी सबसे पहली मुलाकात नंदन जी से १९८६ में दिल्ली में उस समय की प्रतिष्ठित पत्रिका दिनमान के कार्यालय में हुई थी। तभी मैंने नार्वे से पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त की थी। वह वर्ष मेरा पत्रिकारिता का स्वर्णिम वर्ष था। तीन महीने मैंने साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी में अवैतनिक हिन्दी पत्रिकारिता का अभ्यास किया था। मेरे अनेक लेख और कहानियाँ तथा कवितायें इन दोनों पत्रिकाओं में छपी थी और जिससे हिन्दी जगत से मेरा विस्तृत साक्षात्कार हुआ था। इन्हीं दिनों वामा की संपादक और आजकल हिंदुस्तान व कदाम्बिनी की सम्पादक मृणाल पाण्डेय से हुआ थातब उन्होंने मेरा पत्र भी वामा में छापा था। इसी वर्ष अज्ञेय जी ने मुझे चाय पिलाई थी और इसी वर्ष मेरे मित्र विजयवीर के बड़े भाई और हिन्दी के मशहूर लेखक रघुवीर सहाय से भेंट हुई थी।
इसके पहले हिमांशु जोशी १९८२ में, स्वर्गीय रामलाल, कुरातुल आइन हैदर, अमृता प्रीतम, सत्य भूषण वर्मा, सुरेन्द्र कुमार सेठी और राजेंद्र अवस्थी १९८५ में नार्वे में हमारे मेहमान बने थे। नार्वे आने वालों की लम्बी सूची है।
आगे चलकर नंदन जी से हमारा मिलना तीन बार लन्दन में हुआ । दो बार विशाल कविसम्मेलन में हुआ जिसका आयोजन लन्दन में स्थित हमारे हाईकमीशन ने आयोजित किया था। सिंघवी जी वहां हाई कमिश्नर थे।
महानायक अमिताभ बच्चन भी एक कविसम्मेलन में उपस्थित थे। मेरी मित्रता भी यहाँ पर गोपालदास नीरज और मजरूह सुल्तानपुरी जी से हुई थी। मजरुह जी से उनके जीवित रहने तक मित्रता चलती रही। नीरज जी से अभी दो सप्ताह पूर्व बातचीत हुई।
नंदन जी एक उदार और विवेकी साहित्यकार होने के नाते एक अच्छे शुभचिंतक भी हैं। जब छठे विश्व हिन्दी सम्मलेन का उद्घाटन सत्र था और मेरे द्वारा कुछ प्रश्न पूछे जाने पर नंदन जी ने मुझे नेक सलाह दी थी ताकि अपनी साख बनी रहे और बात भी हो जाए।
अनेक महत्वपूर्ण पत्र पत्रिकाओं के सफल संपादन के साथ-साथ नंदन जी ने अनेक स्मारिकाओं का भी सफल संपादन भी किया है। प्रवासी साहित्यकारों की रचनाओं को खुले ह्रदय से गगनांचल पत्रिका में स्थान देकर एक ऐतिहासिक कार्य किया है नंदन जी ने।
"महक उठे फूलों से कहना
नंदन दूर -दूर देशों में
अपने मित्रों के हृदयों में
नयनों के नीरों में
बहा करता है।
यह नंदन ही भारत का रत्न
मित्रों का मित्र
कविता में दिनकर, पन्त और धूमिल सा
रस बरसाता , मस्त संत सा
अंधकार में दीप जलाता ।"
इन पंक्तियों के साथ मैं कन्हैया लाल नंदन जी को शतआयु होने की कामना करता हूँ और
हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनाएं देता हूँ।
-शरद आलोक




रविवार, 8 जून 2008

विदेशों (नार्वे) में हिन्दी पत्रिका स्पाइल-दर्पण के बीस वर्ष - शरद आलोक

नार्वे में प्रकाशित हिन्दी पत्रिका "स्पाइल- दर्पण" के बीस बरस - शरद आलोक

वर्ष १९८८ को नार्वे से प्रकाशित होने वाली हिन्दी और नार्वेजीय भाषा की द्विमासिक पत्रिका स्पाइल-दर्पण का शुभारम्भ हुआ था।

सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन ने एक आत्मकथात्मक, संस्मरणात्मक पुस्तक लिखी थी "क्या भूलूं क्या याद करूँ"। पुस्तक बहुत चर्चित हुई थी। कुछ लेखकों ने कुछ प्रसंगों के सम्बन्ध में लिखा था कि अमुख़ बात सच नहीं । यदि सच थी तो पहले क्यों नहीं लिखा जब घटित हुई थी। फलस्वरूप मेरे मन में विचार जगा क्यों न मैं वह लिखना शुरू करूँ जो मैंने देखा और पाया ताकि भविष्य में मुझे भी लोग यह कह कर नकार न सकें कि मैंने पहले या अभी क्यों नहीं कहा या लिखा।नार्वे में हिन्दी पत्रिका का शुभारम्भ "परिचय" से हुआ था जिसका प्रकाशन १९७८ में शुरू हुआ था।पिछले वर्ष २००७ और २००८ में केवल दो पत्रिकाएं ही छाप रही हैं। ये हैं सपाइल -दर्पण जो २० साल पहले १९८८ में शुरू हुई थी। और दूसरी नयी पत्रिका "वैश्विका " जिसका प्रकाशन २००७ में आरंभ हुआ जिसका लोकार्पण २००७ में न्यूजर्सी, अमरीका में योगऋषि बाबा रामदेव जी के करकमलों द्वारा छठे हिन्दी महोत्सव में सम्पन्न हुआ था जिसकी प्रतियाँ विश्वहिंदी सम्मेलन में विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा, राजदूत रोनेन सेन, संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारे राजदूत निरुपम सेन, निदेशक इन्द्र नाथ चौधरी, पूर्व राजदूत और सांसद लक्ष्मी शंकर सिंघवी और सभी प्रतिनिधियों को भेंट की गयी और सराही गयी थी।हम देश की सेवा, साहित्य की सेवा , अपने और उस समाज की सेवा करते हैं जिसमें हम रहते हैं तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए ?आपके साथ कुछ बातें बाँट रहे हैं। नार्वे में २८ वर्षों में से २५ वर्षों तक हिन्दी पत्रिकाओं "परिचय" और "स्पाइल-दर्पण के माध्यम से निस्वार्थ सेवा करके जो संतोष और जो सुख मिला उसका वर्णन करना मुश्किल है। विदेशों में हमारे भारतीय और अन्य विद्वतजन हिन्दी की सेवा कर रहे हैं ये सुख वही जान सकते हैं।मैं उन सभी लोगों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जो देश विदेश में हिन्दी, भारत और अपनी संस्कृति का गौरव बढ़ा रहे हैं। मैंने वही किया जो कोई एक संपादक और भारतीय होकर किया जा सकता है। १९८० से १९९० तक का समय विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता की स्थापना का समय था। इस समय जब भारत के प्रवासी बाहर परदेश में अपनी जगह बना रहे थे, हिन्दी की पत्रिका शुरू करना कठिन था। मेरे पास का typewriter नही था। फ़िर भी पत्रिका शुरू की और उसे निरंतर जारी रखा। श्री चंद्रमोहन भंडारी जी ने भी "परिचय " में अपने अच्छे विचार व्यक्त किए थे जो एक अच्छे लेखक और नार्वे के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव थे जो आजकल संयुक्त अरब अमीरात में राजदूत हैं।श्री कमल नयन बक्शी जी को कौन नहीं जानता वह स्वीडैन और नार्वे में भारतीय राजदूतावास में लगभग दस वर्ष रहे होंगे। अनेक यादें अभी भी ताजा हैं। सचिव अशोक तोमर जी ने दूतावास से "भारत समाचार " शुरू किया था जिसमें मैं हिन्दी में अनुवाद करके समाचार दिया करता था।राजदूत कृष्ण मोहन आनंद जी ने " सपाइल -दर्पण " पत्रिका और "भारतीय -नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फोरम " संस्था का आरंभ कराया था। श्री निरुपम सेन और श्री गोपाल कृष्ण गाँधी जी ने इन पत्रिकाओं और भारतीय संस्थाओं को फलने फूलने का अवसर दिया। सचिव पन्त जी ने भी भरपूर सहयोग दिया है। अभी भी नार्वे में हमारा दूतावास बहुत सहयोग करता है जिसकी प्रशंसा मैंने "सरिता" में की है।"परिचय" में मेरे लेखों और संपादकीय लेखों की भारत के कई प्रतिष्ठित पत्रों ने प्रशंसा और चर्चा की थी। १९८३ -८४ पंजाब समस्या के समय हमारी भूमिका स्वागत योग्य थी। धर्मयुग, कादम्बिनी ओर स्वतंत्र भारत ने इस सम्बन्ध में बहुत प्रशंसा की थी। २००७- २००८ में नार्वे से केवल दो साहित्यिक पत्रिकाएं छप रही हैं। "स्पाईल -दर्पण" और "वैश्विका", जैसा ऊपर लिख चुका हूँ । आज इंटरनेट और वेब का जमाना है। सच्चाई अब हम नहीं छिपा पायेंगे। जब केंद्रीय सरकार इंटरनेट से भारतवासियों की सहायता लेगी और विदेशों में भारतीयों को दिए जाने वाले पुरस्कार और सम्मान का पता चलेगा तब- तब सही कदम उठाने में सहायता मिलेगी। जैसे आजतक TV chainal ने असत्य से परदा हटाया है । आप अपने विचार लिखकर सहयोग करें तथा विदेशों में अपने देश का नाम करें। बहुत से लेखकों ने तो यात्रा वृत्तांत और प्रवासी साहित्य पर पुस्तकें भी लिखी। विदेशों में लिखे साहित्य और क्रियाकलापों का सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए। विशेषकर जो भारत की प्रतिष्टा को उजागर करने वाले और सृजनात्मक सत्य को प्रगट करने वाले हों।सही समाचार की कमीविदेश में समाचार पत्र भी हमारे देश भारत की अनेक अवसर पर सही तस्वीर नहीं दिखाते। हम लोगों को चाहिए की हम संपादक के नाम पत्र लिखकर भेजें उसमें अपने देश भारत की तरक्की, उसके गौरवमयी कार्यों और उपलब्धियों को लिखकर बताएं और उसे छपाये ।आप मेरे बारे में जानना चाहते हैं, दिल्ली से प्रकाशित "सरिता" मार्च द्वितीय में मेरे बारें में आपको कुछ सूचना मिल जायेगी। मुझे अनेक पत्र मिले। आपका पत्र के लिए बहुत आभारी हूँ ।यह जरूर सोचिये की आपने हिन्दी के लिए क्या किया है और हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करके और पुस्तकें खरीद कर उसे उपहार में दीजिये ताकि हम अपनी भाषा हिन्दी का प्रसार और विस्तार में सहयोग दें। धन्यवाद।
-शरद आलोक

गुरुवार, 5 जून 2008

विश्व पर्यावरण दिवस पर बच्चों ने किया मार्च

आज ५ जून को पूरे विश्व में में पर्यावरण दिवस मनाया गया
आज पूरी दुनिया में पर्यावरण दिवस मनाया गया। नार्वे की राजधानी ओस्लो में ३००० बच्चों ने जुलूस निकाला और नार्वे के पर्यावरण और विदेश सहायता मंत्री एरिक सूलहाइम को पर्यावरण को लिए सलाह दी। बच्चों ने निर्णय लिया और इन ३००० बच्चों को पर्यावरण एजेंट बनाया गाया। बच्चों ने निर्णय लिया की वे कूढा फेकते समय शीशा, कागज, प्लास्टिक, लोहा और करकट अलग-अलग करके फेकेंगे ताकि पर्यावरण को सुरक्षित रखा जा सके। इस अवसर पर सोशलिस्ट पार्टी की ओस्लो शाखा ने पर्यावरण दिवस पर लोगों से निवेदन किया की लोग अधिक से अधिक रेल, ट्राम, साईकिल, रेल आदि का प्रयोग करें तथा पर्चे बांटे।
- शरद आलोक

शनिवार, 31 मई 2008

ओस्लो स्थित गुरुद्वारे में दोबारा चुनाव १५ जून को

परदेश में हम अपनी परम्परा मनाने लगे है:
भारत में जहाँ हम बच्चों के जन्मदिन होटलों- रेस्तरां में मनाने लगे हैं। मैंने देखा, कि लोग विदेशों में अपने तीज त्योहारों और जन्मदिन-समारोह आदि को भारतीय परम्पराओं के अनुसार मनाने में विश्वास करते हैं जो इस बात का सबूत है कि भारत के बाहर भी भारतीय लोग अपने आप को अपनी परम्पराओं के अनुरूप ढालने लगे हैं। इसीलिए कोई अपना जन्मदिन मन्दिर में मनाता है और कोई इस अवसर पर अपनी प्रार्थना-अरदास गुरुद्वारे में कराता है । जो लोग सामाजिक रूप से ज्यादा सक्रिय हैं वे अनेक अवसरों पर अपने घरों पर साहित्यिक कार्यक्रम कराते हैं। अपने अलावा लेखकों और ऋषि मुनियों का जन्मदिन मनाते हैं। अपने शहीदों को याद करते हैं जो इस बात का उदाहरण हैं की हम अपनी संस्कृति को अपने बच्चों के द्वारा भविष्य के लिए सुरक्षित रख रहे हैं। हमको संकीर्ण विचारधारा का नहीं होना चाहिए। जिस भी देश में रहते हैं, उसके विकास के बारे में सोचना तो जरूर चाहिए लेकिन अपने मूल देश की संस्कृति , समाज, समारोह व परम्पराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए। मैं इस सन्दर्भ में ऐसे लोगों को बधाई देता हूँ जो अपनी संस्कृति और उदार परम्परा को अपनाते हैं।

ओस्लो स्थित गुरुद्वारे में दोबारा चुनाव १५ जून को:
ओस्लो में स्थित श्री गुरुनानक देव जी गुरुद्वारे में १५ जून को दोबारा चुनाव हो रहे हैं। इसमें कई लोग बहुत सक्रिय थे जिसमें एक महिला प्रबंध समिति में मंत्री चुनी गयीं जिनका नाम रणजीत कौर है, उनकी वाणी ने बहुतों का दिल जीत लिया । वे सभी को आदर से बुलाती थीं कोई भेदभाव नहीं रखती थीं। वह पहली महिला मंत्री बनी थीं जिन्हें हमेशा उनके संचालन के लिए याद किया जायेगा। गुरुद्वारा की प्रबंधक समिति भंग कर दी गयी है पूरी कार्यकारिणी ने अपना स्तीफा दे दिया था, जो अपना पूरा साल भी नहीं पूरा कर पायी। इसने केवल पाँच महीने ही पूरे किए जबकि इसे दो साल के लिए चुना था।
अब नए चुनाव १५ जून २००८ को होंगे।-
- शरद आलोक

नेहरू चाचा की पुण्य तिथि पर श्रधांजलि

नेहरू चाचा की पुण्य तिथि पर श्रधांजलि
चाचा नेहरू का जन्मदिन १४ नवम्बर १९८९ को इलाहाबाद में हुआ था। पूरे विश्व में उनकी पुण्य तिथि २७ मई २००८ को श्रधांजलि देकर याद किया गया। नार्वे में हमने बच्चों को एक गोष्टी में उनकी जीवनी सुनाई। वह भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। २७ मई १९६४ को जवाहर लाल नेहरू जी की मृत्यु हुई थी। इस पुण्य दिन उनकी याद करते हैं। देश में उनकी समाधि पर सोनिया गाँधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बहुत से नेताओं और बुद्धिजीवियों ने पुष्प चढाये। शान्ति के पुजारी, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम सभी ने सुना होगा। वे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जब इनकी मृत्यु २७ मई १९६४ को हुई थी उस समय मैं सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में अपने अपने दादा के पास गया था जो अवकाश प्राप्त करने के बाद भी आरामशीन लगा कर काम कर रहे थे। नेहरू जी की मृत्यु पर बाजार बंद कर दिए गए थे। नेहरू जी को हम श्रधांजलि अर्पित करते हैं। मेरे दादा मन्ना लाल शुक्ल जी को भी बहुत दुःख पहुँचा था जबकि वे समाजवादी विचारधारा के थे।
- शरद आलोक

गुरुवार, 29 मई 2008

उत्सव से परिपूर्ण मई का महीना जिसने किया उत्साह दूना

उत्सव और उत्साह का महीना मई
मई के पुष्प , जीवन को हरा-भरा करने के लिए अपने आप में समर्थ हैं। भारत में युवा अपनी हाईस्कूल, माध्यमिक परीक्षाओं के परिणाम प्राप्त करने के बाद अपने अपने आगामी अध्ययन और प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए के लिए जुटे दिखाई देते हैं तो नार्वे में मई महीने का आने का अपना अलग अंदाज है । मई का प्रथम दिन अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। ओस्लो के हर वार्ड में एक सभा या आयोजन होता है जिसमें प्रातकाल का नाश्ता साथ खाया जाता है। चाहे कोई मिनिस्टर हो या बड़ा अधिकारी हो या श्रमिक या सफ़ाई कर्मचारी सभी मिलजुलकर खाते हैं। श्रमिक और सालिडरिटी के गीत गाते हैं। यह सिलसिला सुबह ८ बजे शुरू हो जाता है।
ग्यारह बजे ओस्लो में Youngstorvet में अपनी-अपनी श्रमिक यूनियन और राजनैतिक दल और उसकी विशेष मांग के साथ निकलते हैं ।
मई को नार्वे का आजादी दिवस है
नार्वे में १९४० से १९४५ तक नाजी क्रूर तानाशाह हिटलर का शासन रहा। नार्वे की जनता का साँस लेना दूभर हो गया था। इन वर्षों में एक शांतिप्रिय देश बर्बरता का शिकार हो गया था। आज ८ मई को नार्वे की जनता ने आजादी दिवस मनाया। आज जब मैंने ओसलो नगर में कुछ बुजुर्गों से बातचीत की तो उनकी आँखें भर आयीं। उनका कहना था कि ईश्वर किसी को भी गुलामी न दें। युवाओं का कहना था इक उन्हें गुलामी का कोई अनुभव नहीं है इसलिए उनका इस दिवस से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है। वह क्या जाने आजादी की कीमत जिसने गुलामी नहीं देखी है। मेरी कविता की पंक्तियाँ हैं:
" आजादी की महान जयंती , तुमको बहुत बधाई रे ,
आज हमारे मन में भइया , गूँज उठी शहनाई रे।
गांव -गांव में नगर-नगर में, जहाँ -जहाँ भी क्यारी हो,
आजादी के फूल खिले हों, प्राणों से भी प्यारी हो॥
नहीं चाहिए उसकी रोटी , नहीं चाहिए वे डालर ।
जिसके लेने से हो जाएं, मैंले मेरे ये कालर ॥ "
आजादी का अर्थ है स्वाभिमान और शान्ति से जीवन यापन।
दूसरी बधाई है इसराइल देश की ६० वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं
"इसराइल की आजादी मनाना, तब बहुत आँसू भी बहाना।
स्वर्णिम सपनों के महल, यातनाओं की काली यादें ,
नाजी क्या दरिंदे नहीं जो यहूदियों का रक्त बहाया?
नस्लभेद हो, भेदभाव हो या आतंक का निशाना,
अन्याय के खिलाफ सदा आवाज तुम उठाना॥
चंदन भी जलता है जब चिता पर ,
क्या दिया जलाना, क्या अगरबत्ती जलाना ।
न खुशियों में खुशी है, न दुःख में ही मातम।
इसराइल महकता रहे , हम भी महकते रहें।
न दुश्मन बुरा है, न दोस्त कुछ खास।
आज दो कदम चलें हैं, कल जीवन भर का साथ।"
१७ मई राष्ट्रीय दिवस है :
१७ मई २००५ को नार्वे का संविधान आइद्स्वोल्ल नगर में लिखा गया और
लागू हुआ था जिसे एक सप्ताह में लिखा गया था। सत्रह मई को पूरे नार्वे में ऐतिहासिक स्थलों पर और सार्वजनिक स्थलों पर बैंड बाजे को साथ बच्चे, युवा और सभी एकत्र होते हैं, परन्तु इस पर्व को सुबह बच्चे परेड निकालते हैं नार्वे के रास्ट्रीय तिरंगे के साथ । नार्वे का झंडा नीला, लाल और सफ़ेद रंग का होता है।
इस वर्ष बच्चों को नार्वे के झंडे के अलावा दूसरे देश के झंडे भी लाने की इजाजत दी गयी थी परन्तु लोगों ने केवल नार्वे के राष्ट्रीय दिवस पर केवल नार्वे के झंडे को ही शामिल करना उचित और न्यायसंगत समझा। हालांकि राजा के महल के सामने होने वाली ऐतिहासिक बच्चों के स्कूलों की परेड में केवल नार्वेजीय झंडे थे दो-तीन स्कूलों ने संयुक्त राष्ट्र संघ का भी झंडा भी साथ में उठाया हुआ था।
ओस्लो में तीन बजे नार्वेजीय झंडे के साथ बहुत से युवा भान्ग्रा नृत्य करते ढोल बजाते एक अलग उत्साह प्रदर्शित कर रहे थे।
ओस्लो में शाम को वे युवा जिन्होंने माध्यमिक परीक्षा दे दी थी वह अपनी रंग बिरंगी पोषक के साथ मौज मस्ती में अपने अपने झुंड के साथ राजा के महल के सामने से होते हुए यूनीवर्स्टी औला के सामने कार्ल जुहान सड़क से होतो हुए ओस्लो पार्लियामेंट के सामने तक नाचते गाते मौज मनाते रहे।
२७ मई जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि
१४ नवम्बर १९८९ को इलाहाबाद में शान्ति के पुजारी, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम सभी ने सुना होगा। वे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इनकी मृत्यु २७ मई १९६४ को हुई थी उस समय मैं सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में अपने अपने दादा के पास गया था जो अवकाश प्राप्त करने के बाद भी आरामशीन लगा कर काम कर रहे थे। नेहरू जी की मृत्यु पर बाजार बंद कर दिए गए थे। नेहरू जी को श्रधांजलि अर्पित करते हैं।
- शरद आलोक

सोमवार, 12 मई 2008

बहन मायावती का कामकाज, उत्तर प्रदेश की प्रगति का राज

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के सरकार का एक वर्ष
बहन मायावती की उत्तर प्रदेश में जो भी जय जय हो रही है उसकी सफलता ही उसका राज है। मेरी तरफ से तथा हमारी पत्रिका "सपाइल - दर्पण" और "वैश्विका " की तरफ़ से बधाई। मैंने अपने ८ मोतीझील, ऐशबाग लखनऊ भारत में स्थित कार्यालय को भी बधाई सरकार तक पहुँचने के लिए कहा है। बहन मायावती जी और स्वामी प्रसाद मौर्या जी को तथा उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई। मुख्यमंत्री मायावती ने बसपा सरकार के कार्यकाल में विधानसभा के चुनाव के दौरान जनता से किए वायदे पूरे किए हैं। उनकी एक साल की उपलब्धियाँ शानदार हैं।
बसपा सरकार का एक साल का कार्यकाल जनता की कसौटी पर खरा उतरा है। जनता ने बसपा सरकार के कामकाज पर मोहर लगाई है। लोगों का सरकार के राज में विश्वास बढ़ा है।
लखनऊ कार्यालय को सहयोग और सुरक्षा कि गुहार
मुझे पूरा विश्वास है कि बसपा सरकार लखनऊ कार्यालय को सहयोग और सुरक्षा देगी क्योंकि हमारी विश्व में एक मात्र पत्रिका है जो २० वर्षों से प्रवासी भारतीयों कि सेवा कर रही है जिसके संपादक का सम्बन्ध भी लखनऊ , उत्तर प्रदेश से है जो प्रदेश के लिए और हमारे लिए गौरव कि बात है। मैं जयप्रकाश को भी धन्यवाद देता हूँ जो लखनऊ में पत्रिका का कार्य ईमानदारी से कर रहे हैं।
मायावती विश्व का गौरव
विश्व के लिए यह गौरव कि बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे बड़े राज्य की एक बहादुर और योग्य दलित नेता मुख्यमंत्री हैं।
१३ मई 2008 को बसपा सरकार को एक साल पूरे हुए।
सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक"
ओस्लो, १३-०५-०८

गुरुवार, 8 मई 2008

नार्वे का स्वतंत्रता दिवस और इसराइल के ६०वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं

नार्वे में १९४० से १९४५ तक नाजी क्रूर तानाशाह हिटलर का शासन रहा। नार्वे की जनता का साँस लेना दूभर हो गया था। इन वर्षों में एक शांतिप्रिय देश बर्बरता का शिकार हो गया था। आज ८ मई को नार्वे की जनता ने आजादी दिवस मनाया। आज जब मैंने ओसलो नगर में कुछ बुजुर्गों से बातचीत की तो उनकी आँखें भर आयीं। उनका कहना था कि ईश्वर किसी को भी गुलामी न दें। युवाओं का कहना था इक उन्हें गुलामी का कोई अनुभव नहीं है इसलिए उनका इस दिवस से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है। वह क्या जाने आजादी की कीमत जिसने गुलामी नहीं देखी है। मेरी कविता की पंक्तियाँ हैं: " न होली के रंग हैं, न दीवाली के धमाके। आई थी आजादी, खूब धूम मचाके।"

दूसरी बधाई है इसराइल देश की ६० वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं

इसराइल की आजादी मनाना, तब बहुत आँसू भी बहाना।

स्वर्णिम सपनों के महल में हवामहल बनाना।

चंदन भी जलता है जब चिता पर , क्या दिया जलना क्या अगरबत्ती जलना। न खुशियों में खुशी है, न दुःख में ही मातम। इसराइल महकता रहे , हम भी महकते रहें। न दुश्मन बुरा है, न दोस्त कुछ खास। आज दो कदम चलें हैं। कल जीवन भर का साथ। शुभकामनाएं आपको - "शरद आलोक"

सोमवार, 5 मई 2008

नार्वे में प्रकाशित हिन्दी पत्रिकाएं - शरद आलोक

सुप्रसिद्ध साहित्यकार स्वर्गीय हरिवंश राय बच्चन ने एक आत्मकथात्मक, संस्मरणात्मक पुस्तक लिखी थी "क्या भूलूं क्या याद करूँ"। पुस्तक बहुत चर्चित हुई थी। कुछ लेखकों ने कुछ प्रसंगों के सम्बन्ध में लिखा था कि अमुख़ बात सच नहीं । यदि सच थी तो पहले क्यों नहीं लिखा जब घटित हुई थी। फलस्वरूप मेरे मन में विचार जगा क्यों न मैं वह लिखना शुरू करूँ जो मैंने देखा और पाया ताकि भविष्य में मुझे भी लोग यह कह कर नकार न सकें कि मैंने पहले या अभी क्यों नहीं कहा या लिखा।
नार्वे में हिन्दी पत्रिका का शुभारम्भ "परिचय" से हुआ था जिसका प्रकाशन १९७८ में शुरू हुआ था।
पिछले वर्ष २००७ और २००८ में केवल दो पत्रिकाएं ही छाप रही हैं। ये हैं सपाइल -दर्पण जो २० साल पहले १९८८ में शुरू हुई थी। और दूसरी नयी पत्रिका "वैश्विका " जिसका प्रकाशन २००७ में आरंभ हुआ जिसका लोकार्पण २००७ में न्यूजर्सी, अमरीका में योगऋषि बाबा रामदेव जी के करकमलों द्वारा छठे हिन्दी महोत्सव में सम्पन्न हुआ था जिसकी प्रतियाँ विश्वहिंदी सम्मेलन में विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा, राजदूत रोनेन सेन, संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारे राजदूत निरुपम सेन, निदेशक इन्द्र नाथ चौधरी, पूर्व राजदूत और सांसद लक्ष्मी शंकर सिंघवी और सभी प्रतिनिधियों को भेंट की गयी और सराही गयी थी।

हम देश की सेवा, साहित्य की सेवा , अपने और उस समाज की सेवा करते हैं जिसमें हम रहते हैं तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए ?
आपके साथ कुछ बातें बाँट रहे हैं। नार्वे में २८ वर्षों में से २५ वर्षों तक हिन्दी पत्रिकाओं "परिचय" और "स्पाइल-दर्पण के माध्यम से निस्वार्थ सेवा करके जो संतोष और जो सुख मिला उसका वर्णन करना मुश्किल है। विदेशों में हमारे भारतीय और अन्य विद्वतजन हिन्दी की सेवा कर रहे हैं ये सुख वही जान सकते हैं।
मैं उन सभी लोगों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जो देश विदेश में हिन्दी, भारत और अपनी संस्कृति का गौरव बढ़ा रहे हैं। मैंने वही किया जो कोई एक संपादक और भारतीय होकर किया जा सकता है।
१९८० से १९९० तक का समय विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता की स्थापना का समय था। इस समय जब भारत के प्रवासी बाहर परदेश में अपनी जगह बना रहे थे, हिन्दी की पत्रिका शुरू करना कठिन था। मेरे पास का typewriter नही था। फ़िर भी पत्रिका शुरू की और उसे निरंतर जारी रखा। श्री चंद्रमोहन भंडारी जी ने भी "परिचय " में अपने अच्छे विचार व्यक्त किए थे जो एक अच्छे लेखक और नार्वे के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव थे जो आजकल संयुक्त अरब अमीरात में राजदूत हैं।

श्री कमल नयन बक्शी जी को कौन नहीं जानता वह स्वीडैन और नार्वे में भारतीय राजदूतावास में लगभग दस वर्ष रहे होंगे। अनेक यादें अभी भी ताजा हैं। सचिव अशोक तोमर जी ने दूतावास से "भारत समाचार " शुरू किया था जिसमें मैं हिन्दी में अनुवाद करके समाचार दिया करता था।
राजदूत कृष्ण मोहन आनंद जी ने " सपाइल -दर्पण " पत्रिका और "भारतीय -नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फोरम " संस्था का आरंभ कराया था। श्री निरुपम सेन और श्री गोपाल कृष्ण गाँधी जी ने इन पत्रिकाओं और भारतीय संस्थाओं को फलने फूलने का अवसर दिया। सचिव पन्त जी ने भी भरपूर सहयोग दिया है। अभी भी नार्वे में हमारा दूतावास बहुत सहयोग करता है जिसकी प्रशंसा मैंने "सरिता" में की है।

"परिचय" में मेरे लेखों और संपादकीय लेखों की भारत के कई प्रतिष्ठित पत्रों ने प्रशंसा और चर्चा की थी। १९८३ -८४ पंजाब समस्या के समय हमारी भूमिका स्वागत योग्य थी। धर्मयुग, कादम्बिनी ओर स्वतंत्र भारत ने इस सम्बन्ध में बहुत प्रशंसा की थी।
२००७- २००८ में नार्वे से केवल दो साहित्यिक पत्रिकाएं छप रही हैं।
"स्पाईल -दर्पण" और "वैश्विका", जैसा ऊपर लिख चुका हूँ ।
आज इंटरनेट और वेब का जमाना है। सच्चाई अब हम नहीं छिपा पायेंगे। जब केंद्रीय सरकार इंटरनेट से भारतवासियों की सहायता लेगी और विदेशों में भारतीयों को दिए जाने वाले पुरस्कार और सम्मान का पता चलेगा तब- तब सही कदम उठाने में सहायता मिलेगी। जैसे आजतक TV chainal ने असत्य से परदा हटाया है । आप अपने विचार लिखकर सहयोग करें तथा विदेशों में अपने देश का नाम करें। बहुत से लेखकों ने तो यात्रा वृत्तांत और प्रवासी साहित्य पर पुस्तकें भी लिखी।
विदेशों में लिखे साहित्य और क्रियाकलापों का सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए। विशेषकर जो भारत की प्रतिष्टा को उजागर करने वाले और सृजनात्मक सत्य को प्रगट करने वाले हों।
सही समाचार की कमी
विदेश में समाचार पत्र भी हमारे देश भारत की अनेक अवसर पर सही तस्वीर नहीं दिखाते। हम लोगों को चाहिए की हम संपादक के नाम पत्र लिखकर भेजें उसमें अपने देश भारत की तरक्की, उसके गौरवमयी कार्यों और उपलब्धियों को लिखकर बताएं और उसे छपाये ।
आप मेरे बारे में जानना चाहते हैं, दिल्ली से प्रकाशित "सरिता" मार्च द्वितीय में मेरे बारें में आपको कुछ सूचना मिल जायेगी। मुझे अनेक पत्र मिले। आपका पत्र के लिए बहुत आभारी हूँ ।
यह जरूर सोचिये की आपने हिन्दी के लिए क्या किया है और हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करके और पुस्तकें खरीद कर उसे उपहार में दीजिये ताकि हम अपनी भाषा हिन्दी का प्रसार और विस्तार में सहयोग दें। धन्यवाद।
-शरद आलोक

शनिवार, 3 मई 2008

राजदूत महेश सचदेव जी की विदाई

३ मई ०८ को ओसलो में भारतीय राजदूत महेश सचदेव की विदाई पर एक पार्टी में भारतीयों ने अपनी शुभकामनाएं दी और प्रवासी कवियों ने कवितायें पढी।

रविवार, 27 अप्रैल 2008

वर्ल्ड बुक डे / दसवां विश्व पुस्तक दिवस

दसवां विश्व पुस्तक दिवस नार्वे में धूमधाम से सम्पन्न
ओस्लो में २३ अप्रैल २००८ को विश्व पुस्तक दिवस मनाया गया। कार्यक्रम का आयोजन भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम ने किया था। यूनेसको में १९९५ को इस दिन को मनाने का निर्णय लिया गया। नार्वे में १९९७ से यह दिन मनाया जा रहा है। फोरम इस दिवस को २००४ से मना रही है। इस दिन पर लेखकों की रायल्टी और कापीराईट आदि की ओर ध्यान दिलाया गया।
शाहेदा बेगम ने अपनी कहानी "उगुलियों की नाप" और सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक" ने अपनी कहानी "अधूरा सफ़र" सुनाई। राय भट्टी, इंदरजीत पाल, माया भारती, बलबीर सिंह और सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक" ने अपनी-अपनी कवितायें सुनाई।
- शरद आलोक
नार्वे

शनिवार, 12 अप्रैल 2008

वॉशिंगटन में हिन्दी सम्मेलन २००८

आज वाशिंगटन में हिन्दी सम्मेलन हो रहा है जो इस बात का प्रमाण है की विदेशों में हिन्दी का विकास और प्रचार व प्रसार हो रहा है। इस सम्मेलन में भाग लेने वाले हिन्दी प्रेमी और सभी अमरीकी वासी भारतीयों को इसका श्रेय जाता है।
भारत में हम सभी लोगों को चाहिए की अपनी भाषा व राष्ट्रभाषा हिन्दी को वह महत्व दें जो उसे मिलना चाहिए। इस सम्मेलन में भारत से सुप्रसिद्ध विद्वान् प्रो कालीचरण स्नेही , सुप्रसिद्ध कवि और दैनिक जागरण में पत्रकार सुरेश अवस्थी, गजेन्द्र सोलंकी और हास्यकवि सुनील जोगी थे।
सम्मेलन की सफलता के लिए मैं आलोक मिश्रा, सुधा ओम ढींगरा, रवि प्रकाश सिंह, राम बाबू गौतम और अन्य सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक"
ओस्लो , नार्वे
दिनांक १२ अप्रैल २००८