शनिवार, 31 दिसंबर 2011

नव वर्ष मंगलमय हो Godt nytt år

Godt Nyttår



Lær av det gamle året


Velkommen til det nye året


Fant fred og lykke i livet


Det du gir deg verden forbli den samme


Ta vare på deg selv


Husk meg noensinne.


hjertelig
Suresh Chandra Shukla



नव वर्ष मंगलमय हो


गत  वर्ष से सीखें

स्वागत करें नए वर्ष का

जीवन में सुख शांति मिले

आप जो देंगे  वही रहेगा शाश्वत
अपना ख्याल रखिये

मुझको भी कभी याद रखिये

सस्नेह

सुरेशचन्द्र शुक्ल

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

उत्तर प्रदेश में भी मुंबई की तरह फ़िल्मी माहौल शुरू होगा- फिल्माचार्य आनंद शर्मा

लखनऊ में अभिव्यक्ति २०११ Expression-2011 एक महान उपलब्धि थी-शरद आलोक 

27 नवम्बर  2011 को लखनऊ के जयशंकर प्रसाद सभागार, कैसरबाग में फिल्माचार्य  आनंद शर्मा जी के नेतृत्व में 14 देशों की लघु फिल्मों  का  प्रदर्शन हुआ. यह लखनऊ में अपने आप में एक अनोखा और अद्भुत प्रयास था जिसमें लखनऊ के नए फिल्मकार और कलाकारों को एक अंतर्राष्ट्रीय सरीखे सा मंच मिला. विभिन्न फ़िल्में  प्रदर्शित की गयीं जिसे दर्शकों सहित मीडियाकर्मियों के अलावा स्वयं फिल्मकारों और कलाकारों ने बहुत सराहा. ऐसे कार्यक्रम अक्सर होने चाहिए, यह कहते बहुतों को सुना गया. 
सेतु सम्मान और कला सम्मान
कार्यक्रम में देश के साथ साथ विदेश से भी अनेक लोगों ने हिस्सा लिया. अमरीका से वी पी सिंह और गायत्री सिंह,  नार्वे से माया भारती, संगीता एस सीमोनसेन और सुरेशचंद्र शुक्ल उपस्थित थे.
सुरेशचंद्र शुक्ल को दो देशों नार्वे और भारत के मध्य सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत करने के लिए सेतु सम्मान दिया गया.  फिल्म इंस्टीटयूट  पूना के छात्र कलाकार योगेन्द्र विक्रम सिंह, मशहूर फ़िल्मकार सुभाष घई  के संसथान के छात्र गौरव मिश्र और आदित्य हवेलिया को उनके फ़िल्मी कलात्मक योगदान के लिए प्रतीक चिन्ह और प्रमाणपत्र दिए गए.
सुरेशचन्द्र  शुक्ल की लघु फिल्म 'इंटरव्यू' सीधे यू ट्यूब से प्रसारित की गयी जिसे लोगों ने सराहा.
 इस बड़े और महत्वपूर्ण आयोजन के सूत्रधार फिल्माचार आनंद शर्मा ने कलाकारों को बधाई देते हुए कहा कि ऐसे कार्यक्रमों से फिल्मों का स्तर बढ़ने में मदद मिलेगी.  और लखनऊ भी निरंतर फिल्म निर्माण और ऐसे फिल्म फेस्टिवल आयोजनों का केंद्र बन सकेगा जहाँ आम फिल्मकार,  मल्टीमीडिया के शिक्षार्थी और शिक्षक मिलकर सभी को एक मंच प्रदान करेंगे और स्वयं भी सहभागिता करेंगे.
वह दिन दूर नहीं कि जब उत्तर प्रदेश में भी मुंबई की तरह फ़िल्मी माहौल शुरू होगा.  फिल्माचार्य आनंद शर्मा जी की ये बातें दादा साहेब की याद दिलाती हैं जिन्होंने सिनेमा को घर-घर -पहुँचाने में अहम् रोल अदा किया.  

रविवार, 4 दिसंबर 2011

नये साप्ताहिक वैश्विका का प्रकाशन आरम्भ आरम्भ- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

नये साप्ताहिक वैश्विका का प्रकाशन आरम्भ- सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 
भारत के नवाबी शहर लखनऊ से वैश्विका साप्ताहिक का प्रकाशन नेहरु जयंती पर आरम्भ हो गया है. वैश्विका शब्द के निर्माण में विचार विमर्श में दिल्ली के जाने-माने लेखक डॉ श्याम सिंह शशि ने मदद की थी. इसे आरम्भ करने में मेरे जैसे एक साधारण लेखक ने जो भूमिका निभायी और संजू मिश्र ने उस भूमिका को साक्षात बल देते हुए पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया. 
फिल्माचार्य आनन्द शर्मा की अहम् भूमिका
जब वैश्विका के प्रकाशन के पूर्व इस पर विचार  हो रहा था की कैसे इसके संयोजन, विचार-विमर्श, संपादन एवं प्रूफरीडिंग हो तब आनन्द शर्मा जी ने कई सुझाव दिए थे.  साहित्यकार डॉ विद्याविन्दु सिंह ने बहुत सहयोगात्मक तरीके से कहा  था कि  वह हर संभव सहयोग करेंगी.
वैश्विका की सामग्री रुचिकर और शिक्षाप्रद है. इसके पहले और दूसरे अंक में नए सामजिक मीडिया (इन्टरनेट, ब्लॉग, ट्वीटर और फेसबुक सम्बन्धी लेख तो थे ही साथ ही भारतीय राजनीति, साहित्य और गांवों पर विषद सामग्री छपी है. पहला अंक नेहरु जी के जन्मदिन बाल एवं सहकारिता दिवस अंक के रूप में समर्पित किया गया है. दूसरा अंक गाँवों की और ओर, इंदिरा गांधी और अन्ना हजारे पर केन्द्रित है. एक संस्थापक के नाते मुझे बहुत खुशी है. मेरे पिताजी कभी चाहते थे कि मैं एक बड़ा पत्रकार बनूँ और साप्ताहिक या दैनिक पत्र शुरू करूँ.. लखनऊ में हमारे वैश्विका  परिवार में अनेक लोगों ने शुरुआत के पहले प्रोत्साहित किया और योगदान दिया उसमें विक्रम सिंह, सतीश मोर्य, संजू मिश्र और शिवराम पाण्डेय की भूमिका अहम् है.
दिनांक 03.12.11 को वैश्विका के कार्यालय का उद्घाटन किया चर्चित कवि और लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार के निजी सचिव डॉ. सुनील जोगी ने किया.
3 दिसंबर को वैश्विका कार्यालय में नार्वे, अमेरिका और भारत की कुछ हस्तियों में भाग लिया और शुभकामनाएं दीं उनमें प्रमुख थे: यू. एस. ए. से वी पी सिंह, गायत्री सिंह और नार्वे से ओमवीर तथा वीणा  उपाध्याय, संगीता शुक्ला सीमोनसेन, अर्जुन शुक्ल  अनुराग शुक्ल थे. इसके अलावा शुभकामनाएँ देने वालों में  संजय मिश्र, लखनऊ विश्व विद्यालय के प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह,  प्रो. प्रेम शंकर तिवारी, डॉ. परशुराम पाल,  फिल्माचार्य आनन्द शर्मा, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की पूर्व  संयुक्त निदेशक विद्याविन्दु सिंह और एनी लोग थे. 

लखनऊ से वैश्विविका साप्ताहिक का प्रकाशन -शरद आलोक

लखनऊ से वैश्विविका साप्ताहिक का प्रकाशन आरम्भ रजिस्ट्रेशन नंबर की प्रतीक्षा में -शरद आलोक
लाख nau

शनिवार, 29 अक्तूबर 2011

मैंने श्रीलाल शुक्ल के रूप में एक बड़ा भाई खो दिया -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

बाएं से नामवर सिंह श्रीलाल और कुंवर नारायण
लखनऊ में अब नहीं मिलेंगे श्रीलाल शुक्ल पर हमेशा याद आते रहेंगे. -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
श्रीलाल शुक्ल जी से मेरा एक दशक पुराना सम्बन्ध था, वह भी लेखकीय सम्बन्ध. उनके जाने से मैंने देश के प्रसिद्ध साहित्यकार और लखनऊ के उदार व्यक्तित्व के रूप में बड़े भाई जैसा एक ऐसा व्यक्ति खो दिया जो अपनी बेबाक टिप्पणी और सहयोगी स्वभाव के लिए आजीवन याद आता रहेगा. अंतिम बार मैंने उनसे उनके निवास पर बातचीत की थी जिसमें लखनऊ विस्वविद्यालय के प्रोफ़ेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह मेरे साथ थे. उन्होंने मुझे अपने दिल्ली में प्रकाशक से मिलने और उनका सहयोग प्राप्त करने के लिए कहा था. और इतने बड़े साहित्यकार होने के बावजूद उन्होंने मेरे जैसे एक आयु में छोटे और विदेश में निवास करते हिंदी साहित्य और हिंदी सेवा में लगे हुए व्यक्ति की सराहना करते हुए कहा था कि 'सुरेश जी मैं आपकी रचनायें और आपके बारे में निरंतर पढ़ता रहता हूँ. प्रोफ़ेसर योगेन्द्र प्रताप सिंह जी ने इसे मेरे लिए एक उपलब्धि बताया था.

मुझे लखनऊ की एक घटना याद आ रही है. एक अन्य कार्यक्रम की जिसमें एक  देश के दूसरे महान साहित्यकार और नयी कहानी के जनकों में से एक 'हँस' के सम्पादक राजेन्द्र यादव जी ने लखनऊ में हो रहे उमानाथ राय बली हाल में संपन्न तीन दिवसीय साहित्यिक गोष्ठी में आयोजक साहित्यकार शैलेन्द्र सागर से मुझे विदेशी हिंदी साहित्य का उद्दरण देते हुए दलित और नारी विमर्श पर टिप्पणी करने के लिए समय माँगा था तो उन्होंने मना कर दिया था. जिन राजेंद्र यादव जी का सम्पूर्ण हिंदी जगत सीधे या नाक सिकोड़ते ही सही बहुत ईज्जत करता है और ह्रदय से सम्मान करता है, उन जैसों की बात को काटकर और बिना समन्वय स्थापित किये इतिहास का हिस्सा बनने की लालसा बेईमानी है. हमको भाई श्री लाल शुक्ल, मित्र कमलेश्वर जी, अग्रज मित्र कुंवर नारायण, डॉ. रमा सिंह और राजेंद्र यादव जैसे महान साहित्यकारों से समन्वय रखने और अच्छे आयोजक बनने की प्रेरणा लेनी चाहिए.

एक घटना और वह है लन्दन में संपन्न हुये छठे विश्व हिंदी सम्मलेन की. लन्दन में संपन्न हुए हिंदी सम्मलेन में लखनऊ के बहुत से हिंदी के लेखकों ने हिस्सा लिया था. साथ ही प्रसिद्ध काव्य आलोचक नामवर सिंह, डॉ. विद्या विन्दु सिंह और बहुत से देश-विदेश के साहित्यकारों के साथ देश के बड़े पत्रकार मित्रों ( दैनिक जागरण के सम्पादक स्व. नरेंद्र मोहन और नव भारत टाइम्स के सम्पादक रहे डॉ. विद्या निवास मिश्र, महान राजनीतिज्ञ और ९ वर्षों तक यू के में भारतीय राजदूत रहे डॉ. लक्ष्मी मल सिंघवी) का सानिध्य और सहयोग भावना देखते नहीं बनती थी. इस सम्मलेन में मेरे काव्य संग्रह 'नीड़ में फँसे पंख' जिसका प्रकाशन हिंदी प्रचारक संस्थान वाराणसी के विजय प्रकाश बेरी ने किया था. काव्य संग्रह 'नीड़ में फँसे पंख' का लोकार्पण नरेंद्र मोहन जी की सलाह और डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी जी और एक सचिव की मदद से विदेश राज्यमंत्री विजय राजे सिन्धिया जी के हाथों भारतीय हाई कमिश्नर जी के निवास पर रात्रि भोज पर हुआ था. इस सम्मलेन में डॉ. महेंद्र के वर्मा, डॉ. कृष्ण कुमार और पद्मेश गुप्त, उषा राजे सक्सेना सहित बहुत से आयोजक सदस्यों का प्रेम भुलाना किसी के लिए संभव नहीं था.

वहाँ तीन सत्रों में १- दलित साहित्य २- विदेशों में हिंदी पत्रकारिता ३- विदेशों में हिन्दी साहित्य सृजन में मंच पर स्वयं बैठे हुए भी संचालन में परिवर्तन करते हुए बहुत से प्रतिभागियों को मौका मिला था जिनका नाम भी वहाँ मौजूद नहीं था. यह हिंदी सम्मलेन एक मात्र ऐसा हिन्दी सम्मलेन था जहाँ असुन्तुष्टों और आलोचकों के लिए एक अलग सत्र का प्रबंध किया गया था जिसमें मेरे सुझाव का अनुमोदन करते हुए उपरोक्त बंधुओं ने संभव कराया था. मैं वापस लखनऊ आता हूँ. यह सब जो लिख रहा हूँ वह समन्वय भावना को ध्यान में रखकर श्रीलाल जी की याद के बहाने कुछ यादें बाँट रहा हूँ.

लखनऊ में उमानाथ राय बली हाल, कैसरबाग लखनऊ में सत्र में तब दीदी स्व. डॉ. रमा सिंह जी ने मुझे बुलाकर अग्रिम पंक्ति में बैठा दिया था.  अचानक मरी लेखक मित्र बहन शीला मिश्र ने बिना मुझे बताये शैलेन्द्र से पुन: परिचय कराया और बताया की मैं विदेशों में रहकर लिखने वाला बड़ा साहित्यकार हूँ.  हलाकि मैं अभी तक अपने को एक आम लेखक मानता हूँ और सभी को बराबर मानने की अभिलाषा रखता हूँ.  मुझे मौका न भी मिला हो मुझे कोई शिकायत नहीं है परन्तु तीन समाचारों ने मेरी टिप्पणी दलित साहित्य और नारी विमर्श पर कर दी थी मुझे ख़ुशी हुई की पत्रकारों की नजर विस्तृत देख पाती है जबकि कई बार आयोजक की नजर पास रहते हुए भी नहीं देख पाती.
आज जब श्री लाल जी नहीं हैं और उनकी बात मैंने भी नहीं मानी थी अब मानूंगा और उनके प्रकाशक किताबघर से मिलूंगा.  एक बात मैंने जैनेद्र कुमार जी की नहीं मानी थी और मेरे काव्यसंग्रह में महादेवी जी की भूमिका से वाचित रह गया था. उस समय मेरे साथ हिमांशु जोशी थे जिन्हें और जिनके बड़े बेटे की कभी बहुत सहायता की थी जैसे आज भी बिन आगे-पीछे देखे यहाँ ओस्लो नार्वे में सहायता किया करता हूँ. 

बुधवार, 26 अक्तूबर 2011

ओस्लो में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया गया.

ओस्लो में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया गया.
२४ अक्टूबर १९४७ में जब स. रा. संघ बन चूका था. बाद में तय किया गया की यह दिन  संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस के रूप में मनाया जाएगा.
भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर  से आयोजित लेखक गोष्ठी में संयुक्त राष्ट्र संघ दिवस मनाया गया.
चित्र में बाएं से भारत से आये विशिष्ट अतिथि श्री सुभास चन्द्र विद्यार्थी, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' और लेखिका इंगेर मारिये लिल्लेएनगेन

शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

KIM-Konferanse i Oslo

KIM-Konferanse i Oslo fra 13.10.11 til 15.10.11
på Folkethus i Oslo. Foto: Suresh Chandra Shukla
Det er noen bilder som ble tatt den 14. oktober: 


मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

Fridtyof Nansen फ्रिद्तयोफ नानसेन और Mahatma Gandhi महात्मा गांधी जी को याद किया गया

Fridtyof Nansen फ्रिद्तयोफ नानसेन और Mahatma Gandhi महात्मा गांधी हमारे  महानायक थे - शरद आलोक  

Fridtyof Nansen फ्रिद्तयोफ नानसेन और Mahatma Gandhi महात्मा गांधी जी को वाईट वेत सेंटर, ओस्लो में लेखक गोष्ठी में याद किया गया. स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विन्गेर Torstein Winger ने दोनों  महानायकों के जीवन और उनके कार्यों पर प्रकाश डाला. कार्यक्रम में कवियों ने अपनी कवितायें पढी और अंत में परिचर्चा संपन्न हुई जिसमें अपने विचार-विमर्श से गोष्ठी में गर्मजोशी भर दी.   कार्क्रम का सञ्चालन भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने की.  कविता पढने वाले मुख्य लोगों में इन्द्रजीत पाल, राजकुमार भट्टी और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  थे. परिचर्चा में संगीता शुक्ल सीमोन्सेन, और अंकुर ताडे, सरदार  मोहिंदर सिंह सिद्धू, बी एस सन्धू, बलबीर सिंह सन्धू,  ने विशेष भूमिका निभायी.

गुदड़ी के लाल अमिताभ बच्चन को जन्मदिन पर बधाई- शरद आलोक

अमिताभ बच्चन को 69 वें  जन्मदिन पर हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनाएं -  शरद आलोक

भारतीय फिल्मों में महानायक और सुप्रसिद्ध साहित्यकार हरवंश राय बच्चन के बड़े पुत्र अमिताभ बच्चन का आज 69 वां जन्मदिन हैं. उन्हें हार्दिक श्रेष्ठ शुभकामनाएं.  वह शतायु हों और हमेशा की तरह 
भारतीय फ़िल्मी दुनिया में  क्षेत्र में अपना योगदान देते रहें. 

पहली मुलाकात   
अमिताभ बच्चन जी से मेरी पहली मुलाकात दिल्ली में हुई थी. तब वह सांसद थे.  वह बिहार के जाने-माने नेता और मुख्यमंत्री तथा तत्कालीन कांग्रेस के महामंत्री भगवत झा आजाद के पत्र के विवाह में सम्मिलित होने आये थे.  उस समय राजीव गांधी जी भी उस विवाह में आये थे. तब अमिताभ जी और तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी से हाथ मिलाकर अभिवादन करने का अवसर मिला था.  मुझे इस विवाह कार्यक्रम में कादम्बिनी के संपादक राजेंद्र अवस्थी जी ले गए थे.

दूसरी मुलाकात

मेरी अमिताभ जी से दूसरी मुलाकात लन्दन में हुई थी. वह एक कवी सम्मलेन में मुख्य अतिथि
 थे यह  कवि सम्मलेन उनके पिताजी श्री हरिवंश राय बच्चन जी को समर्पित था. स्वर्गीय डॉ. लक्ष्मीमल सिंघवी जी और आदरणीय कमला सिंघवी जी ने इस कार्यक्रम का आयोजन किया था.  मुझे भी आमंत्रित किया गया था.  जिसमें मैंने भी अपनी दो कवितायें  पढी थीं. इस कविसम्मेलन का प्रसारण भी अनेकों बार टीवी एशिया पर हुआ था. मैंने अपने लेखक मित्र और हिंदी अधिकारी  डॉ. सुरेन्द्र अरोड़ा के सामने अपनी पुस्तक भेंट की थी.  तब वह कुर्सी पर बैठे थे उनके साथ अजिताभ की पत्नी रमोला बच्चन भी थीं.

गुदड़ी के लाल अमिताभ बच्चन

अमिताभ ने अपने ब्लॉग पर लिखा , ' मैं आज ही के दिन पैदा हुआ था। 11 अक्टूबर 1942 को इलाहबाद के कटरा के भीड़भाड़ वाले इलाके में डॉ. बरार के एक छोटे से मैटरनिटी होम में मेरा जन्म हुआ। मेरे माता-पिता मुझे एक तांगे से घर लाए। '

उन्होंने लिखा , ' मुझे एक गुदड़ी में लपेटकर लाया गया था। मैं अब भी लोगों को खुद को ' गुदड़ी का लाल ' बताता हूं , मतलब ऐसा व्यक्ति जिसे सबसे सस्ता कपड़ा मिला। मुझे उस कपड़े में लिपटकर आना अच्छा लगा और अब भी मैं उसे अच्छा मानता हूं।

अब जगजीत सिंह नार्वे में नहीं आ सकते - शरद आलोक

अब जगजीत सिंह नार्वे में नहीं आ सकते -  शरद आलोक 

१० अक्टूबर 2011 को कल मुंबई में महान गायक,  भारत के प्रसिद्ध  पुरस्कार पद्म भूषण (2003) से सम्मानित जगजीत सिंह का देहांत  हो  गया. उनके  दुनिया से विदा होने के बाद उनके जैसे महान गजल  गायक और संगीतकार की जो जगह रिक्त हुई है उसकी भरपाई करना असंभव है.  अनेकों संस्थाओं को आर्थिक सहयोग करने वाले कलाकार जगजीत सिंह का दुनिया में उनसा कोई और नहीं था.
मेरी पहली और आखिरी मुलाकात
सन 1999 की बात है. लन्दन में छठा विश्व हिंदी सम्मलेन संपन्न हुआ था.  वहां पर हिंदी भाषा और साहित्य के विद्वानों के आलावा बहुत सी फ़िल्मी हस्तियां भी मौजूद थीं.  लाखनऊ शहर के प्रसिद्ध फिल्म कलाकार सईद जाफरी और एनी लोग भी उपस्थित थे. उन्होंने सम्मलेन में हम लोगों के विचार सुने थे.  यहाँ मुझे हिंदी सेवा के लिए गोल्ड मेडल भी दिया गाया था.  जगजीत सिंह जी ने शाम को सम्मलेन में   अपना कंसर्ट किया था. उनकी अनेक हिंदी की रचनाओं ने हिंदी सम्मलेन में भाग लेने वाले श्रोताओं को भाव विभोर कर दिया था. वहाँ मेरी उनसे पहली और आखिरी बार मुलाकात हुई थी.  वह मिलनसार और एक अच्छे इंसान थे.
उन्होंने अपनी गायकी से 1970 में प्रसिद्धि पाई थी. 1980 में उन्होंने अपनी पत्नी चित्रा सिंह के साथ गाया और  विश्व में पति-पत्नी द्वारा गयी गजलों की एलबम को बहुत प्रसिद्धि मिली.   
उनके एकमात्र बेटे की मौत 1990 में हो गई थी. तब सदमें में आकर चित्रा सिंह ने गाना छोड़ दिया था.  चित्रा सिंह की मृत्यु भी बहुत जल्दी 1991 में हो गयी थी.  उन्होंने मुझसे वायदा किया था कि वह हमारे द्वारा चैरिटी यानि सहयोग के लिए अपना कंसर्ट देंगे. आने वाले वर्षों में हमने भी नार्वे में विश्व हिंदी सम्मलेन कराने की योजना थी पर अब जगजीत सिंह कभी नार्वे नहीं आ सकेंगे. उनकी स्मृति में ओस्लो में 15 अक्टूबर 2011 को साहित्य और संगीत प्रेमी एक सभा करने जा रहे हैं. इस ब्लॉग  में पता/ स्थान  के लिए अवलोकन करते रहें .   

गुरुवार, 6 अक्तूबर 2011

Forfatter kafe på Veitvet-महात्मा गांधी जी तथा नोबेल पुरस्कार विजेता फ्रित्तयोफ नानसेन का 150 वां जन्मदिन मनाया जाएगा.

रविवार  9  अक्टूबर को वाईतवेत, ओस्लो में लेखक गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है जिसमें महात्मा गांधी जी तथा नोबेल पुरस्कार विजेता  फ्रित्तयोफ नानसेन  का 150 वां  जन्मदिन मनाया जाएगा. 

Mahatma Gandhi og Fritjof nansen markeres
på Forfaterkafe på søndag den 9. oktober kl. 17:00 på Veitvet.
For sted kontakt på tlf. 22 25 51 57.
Arrangør:
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
Postboks 31, Veitvet, 0518 Oslo

थोमस ट्रांसस्त्रोमेर Tomas Gösta Tranströmer को नोबेल साहित्य पुरस्कार

थोमस ट्रांसस्त्रोमेर Tomas Gösta Tranströmer को  नोबेल साहित्य पुरस्कार -  सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
 10 दिसंबर  को स्टाकहोम, स्वीडेन में  दिया जाएगा. थोमस ट्रांसस्त्रोमेर  का जन्म 15 अप्रैल 1931 में हुआ  था. आप एक कवि हैं. आपकी प्रथम काव्य पुस्तक 17 कवितायें '17 Dikter' सन 1954  में प्रकाशित हुई थी.  दुनिया की बहुत ज्यादा भाषाओँ में अनुवाद किये जाने वाले कवि थोमस ट्रांसस्त्रोमेर एक मनोवैज्ञानिक थे.  स्वीडेन में वह बहुत चर्चित कवि नहीं थे क्योंकि उन्होंने काफी दिनों से अपने ख़राब स्वास्थ के कारण लिखना  बहुत कम कर दिया था. 
सरल भाषा,  अभिव्यक्ति में परिपक्व, गद्यात्मक कविता तथा राजनैतिक कवितायें भी लिखने वाले रहे हैं.  
थोमस ने पुरस्कार मिलने पर कहा की यह पुरस्कार उन्हें प्रोत्साहित करने वाला है.
स्टॉकहोम। साल 2011 का साहित्य का नोबल स्वीडन के कवि थोमस ट्रांसस्त्रोमेर के  दिए जाने की घोषणा दिनांक 6 अक्टूबर को स्वीडेन के समय साढ़े बारह बजे की गयी .  स्वीडिश अकादमी ने मानव मस्तिष्क के अतियथार्थवादी रहस्यमयी चित्रण करने के लिए उन्हें चुना है।

थोमस ट्रांसस्त्रोमेर यह पुरस्कार पाने वाले आठवें यूरोपीय हैं। इसके पहले जर्मनी की उपन्यासकार हर्ता मुलर, फ्रांस के लेखक ली क्लेजिया ने यह प्रतिष्ठित पुरस्कार जीता था। ट्रांसट्रॉमर मूलत कवि हैं और उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा स्वीडन में हुई है।
स्वीडिश भाषा में लिखने वाले थोमस ट्रांसस्त्रोमेर की कविताओं का अनुवाद 1997 में रॉबिन फुल्टन ने किया।

ओस्लो में काव्य संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम

25 सितम्बर 2011 को ओस्लो  में काव्य संध्या और सांस्कृतिक कार्यक्रम
  
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से  रंगबिरंगी  काव्य संध्या नृत्य और संगीत के साथ संपन्न हुई.  कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विंगेर  Torstein Winger और 
वेन्स्त्रे Venstre पार्टी के नेता और ओस्लो की सांस्कृतिक समिति के उपाध्यक्ष शेल वाईवोग  Kjell Veivåg कार्यक्रम एन विशेष अतिथि थे.
काव्य संध्या में शामिल होने वाले कवियों में नार्वे के प्रसिद्द अर्लिंग इंगेरआइदे Erling Ingreide, अर्लिंग कित्तेल्सेन Erling Kittelsen, सिग्रीद मारिये रेफ्सुम Sigrid Marie Refsum, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन Inger marie Lilleengen, बेरित थून Berit Thon,  चिली के लुईस Luis और भारतीय नार्वेजीय लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla थे. 
कार्यक्रम में अनुराग सैम  शाह  Anurag Sam Shaw ने भारतीय राग गाये और अनुश्री  ने कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया.  सभी के ह्रदय को  झंकृत करने   वाला सुन्दर नृत्य चिली के कलाकारों ने प्रस्तुत किया.

23 सितम्बर २०११ को नार्वे में जगदीश गाँधी को संस्कृति पुरस्कार

शिक्षाविद और समाजसेवी जगदीश गाँधी को संस्कृति पुरस्कार -शरद आलोक  
चित्र में बाएं से डॉ जगदीश गांधी Dr. jagdish Gandhi स्थानीय मेयर थूरस्ताइन  विन्गेर Torstein Winger से पदक प्राप्त करते हुए और दायें खड़े हैं संस्था के अध्यक्ष सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla
नार्वे में जगदीश गांधी जी को संस्कृति पुरस्कार प्रदान किया गया. यह संस्कृति पुरस्कार २३ सितम्बर को डॉ  जगदीश गांधी जी को भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा दो महान नोबेल पुरस्कार विजेताओं  विद्वानों : साहित्य में (नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले भारत के ) गुरुदेव रबीन्द्र नाथ टैगोर और (शांति में नोबेल पुरस्कार प्राप्त करने वाले) नार्वे के फ्रित्योफ़ नानसेन की १५० वें  जन्म वर्ष (डेढ़ शती) के अवसर ओस्लो में स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर ने प्रदान किया.  प्रमाणपत्र श्रीमती नंदा एवं शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव दिनेश कुमार नंदा जी ने.  कार्यक्रम  की  अध्यक्षता  संस्था के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  ने की.
फोरम के अध्यक्ष सुरेस्चंद्र शुक्ल ने कहा कि जगदीश गांधी जी से वह सन् १९७४ के बाद आज मिले हैं. जगदीश गांधी जी का संघर्षमय जीवन किसी भी युवा के लिए प्रेरणाश्रोत है बशर्ते वह अपने कठोर मेहनत और दृढ इरादे से कार्य करे. शुक्ल जी ने अपने पुराने दिनों कि याद करते हुए कहा कि श्रीमती भारती गाँधी जी से मेरी पहली मुलाकात सन १९७१ में हुई थी.आदरणीय दीदी भारती गाँधी जी ने मेरी मुलाकात डॉ. जगदीश गाँधी से कराई थी. जगदीश गांधी लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य और सिटी मोंटेसरी स्कूल लखनऊ और अनेकों संस्थाओं के संस्थापक हैं. सन १९७१ में जब वह पुरानी श्रमिक बस्ती, ऐशबाग लखनऊ में युवक सेवा संगठन द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं. और उन्होंने कला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया था. फिर सन १९७२ से १९७४ तक डॉ जगदीश गांधी जी से संपर्क बना रहा.


जगदीश गांधी एक कर्मयोगी हैं और वह युवापीढी के लिए प्रेरणा हैं. उनका जीवन संघर्ष किसी को भी ऊँचाइयों तक ले जा सकता है. बशर्ते वह व्यक्ति अपने संघर्ष और सेवा भाव में पूरी निष्ठां और दृढता से जुड़ा रहे. शरद आलोक ने आगे भावुक होते हुए कहा, मुझे ऐसा लगा कि सन १९७४ से कोई महान बिछड़ा भाई मिल गया हो. ऐसे महान व्यक्तित्व को बार-बार शीश झुकाने को मन करता है.  उन्होंने अन्त में धन्यवाद देते हुए कहा कि यदि समय ने अवसर दिया तो वह जगदीश गांधी जी के आत्मकथ्य अपनी पत्रिकाओं में प्रकाशित करेंगे.

शांति के लिए सर्वांगीण शिक्षा जरूरी - जगदीश गाँधी

जगदीश गांधी ने बच्चों की शिक्षा पर एक बहुत सारगर्भित व्याख्यान दिया. उन्होंने कहा कि बचपन में ही बच्चे के जीवन कि नीव पड़ती है तब उसका सर्वांगीण विकास किया जाना चाहिए. डॉ जगदीश गांधी जी ने अपने व्याख्यानों में सिटी मोंटेसरी स्कूल, उसके विकास और उसकी समाज के प्रति भूमिका पर भी प्रकाश डाला. वह नार्वे में विश्वविद्यालय के आमंत्रण पर आये थे और जगदीश गांधी जी ने स्वयं नार्वे के चीफ जस्टिस को  मानवाधिकार के लिए किये गए कार्यों के लिए सम्मानित किया.  वह नार्वे में  शिक्षाविदों, बहाई धर्मालंबियों, नेताओं से मिले. गांधी जी ने कहा कि भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, नार्वे द्वारा उन्हें पुरस्कृत किये जाने वाले पल उन्हें न भूलने वाले क्षणों में में सुमार करेंगे.

रविवार, 25 सितंबर 2011

लखनऊ की खुशबू और लैटिन अमरीकी नृत्य का आकर्षण -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'

लखनऊ की खुशबू और लैटिन अमरीकी नृत्य का आकर्षण -शरद  आलोक  
नीचे चित्र में जगदीश गांधी जी अपने सम्मान में यूनेस्को द्वारा दिए लंच में वक्तव्य देते हुए (२३.०९.११, ओस्लो)






ओस्लो में लखनऊ की खुशबू



मेरी अनेक रचनाओं में लखनऊ की सरगर्मी, मौसम की  रवानी, ममता में जवानी और पहले आप, पहले आप कहकर कितनी ही रेलें जाने दी होंगी, यह याद नहीं.

जगदीश गांधी जी  से  नार्वे में 36-37  वर्षों मिलने के बाद न जाने क्यों लगा की ओस्लो की धरती वाइतवेत, ओस्लो में लखनऊ की भीनी-भीनी खुशबू आने लगी है. 

नीचे लेटिन अमरीकी नृत्य प्रस्तुत करते हुए चिली देश के कलाकार
चौक, चारबाग,ऐशबाग, यहियागंज, महानगर, मोहनलालगंज आदि के रहने वाले लखनऊ वासियों के साथ साथ पांच धर्मों और सात देशवासियों ने मिलकर 'भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम  की ओर  से आयोजित कार्यक्रम में  जगदीश गांधी जी को अपनी श्रद्धा अर्पित करके हम सभी का गौरव बढाया.  
परसों जगदीश गांधी जी को भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा दो महान नोबेल पुरस्कार विजेताओं: साहित्य में रबीन्द्र नाथ टैगोर और शांति में नार्वे के फ्रित्योफ़ नानसेन  विद्वानों
की १५० वें  जन्म वर्ष (डेढ़ शती) के अवसर पर नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा
संस्कृति पुरस्कार से पुरस्कृत किया  गया.
मेरे मन में उदगार उठने लगे. आज एक बड़े कार्यक्रम की जिम्मेदारी मेरे ऊपर है. Poetry evning काव्य संध्या इसमें अनेक भाषाओँ में कविताएँ पढी जायेंगी. पर कवी हूँ अपनी भावनाओं को नहीं रोक पा रहा हूँ. और एक कविता मेरे अंतर से जन्म लेती दिखाई दे रही है. बहुत सी बातें एक साथ खलबली मचाकर कलम द्वारा कागज़ पर उतरना चाहती है, हाल ही में लखनऊ से बहन डॉ. विद्याविन्दु सिंह, डॉ. कैलाश देवी सिंह, गुरुदेव रबीन्द्रनाथ टैगोर के विस्वविद्यालय शान्तिनिकेतन से प्रो. रामेश्वर और डॉ शकुन्तला मिश्र उर माया भारती के साथ पानी के जहाज से चौबीस घंटे की यात्रा पर गए थे. ओस्लो से फ्रेडरिक्सहाव्न (डेनमार्क) गए थे.  लेटिन अमरीकी गीत नृत्य उत्सव में ओस्लो में भी रातभर रहे और आनंद लिया तथा  पत्रकार धर्म निभाया.  ओस्लो को मैं उत्सव का नगर मानता हूँ और लखनऊ को तहजीब और कलानगर. कविता की बहती पंक्तियों का आप भी आनंद उठाइए: 

'जिन्दगी खूबसूरत नहीं तो क्या कहूं,  
फूल की खुशबू का वह दीदार हूँ .
अंतर ह्रदय से प्रेम कर देखो सही, 
सांस में हवा का एहसास हूँ. 

चारदीवारी बनाकर क्या रोक सके, 
सपनों में बेखटक आते-जाते रहे..
कितने ही अनजान, अनजाने न रहे.
नदी में खींच कर लकीर -फकीर हो गए.

अब दीवार और परदे  से क्या छिपता हुस्न है
सामाजिक मीडिया से घर में, 
मस्तिष्क का पहरा  छोड़कर
कितने ही परम्परा के फाटक तोड़कर.

कितने ही अद्भुत रिश्ते जोड़कर
प्रेम की वह नूर की परी लगती रही
बे चित्र, सिनेमा के दृश्यों सा झकझोर कर 
दिन-रात, रसोंई से लेकर शयनकक्ष तक,

बस, रेल और जहाज पर बैठे हुए
कम्प्युटर पर सैर करते हुए,नाम बदले पतों को ढूंढते
फेसबुक, आर्कुट न जाने कितने पते 
ख़त लिखने का चल अब लौट कर.

बिछड़ों को ढूढ़ते- ढूढ़ते, दूसरों का घर बसाने
आये थे खुद बसेरा बना बैठे नगर में,
लखनऊ आये हो, आया करो
कुछ प्रेम भी देकर मुझे जाया करो!

सड़क पर बैठे हुए, पार्क पर आसमान तकते,
मस्जिदों में सर झुकाते, गुरुद्वारों में लंगर खाते 
और न जाने कितने उत्सव-पर्वों के बाद 
घूमते -हम तुमको मिल जायेंगे 
पर मुझे पहचान पाओगे की नहीं? (लखनऊ में)

दो सप्ताह पहले हम भी बहुत नांचे थे
लेटिन अमरीकी उत्सव में
बहुत नांचे, बहुत झूमे रात भर,
उर्गुआई, चिली, पेरू, ब्रासील 
न जाने कितने देशों  के सुन्दर बदन
नांच-नांच कर बेहोश करदें आपके क्षण. (ओस्लो में)

कवियों को गीत गाता देखकर,
उनकी भाषा के तेवर देखकर
उनके पांवों की थिरकन देखकर
कत्थक- भारत नाट्यम भूलकर
खो गए ऐसे समूचे कुछ समय.
  
सारे देशों की सीमा तोड़कर
सिमट जाती एक बिंदु पर कभी
न जहाँ  आरम्भ अथवा अंत है 
संस्कृति आजादी का ही मन्त्र है

पानी के जहाज पर देखो कभी,
रात-भर  पक्षी  साथ-साथ उड़ते रहे 
नांचकर  थककर छत पर बैठकर
बिछड़े हुए साथी तकते रहे..  (ओस्लो से डेनमार्क यात्रा करते समय)

परसों २३ सितम्बर की बात   है.  जगदीश गांधी जी को संस्कृति पुरस्कार से पुरस्कृत किया जाना था. मुझे पुँरानी बातें याद आ गयीं.  
सन १९७१ का लखनऊ उतना ही  खूबसूरत  लगता था जितना की आज. 
तब आर्थिक संसाधन नहीं थे, पर लोगों में आज की तरह ही मेलजोल था, भाईचारा था और लखनऊ की अपनी तहजीब है कि घर में चाहे खाने के लिए न भी हो पड़ोस से उधर लेकर पान खिलाने और चाय पिलाने का रिवाज था.  मेहमान-नेवाजी ऐसी कि अपने मेहमान को प्राथमिकता देते हैं जैसे पश्चिम देशों में बच्चों और महिलाओं को प्राथमिकता देते हैं और भारत (पूरे भारत) में बुजुर्गों और महिलाओं को पहला स्थान देते हैं. पर लखनऊ कि बात ही कुछ और है. चाहे बच्चा हो या बुजुर्ग, आदमी हो या औरत, गरीब हो या अमीर पर 'पहले  आप' वाली संस्कृति आज भी लखनऊवासियों  के खून में रची बसी है. हमारे शरीर को भौगोलिक बदलाव को सहन करने में पीढियां लग जाती हैं, परन्तु लखनऊ में लखनऊ-वासी बनकर देखिये आप दस साल में ही लखनऊ की संस्कृति आपके नस-नस में हवा सी बहने लगेगी. 
लखनऊ की प्रतिष्ठा और संस्कृति को दूसरे प्रदेश और देश से आये लोगों ने इसे और रंगबिरंगा कर दिया है.
हाँ लखनऊ-वासी परदेशियों और अनजान लोगों को भी गले लगते हैं, और वह जानते हैं कि एक दिन वह भी लखनऊ का होकर रह जाएगा. पर मल्टीनेशनल कंपनियों ने अब लखनऊ वासियों की जेब को स्वास्थ और पानी जैसी  बुनियादी चीजों से महरूम कर दिया है और लखनऊ  का पैसा बहुत गलत हाथों में आ रहा है. लखनऊ ने कभी परवाह नहीं की की उसकी धरती में कौन रोजी-रोटी कमाता है, पर अब अब लखनऊ-वाइयों से सेवा मुफ्त में लेकर अमीर- बेदर्दों ने बुखार ठीक करने के बदले गरीग का पूरा घर गिरवी रखने लगे हैं. भले ही अभी यह कहावत है, पर आने वाले दिनों में यदि लखनऊ में बहुत से दरियादिलों ने ध्यान नहीं दिया तो बहुत से इंसान अपनी जवानी में ही बुढ़ापा देखने को मजबूर हो जायेंगे अभी दिल देकर काम चल जाता है पर बाद में खून देकर या बेचकर ही गुजारा चलेगा जिसकी एक सीमा होती है. 
मैंने देश में भी विदेश में भी देखा है, किसी भी विदेशी संस्थान में लखनऊ के लोग मिले तो देखते ही महसूस हुआ कि बिछड़े हुए भाई-बहन, पडोसी और दूकानदार मिल गए हैं.  विदेशों में तो मुझे पंजाबियों यानी पंजाब प्रांत  से आये लोगों का भी इतना प्यार मिला कि मुझे ओस्लो नार्वे में चुनाव जिताने में उन्होंने मुझे बहुत वोट देकर जिताया था. 
पहले शिक्षा के संस्थानों का अभाव था.  आज शिक्षा पहले से बेहतर हैं पर प्रयाप्त नहीं हैं.
पहले से बेहतर है. लखनऊ में इस बेहतरी में योगदान देले वालों में जगदीश गांधी  और भारती गांधी हैं.   

२३ सितम्बर को दोपहर 'आकरहूस फेस्तनिंग' (भारत के लाल किले जैसा महत्त्व)  के पास बैंक प्लेस,  ओस्लो  में यूनेस्को ने जगदीश गांधी जी को लंच के लिए आमंत्रित किया था. मुझे गांधी जी ने आमंत्रित किया था. वहां अनेक चिरपरिचित नार्वे के महत्वपूर्ण लोग सम्मिलित हुए थे. वहां भी गांधी जी का शिक्षा के जरिये शांति पर वक्तव्य अच्छा लगा.
जगदीश गांधी जी को ओस्लो में कुछ दूरी पैदल चलाया ताकि जगदीश गांधी जी के साथ पैदल ओस्लो में चलकर लखनऊ की यादें तजा कर सकूं और उन्हें ओस्लो का कुछ पलों का पैदल चलने का क्षण याद रहे.  नार्वे के स्तूरटिंग (पार्लियामेंट), नेशनल थिएटर, फिर उनके होटल रीका से पैदल वापस 
नेशनल थिएटर तक वहां से मित्रो द्वारा वाइतवेत, ओस्लो तक जहाँ कार्यक्रम होना था, साथ-साथ आये. 
एक हमेशा याद रखने वाला दिन था मेरे लिए वह भी आदरणीय जगदीश गांधी जैसे महँ व्यक्ति के साथ. उनके साथ शिशिर श्रीवास्तव जी बी थे जो उनकी यात्रा को सुखमय बना रहे थे. 
फिर कभी लिखूंगा. आज २५ सितम्बर को काव्यसंध्या एवं सांस्कृतिक महोत्सव  Poesikveld og Kulturfest कार्यक्रम की जिम्मेदारी है जो गांधी जी अपने नगर में वैश्विक स्तर का करते रहे हैं. अब विदा दें, फिर मिलेंगे. अपने विचार लिखिए इस बलाग पर. आभार सहित.
                                                                                 - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Oslo, 25.09.11
                                                                                                                                                    speil.nett@gmail.com
माया भारती को घड़ी पर गणेश जी भेंट कटे हुए उनके घर में  

बाएं से लेटिन अमरीकी कवि उर्गुआइ की गायिका बेनदिक्ते, शरद अलोक, कलाकार और लेटिन अमरीकी उत्सव की आयोजक सदस्य वेरोनिका और नार्वे में चिली देश  के महामहिम राजदूत  

शनिवार, 24 सितंबर 2011

आज के गाँधी- जगदीश गाँधी नार्वे में पुरस्कृत - शरद आलोक

पुरस्कार समारोह के बाद एक सामूहिक चित्र, स्तिक   इन्नोम, वाईतवेत सेंटर, ओस्लो में  


आज के गांधी जगदीश गाँधी 

ओस्लो, नार्वे में पुरस्कृत.





बाएं से भारतीय दूतावास के प्रथम सचिव दिनेश कुमार नंदा, श्रीमती नंदा, जगदीश गाँधी पुरस्कार ग्रहण करते हुए दायें स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विन्गेर से और सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक '



शांति के लिए सर्वांगीण शिक्षा जरूरी - जगदीश गाँधी
अपने जीवन को अपने सत्कर्मों से आकाश तक छूने वाले महान समाजसेवी डॉ. जगदीश गाँधी जी को वाईतवेत,  ओस्लो नार्वे में संस्कृत-पुरस्कार से सम्मानित किया गया. स्थानीय मेयर थूरस्ताइन  विंगेर ने भारतीय- नार्वेजिय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, नार्वे  की ओर से संस्कृति-पुरस्कार प्रदान किया.  श्रीमती नंदा जी ने प्रमाणपत्र  दिया और भारतीय दूतावास ओस्लो के  प्रथम सचिव दिनेश कुमार नंदा जी ने शाल ओढ़ाकर  सम्मानित किया.
श्रीमती भारती गाँधी जी से मेरी पहली मुलाकात सन १९७१ में हुई थी. आदरणीय दीदी  भारती गाँधी जी ने मेरी मुलाकात डॉ. जगदीश गाँधी से कराई थी. जगदीश गांधी लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रसंघ के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश विधान सभा के सदस्य और सिटी मोंटेसरी स्कूल लखनऊ और  अनेकों संस्थाओं के संस्थापक हैं.  सन १९७१ में  जब वह पुराणी श्रमिक बस्ती, ऐशबाग लखनऊ में युवक सेवा संगठन द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थीं. और उन्होंने कला प्रदर्शनी का उद्घाटन किया था.  फिर सन १९७२ से १९७४ तक डॉ जगदीश गांधी जी से संपर्क बना रहा. 
जगदीश गांधी एक कर्मयोगी हैं और वह युवापीढी के लिए प्रेरणा हैं.  उनका जीवन संघर्ष किसी को भी ऊँचाइयों तक ले जा सकता है.   बशर्ते वह व्यक्ति अपने संघर्ष और सेवा भाव में पूरी निष्ठां और दृढता से जुड़ा रहे.
जगदीश गांधी ने बच्चों की शिक्षा पर एक बहुत सारगर्भित व्याख्यान दिया.  मुझे ऐसा लगा कि सन १९७४ से कोई महान बिछड़ा भाई मिल गया हो.  ऐसे महान व्यक्तित्व को बार-बार शीश झुकाने को मन करता है.

जगदीश गाँधी के साथ सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' कार्ल युहान सड़क ओस्लो पर जहाँ पीछे पार्लियामेंट भवन दिखाई दे रहा है.  

शुक्रवार, 16 सितंबर 2011

23 सितम्बर 2011 को नार्वे में डॉ जगदीश गांधी का सम्मान & 25 सितम्बर को हिंदी दिवस पर

आमंत्रण Invitasjon

२३  सितम्बर २०११  को जगदीश गांधी का सम्मान

आपको २३ सितम्बर को वाइतवेत सेंटर में स्तिक इन्नोम में

भारतीय समाजसेवी डॉ. जगदीश गांधी को सम्मानित किया जाएगा और

आपको सपरिवार भोज में आमंत्रित किया जाता है.

इस अवसर पर आपको आमंत्रित किया जाता है.

कार्यक्रम 18:00 बजे आरम्भ होगा.

आप उपस्थित होकर हमारा उत्साह वर्धन करें. आने  की  सूचना फोन पर अवश्य दीजिये: +४७ ९० ०७ ०३ १८

रविवार 25 सितम्बर को हिंदी दिवस पर


17:30 बजे कविता और नृत्य महोत्सव

भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम कि ओर से

कविता और नृत्य महोत्सव का आयोजन रविवार 25 सितम्बर को 17:30 बजे

वाइतवेत सालेन, वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में

आयोजित हो रहा है. आप सभी आमंत्रित है.


कृपया आप और परिवार कार्यक्रम में उपस्थित होकर हमको गौरवान्वित करें.

सादर

सुरेशचन्द्र शुक्ल

Suresh Chandra Shukla

Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum

भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम

Pb 31, Veitvet, 0518 Oslo

Phone: 22 25 51 57

Mobil: 90 07 03 18

रविवार, 11 सितंबर 2011

नार्वे में कम्यून के चुनाव 12 सितम्बर को. चुनाव में अपना वोट जरूर दें

12 सितम्बर  को  होने  वाले चुनाव में अपना वोट जरूर दें. - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद अलोक'  नार्वे में कम्यून के चुनाव
माया भारती को फूल देते हुए प्रधानमंत्री स्तोलतेनबर्ग
10 -11 सितम्बर को नार्वे में राजनैतिक सरगर्मी रही. सभी राजनैतिक पार्टियाँ जन संपर्क करके जनता को अपना वोट देने का आवेदन कर रही हैं. 10  सितम्बर को लिंदेरूद शापिंग सेंटर में  प्रधानमंत्री येन्स  स्तोलतेनबर्ग ने जनता से अपील करते हुए कहा की कोई भी राजनैतिक
पार्टी परफैक्ट नहीं है पर फिर भी अपनी अरबाईदर  पार्टी Ap (श्रमिक पार्टी) को वोट देने को कहा और अपनी पार्टी के चिन्ह गुलाब बांटे. नार्वे  में चुनाव चिन्ह नहीं हटा है पर हर पार्टी का लोगो या चिन्ह होता है.
उसके बाद सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी (SV एस वे) के नेता  और मंत्री बोर्ड वेगार सूलयेर  ने भी भाषण दिया और लोगों के प्रश्नों के उत्तर दिए.
मारित नीबाक श्रमिक पार्टी में उप लोकसभा अध्यक्ष हैं उन्होंने मुझे नेशनल थिएटर के सामने फूल भेंट किया.
आप सभी  नार्वे में रहने वालों से निवेदन है की आप अपना वोट जरूर दें और प्रजातंत्र का हिस्सा बनें. ओस्लो कम्यून चुनाव में भारतीय उम्मीदवारोंमें  श्रमिक पार्टी से प्रब्नीत कौर, सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी     से बलविंदर कौर और फ्रेमक्रित्स  पार्टी से ओमबीर उपाध्याय हैं. 
मारित नीबाक मुझे (सुरेशचंद्र शुक्ल ) को गुलाब भेंट करते हुए


शनिवार, 10 सितंबर 2011

आजाद भारत के गांधी अन्ना हजारे

आजाद भारत के गांधी अन्ना हजारे -सुरेशचन्द्र शुक्ल
छोटी सी कद काठी और हाथ में लाठी लिए आजकल भ्रष्टाचार के खिलाफ और इससे निपटने के लिए सख्त लोकपाल विधेयक की मांग कर अनशन पर बैठने वाले अन्ना हजारे को सभी जानते हैं. लेकिन यह जानकारी सिर्फ इसलिए है क्योंकि वह आज देश की संसद के कुछ दूरी पर एक ऐसी मांग के लिए अनशन पर बैठे हैं जिससे हो सकता है देश की तकदीर संवर जाए, भ्रष्टाचार की दीमक का इलाज हो सके.
अन्ना हजारे गांधीवादी विचारधारा पर चलने वाले एक समाजसेवक हैं जो किसी राजनीतिक पार्टी की जगह स्वतंत्र रुप से काम करते हैं. अन्‍ना हजारे का वास्‍तविक नाम किसन बाबूराव हजारे है. 15 जून 1938 को महाराष्ट्र के अहमद नगर के भिंगर कस्बे में जन्मे अन्ना हजारे का बचपन बहुत गरीबी में गुजरा. पिता मजदूर थे, दादा फौज में थे. अन्ना हजारे के छह भाई हैं. दादा की पोस्टिंग भिंगनगर में थी. अन्ना का पुश्‍तैनी गांव अहमद नगर जिले में स्थित रालेगन सिद्धि में था. दादा की मौत के सात साल बाद अन्ना का परिवार रालेगन आ गया.


अन्ना हजारे का बचपन बेहद गरीबी में बीता. उनके परिवार की गरीबी को देख कर अन्ना हजारे की बुआ उन्हें अपने साथ मुंबई ले गईं. अन्ना हजारे ने मुंबई में सातवीं तक पढ़ाई की और फिर कुछ पैसे कमाने के लिए एक फूल की दुकान पर काम किया. साठ के दशक में अन्ना ने भी अपने दादा की तरह फौज में भर्ती ली और बतौर ड्राइवर पंजाब में काम किया. फौज में काम करते हुए अन्ना पाकिस्तानी हमलों से बाल-बाल बचे थे.


इसी दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन से उन्होंने विवेकानंद की एक पुस्‍तक कॉल टू द यूथ फॉर नेशन‘ खरीदी और उसको पढ़ने के बाद उन्होंने अपनी जिंदगी समाज को समर्पित कर दी. उन्होंने गांधी और विनोबा को भी पढ़ा और उनके शब्दों को अपने जीवन में ढ़ाल लिया. अन्ना हजारे ने इसके बाद 1970 में आजीवन अविवाहित रहने का निश्चय किया. 1975 में उन्होंने फौज की नौकरी से वीआरएस ले लिया और गांव में जाकर बस गए.


अन्ना हजारे का मानना था कि देश की असली ताकत गांवों में है और इसीलिए उन्होंने गांवो में विकास की लहर लाने के लिए मोर्चा खोल दिया. यहां तक की उन्होंने खुद अपनी पुस्तैनी जमीन बच्चों के हॉस्टल के लिए दे दी.
अन्ना हजारे ने 1975 से सूखा प्रभावित रालेगांव सिद्धि में काम शुरू किया. वर्षा जल संग्रह, सौर ऊर्जा, बायो गैस का प्रयोग और पवन ऊर्जा के उपयोग से गांव को स्वावलंबी और समृद्ध बना दिया. यह गांव विश्व के अन्य समुदायों के लिए आदर्श बन गया है.


1998 में अन्ना हजारे उस समय अत्यधिक चर्चा में आ गए थे जब उन्होंने बीजेपी-शिवसेना वाली सरकार के दो नेताओं पर भ्रष्टाचार के आरोप लगा उन्हें गिरफ्तार करने के लिए आवाज उठाई थी. और इसी तरह 2005 में अन्ना हजारे ने कांगेस सरकार को उसके चार भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए प्रेशर डाला था. अन्ना की कार्यशैली बिलकुला गांधी जी की तरह है जो शांत रहकर भी भ्रष्टाचारियों पर जोरदार प्रहार करती है.


अन्ना हजारे की समाजसेवा और समाज कल्याण के कार्य को देखते हुए सरकार ने उन्हें 1990 में पद्मश्री से सम्मानित किया था और 1992 में उन्हें पद्मविभूषण से भी सम्मानित किया जा चुका है.


आज अन्ना हजारे जन लोकपाल विधेयक को लागू कराने के उद्देश्य के साथ आमरण अनशन पर बैठे हैं और वह अकेले नहीं हैं बल्कि उनके साथ समाज का एक बहुत बड़ा वर्ग जुड़ चुका है. मीडिया, प्रेस और नेता सबका ध्यान अन्ना हजारे पर है. हमेशा लाइम लाइट से दूर रहने वाले अन्ना हजारे आमरण अनशन पत क्या बैठे कांग्रेस सरकार की तो जैसे नींद ही उड़ गई है. जिस बिल को कल तक सरकार अपने फायदे के लिए लाने की सोच रही थी उसकी असलियत दिखा अन्ना ने जता दिया कि आज भी देश में कुछ लोग हैं जो भारत की चिंता करते हैं.


कभी अपने जीवन से तंग आ चुके अन्ना हजारे ने कई जिंदगियों को आगे बढ़ने का मौका दिया है और अगर आज उनकी यह मुहिम भी सफल रही तो देश में रामराज आने का संकेत जरुर मिल जाएगा.

शुक्रवार, 2 सितंबर 2011

हिंदी की शिक्षा के लिए अपने बच्चों को हिंदी स्कूल में प्रवेश दिलाइये -शरद आलोक

HINDISKOLE  हिंदी स्कूल  हिंदी की शिक्षा के लिए अपने बच्चों को हिंदी स्कूल में प्रवेश दिलाइये  - शरद आलोक

Hindi språkopplæring og kulturformidling står bak hindiskolen.
(हिंदी स्कूल में बच्चे भाषा और भारतीय संस्कृति सीखते हैं जिससे  आत्म विश्ववास  और ज्ञान बढ़ता  है.   - सुरेशचंद्र शुक्ल संपादक, स्पाइल- दर्पण) 
Dette er en organisasjon som er nøytral mht politikk og religion.
Her kan alle komme og lære hindi
Lørdager 12:15-15:00
Veitvet kulturhus / Veitvet aktivitetsskole (Veitvet SFO)
(På baksiden av Veitvet skole)
Veitvet veien 17, 0596 Oslo

For påmelding kontakt oss på mail med hele navnet på barnet og foreldre / foresatte, fødselsdato, telefonnr, mobilnr, adresse og e-mail adresse; eller ring. Vi ønsker å ha et møte med nye elever før oppstart.
E-mail: hindiskole@gmail.com
Tlf: 92 45 14 12 / 980 31 262 / 92297847

शनिवार, 20 अगस्त 2011

भारत-नार्वे अंतर्राष्ट्रीय लेखक सेमिनार


 
चित्र में बाई  प्रो रामेश्वर मिश्र, सुरेशचन्द्र शुक्ल , डॉ शकुन्तला मिश्र, नार्वेजिय पार्लियामेंट के  डिप्टी सीकर अख्तर चौधरी, डॉ  . विद्याविन्दु सिंह और प्रो के डी  सिंह

भारत-नार्वे अंतर्राष्ट्रीय लेखक सेमिनार

रवीन्द्रनाथ टैगोर और फ्रितयोफ  नानसेन  के १५०वीं  जन्मशती को समर्पित भारतीय-नार्वेजीय लेखक सेमिनार संपन्न हुआ जिसमें टैगोर  पर शांति निकेतन विश्वविद्यालय के प्रो रामेश्वर मिश्र ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर और उनके  उनका वैश्विक चिंतन पर  व्याख्यान दिया. स्थानीय मेयर थूरस्ताईन  विन्गेर ने फ्रित्योफ़ नानसेन पर अपना व्याख्यान दिया.  लखनऊ विश्वविद्यालय की  प्रो. कैलाश देवी सिंह ने  भारत नार्वे के आम धारणाओं में पर अपना वक्तव्य दिया और प्रो शकुंतला मिश्र ने गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर  और विश्व भारती पर अपना सारगर्भित व्याख्यान दिया.  सुरेशचंद्र शुक्ल ने नार्वे के साहित्य में भारत पर कुछ महत्वपूर्ण तथ्यों को अपने व्याख्यान में प्रस्तुत किया. 
नार्वे के मंत्री बोर्ड वेगार के साथ पार्लियामेंट के सामने भारतीय लेखको का प्रतिनिधि मंडल

सोमवार, 15 अगस्त 2011

भारतीय स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त पर ओस्लो में कार्यक्रम


स्वतंत्रता  दिवस  पर हार्दिक  शुभ कामनाएं  
1-भारतीय राजदूत महामहिम त्यागी जी के निवास Holmenveien 4, Oslo में  ८:३० बजे
2-अंतर्राष्ट्रीय सांस्कृतिक समारोह और भारतीय स्वतंत्रता दिवस 15 अगस्त समय: सोमवार 15 अगस्त को  17:00 बजे  स्थान: Veitvetsalen, Veitvetsenter, Oslo 
 कविसम्मेलन :  समय: मंगलवार 16 अगस्त को  17:00 बजे  स्थान: Veitvetungdomssenter, Oslo मेंआप कार्यक्रम में भाग लेना चाहते हों तो कृपया संपर्क कीजिये:Suresh Chandra Shukla Tlf: 22 25 51 57  speil.nett@gmail.com