शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

सादिक मसीह भट्टी का अंतिम संस्कार

 सादिक मसीह भट्टी


Jawed Bhatti  with Raj Kumar



कल २२ फरवरी को लेखक और ईसाई धर्म के जानकार सादिक मसीह भट्टी का अंतिम संस्कार हुआ।
वह उर्दू और पंजाबी के लेखक और समाज सेवी थे। उन्होंने पंजाब में एक बार एम एल ए का चुनाव भी लड़ा था।  उनका जन्म १ जनवरी १९ ३४  को हुआ था  और उनका देहान्त १३  फरवरी २ ० १ ३ को  हुआ था।   वह नार्वे में एक लेखक के रूप में सक्रिय  नहीं थे परन्तु चर्च में सहयोग देते थे. वह गरीबों के लिए भारत अपने निजी धन से कपड़ा और सामान  भेजते थे।
वह भारत को बहुत प्यार करते थे। उन्होंने अपना पासपोर्ट  भारतीय ही रखा था। वह पंजाबी लेखक राय भट्टी और गायक राजकुमार भट्टी के बड़े भाई थे। उनकी मृत्यु से हमने एक अच्छा  इंसान खो दिया।  उनको मेरी श्रृद्धांजलि अर्पित है।

सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

काटना जो चाहते हो बेड़ियाँ, खड़े होना तुम अगले चुनाव में -Suresh Chandra Shukla

 कुँए  सूख रहे हैं गाँव में
गाँव के स्कूल जुएँ दाँव में
 काटना जो चाहते हो बेड़ियाँ,
खड़े होना (तुम) अगले चुनाव में - शरद आलोक , ओस्लो, १८-०२-१३  





















ढो रही है चप्पलें, उसी के नंगे पाँव   हैं,
तप रही है धूप में, जिसने दिया  छाँव है। 

मैंने कल एक चित्र देखा जिसे ऊपर दे चुका  हूँ जिसमें एक महिला सर पर एक बड़ी टोकरी पर
चप्पलें लदी  हुई हैं। जबकि वह महिला
नंगे पाँव है.  उस पर एक कविता प्रस्तुत है, आशा है कि आपको
पसंद आयेगी। मैंने उस चित्र पर कल फेसबुक पर प्रतिक्रिया देखी तो वे हकीकत से दूर और राजनैतिक जागरूकता से तो कोसों दूर थी।  इसीलिये आज सुबह मैंने जो बस पर यात्रा करते हुए लिखी थी उसी को आपके साथ साझा किया  है।
नलों की टोंटियाँ बंद हैं, बिक रहा पानी गाँव में  
आज गरीब और विकासशील देशों में असमानता की दूरी बढ़ रही है.  अमीरों को कर देने की छूट हो रही है.  अभी भारत में भी पांच लाख तक कर में छूट देने की बात चल रही है जो   गरीबी को बढाने में मदद करेगी। नार्वे दुनिया के उच्च  रहन सहन  के स्तर में चौथा और पांचवा स्थान रखता है.
यहाँ बच्चों और वृद्धों का निशुल्क  इलाज और  दवा होती है.  यहाँ सभी को १२०००,- के ऊपर टैक्स  देना होता है.  मैं ३६ प्रतिशत टैक्स देता हूँ।  सरकार द्वारा टैक्स न लेने से उसमें मनमाना छूट देने से असमानता की खाई पाटने, देशवासियों को विशेषकर गरीब  बच्चों को निशुल्क  भोजन, दवा और शिक्षा नहीं दी जा रही है.  यह पूरे विश्व के लिए एक त्रासदी है.
भारत में यदि सभी को एक निजी नंबर जो जन्म तिथि के आधार पर जारी हो और उसके द्वारा देश विदेश के नागरिकों में फरक पता चलेगा और कोई भी किसी के नाम का अंगूठा या दस्तखत कराकर न तो कोई गलत तरीके से उसके नाम का धन खा सकेगा और न ही गलत तरीके से ले सकेगा.
यह सरकार के अधिकारियों को पता है.
जहाँ तक भाषा का प्रश्न है वह स्थानीय भाषा के विकास से हमारी आर्थिक उन्नति भी जुडी है. मैंने बहुत से भाषा सम्मेलनों में भाग लिया है और देखा है कि जिम्मेदार पदों पर रहने वाले
लोग अपनी भाषा के खिलाफ और विदेशी भाषा के पक्ष में इस तरह बिना तर्क के बोलते हैं जैसे वे
या तो विदेशी भाषा के एजेंट की भाँति  बात करते दिखाई देते हैं या उन्हें अपनी, स्थानीय भाषा
की महत्वता के बारे में पता नहीं है.  मैं निश्चय से यह कह सकता हूँ कि ये माननीय लोग पढ़ते नहीं हैं,
जिस बात के लिए उन्हें वेतन मिलता है उसके लिए भी ईमानदार नहीं है। किसी भी समाज और देश की तरक्की के लिए पहली शर्त इमानदारी, कठिन  परिश्रम और सद्भाव है.

रेस्टोरेंट, होटल  और फेरी पर चाय पिलाने वाले बहुत से  लोग  जो सारा दिन लोगों को चाय पिलाते हैं पर जब चाहे वह स्वयं चाय नहीं पी सकते।  विवाह- 
उत्सवों और बारातों में  ट्यूब लाईट (प्रकाश स्तम्भ) गमले लेकर चलते हैं। मैंने अभी हाल ही एक विवाह में सम्मिलित हुआ और बारातों में  ट्यूब लाईट (प्रकाश स्तम्भ) गमले कंधे पर रखकर चलने वालों से पूछा तो उन्होंने बताया कि उनमें अनेकों के घर में स्वयं बिजली से जलने वाली ट्यूब लाईट नहीं है.
लखनऊ में एक गावं के अध्यापक से उसके विद्यालय का हाल पूछा तो बताया कि  स्कूल के शिक्षार्थियों (बच्चों) के लिए आने वाला धन और सामग्री प्रधानाचार्य और ऊपर के लोगों के सहयोग से बाँट ली जाती है उसमें से थोडा अंश ही सही मद में प्रयोग होता है.

         Suresh Chandra Shukla, ओस्लो 

रविवार, 17 फ़रवरी 2013

८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। - Suresh Chandra Shukla

८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है।
८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। दिये की तरह  हम अपने
आसपास नहीं देख पाते। देख पाते भी हैं तो नजरअंदाज करते हैं। 
कभी-कभी जब हम दर्पण में भी ठीक  से देख नहीं पाते और आशा करते हैं कि 
सामने मिलने वाले जाने-अनजाने लोग हमको देखें, आह या वाह नजरों से ही कहें, 
पर ऐसा नहीं होता। आइये महिला दिवस पर एक कविता, विचार आपके साथ 
साझा करते हैं। आप भी इसे पढ़िये:       
कोख की बहने नहीं तो क्या हुआ,
मेरा रक्षा बंधन हर साल मनता है, 
कैलाश देवी और विद्या विन्दु हैं, 
उस्माना सुल्ताना और  सुखबीर कौर हैं, 
घर-घर बर्तन मांजती मेरी बहन,
बारातों में लिए प्रकाश के गमले खड़ी,
मेरी माँ के आँखों का काजल लिए,
अशिक्षित बहन, भाई के द्वार पर खड़ी,
उसकी उम्र की दुहाई में आयु चार करती है, 
दुत्कारकर हम अनदेखा करके चल दिये।
सड़क पर जो शिशुओं संग भीख मांगती,
ध्यान से देखो शक्ल अपनी बहन से मिलती।
सरहदों पर हमारे भाई रक्षा कर रहे,
घर-खेत-खलियानों में बहनें मोर्चा लिये।
फर्ज के नाम पर केवल नारे नहीं,
हर एक को रोटी शिक्षा और इलाज चहिये। 
महिला दिवस मुबारक हो दुनिया की हर बहन को, 
उन्हें आर्थिक आजादी और शिक्षा पहुंचाइये। 
पचास प्रतिशत जब तक संसद में नहीं पहुँची,
बराबरी का ढोंग अब मत कीजिये।
बचपन बचायें बाल-बालिकाओं के कैलाश सत्यार्थी की तरह,
अपनी जीवन गाड़ी हांक सकें सफल सारथी की तरह।।  
शरद आलोक, ओस्लो    

शनिवार, 16 फ़रवरी 2013

ब्लॉग लेखन और फेसबुक/ एस एम् एस कविता - suresh chandra shukla

ब्लॉग लेखन और फेसबुक/ एस एम् एस कविता आज जब समय की कमी है और संवाद जरूरी तब ऐसी लघु कवितायें जन्म लेती हैं।  
आज फोन पर  विश्वविद्यालय के अध्यापकों से बातचीत हो रही थी। उन्होंने बताया कि वहां शिक्षकों का शिक्षण चल रहा है.  जिसके कन्वेनर हैं प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह। उन्होंने बताया कि वह भी ब्लागलेखन आरम्भ करेंगे। १४ जनवरी को लखनऊ के जयशंकर प्रसाद प्रेक्षागृह  में  स्पाइल और फिल्माचार्य आनंद शर्मा के नेतृत्व में एक आयोजन में भी ब्लॉग लेखन और लघु फिल्मों के माध्यम से संवाद की भूमिका पर मेरा वक्तव्य भी था.
आज मैंने फेसबुक पर लोगों को संवाद में उत्तर दिया लघु कविताओं के माध्यम से जिनकी एक झलक आप भी देखिये.
 
खुश रहोगे तुम तो जमाना भी खुशनुमा होगा,
तारों की चादर में चाँद भी खुशनुमा होगा। 
या दिल न तुम्हारा है न यह दिल हमारा है। 
जिसके लिए धड़के, उसी आँख का तारा है। 
शरद  यह प्रेम ऐसा है जो छिपायें नहीं छिपता,
बेला, चमेली, रातरानी सा चारो ओर  महकता है।
खुश रहो दुनिया में, दूजों से खुशी बाटो, 
अभिषेक के आँगन में हरसिंगार बरसेगा। 
शरद  आलोक, ओस्लो, १६-०२-१३      
 
 
जहाँ दिन में तारें हों, वहां राते बिछुड़ती हैं।
उनके आसमानों पर, जहाँ बादल घिरे रहते। 
अपनी जिन्दगी को, क्या वह संभाल  पाये हैं?
जिन्हें दूसरी की जिन्दगी का ख्याल नहीं होता। 
 
न चाँद तारे हों न खुशियों की वह भाषा है,  
जहाँ आधी रात को भी सूरज निकलता है।
और जब रात में चन्दा नहीं चमकता है, 
शरद तब बरफ की रोशनी  में राह दिखती है.
शरद  आलोक, ओस्लो, १६-०२-१३      
 
 
कामिनी जी शुभ आशीर्वाद,  
समय मुट्ठी में जिनके है, उन्हीं के पास दौलत है,
जो सोते हैं वे खोते हैं, उनसे दूर शोहरत है.
घड़ी की सुइयां गिनकर, जिनका दिन गुजरता है, 
जेब में पड़ी दमड़ी कभी उनकी नहीं होती। 
अपनी खुशी की परिभाषा जब अपने आप लिखते हैं।  
शरद तब न हार का दुःख है, न ही जीत में ख़ुशियाँ।
शरद ये दौलत का कोई पक्का घर-बार नहीं होता।
हाथों में  बालू सा , कभी ज्यादा नहीं ठहरता  है। 
शरद  आलोक, ओस्लो, १६-०२-१३      
 
 
रुपाजी, आपको और परिवार को धन्यवाद जन्मदिन पर बधायी के लिये.
'प्रेम एक पहेली है, जिसे सब बूझना चाहें, 
न कभी यह तोड़ने से टूटे, न  आँधियों से बिखरे।
डूबने से कब बचे हैं डूबने वाले,
जिन्हें तैरना नहीं आता, वे भी नदी में  कूद जाते है।'  
शरद  आलोक, ओस्लो, १६-०२-१३      
 
  

रविवार, 10 फ़रवरी 2013

10 फरवरी, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का जन्मदिन ओस्लो में धूमधाम से संपन्न

इस वर्ष की तीसरी लेखक गोष्ठी में 'शरद आलोक' का जन्मदिन मनाया गया।
10 फरवरी,  ओस्लो में लेखक गोष्ठी में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया। इस अवसर पर नार्वेजीय अरबाइदर (लेबर)  पार्टी ओस्लो के स्थानीय नेता थूरस्ताइन विंगेर ने सुरेशचन्द्र शुक्ल के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उन्होंने ओस्लो के स्थानीय सांस्कृतिक जीवन विशेषकर विभिन्न संस्कृतियों के सांस्कृतिक सेतु और लेखक के रूप में एक अमिट  और उर्वरा  छाप छोड़ी है जिसका ओस्लो की सैकड़ों संस्थाओं ने अनुसरण किया है।  उन्होंने बाद में सुरेशचन्द्र शुक्ल की अनेकों नार्वेजीय कविताओं का पाठ भी किया।
भारतीय दूतावास के सीलेश कुमार ने हमेशा की तरह गोष्ठी के आयोजन की तारीफ करते हुए कहा कि लेखक गोष्ठी की आयोजक 'भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम' भारतीय संस्कृति और हिन्दी का विदेशों में जो प्रचार का कार्य कर रही है एवं  भारत और नार्वे के मध्य सांस्कृतिक सेतु को मजबूत करने का कार्य कर रही है उसके लिए वह बधाई की पात्र है। उन्होंने अपनी एक कविता जूते पर सुनायी।  

जिन लोगों ने कार्यक्रम में कविता पाठ किया और सस्वर संगीतमय गीत गाये  उनमें इन्दर जीत पाल, नोशीन,  माया भारती,  जावेद, राजकुमार एवं राय भट्टी, इंगेर मारिये लिल्ले एंगेन, लीव एवेनसेन, सिग्रीद मारिये रेफ्सुम,  अलका भरत,  आदि, दिव्या विद्यार्थी,  आर्यन, अमिताभ पराशर, मीना मुरलीधर, शैली और पीयूष अग्रवाल आदि थे।  कार्यक्रम में अरविन्द, अलेक्स अरुण और निकीता 
ने भी सरस्वती वंदना प्रस्तुत की तथा कार्यक्रम का समापन भारतीय राष्ट्रीयगान जन-मन गन के गायन से हुआ।     












मंगलवार, 5 फ़रवरी 2013

9 फरवरी को ओस्लो में लेखक गोष्ठी

9 फरवरी को अपरान्ह तीन बजे (15:00) ओस्लो में लेखक गोष्ठी  गीत, संगीत के साथ।
स्तिक इन्नोम, वाइतवेत  सेन्टर, ओस्लो में।
Stikk Innom, Veitvetsenter, Oslo
लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल के  जन्मदिन (10 फरवरी) पर थूरस्ताइन  विन्गेर प्रकाश डालेंगे और उनकी कविता पढेंगे। गोष्ठी  में बच्चों  का विशेष ध्यान रखा गया है।
Velkommen til
Forfatterkafe
med dikt og musikk.
 Vi markerer fødselsdag til forfatter Suresh Chandra Shukla
Den 9. februar kl. 15:00
 på Stikk Innom, Veitvetsenter, Oslo 
Gratis inngang.
Lett servering.