शुक्रवार, 31 जुलाई 2009

आज मुंशी प्रेमचंद जी का जन्मदिन ओस्लो में मनाया गया - 'शरद आलोक'

नार्वे में उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया।

कल ३१ जुलाई २००९ को ओस्लो में भारतीय -नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फॉरम की ओर से मुंशी प्रेमचंद जी का जन्म दिन धूमधाम से मनाया गया। आपका जन्म ३१ जुलाई १८८० और मृत्यु ८ अक्तूबर १९३६ को हुई थी। प्रेमचंद ने भारतीय साहित्य को नया आयाम दिया। प्रेमचंद ने हिन्दी को बहुमूल्य उपन्यास और कहानियाँ दी हैं। सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक ने प्रेमचंद के साहित्य पर प्रकाश डालते हुए कहा किआज भी उनका साहित्य अनेक सन्दर्भों में प्रासंगिक है।

रविवार, 26 जुलाई 2009

कारगिल युद्ध की विजय की दसवीं वर्षगाँठ पर शहीदों को शत-शत प्रणाम -शरद आलोक

कारगिल (भारत ) के शहीदों कोटि-कोटि प्रणाम
आज २६ जुलाई २००९ को कारगिल, भारत युद्ध की विजय को १० वर्ष हुए। कारगिल युद्ध के शहीदों को कोटि-कोटि प्रणाम करते हुए मुझे फक्र है की हम भारतीय अपने देश भारत की सेवा देश में अपना पैसा भेजकर कर रहे हैं और करते रहेंगे तथा विदेशों में अपनी भाषा, संस्कृति और देश का प्रचार करते रहे हैं और करते रहेंगे, परन्तु हमारे देश भारत की सेना ने जिस तरह कारगिल में विजय और देश की सुरक्षा पर जान देकर कर रही है उसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। कारगिल के शहीदों को कोटि -कोटि प्रणाम और उनके परिवार को भी शत-शत प्रणाम। जय हिंद - शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे

शनिवार, 25 जुलाई 2009

अंतराष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव Internasjonal Kulturfest

I N V I T A S J O N आमंत्रण
अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह

कविता, पुस्तकों का लोकार्पण और पुरस्कार वितरण
१६ अगस्त २००९ को सायं पाँच बजे
Internasjonal Kulturfest
søndag den 16। august kl 1700
वाइतवेत यूथ सेंटर , वाइतवेत वाईएन ८, ओस्लो में
Veitvet Ungdomssenter, Veitvetvn. 8 i Olso
Indisk -norsk forfatterseminar
Tema: Indisk-norsk litterært samarbeid
Tirsdag den 18 august kl. 1300
på Litteraturhuset i Oslo
भारत -नार्वे लेखक सेमीनार
लिटरेचर हाउस, ओस्लो में
विषय : भारत -नार्वेजीय साहित्यिक सहयोग
अधिक सूचना के लिए या आप कार्यक्रम में भाग लेना चाहें तो संपर्क करें : टेलीफोन 22 25 51 57
For mer informasjon eller ønsker om å delta med egne biddrag ta kontakt : Tlf. 22 25 51 57

हार्दिक स्वागत है
Hjertelig velkommen

कार्यक्रम में कोई प्रवेश शुल्क नहीं है और जलपान की व्यवस्था है।
Ps: Arrangementene er gratis og det blir lett servering

भारतीय -नार्वेजीय सूचना और संस्कृतिक फोरम
Indisk -norsk Informasjons -og kulturforum
Postboks 31 Veitvet, 0518 Oslo, Norway E-mail: speil.nett@gmail.com

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गुरुवार, 23 जुलाई 2009

चंद्र शेखर आजाद के जन्मदिन पर उनको प्रणाम - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

भारत की पूर्ण आजादी का सपना देखने वाले चंद्रशेखर आजाद को प्रणाम-'शरद आलोक'

आज भारत की पूर्ण स्वतंत्रता का स्वप्न देखने वाले महान क्रांतिकरी चंद्रशेखर आजाद का जन्म दिन है।
वह हम सभी के लिए प्रेरणा हैं तथा वीरता और त्याग की एक बहुत बड़ी मिसाल हैं।
२३ जुलाई १९०६ को मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले में जन्मे, उन्नाव जिले से जुड़े और देश भारत की आजादी के लिए अपनी कुर्बानी देने वाले क्रन्तिकारी वीर चंद्र शेखर आजाद की मृत्यु २७ फरवरी १९३१ को इलाहबाद में अंग्रेजी पुलिस से संघर्ष करते हुए आखिरी गोली स्वयम अपने को मार ली ताकि वह जीवित उनके हाथ न आ सकें।
भारत में सभी के लिए सामान अवसर और इज्जत का जीवन व्यतीत हो ऐसे महँ विचारों वाले अमर शहीद चंद्र शेखर आजाद को अपनी एक कविता के माध्यम से शीश नवाता हूँ ।

पूर्ण आजादी के मतवाले,
भारत माँ के लाल!
भारत में कोई न भूखा होगा,
शिक्षा और चिकित्सा सबको
भेदभाव का कोढ़ न होगा
मस्तक ऊँचा होगा अपना
न कोई हो कंगाल।

उठो युवा अब देश बुलाता
आहुति दे अपने देश के
यज्ञों - हवनों में त्याग प्रेम की
सुमिधा बन जीवन महकाएँ
अपने लिए जिए बहुत हम भइया,
दूजों के लिए राह बनाएं।
मनुज विश्व के कुछ कर जाएं
भाग्य कर्म से ओ बलिदानी
अपना कर्तव्य निभाएं।

आजाद कोटि नमन है
शरद आलोक शीश झुकाता
वीरता और पौरुष को
उद्देश्यों को गले लगाऊं
कट जाऊं पर शीश न झुकाऊं
सत्य, त्याग, समता के खातिर
जीवन सदा करूँ न्योछावर अपना धर्म निभाऊं ।

शनिवार, 18 जुलाई 2009

१७ जुलाई नेल्सन मंडेला का 91 जन्मदिन सेवा दिवस -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

नेल्सन मंडेला को ९१ जन्मदिन पर हार्दिक बधाई - 'शरद आलोक'


सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' दायें से पहले और तीसरे हाथ हिलाकर अभिवादन करते नेल्सन मंडेला और नार्वे के बिशप ओरफ्लोत ( यह चित्र 9दिसम्बर 1993 में ओस्लो के अख़बार 'दाग्ब्लादेत' ( Dagbladet) में प्रकाशित हुआ था।


नोबेल पुरस्कार विजेता और शान्ति और संघर्ष के प्रतीक नेल्सन मंडेला का ९१ वां जन्मदिन दक्षिण अफ्रीका में सेवा दिवस के रूप में मनाया गया। मुझे स्मरण है जब मैं साप्ताहिक हिंदुस्तान में १९८६ में ब्रिज नारायण अग्रवाल और राजेंद्र अवस्थी जी के साथ था तब मेरा लेख छापा था 'दक्षिण अफ्रीका' पर सोना पैदा करने वाला देश कब तोडेगा लोहे की जंजीरें। आज विश्व ने उनका जन्म दिन मनाया।
'जिन्होंने किया था जेल में रहकर आजादी के लिए संघर्ष
उनको कोटि-कोटि प्रणाम है, शान्ति दूत - समता के आदर्श'



शुक्रवार, 17 जुलाई 2009

ओस्लो की सड़क पर - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'


रिक्शे पर घूमते, ओस्लो की सड़क पर - सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
तुम भी आओ न ओस्लो की सैर पर
ओस्लो की सड़क पर
रिक्शे पर बैठकर
स्मृतियों में घूम गए
अपने देश के नगर।

गाँव-गलियों की स्मृति
भर गयी स्फूर्ति,
ओस्लो में ठंडी -ठंडी बयार
आकर ब्रिग्गे पर सागर तट की नमी
भारत की गर्म हवा की कमी,
समझा नहीं पा रही माँ की गुहार।
नावों और जहाजों के द्वारों पर
आंखों की टकटकी
उत्साह तरोताजा
आशाएं थकी-थकी।
सब ओर नदी-सागर जल,
हो रही चहल - पहल,
करतब दिखाती सुन्दरी
आसमान पर डाले तार
उस पर चलता मोटर साइकिल जवान,
सुन्दरी के करतब को देखते



आयी गावं की नटीनी की याद
किए थे जिसने पेट पीठ एक
बाद में बटोरती सिक्के और विवेक
यहाँ सुन्दरी सुनहरी एकहरी परी
मौत से जूझते थे दोनों
एक छरहरी दूजी सावन की धूप सी खिली
मानो मध्य रात्रि के सूरज को लजाने
ये युवतिया बन गयी सूरजमुखी
हमारी सूरज सी किरणों सी दृष्टि को
मन के कोने में दे गयी थिरकन
आखों से चूमकर गहराती पुरवा बयार
छोड़ आए बेमानी हुए बदलते परिदृश्य
पौधों को दिया नहीं पानी
न बढ़ा सके कदम संकोच के सरगम,
प्रेम को कहें नादानी

बज उठी पायल की झंकार,
रूमाल पर पुष्प से गुदे चित्र
लगते हैं कोहरे मध्य
भूले-बिसरों के वायदे विचित्र।

भूल गए, देहरी पर लगाये थे फूल
कौन सींच रहा होगा, गुलाब या बबूल।
नहीं खोज, कोई ख़बर,
यही है जीवन के पथ का दर्शन, सुकुमार!


धन्य हैं फुटपाथ के संगीतकार !
बीती हुई यादों को दे रहे नयी दृष्टि,
हम बोलते है, पर गूंगे हैं हमारे गुरु।
जो सुन नहीं पाते, वे हैं हमारी प्रेरणा
सूर दे रहे हैं हमें अंतर्दृष्टि,
खोकर सब कुछ निहारते सागर को कभी,
कभी चलते हुए सौन्दर्य की
अजंता की जीती जागती इन्द्रियां।
पुराने क्रिस्तानिया के आधुनिकता से परिपूर्ण
वेगेलांस के नगर में झूम गयी,
ग्लोमा को मान बैठे गंगा,
नदी को समझ बैठे गोमती।

हिमालय की बर्फ की ठंडक लिए
नार्वे की लम्बी शीत
जोडों के दर्द और शरीर की बेबसी सा सौहाद्र,
खुशियाँ कितनी निस्वार्थ।
जीवन का मोलतोल, पैसे यथार्थ?

कितनी भी मिठाई दो, दुलारो समझाओं
कितने भी सब्ज बाग़ दिखाओ?
माँ को भूल नहीं सकते हैं बच्चे!
रोशनी में न दिखा,
वह दिखा रात में सूरज की किरणों में
थ्रोम्सो में हार्स्ताद, उत्तरध्रुवीय नगरों में।
तुम भी करो सैर संग
भर कर नव तरंग
छूट गया , क्या हुआ अपना घर आँगन
भर दो इस संस्कृति में चुटकी भर सिंदूर
आने लगे अपनी भारतीय संस्कृति की सुगंध।

हाथ -पाँव मलने से अच्छा है
देकर जाएं अपनी नयी पीढी को
अपने संस्कारों से परिपूर्ण कदम्ब
जिसकी छाया में पा सके
अपने पूर्वजों के अंश
गर्व से कह उठे
मेरी संस्कृति मेरी अस्मिता
धन्य हैं माता -पिता।
जहाँ भी रहें, खुश रहें
देती है हर माता-पिता और गुरु की दुआ।

तुम आओ ना ओस्लो की सैर पर
शरद आलोक राह देखते
पर भूलना नहीं लाना देश की मिटटी
अपनों की चिट्ठी,
अपनों का प्रेम और दर्द का नशा
मेरे तन-मन में बसा
मेरा घर आँगन
चंदन सी महकती यादें
चमचमाता आगामी भविष्य!

जितना भी प्रेम करो बढ़ता है
जितना भी धोओं निखरता है रंग
यही है जीवन में अपनेपन का अहसास
जो रक्त से नहीं बनता
वरन अहसासों से बनता है
और समर्पण में निखरता है।

ओस्लो की सड़क पर भी भारतीय संस्कृति,
हर एक की अपनी कहानी
हम सब हैं किसान
बोए हैं यादों के हरसिंगार और उगें बबूल
कैसे कहें अपनों की अपनों से बेईमानी ।
बाँहों में थामे चले कितने कोस डगर
डोली की दो पल की याद
दे जाती मुझको मधुमास।

मालिन लगा रही गुहार
- शरद आलोक
धरती पर मेघा की आस
हो बरसात,
खेत - बाग़ आँगन में हरियाली घास
धान की फसल रही पुकार
वर्षा की आए फुहार
मालिन लगा रही गुहार
गीली चादर में उढा कर
दहकती धूप से बचाकर
फूलों के बेच रही गजरे,
सावन का महीना, तप रहे मार्ग
फूल रही साँस
कर रही वर्षा का इन्तजार।

सोमवार, 13 जुलाई 2009

लखनऊ में पुस्तकों का लोकार्पण-शरद आलोक


चित्र में बाएँ से डा रामाश्रय सविता, लखनऊ विश्विद्यालय के प्रो हरी शंकर मिश्र, गोपाल चतुर्वेदी और डा विद्या विन्दु सिंह पुस्तकों का लोकार्पण करते हुए
'छंद विधान ', 'अमूर्त' और 'चंद्र दोहावली' का लोकार्पण सम्पन्न -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
१२ जुलाई को प्रेसक्लब लखनऊ, भारत में रामदेव लाल विभोर की छंद काव्यशास्त्र पर पुस्तक 'छंद विधान', विप्लव वर्मा की नई कविता पर पुस्तक 'अमूर्त' और चंद्र पाल सिंह की चौथी पुस्तक 'चंद्र दोहावली' का लोकार्पण प्रसिद्ध व्यंगकार गोपाल चतुर्वेदी ने किया। 'छंद विधान' की समीक्षा प्रस्तुत की प्रो हरी शंकर मिश्र ने, 'अमूर्त' की समीक्षा प्रस्तुत की डॉ विद्या विन्दु सिंह ने और 'चंद्र दोहावली' की समीक्षा प्रस्तुत की विनोद चंद्र पाण्डेय ने। कार्यक्रम का शुभारम्भ सरस्वती वंदना से किया शिव भजन सिंह कमलेश ने।


बुधवार, 8 जुलाई 2009

क्या नार्वे में विश्व हिंदू परिषद् विवादों के घेरे में?

क्या विहिप ओस्लो में विवादों के घेरे में बुरी तरह घिरी जान पड़ती है?
विदेशों में रहने वाले प्रवासियों के लिए उनकी संस्थाएं बहुत आवश्यक होती हैं, अपनी संस्कृत, भाषा और देश से जुड़ने के लिए। पर बहुधा संस्थाओं में व्यक्ति के अपने आपसी मतभेद दूसरों पर लादना शायद सस्ती लोकप्रियता अथवा चर्चा में आने का कारण हो सकता है।
मेरे पास अनेक ई -पत्र द्वारा और आपसी मेलमिलाप में लोगों ने नार्वे की वी एच पी (विहिप) के सम्बन्ध में चिंता जाहिर की। एक संपादक के नाते मैंने इस संस्था तथा अन्य संस्थाओं के कार्यक्रम में सम्मिलित हुआ हूँ जिसके समाचार भी प्रकाशित किए हैं ।
चुनाव में किया गया निर्णय सर्व मान्य होता है। किसी भी कार्य को करने के लिए उसे भली भांति करना चाहिये।
कुछ समय पहले कुछ बच्चों के माता पिता ने बताया कि जब उनके बच्चे विहिप में हिन्दी पढने गए तो वहां कार्यकर्त्ता युद्ध / लडाई की मुद्रा में दिखे।
गालियों का पाठ ही बच्चे सीख सके। एक बार बिना बताये विहिप का द्वार हिन्दी पढने वाले बच्चों को बंद मिले जिम्मेदार लोग गायब थे।
जो भी हो विहिप उन बच्चों की नजरों में तब तक खरी नहीं उतरेगी जब तक व्यस्क कार्यकर्त्ता ईमानदारी से कार्य नहीं करेंगे। लोगों को विशेष कर बच्चों के माता -पिता को लगता है कि विहिप बच्चों के लिए एक आदर्श संस्था नहीं हो सकती। समय बदलता है। हर समय एक सा नहीं रहता।
एक बात और राजनीति द्वारा प्रयास के बाद ही यह सुलभ हुआ कि संस्थाओं और समाज को सहायता मिले और उसके हितों कि रक्षा हो। यही कारण है कि युवाओं और महिलाओं को कार्यकारिणी में ४० प्रतिशत स्थान देने का प्रावधान है। राजनीति के बिना नार्वे में कोई संगठन नहीं चल सकता परन्तु संगठन का बिना भेदभाव के गैरराजनैतिक होना जरूरी है। डेमोक्रेसी एक बहुत जरूरी हिस्सा है संस्थाओं के लिए।
पाठक लोग बहुत जागरूक हैं । अपने-अपने दायरे में प्रवीण हैं।
यदि आप किसी भी रूप में अपने समाज अथवा नार्वेजीय समाज के लिए कुछ करना चाहते हैं तो अपना मत का स्तेमाल जरूर कीजिये। और उन्ही पार्टियों को वोट दीजिये जो प्रवासी के लिए अच्छी हों। प्रवासियों के हितों कि रक्षा करें। यदि कोई यह समझता है कि वह अपने समाज का अच्छा प्रतिनिधि हो सकता है तो वह संस्थाओं के साथ-साथ सही राजनैतिक पार्टी से जुड़े ताकि वह अपने समाज कि संस्थाओं में प्रजातंत्र को मजबूत करे और दकियानूसी अथवा आपसी मनमुटाव से ऊपर उठ सके। राजनैतिक पार्टियाँ बहुत कुछ सिखाती हैं। कार्यस्थलों के संगठनों में भी सम्मिलित होकर भी आप संगठन के गुर सीख सकते हैं और मतभेद को सुलझाने में सर्वमान्य तरीके का स्तेमाल कर समन्वय और भाईचारा बढ़ा सकते हैं ।
-सुरेशचंद्र शुक्ल

मंगलवार, 7 जुलाई 2009

माइकेल जैकसन को विदाई -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद अलोक'

माइकेल जैकसन की विदाई पर




उन्हें प्रेम समर्पित जो मेरा प्रेम नहीं पाये
कुछ मजबूरी होगी जो कह न पाये - शरद आलोक


संगीत यंत्रों के तार, मुक्त हुए हैं
ज्यों शरीर से मुक्त आत्मा,
वेदों की वाणी कहती ही
जग को अपना बना सकते हो,
कला एक अपनाकर।
संगीत-गीत जग के मन को मोह रहे हैं,
अनजान बना अपना हो जाता
केवल आँचल फैलाकर देखो
द्वार खड़ा जो द्वार ह्रदय के
राह देखता, आस लगाये
तुम क्यों उससे दूर खड़े हो?
प्रेम अन्तर में नहीं जगा तो
तुम क्या मुझसे प्रेम प्रेम करोगे ?

दूजों को खुश रखना आए
प्यासे की जो प्यासा बुझाये
प्यासा नत मस्तक हो जाए,
सेवा -पूजा दो पट सिक्के के
देतें हैं हमको शीतलता

वह दुनिया को देता जो कुछ
वह कोई धन धान्य नहीं है
केवल वह तो शान्ति बीज है
आओ हम भी कुछ प्रेम बिखेरें
दो अश्रु बहायें
भेदभाव के पात्र बने जो
उनको हम सब गले लगाएं।
विश्व के बने हम महान नागरिक
केवल मानव धर्म हमारा।

हाथ तुम्हारा चूम रहा हूँ
पालिश जूतों में करते जो
उनके जूतों को सहलाऊं
खाना लाते बैरों के संग
कुछ कौर निवाले खाना
बस अपना मन बहलाना।

कितने धनी, कितने बड़े हैं
यदि दूजों के लिए नहीं बने हैं
अपने घर के द्वार.
ऐसा ह्रदय नहीं ही जग में
जहाँ नहीं है प्यार।

मुख से बोल नहीं फूटे तो
नहीं बोल सकते हैं जो
नहीं कभी सुन सकते हैं जो
नहीं देख सकते हैं जो
उनसे जितना प्रेम कहाँ हैं ?
हमारे -तुम्हारे मन मन्दिर का प्यार ।

अहम् बहुत है पूरेपन पर
कितने आज अधूरे हो तुम
अगर साथ नहीं चल सकते उनके
जिनके मन में प्यार।

नही उठाया जाता शीश
बिखरे छ्णों को बटोर कर
जो कभी विश्व मंच पर,
मन के मनके रहे बिखेरते
जैक्सन जैसे कितने लोग?
जो दूजों का दुःख harte हैं
संसार उन्हें देता सम्मान ।
टूट गए हों ,
गूँज-गूँज कहकहे लगाते
थिरकते पावों के घुंघुरुओं से तुम !
जीवन की आपा धापी में
कुछ समय मिला, कुछ मधुर स्मृति
अपने मन का बोझ बड़ा है
शान्ति भाव से sheesh navaate
उनको श्रद्धा सुमन chaDhate.
' शरद आलोक '
माइकेल जैक्सन के अन्तिम संस्कार पर श्रद्धांजलि ०७-०७-०९ ओस्लो , नार्वे

बुधवार, 1 जुलाई 2009

अमेरिका का राष्ट्रीय दिवस ओस्लो में धूमधाम से संपन्न -शरद आलोक

अमेरिका का राष्ट्रीय दिवस ओस्लो में धूमधाम से संपन्न -शरद आलोक
फ्रोग्नेर पार्क में अमेरिका का गणतंत्र दिवस मनाया गया
ओस्लो अमेरिकन वुमेंस क्लब के सदस्यों के साथ शरद आलोक
कलाबाजी खाती लड़कियाँ
अमेरिका का राष्ट्रीय दिवस ओस्लो में धूमधाम से संपन्न -शरद आलोकओस्लो के मशहूर फ्रोगनेर पार्क में अमेरिका का राष्ट्रीय दिवस (४ जुलाई ) मनाया गया। इस कार्यक्रम में भिन्न -भिन्न स्टाल लगाये गए। बच्चों के लिए कई प्रतियोगितायें थी। जैसे तरबूजा खाने की प्रतियोगिता। लाटरी, खाने-पीने के सामन की अनेक दुकाने सजाई गयी थी। अनेक जगह ओस्लो अमेरिकन वूमेन क्लब ने केक और पुस्तकों की स्टाल लगाई थी। बच्चे और युवाओं केलिए विशेष आकर्षण था।