रविवार, 26 जनवरी 2014

नार्वे में गणतंत्र दिवस धूमधाम से सम्पन्न

नार्वे में गणतंत्र दिवस धूमधाम से सम्पन्न 

नार्वे में गणतंत्र दिवस, भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में लेखक गोष्ठी में मनाया गया. और ध्वजारोहण ओस्लो स्थित भारतीय दूतावास में राजदूत महामहिम आर के त्यागी जी द्वारा किया गया. 
हमारे राजदूत जी ने महामहिम राष्ट्रपति प्रणव मुकर्जी जी का राष्ट्र के नाम सन्देश पढ़ा और शुभकामनाएं दीं. बाद में जलपान और एक दूसरे को शुभकामनाएं देने का सिलसिला शुरू हुआ. 

लेखक गोष्ठी में गणतंत्र दिवस मनाया गया. 
 भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की ओर से वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में लेखक गोष्ठी में मनाया गया. राष्ट्र गान से कार्यक्रम आरम्भ हुआ.

भारतीय और नार्वेजीय लेखकों ने अपनी कवितायें 
पढ़ीं और गीत संगीत का कार्यक्रम प्रस्तुत किया गया। 












भारतीय युवा  अनुपम शुक्ल  अपने राजदूत आदरणीय  आर के त्यागी जी को पुष्पगुच्छ भेंट करते हुए.



















राष्ट्रपति जी का सन्देश पढ़ते हुए आदरणीय  आर के त्यागी जी
 






















































स्पाइल के सम्पादक 26 जनवरी को भारतीय दूतावास ओस्लो में गणतंत्र दिवस पर अपने राजदूत आदरणीय  आर के त्यागी जी को पुष्पगुच्छ भेंट करते एवं बधाई हुए. 
 

गुरुवार, 23 जनवरी 2014

25 जनवरी को गणतंत्र दिवस (26 जनवरी) के एक दिन पहले गोष्ठी - Suresh Chandra Shukla

 25 जनवरी को  लेखक  गोष्ठी  Forfatterkafe






Bilde er fra Litteraturhuset rett etter årsmøte til Norsk Forfattersentrum
  

25 जनवरी को  लेखक  गोष्ठी  Forfatterkafe
med dikt, musikk og foredrag, lørdag den 25. januar 2024 kl. 17:00
गणतंत्र दिवस (26  जनवरी) के अवसर पर एक दिन पहले  गोष्ठी 
25 जनवरी को शनिवार शाम  पांच बजे (Kl. 17:00)
स्थान Sted:
Stikk Innom, Veitvetsenter, Veitvetveien 8, Oslo  में
आप सभी सादर आमंत्रित हैं.
Arrangør आयोजक/ निवेदक 
भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
Pb 31, Veitvet, 0518 - Oslo, Norway
E-post:speil.nett@gmail.com

 

गुरुवार, 16 जनवरी 2014

विश्व हिंदी दिवस 10 जनवरी को - suresh chandra shukla

विश्व हिंदी दिवस विदेश सेवा संस्थान में दिल्ली में -शरद  आलोक 













 चित्र में बाएं से भाषा की सम्पादक अर्चना त्रिपाठी, सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' स्पाइल और वैश्विका के सम्पादक और देशबंधु दैनिक के यूरोपीय सम्पादक,  सरोज शर्मा नेट हिंदी बुलेटिन प्रवासी दुनिया की सम्पादक और एक हिंदी सेवी। (फोटो:स्पाइल)



भारतीय विदेश मंत्रालय में विशेष सचिव नवतेज सिंह सरना ने स्पाइल पत्रिका प्राप्त की और अपना आशीर्वाद संपादक को दिया तथा हिंदी दिवस पर  पुरस्कार और सम्मान वितरण किया। (फोटो:स्पाइल)

 सबसे पहले मैं विश्व हिंदी दिवस पर स्कैंडिनेवियाई देशों में हिंदी  सेवियों को बधाई देता हूँ. इस बार 10 जनवरी को विश्व हिंदी दिवस पर आयोजित इस कार्यक्रम में सम्मिलित होने का श्रेय अनिल जोशी जी और सुनीति शर्मा जी को है जिन्होंने मुझे भाग लेने के लिए आमंत्रित किया था.
अनिल  जी से मेरी पहली मुलाकात लन्दन में भारतीय हाईकमीशन में हुयी थी, जहाँ मैं उस समय 10-15 वर्षों से आदरणीय श्रीमती कमला सिंघवी जी और आदरणीय लक्ष्मीमल सिंघवी जी की वजह से उनके साहित्यिक कार्यक्रमों में नार्वे का प्रतिनिधित्व करने जाता रहा था.  अनिल जी शीघ्र ही फिजी जाने वाले हैं हमारी उन्हें बधाई और आशा करते हैं कि उनके कार्यकाल में हमारा भारतीय दूतावास सांस्कृतिकमय हो जाएगा।
विश्व हिंदी दिवस हम नार्वे में भी मनाते हैं. कभी 10 जनवरी को तो कभी उसके बाद आने वाले शुक्रवार, शनिवार और इतवार में से एक दिन.
इस बार विश्व हिंदी दिवस दिल्ली में सम्मिलित होने का एक अलग अनुभव था. कार्यक्रम में कुछ पुराने और कुछ नये (मेरे लिए नये) लोगों से मिलना था. प्रभाकर क्षोतिय, नवतेज सिंह सरना, श्रीमती अर्चना त्रिपाठी, सरोज शर्मा,  और नूतन पाण्डेय के अलावा प्रो डॉ मोहन, कवित्रय: डॉ अशोक चक्रधर जी, ममता किरण और प्रवीण शुक्ल जिन्होंने कविता पाठ किया।
अनेक कवि बंधुवर मंच से बाहर भी सामने शोभा बढ़ा रहे थे उनमें मशहूर गजलकार डॉ लक्ष्मी शंकर बाजपेयी, दोहों के सिद्धहस्त रचैयता नरेश शांडिल्य, स्वयं मैं (शरद आलोक) और 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में मेरे साथ तीन महीने साथ-साथ रहे, हिमांशु जोशी आये और उनसे  वार्तालाप करता इसके पूर्व ही वह चले गए.
मैं साप्ताहिक हिंदुस्तान में राजेंद्र अवस्थी और बालेश्वर अग्रवाल जी के सानिध्य में हिंदी पत्रकारिता के गुर सीख रहा था और उन्हीं के नेतृत्व में उस समय साप्ताहिक हिंदुस्तान में मेरे दो लेख एक ही अंक में छपे थे: एक दक्षिण अफ्रीका पर और एक पर्यटक स्थल ऊटी पर और  यह सन 1985 की बात है. जोशी से पहली मुलाक़ात तब हुई थे जब वह ओस्लो के समर स्कूल में सन 1982 छात्र बनकर आये थे उनके साथ उस समय बनारस के कृष्णमोहन गुप्ता जी भी थे.
फेसबुक से जुड़े अनेक मित्र मिले जिनमें भरत तिवारी से साक्षात्कार हुआ. डॉ विमलेश कांति वर्मा जो सम्भवत: उन विरले लोगों में से हैं जिन्होंने विश्वविद्यालय में 50 वर्षों तक पढ़ाया है. उन्हीं के करकमलों पर चलने का प्रयास कितने ही लोग करते हैं पर उनमें  कितने सफल होते यहाँ  यह एक प्रश्नचिन्ह है? काश मुझे भी यह अवसर मिलता। यदि जीवित रहा तो हो सकता है कि पत्रकारिता के क्षेत्र में यह अवसर मिल जाए.
इस समारोह में नरेश शांडिल्य जी ने पुनः मीठी सी ना टालने वाली शिकायत की अभिनन्दन ग्रन्थ न मिलने की और एक बार फिर मैंने उन्हें पुनः आश्वासन देकर काम चलाया।  मुझे स्मरण है जब पहले बार युवा साहित्यकार प्रवीण शुक्ल, यशपाल जैन, सुनील जोगी, महेंद्र शर्मा आदि एक कार में एक साहित्यिक कार्यक्रम में गए थे. एक गम्भीर लेखक, शिक्षक ने मंच पर हास्य-व्यंग्य कविताओं में भाई प्रवीण शुक्ल ने स्थान बनाया है यह देखकर बहुत खुशी हुयी।

विदेशी छात्र और छात्राओं ने हिंदी में जिस उत्साह और स्नेह और लगन से संगीत, गीत, निबंधों को सुनाकर हमारा मन मोह लिया जो  काबिले तारीफ़ की बात है.
इस समारोह में मुझे जबलपुर, मध्य प्रदेश का दो दिवसीय पत्रकारिता पर आधारित राष्ट्रीय संगोष्ठी की याद आ गयी जो एक न भूलने वाला प्रेणात्मक कार्यक्रम था. काश वहाँ की पुराने समाचार पत्रों की प्रदर्शनी भी दिल्ली और अन्य देश विदेश के हिंदी कार्यक्रमों का हिस्सा होती।
देश के विशेषकर सभी विशेषकर  बड़े-बड़े साहित्यकारों और नेताओं ने जिस तरह नार्वे से प्रकाशित 'स्पाइल' (दर्पण) की रजत जयन्ती पर सराहा और शुभकामनाएं दीं परन्तु उसे मंच देने से कतराते रहे. इसमें अपवाद भी हैं.  यदि स्पाइल (दर्पण) केवल किसी विदेशी भाषा की पत्रिका होती और भारत में छपती तो उसी की रजत जयन्ती पर न केवल अपने देश में बल्कि भारत में भी बहुत सराहा जाता।  आशा है कि इस समाचार छपने के बाद शिक्षा संस्थानों द्वारा स्नेह, सहयोग और मंच मिलेगा जो देश-विदेश के उभरते साहित्यकारों के लिए एक अभिन्न मंच बनती  जा रही है.
नार्वे में हमारी मासिक साहित्यिक गोष्ठियों में जब कोई व्यक्ति, संस्था कोई आवश्यक सूचना या भागीदारी करना चाहती है यदि वह धार्मिक और राजनैतिक न हो तो उसे ससम्मान के साथ कार्यक्रम में सम्मिलित किया जाता है और उसे पात्रानुसार सम्मान भी दिया जाता है. शायद यही कारण है कि नयी पीढ़ी भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में अपनी सहभागिता कर रही है. - शरद आलोक

दिल्ली में स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती संपन्न - suresh chandra shukla

दिल्ली में स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती संपन्न 





























Rapport fra Speils jubileum (25 år) på Hindi Bhavan i New Delhi den 5. jan.  2014.
स्पाइल की रजत जयन्ती 5  जनवरी 2014 को हिंदी भवन नयी दिल्ली में धूमधाम के साथ संम्पन्न हुयी।
कार्यक्रम का शुभारम्भ स्पाइल (दर्पण) के अमेरिका और दिल्ली के प्रतिनिधि डॉ सत्येन्द्र कुमार सेठी के परिचयात्मक सम्बोधन से हुआ जो कार्यक्रम का संचालन भी कर रहे थे.  
सबसे पहले सभी उपस्थित विद्वानों का स्वागत पुस्पगुछ और माल्यार्पण से हुआ जिनमें  मुख्य अतिथि डॉ अशोक चक्रधर, प्रो हरमहेन्द्र सिंह बेदी, प्रो एस शेषारत्नम, प्रो उबैदुर रहमान हाशमी, डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल, साहित्यिक-वैचारिक पत्रिका अक्षर पर्व की सम्पादिका सर्वमित्रा सुरजन, राष्ट्रीय दैनिक देशबंधु के समूह संपादक, राजीव रंजन श्रीवास्तव, राष्ट्र किंकर के सम्पादक और लघु पत्रों के संघ के महामंत्री विनोद बब्बर, देशबंधु के राजनैतिक सम्पादक शेष नारायण सिंह, अमर उजाला के उप वरिष्ठ सम्पादक हरी प्रकाश शुक्ल,  अंजुरी के सम्पादक बी के शर्मा,  यथासम्भव के सम्पादक जीतेन्द्र कुमार सिंह, साहित्य  संस्थान के निदेशक फ़तेह चन्द, हस्तक्षेप के सम्पादक अमलेन्दु उपाध्याय,  विशाखापत्तनम विश्व विद्यालय की प्रो एस शेषरत्नम, उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान की पूर्व उपाध्यक्ष और वरिष्ठ साहित्यकार विद्या विन्दु सिंह,  उमेश चतुर्वेदी वरिष्ठ  पत्रकार एवं लेखक,  जे एन यू विश्व विद्यालय के रशियन भाषा के प्रो हेमंत पाण्डेय,  डॉ सुरेन्द्र कुमार सेठी,  डॉ हरनेक सिंह गिल,  जयप्रकाश शुक्ल और सत्येन्द्र कुमार सेठी मुख्य थे.
स्पाइल (दर्पण) के  सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने नार्वे में हिंदी पत्रकारिता पर प्रकाश डालते हुए उन परेशानियों की तरफ इशारा किया जब उनके पास उचित मेज और टाइप राइटर के अभाव में तथा हिंदी के लिए उचित वातावरण न होने के बावजूद कैसे पहले नार्वे की पहली पत्रिका 'परिचय' में 1980 से 1985 तक फिर सन 1988 से स्पाइल (दर्पण) की शुरुआत की. और इन  25 वर्षों में रजत जयन्ती तक पहुँचने तक क्या-क्या पापड बेलने पड़े और अब आगामी 25 वर्षों में पत्रिका कैसे चलाई जाये इस पर विचार विमर्श शुरू कर दिया है. 
सभी विद्वानों ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए विदेशों में हिंदी पत्रकारिता को विस्तार देने के लिए पत्रिका और सम्पादक को बधाई दी. शरद आलोक ने इसके लिए सभी पाठकों, विदेशों में हिंदी के शिक्षकों, अविभावकों को जो अपने बच्चों को हिंदी पढते हैं को धन्यवाद देते हुए ओस्लो स्थित भारतीय दूतावास और नार्वेजीय सरकार और सांस्कृतिक मंत्रालय को धन्यवाद दिया जो पत्रिका और सम्पादक को समय-समय पर सहयोग देते हैं. उन्होंने आगे कहा कि विदेशों में हिंदी का भविष्य उज्जवल है क्योंकि यहाँ स्थानीय हिंदी पत्रिका के पाठक बढ़ रहे हैं और विदेशों में बसे लोगों के लिए हिंदी रोजगार की भाषा बन रही है. इसके लिए उन्होंने विदेशों में भारतीय मोल के राजनीति में सक्रीय लोगों की भूमिका की तारीफ करते हुए कहा कि हमको अधिक से अधिक राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए ताकि हम अपनी भाषा और संस्कृति को स्वीकृति दिला सकें और अपनी भी पहचान कायम करें। 
इस अवसर पर विद्वानों को प्रतीक चिन्ह दिए गए और पत्रिका का लोकार्पण किया गया. 

कार्यक्रम का समापन विनोद बब्बर जी ने बड़ी ख़ूबसूरती से किया।
अन्य शुभकामनाओं देने वालों में लोक सभा टी वी के वरिष्ठ पत्रकार ज्ञानेन्द्र पाण्डेय, आकाशवाणी राष्ट्रीय प्रसारण के डायरेक्टर और संगीतकार-गायक  राधेश्याम, डॉ श्याम सिंह शशि, डॉ हरी सिंह पाल,  गोविन्द व्यास ने हिंदी भवन के बाहर ही शुभकामनाएं दीं.   

बुधवार, 1 जनवरी 2014

लखनऊ में स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती -sharad aalok

लखनऊ में स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती













चित्र  में बायें से  प्रो उदय प्रताप सिंह जी को सम्मान प्रतीक चिन्ह प्रदान करते स्पाइल के सम्पादक और साथ में डॉ सुधाकर अदीब  













पत्रिका का लोकार्पण 
चित्र में बाएं से प्रीति तिवारी, प्रो के फी सिंह, डा सुधाकर अदीब, श्री उदय प्रताप सिंह, सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', डॉ दिनेश अवस्थी और भैया जी   

नार्वे  से प्रकाशित हिंदी और नार्वेजीय पत्रिका स्पाइल (दर्पण) की रजत जयन्ती भारत में भी मनाई जा रही है. उसी कड़ी में लखनऊ में कल 31 दिसंबर 2014 को शाम 4:00  लखनऊ में लोकार्पण सम्मन्न हुआ. इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि थे भारत के जाने-माने साहित्य कार और उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के उपाध्यक्ष श्री उदय प्रताप सिंह, कहानीकार उपन्यासकार  
डॉ  सुधाकर अदीब, प्रो कैलाश देवी सिंह, और संपादक सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'ने किया  किया।
इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि उदय प्रताप सिंह का सम्मान किया गया और अनेक विद्वानों को स्पाइल पत्रिका की तरफ से उनके योगदान के लिए प्रतीक चिन्ह दिया गया इनमें मुख्य थे डॉ सुधाकर अदीब, डॉ राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल (नार्वे), कैलाश देवी सिंह, डॉ दिनेश चन्द्र अवस्थी, भैया जी प्रमुख ट जिन लोगों ने अपनी शुभकामनाएं दीं उनमें सुशील सीतापुरी, डॉ विनय शर्मा, रचना मिश्रा, सीमा अवस्थी और अन्य बुद्धिजीवी   थे।