रविवार, 30 मई 2010

यूरोपीय संगीत-गीत प्रतियोगिता यूरोविजन में जर्मनी की विजय से पूरे यूरोप में धूम, बहुत-बहुत बधाई - शरद आलोक

यूरोविजन २०१० ओस्लो में जर्मनी की जीत से पूरा यूरोप गीत संगीत पर झूमा
जर्मनी की लेना का चला जादू और विजयी बनीं

बाएं से नार्वे के अलक्सन्देर रीबाक पिछले वर्ष के विजयी और इस वर्ष भाग लेने वाले हारे प्रतियोगी दिद्रिक सूली




प्रतियोगी


१९८५ में यूरोविजन में नार्वे की विजयी मशहूर जोड़ी बोबी सोक्स ( एलिजाबेथ और हाने )

संचालकत्रय (प्रस्तोता)
२९ जनवरी को नार्वे के समय रात ९ बजे से १२:१० तक हुए फ़ाइनल मुकाबले में जर्मनी के कलाकारों ने जीत हासिल की। उन्होंने सर्वाधिक अंक प्राप्त कर पूरे यूरोप में अपने अनुपम मेलोडी संगीत प्रतियोगिता में अपना सिक्का जमा लिया। नार्वे के कलाकार दिद्रिक सूली को करारी हार का सामना करना पड़ा और नार्वे का लगातार जीत का सपना धराशाही हो गया।
नार्वे के पूर्व विजयी कलाकारों ने १७ मई को दिखाया था जादू

सिटी हाल, ओस्लो में हुए कंसर्ट में भाग लेने वाले कलाकार
पिछले वर्ष नार्वे के अलक्सन्देर रीबक ने अपने साथियों के साथ रूस में हुई यूरोविजन मेलोडी प्रतियोगिता में जीत प्राप्त की थी। रीबाक की आवाज मधुर है और वह बहुत अच्छा वायलें भी बजाते हैं। उन्होंने तथा पूर्व नार्वे के लिए २५ वर्ष पूर्व १९९८ में जीत प्राप्त करने वाली दो महिलाओं बोबी सोक्स नाम से मशहूर कलाकारों ने नार्वे के राष्ट्रीय दिवस १७ मई को ओस्लो के सिटी हाल के सामने समुद्र के किनारे हुए कंसर्ट में अपना संगीतमय जादू दिखाया था।

गुरुवार, 20 मई 2010

नार्वे (विदेशों) में हिंदी का विस्तार- शरद आलोक

देवनागरी में ही हिंदी का विस्तार संभव - शरद आलोक
नार्वे में गत २३ वर्षों से प्रकाशित (पांच वर्षों से एक मात्र पत्रिका) 'स्पाइल-दर्पण'

२००७ से प्रकाशित होने वाली अनियमित हिंदी पत्रिका 'वैश्विका'

हिंदी देवनागरी में लिखी जाती है और धीरे -धीरे विस्तार पा रही है। बोलियों के रूप में हिंदी का विकास होने में कुछ यूरोपीय देशों में कुछ समय जरूर लगे पर समूह और प्रवासी समाज में आज हिंदी का वर्चस्व धीरे-धीरे बढ़ रहा है। मेरा मानना है कि विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार को सामयिक, सेकुलर और गैरराजनैतिक बनाना जरूरी है यहाँ बातचीत की जा रही है हिंदी सिखाने वाली संस्थाओं के बारे में। एक बात और भी जरूरी है जो पूर्व कही बात से विपरीत भले ही लगे कि यह भी जरूरी है प्रवासियों के लिए कि वह अपनी भाषा और संस्कृति ( संगीत, नृत्य, कविता, फिल्म और नाटक) आदि के विकास को अधिक बल देने के लिए जरूरी है कि राजनैतिक भागीदारी और मिशन रूप में भाषा (हिंदी) का प्रचार किया जाए। नयी पीढी को, पुरानी पीढी के साथ-साथ युवा पीढी से जोड़ते हुए
तन-मन- धन से सेवा करनी बहुत जरूरी है।
नार्वे में हिंदी पत्रिकाएं
नार्वे में हिंदी कि मात्र दो पत्रिकाएं 'स्पाइल'- दर्पण और वैश्विका पिछले पांच वर्षों से छप रही है। एक पत्रिका पंजाबी और उर्दू में निकलती है और उसका नाम है प्रवासी। इसके अलावा कोई भी पत्रिका हिंदी या पंजाबी में नहीं छपती है। वैश्विका अनियमित है और स्पाइल-दर्पण नियमित २३ वर्षों से छप रही है।
नार्वे से हिंदी में दो ब्लाग भी लिखे जाते हैं और एक नेट पत्रिका भी है।
नार्वे में हिंदी शिक्षा

नार्वे में हिंदी प्रचार-प्रसार में भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम और हिंदी लेखन मंच में सुरेशचन्द्र शुक्ल , हिंदी स्कूल संगीता सीमोनसेन के नेतृत्व में, ओस्लो विश्वविद्यालय जिसमें क्लाउस जोलर प्रोफ़ेसर और अन्य स्कूलों में शिक्षकगण हिंदी की शिक्षा में अपना योगदान दे रहे हैं।
हिंदी कि धार्मिक शिक्षा देने में सनातन मंदिर स्लेम्मेस्ताद, हिन्दू सनातन मंदिर द्रामेन और वी एच पी का नाम लिया जा सकता है।
स्कैंडिनेवियाई देशों में हाईस्कूल और माध्यमिक स्कूलों में हिंदी को अतिरिक्त विषय लेने पर अंको का योग बढ़ जाता है और हिंदी में परीक्षा देने वाले छात्रों को फायदा होता है। कमी है तो हिंदी की निस्वार्थ सेवा करने की, स्वयंसेवियों की कमी और हिंदी लेखकों, विद्वानों की हिंदी के प्रचार -प्रसार में रूचि न लेना भी एक कारण है कि हिंदी आगे नहीं बढ़ पा रही है। क्योंकि हिंदी प्रचारकों और शिक्षकों को यहाँ की भी मूल भाषा में प्रवीण होना जरूरी है।
पाठक से ज्यादा लेखक बढ़ रहे हैं?
ब्रिटेन में यहाँ की सरकार की नीति दूसरी भाषाओँ (हिंदी, पंजाबी) को प्राथमिकता देने की नहीं है। क्योंकि भारतीय लोग हिंदी सीखने की कक्षाएं नहीं चलाते। मंदिर और अन्य स्वयं सेवी संस्थाएं हिंदी सिखाएं तो इन्हें सरकार से संस्कृति और सामजिक कार्यों के माध्यम से आर्थिक मदद भी मिल सकती है। ब्रिटेन, मारीशस में हिंदी के नए पाठक कम बन रहे हैं और लेखक अनेक । मारीशस में हिंदी की कुछ पत्रिकाएं भी बिना भारत सरकार के आर्थिक सहयोग से नहीं छप पातीं। संपादक के ज्ञान को क्या कहें कुछ पत्रिकाएं तो दिल्ली से विदेशों में हिंदी के बारे में लेख लिखाकर छपाती हैं और इस विदेशों में प्रवासी साहित्य पर लिखे अधिकांश लेखों की विश्वसनीयता और संपादकों की योग्यता पर प्रश्न चिन्ह लगाती है।
देवनागरी का प्रचार-प्रसार मिशन भाव से जरूरी
यूरोप में हिंदी के प्रचार प्रसार में युवा वर्ग को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए और उन्हें प्रोफेशनल कार्यक्रमों में ( प्रवासी, हिंदी, संगीत, नाटक, बालिवुड फिल्म फेस्टिवल ) में कम अच्छी हिंदी होने के उपरांत भी हमको उस देश में रहने वाले बच्चों और युवाओं को प्रस्तोता, स्वागताध्यक्ष और संयोजक बनाना चाहिए। जिन्होंने हिंदी सीखी है बेशक वह प्रवीण न हों और भारतीय फिल्म कलाकारों से हिंदी में सवाल पूछे जाने , ताकि हिंदी में गर्व करना सीख सकें वे फिल्म कलाकार जो हिंदी फिल्मों से तो रोटी खाते हैं और अंग्रेजी के गुण गाते हैं। भारत में भी मध्यम वर्ग और कला फिल्मों में भी केवल ऐसे कलाकारों को ही लेना चाहिए जिन्हें हिंदी अच्छी आती हो केवल रंग को देखकर, पैसे के मायामोह में आकर भाषा का बहिष्कार ही अपनी भाषा के प्रति सौतेलापन हमारी पौरुषता को दर्शाता है और दूरदृष्टि कि हम दूसरे के पाले में गेंद फेंक रहे हैं जो हमारी भाषा को दबाकर अपनी भाषा ठोकना चाहते हैं।
हिंदी के बहाने व्यापार बनाम अपने घर में सौतेली
भारत में जब तक हिंदी को सभी प्रतियोगिताओं (पी सी एस, आई ए एस, चिकित्सा, तकनीकी परीक्षाओं में अनिवार्य माध्यम नहीं बनाया जाएगा और उसकी अनिवार्यता को शिक्षा के माध्यम से ग्राह्य और लोकप्रिय नहीं बनाया जाएगा तब तक आशा करने के स्थान पर सभी को स्वयं हिंदी को जगह दिलाने के लिए अपना पसीना, धन और समय लगाना होगा। अपनी भाषा से जैसा व्योहार करेंगे वैसे ही हमको भी वैसी ही इज्जत मिलेगी।
विदेशों में हिंदी का प्रचार प्रसार पर भारतीय सरकार और पार्लियामेंट भी ध्यान दे
देवनागरी को विदेशों में प्रचार प्रसार के लिए हमारे राजदूतावास, व्यापार संगठन और इकाइयां बहुत कुछ कर सकते हैं। वे अपने संस्थानों में और भारत आने वालों को हिंदी में लिखना पढना सिखाएं और उच्च कोटि के पर्चे, कार्ड, कलेंडर, सी डी आदि हिंदी में मुहैया कराएँ और भारत में उन संस्थानों में भी जाने को प्रोत्साहित करें जो विदेशियों और विदेश में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की नयी पीढी को उनके कम हिंदी ज्ञान को भी स्वीकार करते हुए उन्हें गर्व करा सकें और विश्वास करा सकें की हिंदी बोलना, लिखना और पढना आना गर्व करने वाली बात है।
भारतीय पार्लियामेंट में सभी नेताओं को हिंदी में बोलने और अपनी बात को रखने/प्रस्तुत करने में सहयोग देने के लिए हिंदी के उच्चस्तरीय और लचीले पाठ्यक्रम चलाये जाएं।
भारत के सभी विश्वविद्यालयों में हिंदी के विभाग हों और भारतीय दूतावासों में कार्य करने वालों को हिंदी जाननी भी अनिवार्य हो।

सूचनापट, विजिटिंग कार्ड और पत्र अधिक से अधिक हिंदी में ही लिखे जाएं।
हिंदी आपकी अपनी है, अपनाकर तो देखिये। यह भी सोचिये की आपने हिंदी के लिए क्या किया है और क्या कर सकते हैं।
-शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे

सोमवार, 17 मई 2010

१७ मई नार्वे का संविधान दिवस धूमधाम से संपन्न- शरद आलोक

वाइत वेत स्कूल में १७ मई पर ध्वजारोहण


वाइतवेत, ओस्लो में 17 मई

वाइत वेत मैट्रो स्टेशन (थे बने स्टेशन पर)



नार्वेजीय पार्लियामेंट( सतूरटिंग ) के सामने लवलीन नृत्य प्रस्तुत करते हुए
कल १६ मई को अपनी बेटी संगीता और दामाद रोई थेरये के साथ जब आइद्स्वोल नगर से होकर गुजरा थातब मुझे बहुत मनभावन लगा। और लगा जैसे कि मेरे परिवार कि जड़ें भारत से आकर नार्वे में फाइल गयी हैं। (अपने दादा जी, स्व आदरणीय मन्ना लाल शुक्ल की याद आयी जो अपनी संस्कृति को आदर और त्याग के साथ ईमानदारी से पोषित करने के पक्षधर थे। वह विचारों से समाजवादी और कार्यों से कर्मयोगी और नार्वे की श्रमिक पार्टी (अरबाइदर पार्टी) के सिद्धांतों की तरह जमीन से जुड़े रहे। घर से जाति-पात को समाप्त करने की असफल कोशिश की थी पर सफल नहीं रहे थे। पर वह किसी कार्य को छोटा नहीं समझते थे। जब वह लेबर कालोनी ऐशबाग के ब्लाक संख्या ४१ और घर संख्या ३ और चार में रहते थे तो वे अपनी घर की नालियाँ और बाहर की नालियाँ स्वयं साफ़ करते थे जबकि बहुत से लोग उन्हें इस बात के लिए मना करते थे। नालियों में दो अन्य परिवारों और धर्मों के अनुयाइयों के घर की नालियाँ मिलती थीं और मेरे बाबा शाकाहारी थे और उत्तर रेलवे मेंस यूनियन में श्रमिक नेता भी। जिसकी चर्चा को विराम लेकर १७ मई की बात आगे बढ़ता हूँ। )
आइद्स्वोल यह नगर ऐतिहासिक है। १७ मई १८१४ को इसी नगर आइद्स्वोल में नार्वे का संविधान बना था। इस संविधान के तहत यह घोषणा की गयी थी कि भविष्य में नार्वे एक अलग स्वतन्त्र राष्ट्र का अस्तित्व रखेगा।
आज अपने घर के पास वाइतवेत स्कूल जहाँ मेरी निकीता और अलक्सन्देर अरुण भी जाते हैं। कुछ चित्र प्रस्तुत है उनके स्कूल के जहाँ प्रातः राष्ट्रीय दिवस पर धवाजरोहन हुआ मार्चपास्ट निकाला और वाइतवेत मैट्रो स्टेशन पर से मैट्रो लेकर बीच नगर में राजा के प्रसाद के सामने मार्चपास्ट करने गया। जहाँ बच्चों, बैंड बाजों और ध्वजों को लेकर राज परिवार को सलामी देते हुए हुर्रा, हुर्रा शब्द का उच्चारण करते हुए राजमहल के सामने से निकालते हैं और बाद में आइसक्रीम और चाकलेट आदि खाते हैं मौज मनाते हैं बच्चे और बड़े।
मैंने परसों १७ मई पर एक कविता लिखी जिसे आज एक कार्यक्रम में पढ़ना है जो नार्वेजीय भाषा में लिखी है।

शनिवार, 15 मई 2010

मंदिर बेदी के गोदने से धर्म संकट में नहीं है-शरद आलोक

मंदिरा बेदी ने एक ओंकार से धार्मिक आस्था का सम्मान किया है-शरद आलोक

भारत कि विश्व प्रसिद्ध प्रस्तोता, माडेल और कलाकार मंदिरा बेदी ने अपनी पीठ पर 'एक ओंकार' लिखकर ईश्वर में अपनी निष्ठां व्यक्त की है, पता नहीं इससे लोगों को परेशानी क्यों है? एक ओंकार का तात्पर्य ईश्वर एक है। मनुष्य का शरीर सबसे कीमती है। मानव ही सब जीवों में श्रेष्ठ है। विदेशों में पश्चिमी यूरोप और अमरीका, कनाडा में लोग अपनी राष्ट्रीय झंडे को रुमाल, नैपकिन, कपड़ों, आदि में भी करते हैं पर भाव प्रेम और श्रद्धा का रहता है। भारत में भी हम अपने झंडे को अपने जन्मदिन, शादी, और राष्ट्रीय पर्वों पर अपने घरों पर फहरा सकते हैं, पर इसका सम्मान श्रद्धा के साथ करना जरूरी है।

आज आधुनिक युग में धार्मिक संगठनों को अपने धार्मिक सन्देश को बढ़ाना चाहिए न कि कट्टरता की बातों से ध्यानाकर्षण करना चाहिए। रक्तदान, समाजसेवा, स्कूल और अस्पताल निर्माण करके धर्म की तरफ ध्यान दिलाना चाहिए न की सस्ती लोकप्रियता के लिए बुद्धिजीवियों और प्रसिद्ध लोगों
को बेमतलब निशाना नहीं बनाया जाना चाहिए।

नार्वे की बात है एक उदहारण दे रहा हूँ। मेरे संपर्क में नार्वे में रहने वाले अधिकांश भारतीय हैं। जिसमें सिख, हिन्दू, मुस्लिम और ईसाई धर्म मानने वाले और मानवतावादी लोग हैं। मैं राजनीति में भी सक्रिय रहा हूँ और भारतीयों के अलावा दूसरे प्रवासियों: श्री लंका, चिली, पाकिस्तान और नार्वेवासी की राजनैतिक, साहित्यिक और सामाजिक सेवा की है और कर रहा हूँ। अपने फायदे के लिए मैंने धर्म का साथ नहीं लिया मैं भारत का हूँ और नार्वे में वास कर रहा हूँ।

मैं अपने फायदे के लिए कभी भी धार्मिक और भाषाई तर्क देकर वोट नहीं लेता। न ही किसी की निंदा करके। बल्कि मुझे स्वयं अनेक धार्मिक संगठनों के लोगों ने कहा किआपको लोगों ने उतने अतिरिक्त वोट नहीं दिए जितने के लिए आपने कार्य किया है । मैंने उनसे कहा कि 'धन्यवाद, यदि लोगों को मेरी जरूरत होगी तो लोग वोट देंगे।'
नार्वे में हम लोगों को जो राजनैतिक पार्टियों से प्रतिनिधित्व मिलता है उसमें हमारे भारतीय होने को सबसे पहले देखा जाता है, फिर कार्य, योग्यता और तालमेल आदि। धर्म को नहीं देखा जाता। यदि यह पता चल जाए राजनैतिक पार्टी को कि एक प्रतिनिधि कट्टर है तो उसे ज्यादा समय तक नार्वे में सहयोग नहीं मिल सकता। और न ही उसे सहयोग मिलना चाहिए।
हम भारतीयों को सेकुलर राजनीति भारत से मिली है जिसके लिए हम सभी को गर्व है। नार्वे में भी हमारे साथ धर्म और अन्य विचारों के लिए भेदभाव नहीं होता है, जो है वह सामान्य स्थिति और स्वस्थ वातावरण है।
हम सभी यह देखें कि क्या कोई धर्म के नाम पर केवल अपना फायदा करके पूरे समाज को दूषित कर रहा है या कट्टरता को बढावा दे रहा है?
मेरी नजर में मंदिरा बेदी के पीछे पड़े रहना, उन्हें परेशान करना किसी भारतीय के लिए गौरव की बात नहीं है। वह पूरे विश्व में एक जानी-मानी प्रस्तोता हैं जिस पर सभी को गर्व हो सकता है।

गुरुवार, 13 मई 2010

ब्रिटेन (यू के) में १८ एशियाई संसंद चुने गए. वीरेन्द्र शर्मा जी पुनः पार्लियामेंट में निर्वाचित, हार्दिक बधाई-शरद आलोक

यू के पार्लियामेंट में वीरेन्द्र शर्मा पुनः निर्वाचित बहुत-बहुत बधाई-शरद आलोक


संबोधित करते हुए सांसद वीरेन्द्र शर्मा
ब्रिटेन के पार्लियामेंट में १८ एशियाई मूल के सांसद चुने गए हैं उन सभी को हार्दिक शुभकामनाएं। इनमें मेरे पुराने परिचित मित्र वीरेन्द्र शर्मा जी भी पुनः ५१ प्रतिशत से अधिक वोटों से जीत कर दोबारा सांसद bane हैं। जो लोग लन्दन में रहते हैं ऐसा नहीं हो सकता कि वह वीरेन्द्र जी से न मिले हों। वह वर्षों ईलिंग, लन्दन में मेयर रह कर अपनी सेवाएं दे चुके हैं।
मेरा पहले ब्रिटेन/यू के जाना बहुत होता था। साहित्य और कवि सम्मेलनों में हिस्सा लेने। आज भी कथा और कविता के क्षेत्र में हमारे एशिया मूल के अनेक रचनाकार बहुत अच्छा लिख रहे हैं।
उस समय मैं अनेकों बार वीरेन्द्र शर्मा जी से मिला था। मैंने वीरेंद्र शर्मा जी को अपनी पत्रिका भेंट कि थी।
उनके कार्य के तरीके से भी प्रभावित हुआ। उन्हें पिछले वर्ष हमने ओस्लो, नार्वे विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित भी किया था अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक महोत्सव में। पर वह नहीं आ सके थे।
वीरेन्द्र शर्मा जी संभवता नार्वे आयें
आशा है कि जब भारतीय-नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फोरम द्वारा कार्यक्रम इस वर्ष होगा तो वह जरूर आयेंगे। हम उनको सादर आमंत्रित करेंगे।
हम लोग जो भी विदेश में रहते हैं उन्हें राजनीति में सक्रिय हिस्सा लेना चाहिए। मेरा मन्ना है कि चाहे साहित्य हो या समाजसेवा वह भी राजनैतिक भागीदारी से सशक्त होती है।

कल १२ मई नर्सिंग (परिचारिका) दिवस पर देर से बधाई-शरद आलोक

कल १२ मई नर्सिंग (परिचारिका) दिवस पर देर से ही बधाई-शरद आलोक
कल १२ मई को नर्सिंग डे यानि परिचारिका दिवस था। उधार फ़ुटबाल खेलते हुए मुझे जो चोट पीठ पर लगी और दर्द शुरू हुई उससे अभी छुटकारा नहीं मिला इसी कारण कल नर्सिंग दिवस पर बधाई नहीं दे सका। आज सभी बहन भाई मित्र जो भी नर्सिंग प्रोफेशन से जुड़े हैं उन्हें बधाई।
मुझे अपने भतीजे ओम प्रकाश और उनके गुरु श्रीमती चन्द्रा चौहान, सक्सेना जी और श्रीमती गंगा शर्मा (मेरे मित्र विनोद शर्मा जी की पत्नी) तीनो का स्मरण हो आया (ये सभी लखनऊ से सम्बन्ध रखते हैं ।) विनोद जी से तो फोन पर बात हो गयी और अन्य को अपने ब्लॉग के द्वारा स्मरण करने के बारे में विचार किया।
फ्लोरेंस नाईटएंगेल को इस प्रोफेशन /व्यवसाय का प्रेरक बताया जाता है। आज समाज में विशेषकर भारत में इस व्यवसाय के प्रति सम्मान बढ़ा है और इस व्यवसाय ने पूरे विश्व में स्वास्थ-जगत में एक ऐसी हलचल मचाई जिससे सभी का पुलकित होना स्वाभाविक है। कोई भी ऐसा नहीं होगा जो इस देवी स्वरूप/देवतास्वरूप व्यवसाय से लाभ न उठा पाया हो।
आशा है भविष्य में विश्व में सभी जगह इस व्यवसाय का सम्मान बढ़ेगा और इनको दी जाने वाली सुविधाएँ बढेंगी।
मेरे बचपन में यह सन् ७१ कि बात है जब मैं भी महीनों चारबाग लखनऊ में स्थित रेलवे अस्पताल में भारती रहा और तरह-तरह के अनुभव किये। बड़े भाई साईकिल यात्रा में थे, मझिले भाई पी ए सी में थे और पिताजी रोज मुझसे मिलने आते थे। फोन उस समय आम नहीं था न ही घर पर फोन ही था।
मेरे मित्र भी यदा-कदा मिलने आ जाते थे। ४१ वर्ष पहले की बात है। इसी अस्पताल के बाहर और अमौसी एयरपोर्ट पर मुझे स्व इंदिरा गाँधी जी को पुष्प भेंट करने का अवसर मिला था।

गुरुवार, 6 मई 2010

ब्रिटेन में चुनाव और एशियाई मूल के उम्मीदवार - शरद आलोक

आज ब्रिटेन में चुनाव और एशियाई मूल के उम्मीदवार
वीरेन्द्र शर्मा लेबर पार्टी से दोबारा प्रत्याक्षी

आज ब्रिटेन में चुनाव हो रहे हैं। सभी की निगाहें लगी हुई हैं। लेबर (श्रमिक),
कंजरवेटिव (दामपंथी), आजाद डेमोक्रेट पार्टी के मध्य त्रिकोणीय टक्कर है। इस चुनाव में एशियाई मूल की अनेक प्रत्याशी महिला उम्मीदवार भी शामिल हैं। कल परिणाम आयेंगे।

हमारे वीरेंद्र शर्मा जी भी लन्दन से लेबर पार्टी के उम्मीदवार हैं। लेबर के ही मनीष सूद ने स्वयं अपनी पार्टी के प्रधानमंत्री को चुनाव से पूर्व आलोचना करके मीडिया में चर्चित हुए बेशक इससे लेबर पार्टी को थोडा धक्का जरूर लगा होगा। मनीष का ऐसा बयान चुनाव के पहले गैरजिम्मेदाराना है।
तीनो बड़ी पार्टियों ने अपनी पार्टी की तरफ से शबाना महमूद, प्रीती पटेल और शाह सिहेन को उम्मीदवार बनाकर महिला एशियाई सांसद बनने का अवसर तो दिया ही बल्कि चुनाव को दिलचस्प भी बनाया। एशियाई महिला उम्मीदवार ब्रिटेन के चुनाव में एक आकर्षक बिंदु भी बनकर उभरी हैं। हालाँकि ब्रिटेन की तरफ से पहले यूरोपीय यूनियन में एशियाई मूल के अनेक सांसद रह चुके हैं जिनमें
महिलायें भी सांसद रहीं हैं। पर सांसद में चुनाव लड़कर आने का महिलाओं का पहला मौका है क्योंकि एशियाई महिलाओं को चुनाव में उतरने से एशियाई पुरुषों के वोट न मिलने का डर, उन्हें बहस में कमजोर समझने की परम्परात्मक सोच आदि अनेक बातें राजनैतिक पार्टियों को डराती थीं।
इस चुनाव के बाद यदि लेबर सत्ता में नहीं आती है तो सभी जगह खर्च में और संसाधनों में कटौती की जायेगी और परिणाम स्वरूप बहुत सख्ती होगी आर्थिक मामलों को लेकर।
कल परिणाम आयेंगे तब पता चलेगा कौन जीता कौन हारा ।

मंगलवार, 4 मई 2010

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के बहाने- शरद आलोक

अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के बहाने- शरद आलोक
एक मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस था। ओस्लो में धूमधाम से बहुत से लोगों ने श्रमिक दिवस मनाया। प्रातः काल ओस्लो में अनेक जगह श्रीमिकों ने नाश्ता साथ किया। कुक्क जगहों पर लोग अपने साथ नाश्ता साथ लाये और कुछ जगहों पर श्रमिक और राजनैतिक संगठनों: श्रमिक पार्टी और सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी जिसका मैं प्रतिनिधि भी हूँ ने कार्यक्रम आयोजित किये। अपने राजनैतिक मुद्दे श्रमिक से जुड़े रक्खे।
बाद में नागर में ग्यारह बजे योंग्स्तोर्वे में एकत्र हुए वहाँ अलग -अलग श्रमिक संगठनों और राजनैतिक पार्टियों के अपने बैनर नारों समेत सर ऊँचा किये हुए श्रमिकों का सर ऊँचा करने में लगे हुए थे।

एरिक सूलहाइम से मुलाकात


बाएं से श्रीलंका मूल के पार्टी के सदस्य साथी सिथी, पर्यावरण और विदेश सहायता मंत्री एरिक सूलहाइम और स्वयं मैं

बाद में सवा दो बजे मैं ग्रोनलांद ओस्लो में रेस्टोरेंट 'दातेरा तिल हागेन' के पीछे हमारी सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी का समारोह था उसमें ओस्लो के नेता पेर और राष्ट्रीय नेता और पर्यावरण और विदेश सहायता मंत्री एरिक सूलहाइम भी आये थे जिनकी वजह से मैं लेबर पार्टी से त्याग पत्र देकर सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी में शामिल हुआ था। तब मैं लेबर पार्टी का बियरके बीदेल में मंत्री था और इंटरनॅशनल फोरम में कार्यकारिणी सदस्य के अलावा इसकी नेट पत्रिका का भी सम्पादकीय सदस्य था।
आज सब कुछ बदल रहा है। एरिक सूलहाइम से मिलकर कुछ राय विमर्श किया। सभी से मिलकर इस दिन की बधाई दी।
मैं फ़ुटबाल खेलते हुए घायल हुआ
२ मई को फ़ुटबाल खेलते हुए मुझे वाइतवेत स्कूल में चोट लग गयी। एक शाट मारने में मेरे दाहिने जांघ पर खिंचाव आया और मैं पीठ के बल बहुत तेजी से गिरा और चोट आ गयी।
अनुराग विद्यार्थी, मित्र कॉल जी और उनकी बेटी करिश्मा जी भी मेरे आमंत्रण पर चोट लगने के बाद आये और हमने साथ चाय पी। पर चोट की गंभीरता तब समझ आयी जब दर्द बढता रहा और तब अर्जुन के साथ डाक्टर /लेगेवक्त ओस्लो गया वहाँ एक्सरे और अन्य टेस्ट हुए ।
कहाँ बहुत सक्रिय था वहाँ बिस्तर पर आ गया आराम करने जो मेरे बस की बात नहीं थी। डॉ की सलाह पर आराम करना पद रहा है और दर्द से निपटना भी। दर्द से निपटना मुझे पहले से आता है पर एक स्थान पर पड़े रहना बहुत दुखद और असहाय सा लगता है।
देखिये कब मिलती है निजाद/ छुटकारा। इस पीड़ा से।
चार मई को बरफबारी


४ मई को आज ओस्लो में बर्फ़बारी देखकर ऐसा लगता है की शीत ऋतू लौट आयी है। हालाँकि यह बरफ टिकने वाली नहीं है, यह मेरा अनुमान है।
जवाहर लाल नेहरु विश्व विद्यालय दिल्ली मेरा पसंदीदा विश्वविद्यालय
जन मानस की कहाँ प्रतिष्ठा
जब वार वाद पर होते हों,
जनता ke pratinidhi par khule aam
vaar sada kyon hote hain?