मंगलवार, 28 जून 2011

भाषा का संयम मत खोएं - शरद आलोक



भाषा का संयम मत खोयें। -शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे
आज भारत में गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सहित बहुत से लोग भाषा के संयम का ध्यान नहीं रख रहे हैं। ऐसा लगता है कि जो भी मन में आता है वह बोल देते हैं। एक विद्वान व्यक्ति को तो और अधिक ध्यान देना चाहिए कि वह कैसी भाषा का प्रयोग करे। हमको अपने सहयोगी और जिनसे सहयोग प्राप्त करना है उनके प्रति विश्वास और संयमित भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो नहीं किया जा रहा है। यह मीडिया में देखने में आया है कि अन्ना हजारे जी और उनके सहयोगीगण अशिष्ट भाषा का प्रयोग कर रहे हैं अपने सहयोगियों के प्रति जिनसे उन्होंने सहयोग लेकर जनता के कार्य करने का बीड़ा उठाया है।
आप यदि मुझसे कार्य कराना चाहते हैं क्या आप हजारों गलियां देकर आयेंगे तब आपका कार्य अच्छी तरह से कर पायेंगे या फिर जब सहयोग भाव से शिष्ट भाषा का प्रयोग और वातावरण को सौहाद्र बनाकर करेंगे।
आदरणीय अन्ना जी को शिष्ट भाषा का प्रयोग स्वयं भी सरकार, जनता और सहयोगियों और प्रतिद्वंदियों से करनी चाहिए ताकि वह मिसाल स्थापित करें। न कि अशिष्ट भाषा के प्रचार को बढ़ावा दें जैसा कि मीडिया में पढ़ने और देखने/ सुनने में मिल रहा है। संसदीय सदस्य और जनता के नेता भी अक्सर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं। जो नहीं होना चाहिए।
जो लोग अपने आपको पूरे देश का प्रतिनिधि कहते हैं एक अलग बात है कि वह भले ही प्रतिनिधि हों या न हों पर भाषा के प्रति उनका रवैया अशिष्ट रहा तो कभी भी जनता के प्रतिनिधि नहीं बन पायेंगे। एक समय बाद मीडिया को नए विषय और चेहरे मिलने के बाद वह भुला दिए जायेंगे। आज अन्ना जी, उनके सहयोगी और बाबा रामदेव जी जिस अशिष्ट भाषा का प्रयोग सरकार, अपने तथाकथित प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध प्रयोग कर रहे हैं जिनसे वह सहयोग भी लेना चाहते हैं, तो यह कहाँ तक उचित है। आम आदमी के लिए भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने के लिए हर जगह अपील करेंकि लोग रिश्वत नहीं ले और रिश्वत नहीं दें । अपने बयानों और बातचीत मनें शिष्ट भाषा का प्रयोग करें। धन्यवाद। आज मीडिया में हमारे प्रतिनिधि नेता और समाजसेवी उस अशिष्ट भाषा का कर रहे हैं, वह निंदनीय है। यह भाषा संसद की भाषा है नहीं है न ही शिष्टाचार कि भाषा हैं जहाँ एक दूसरे का सत्यानाश करने कि बात की जाती है और उनसे सहयोग कि आशा भी रक्खी जाती है। पहले अपने मन की मशीनरी को सही करें।
रामदेव जी, दूसरों को गाली दे रहें है। वह सभी लोगों से अपील क्यों नहीं करते कि आप रिश्वत नहीं दे। आप रिश्वत नहीं लेवें। उसके लिए जनता को जागरूक करें। अच्छे -अच्छे तर्क दें और बाबा रामदेव जी और अन्ना हजारे जी वह केवल सरकार को गाली देते हैं। आम लोगों की बात क्यों नहीं करते। भ्रष्टाचार सभी पार्टियों कि सभी लोगों कि समस्या है इससे किसी एक पार्टी का ही या किसी एक वर्ग का ही सम्बन्ध नहीं है। गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है। संत रैदास जी ने कहा था अपन मन चंगा तो कठौती में गंगा। पहले हम अपना मन साफ़ करें।

रविवार, 19 जून 2011

जन्मदिन पर बधाई - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


राहुल गाँधी जी जन्मदिन पर मुस्कराते हुए

सत्येन्द्र सेठी जी का भी जन्मदिन आज ही है वह अपनी पत्नी रंजना भाभी जी के साथ माना रहे हैं

राहुल गांधी और मित्र सत्येन्द्र कुमार सेठी जी को को जन्मदिन पर बधाई - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' अध्यक्ष, भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम, ओस्लो, नार्वे

रविवार, 12 जून 2011

भारत माँ का मान रखेंगे

भारत माँ का मान रखेंगे
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
रामदेव ने अनशन तोड़ा,
जीवन से फिर नाता जोड़ा।
संत समाज के आग्रह पर,
योगी हट का पहिया मोड़ा॥
सुबह शाम फिर योग करेंगे,
जिनसे लाखों लोग जुड़ेंगे।
हम स्वदेश प्रेमी दुनिया के,
भारत माँ का मान रखेंगे।
नेता, संत महात्मा जितने
उन सब का सम्मान करेंगे।
जिस देश की रोटी खाते
उसका भी जयगान करेंगे॥

गांधी जी का देश बचाने, अब बच्चे -बच्चे आयेंगे
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे से
सड़क से संसद तक थर्राया,
अब गांधीवादी नारों से '
देश को अब न मिटने देंगे
हिंसा की तलवारों से.

देश का बचपन भूखा देखो!
पूछो बाल मजदूरों से ?
शिक्षा छोड़कर रोजी रोटी
वे ढूढ़ रहे गलियारों में.

पथ पर धुंआ उड़ाते जाते,
किसका मजाक उड़ाते हैं,
टैक्स नहीं देते हैं जब वे
किस पर धौंस जमाते है?

चोर-चोर! पकड़ो भागा है,
सरकारी-निजी मकानों में
कभी पकड़ पाएंगे उनको,
सरकारी पहरेदारों से..

जन-जन में आक्रोश बहुत है,
अनशन पर गोले दगते हैं.
सत्य-अहिंसा के नायक पर,
गैस लाठी-डंडे चलते हैं.

बिना इलाज मरता वासी,
शिशु भूखे पेट रह जाता है.
कितना भोजन फेका जाता,
कितना अनाज सड़ जाता है,

जो करता है संघर्ष देश पर,
अब उसको कोसा जाता है,
नेता और विदूषक द्वारा,
तब लांछन लादा जाता है.

मुख पर कालिख पुती हुई है,
नेताजी उसको साफ़ करें
दर्पण तोड़ रहे क्यों यारों,
समय न अब बर्बाद करें..

गांधीवादी के सत्याग्रह
कभी बर्बाद न जायेंगे
गांधी जी का देश बचाने
बच्चे -बच्चे आयेंगे॥

बाबा रामदेव ने अनशन तोड़ा -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

गांधी जी का देश बचाने, अब बच्चे -बच्चे आयेंगे
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे से

सड़क से संसद तक थर्राया,
अब गांधीवादी नारों से '
देश को अब न मिटने देंगे
हिंसा की तलवारों से.

देश का बचपन भूखा देखो!
पूछो बाल मजदूरों से ?
शिक्षा छोड़कर रोजी रोटी
वे ढूढ़ रहे गलियारों में.

पथ पर धुंआ उड़ाते जाते,
किसका मजाक उड़ाते हैं,
टैक्स नहीं देते हैं जब वे
किस पर धौंस जमाते है?

चोर-चोर! पकड़ो भागा है,
सरकारी-निजी मकानों में
कभी पकड़ पाएंगे उनको,
सरकारी पहरेदारों से..

जन-जन में आक्रोश बहुत है,
अनशन पर गोले दगते हैं.
सत्य-अहिंसा के नायक पर,
गैस लाठी-डंडे चलते हैं.

बिना इलाज मरता वासी,
शिशु भूखे पेट रह जाता है.
कितना भोजन फेका जाता,
कितना अनाज सड़ जाता है,

जो करता है संघर्ष देश पर,


अब उसको कोसा जाता है,
नेता और विदूषक द्वारा,
तब लांछन लादा जाता है.

मुख पर कालिख पुती हुई है,
नेताजी उसको साफ़ करें
दर्पण तोड़ रहे क्यों यारों,
समय न अब बर्बाद करें..

हिंदी स्कूल ओस्लो का प्रतिनिधित्व वाइतवेत, ओस्लो फेस्टिवल में










वाइतवेत पार्क में फेस्टिवल, कुछ चित्र

वाइतवेत पार्क ओस्लो में अनेक संस्थाओं ने एक जूलुस निकाला जिसमें हिंदी स्कूल ने भी मार्च किया तथा विभिन्न भारतीय भोजन और कपड़ों की स्टाल द्वारा लोगों का ध्यान आकर्षित किया। यहाँ कुछ चित्र दिए जा रहे हैं इस कार्यक्रम के।

नार्वे में लेखक गोष्ठी संपन्न -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'





७ जून को ओस्लो, नार्वे में लेखक गोष्ठी संपन्न -सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'



भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से आयोजित लेखक गोष्ठी वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में संपन्न हुई। जिसमें स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर ने नार्वे के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए बारीकी से स्वीडेन और नार्वे की यूनियन भंग होने के सम्बन्ध में प्रकाश डाला। कार्यक्रम की अध्यक्षता सुरेशचन्द्र शुक्ल ने की और इसमें कविता और कहानी पाठ किया गया। कहानी और कवितापाठ करने वालों में राज कुमार भट्टी, इन्दरजीत पाल, नवाज चौधरी, माया भारती, राय भट्टी और सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' थे। कार्यक्रम के अन्त में डिबेट हुई जिसमें देश विदेश में मानवाधिकारों के मामलों पर चिंता जताई गयी और नार्वे के योगदान की सराहना की गयी। कार्यक्रम के अन्त में जलपान किया गया।