रविवार, 17 अगस्त 2014

परिवार के संजीव कुमार थे मेरे जीजा जी

परिवार के संजीव कुमार थे मेरे जीजा जी 


नीचे चित्र में मेरी बहन आशा जिज्जी और जीजा जी


मेरे जीजाजी डॉ गोविन्द प्रसाद तिवारी मेरे परिवार के संजीव कुमार थे. जैसे संजीव कुमार बहुत संजीदा व्यक्तित्व थे वैसे ही मेरे जीजा जी.
5 अगस्त को प्रातः लगभग दस बजे मेरे प्यारे जीजा जी लम्बी बीमारी के बाद इस दुनिया से चल बसे. वह लखनऊ में अपने परिवार के साथ रहते थे. उन्होंने उत्तर प्रदेश के अनेकों  स्टेट आयुर्वेदिक कालेज में अध्यापन किया. वह अपने विद्यार्थियों के बहुत प्रिय थे. इससे उनकी लोकप्रियता का आभास होता है. बीरमपुर ग्राम, जिला बाराबंकी के रहने वाले जीजाजी से मेरी पहली मुलाक़ात घर के सामने से जाते हुए हुई थी. तब मेरी बहन आशा जिज्जी की शादी नहीं हुई थी. जब वह पढ़ने स्टेट आयुर्वेदिक कालेज लखनऊ मेरे घर के सामने से जा रहे थे तो मेरी माँ ने इशारे से बताया जो वह साइकिल से जा रहे हैं उनके साथ तुम्हारी बहन की शादी तय हुई है. यह बात तब की है जब मैं कक्षा सात में पढता था.
उस समय वह पान दरीबा में अपने मामा श्री शम्भुनाथ द्विवेदी और मामी श्रीमती विनोद द्विवेदी जी के साथ रहते थे.
 
है न स्वावलम्बी होने की बात कि वह स्वयं चिकित्सा की शिक्षा लेने के बावजूद दो-तीन ट्यूशन पढ़ाते थे.
मुझे संमरण है जब मैं डी ए वी इंटर कालेज में पढ़ता था और साथ ही श्रमिक के रूप में पक्की नौकरी करता था तब मैंने अपने विद्यालय में छात्रसंघ का चुनाव लड़ा था तब मुझे जीजाजी ने टाइप कराकर छात्रों को बांटने के लिए बड़ी मात्र में अपने ट्यूशन के छात्र और छात्र से अंगरेजी में लिखाकर दिया था  'ताज  बिल्ट फॉर ब्यूटी एंड सुरेश स्टैंड फार  ड्यूटी'. यह छोटा और सरल प्रचार तब बहुत कारगर सिद्ध हुआ था.
अभी मार्च में होली के अवसर पर जब मैं जीजाजी से मिलने गया तब मेरी भांजी ने कहा था कि पापा बहुत दिनों से नहीं हँसे हैं.
फिर मैंने भांजी को पास खड़े होने को कहा और उन्हें पुरानी  स्मृतियों द्वारा गुदगुदाने लगा और वह बहुत देर तक मुस्कराते रहे. उनकी बहुत सी स्मृतियाँ उनके गाँव से जुडी हैं. वह एक सरल, हंसमुख और शांत रसिक स्वभाव के थे पर वह अपने इस स्वभाव को छिपा कर रखते थे.
मेरे उनके साथ  के अनेक अनुभव आज भी गुदगुदा जाते हैं. जब मेरा विवाह नहीं हुआ था तब मैं उनके साथ अपने लिए विवाह के लिए लडकियां देखने जाता था. जीजा जी को भी बहुत मजा आता था पर वह बातें कभी बाद में नहीं स्मरण की थी. बस पिछली होली में उनके साथ आख़िरी बार स्मरण किया।
मेरे जीजा जी का अनेक तरह से जीवन संजीव कुमार की कुछ फिल्मों की तरह था.
वह 5 को हमसे सदा के लिए विदा हुए थे और लखनऊ नगर के गोमती तट पर 7 अगस्त को पंचतत्व में विलीन हो गए थे.
ईश्वर से प्रार्थना है कि उनकी आत्मा को शान्ति  प्रदान करें। वह अपने पीछे मेरी बड़ी बहन आशा तिवारी,  मेरे दो भांजे: आलोक और अभिषेक, भांजियां: नीलू, सरिता और प्रीती और उनके परिवार को छोड़ गए हैं. इसके अतिरिक्त वह अपने पीछे  तीन साले ( राजेन्द्र प्रसाद, रमेश चन्द्र और सुरेशचन्द्र शुक्ल और परिवार) छोड़ गए हैं.
18 अगस्त को प्रातः लखनऊ में मेरे पड़ोसी कलाकार-अध्यापक  पंकज मिश्र से इंटरनेट पर चैट हुआ वह वहां जा रहे थे. अपने भांजे अभिषेक ने मुझे जीजाजी की मृत्यु के लगभग ढाई सप्ताह पूर्व  फोन पर बात कराई थी वह मेरी उनकी अंतिम बातचीत थी.  उनकी मृत्यु पर झांसी से रेनू और नवीन शुक्ल ने जब मुझसे बाचीत की तो उन्होंने भी शोक व्यक्त किया और श्रद्धांजलि दी पर सही समय पर सूचना के आभाव में वह लखनऊ नहीं जा सके थे.
उनकी तेरहवीं (मृत्यु के बाद हिन्दु धर्म में हवन करते हैं और अतिथियों को भोजन कराते हैं तथा जो लोग अंतिम संस्कार में नहीं संमिलित होकर शोक व्यक्त कर पाते हैं वह इस दिन आते हैं इसमें अधिकतर परिचित और परिवार के होते हैं जबकि अंतिमसंस्कार में सभी सम्मिलित हो सकते हैं.) 18 अगस्त 2014 को उनके राजाजी पुरम, लखनऊ निवास  पर संपन्न हुई जहाँ मेरे जीजाजी ने रहते हुए अधिकाँश समय व्यतीत किया।

स्मृतांजलि 
आने वाले  देर हो गयी..
जो आया है वह जायेगा, सुनते-सुनते भोर हो गयी.
रात गयी तब बात गयी, जीजा जी अब देर हो गयी..
न मिल सकेगें जीवन में, पर अपने प्रिय की आँखों में
जिनसे भी मिलवाया था, खोजेंगे उनकी आँखों में. 
सपने की माला बुनने बैठूं,  कितनी राते ढेर हो गयीं।
आने वाले  देर हो गयी..
  
यादों में बस आंसू या हँसियों की फुलझड़ियाँ हैं
स्वर्ग प्राप्ति के लिए सदा क्यों मरना पड़ता है
ओ जाने वाले, स्मृतियों का संसार हमारे हाथों में
जिन चेहरों को देख कभी मन ताजा हो जाता था
पिंजड़े से उड़ी चिरैया न जाने कहाँ फुर्र हो गयी
आने वाले  देर हो गयी..
 
मोतीझील जहाँ साथ कितनी शामें गुजारी थीं,
खुशी लेकर आने वाले, जाते दुःख दे जाते हैं.
कुछ तो बस मुस्कानों से ही खानापूरी करते थे
पास भले हों पर वह अपनों से दूरी रखते थे
पल भर यहाँ, पल पार गगन के,
इन्द्रधनुष सी कौन मिट गयी
आने वाले  देर हो गयी..

आने से आती थीं खुशिया, जाने पर मन अकुलाता था.
सावन के झूलों सा वह चुपके-चुपके  पैंग  लगाता था
कभी आसमान पर और कभी धरती पर इतराता था
जिनको समझा था अपने हैं, वह सपने से दूर हो गये
रात  घिरी है और अमावस  जहाँ चांदनी दूर हो गयी
आने वाले  देर हो गयी..
सुमनों से सीखा मैंने भेद भाव न करना 
और काँटों से अपनी यादे ताजी रखना।।
 जीजा जी अब इस दुनिया में शरीर रूप में हमारे साथ नहीं हैं. उनको ऊपरोक्त काव्यान्जलि समर्पित हैं जो आपके साथ साझा की हैं यह मेरा - आपका अपनापन है. 


निवास पर एक संयुक्त चित्र
चित्र में बाएं से पीछे खड़े अरविद कोलफ्लोट, जय प्रकाश शुक्ल, अभिषेक, आलोक, जीजाजी (डॉ गोविन्द प्रसाद तिवारी), स्वयं मैं, सामने खड़े नीलू के सुपुत्र, आलोक के पुत्र सिद्धार्थ और सबसे दायें सबसे अलग खड़े चन्द्र प्रकाश।  यह चित्र जीजाजी के राजाजी पुरम, लखनऊ  स्थित निवास पर लिया गया है.



संजय (संजू) मिश्रा के विवाह पर 12  मई सन 1998 खांडेखेड़ा, रायबरेली में लिया चित्र। 
बाएं से महादेव अवस्थी, एक सम्बन्धी, संजय मिश्रा, आनंद मिश्रा, सधारी लाल मिश्र और जीजा जी (डॉ गोविन्द प्रसाद तिवारी).     








 

स्वाधीनता दिवस पर लिएर स्टेडियम, नार्वे में खेलमेला

 16-17 अगस्त को खेलमेला



















































लिएर स्टेडियम, द्रामेन नगर, नार्वे में स्वाधीनता दिवस पर 16-17 अगस्त को खेलमेला संपन्न हुआ.
भारतीय बच्चे और युवाओं के लिए विशेष रूप से आयोजित इस खेल मेला को लिएर द्रामेन स्थित गुरुद्वारा के सहयोग से आयोजित किया गया जिसमें सभी ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। दौड़, कूद, वालीबाल, कबड्डी और फ़ुटबाल मुख्य  आकर्षण थे. इस कार्यक्रम में हर समय जलपान और भोजन का भी इंतजाम था. यहाँ भारत  ऐसा महसूस  हो रहा था. श्री पुनप्पन जी प्रथम सचिव भारतीय दूतावास ने विजयी खिलाड़ियों को पुरस्कार प्रदान किये।  इसमें श्री त्रिलोचन सिंह और गुरुद्वारा प्रबंध समिति के सदस्यगण पुरस्कार वितरण में हिसा ले रहे थे.

गुरुद्वारा 'गुरुनानक निवास'
लिएर स्थित गुरुद्वारा 'गुरुनानक निवास' स्कैंडिनेविया का सबसे बड़ा गुरुद्वारा है और जिसे भारतियों ने निर्माण कराया है. जब आज यहाँ खेलमेला से होकर गए तो कुछ सेवक अमृत छक रहे थे और कुछ लोग किचन में सेवा कर रहे थे. 





 

नार्वे में भारतीय स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त 2014 -15th August 2014 celebration in Norway

नार्वे में भारतीय स्वाधीनता दिवस 15 अगस्त 2014

दूतावास में ध्वजारोहण 

 ओस्लो में भारतीय दूतावास में प्रातः 9:00 बजे भारतीय दूतावास में बहुत से लोग एकत्र हुए थे भारतीय स्वाधीनता दिवस पर ध्वजारोहण  करने ले लिए. मौसम अच्छा था सूरज की किरणें  बादलों के मध्य चमक रही थीं. नील्स यूएलस गाता (Niels Juels gata) ओस्लो में स्थित भारतीय दूतावास के मुख्य द्वार के सामने ध्वजा एक बड़े स्तम्भ पर फूलों से बंधी ध्वज यहां के शुभ अवसर की प्रतीक्षा कर रही थी. ध्वजा स्तम्भ के चारो तरफ लोग एकत्र होने लगे.
इस समय भारतीय दूतावास में कार्यवाहक राजदूत के तौर पर आदरणीय राकेश कुमार शर्मा जी, आगंतुकों का स्वागत कर रहे थे. दूतावास में श्री पुनप्पन जी, श्री चारी जी आदि लोगों से मिलते हुए ध्वजारोहण की तैयारी में व्यस्त थे.
राकेश कुमार शर्मा जी ने धवजरोहण किया। भारतीय राष्ट्रगान 'जन-मन गण अधिनायक जय हे भारत भाग्य विधाता' की गूँज से वातावरण गर्व से भर गया भारतीय राष्ट्रगान से नार्वे में 2014 के स्वाधीनता दिवस के कार्यक्रमों का श्रीगणेश हो गया.


भारतीय बहनों, भाइयों, बच्चों और युवाओं ने  एक दूसरे को बधाई दी. इस बार बड़ी तादात में लोगों ने हिस्सा लिया था. स्वाधीनता दिवस के अवसर पर अनेक कार्यक्रम हो रहे हैं जिसमें भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम का कार्यक्रम वाइटवेत सेंटर, ओस्लो में आयोजित था जो सात वर्षों से लगातार 15 अगस्त के दिन ही आयोजित हो रहा है.






ओस्लो में स्वाधीनता दिवस मनाया गया 
 सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 ओस्लो, 17 अगस्त।   भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में  भारतीय स्वतंत्रता दिवस कार्यक्रम  15 अगस्त से 17 अगस्त तक  धूमधाम से मनाया गया. 
इस वर्ष के कार्यक्रम में  पूर्व स्थानीय मेयर BU-leder, bydel bjerke थूरस्ताइन विन्गेर Torstein Winger, पूर्व सांसद  और नगर पार्लियामेंट के सदस्य आथर अली Athar Ali, फोरम के उपाध्यक्ष हेराल्ड बुरवाल्ड Harald Burvald, लेखक और चिंतक निर्मल ब्रम्हचारी Nirmal Brahmchari, नार्वे में पहले भारतीय डाक्टर और लेखक राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल Dr. Rajendra Prasad Shukla और  बालक आर्यन पराशर Aryan Parashar ने इस अवसर पर अपने विचार रखे और भारतीय आजादी पर प्रकाश डाला तथा बधाई दी.
निर्मल ब्रम्हचारी ने अपने भाषण और कविता में भगत सिंह, चन्द्र शेखर आजाद, खुदीराम बोस,   नेताजी सुभाष चन्द्र बोस और अन्य की भारत की आजादी में महत्वपूर्ण कुर्बानी की याद दिलाई तो  आथर अली ने बधाई देते हुए बर्लिन की दीवार के टूटने की तरह बाघा बार्डर की दीवार टूटने की आशा व्यक्त की.  75 वर्षीय भारतीय दर्शन सिंह ग्रेवाल  Darshan Singh Greval और भारत से आये अतिथियों  सी. पी. मेंदीरेता C. P. mendiratta बक्शीश सिंह Baksheesh Singh और सुभाषचन्द्र  विद्यार्थी Subhash Chandra Vidyarthi को सम्मानित किया गया.  
कार्यक्रम में Kontaktutvalget (नार्वे की सरकार और प्रवासियों के मध्य सम्बन्ध स्थापित करते वाली सरकार संस्था) की एवा राइस्ताद Eva Reistad ने भी शुभकामनायें दीं.
कवितापाठ में  देशभक्ति के गीत और कवितायें  प्रस्तुत करने वालों में सुरेशचन्द्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla, इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन Inge Marie Lilleengen,  निर्मल ब्रम्हचारी Nirmal Brahmchari,  गुरुदर्शन शर्मा Gurudarshan Sharma, सुसाने आइहाइम Susanne Ayheim, नोशीन इकबाल Nosheen Iqbal, राज कुमार  Raj Kumar, दिआ विद्यार्थी Diaa Vidyarthi, जावेद भट्टी Javed Bhatti  मीना मुरली Meena Murli, अलका भरत Alka Bhart, दीपिका रतूड़ी Dipika Ratudi, मारिस माओरीनो Maurise Maurino, माया भारती Maya Bharti और  प्रगट सिंह Pragat Singh मुख्य थे. 
कार्यक्रम में युवाओं ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया।  

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

आज पंद्रह अगस्त है सभी को शुभकामनायें -Suresh Chandra Shukla


आज पंद्रह अगस्त है सभी को शुभकामनायें



आज पंद्रह अगस्त है हमारे भारत का 68वां स्वतंत्रता दिवस।  कल रात ओस्लो में स्वाधीनता दिवस की तैयारी करता हुआ रात 12 बजे सोया था क्योकि आज शाम 5 बजे ओस्लो में कार्यक्रम है.
आज लालकिले के प्राचीर से मोदी जी का भाषण सुनने के लिए जल्दी उठा और फिर भी नव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का भाषण 40 मिनट ही उनका सन्देश सुन सका. बिना पढ़े देश की आम आदमी की समस्या का बखान करते हुए जो उन्होंने सभी विद्यालयों में शौंचालय बनाने के लिए संकल्प लेने को कहा वह बहुत सराहनीय है. इसके लिए सभी देशवासियों को आगे आना चाहिए।
आदर्श गाँव का उनका सपना गांधी जी का भी सपना था पर उसे पूरा नहीं किया जा सका. देखते हों कि सांसद जन कैसे उनके आह्वाहन को पूरा करते हैं पर जनता के सहयोग के बिना यह संभव नहीं अतः सभी राजनैतिक सोच को रखने वाले इस कार्य के लिए साथ आयें। मोदी जी का सपना पूरे देश के लिए है और देश सभी का है.
अधिकार के साथ कर्तव्य भी सभी का बनता है.
मैं तो कहता हूँ कि  एक  बुद्धिजीवी प्रवासी भारतीय भारत अथवा अन्य गरीब देश के गाँव को आधुनिक बनायें और आधारभूत समस्याओं से छुटकारा दिलवाने में मदद करे.

ओस्लो में भारतीय स्वतंत्रता दिवस पर
कार्यक्रम
जो लोग नार्वे में रहते हैं वह आज  वह प्रातः 9 बजे भारतीय दूतावास में ध्वजारोहण समारोह में सम्मिलित हो सकते हैं और शाम 5 बजे ओस्लो में स्थित वाईतवेत सेंटर में वाइतवेत मंच पर कार्यक्रम है जो Veitvetveien 8, Oslo में स्थित है. आप इस कार्यक्रम में आइये और मिलकर अपने बच्चों और मित्रों के साथ मिलकर भारतीय स्वतंत्रता दिवस मनाइये।  

बुधवार, 13 अगस्त 2014

Indian independence day celebration in Oslo ओस्लो में भारतीय गणतंत्र दिवस १५ अगस्त २०१४

Invitation आमंत्रण
ओस्लो में 15  अगस्त को प्रातः काल 9:00 बजे  भारतीय दूतावास में ध्वजा रोहन होगा और शाम 5 बजे भारतीय -सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की तरफ से सांस्कृतिक कार्यक्रम हो रहा है वाइतवेत सेंटर ओस्लो में.

आप सादर आमंत्रित हैं.   



Welcome to Indian independence day celebration on 15th august at Veitvet centre, Oslo
at 5 PM.