शनिवार, 30 जनवरी 2016

केवल यह भरोसे की बात है- Pramod Joshi kee post se- Suresh Chandra Shukla


यह चित्र विश्व हिन्दी सम्मलेन भोपाल का है इसमें बायें से सुरेशचन्द्र एवं त्रिभुवन नाथ शुक्ल 

सम्पादक लेखक प्रमोद जोशी की फेसबुक से साभार: 
मुझे याद पड़ता है करीब चारेक दशक पहले लखनऊ में माताबदल पंसारी की दुकान के पास अमीनाबाद में एक सरदारजी की शरबत की दुकान थी। उनकी खासियत थी कि वे शरबत पीने वाले से पैसा नहीं माँगते थे। ग्राहक पैसा खुद ही देता था। देना भूल जाए तो माँगा नहीं जाता था। आज बीबीसी की वैबसाइट पर अहमदाबाद के गुजरात विद्यापीठ से सटे नवजीवन प्रेस के कैंपस रेस्टोरेंट के बारे में पढ़ा। इस रेस्टोरेंट में खाने पर कोई बिल नहीं देना पड़ता। आप खाने का पैसा मर्ज़ी मुताबिक़ चुका सकते हैं। इसके लिए आपको कोई कुछ कहेगा भी नहीं।इसके बावजूद यह रेस्टोरेंट घाटे में नहीं है, लाखों का मुनाफ़ा कमा रहा है। केवल यह भरोसे की बात है और व्यक्ति को उसके दायित्वों के प्रति चेताने की इच्छा है। हाल में खबर पढ़ी थी कि नई शुरू हुई महामना एक्सप्रेस चलने के पहले दिन ही लोग उसके टॉयलेट में लगी टोंटियाँ खोल ले गए। हमें श्रेष्ठ समाज बनाने के लिए अपने भीतर की श्रेष्ठता को पहचानना चाहिए। इसका गरीबी और अमीरी से रिश्ता नहीं है। अक्सर बड़े चोर अमीर ही होते हैं।

मंगलवार, 26 जनवरी 2016

:गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें। Gratulerer med Den Indiske Grunnlovsdagen (Republic day of India 26th january). Suresh Chandra Shukla


आज 36 साल पहले 26 जनवरी 1980 को ओस्लो, नार्वे आया था. मेरे बाल बदे बढ़े हुए थे दाढ़ी थी. ओस्लो का तापमान -22 डिग्री सेंटीग्रेट था.  २३ जनवरी को मेरे माता-पिता (श्रीमती किशोरी देवी शुक्ल और श्री बृजमोहन शुक्ल), जीजाजी डॉ जी पी तिवारी जी  और नार्वे में संगीतकार श्रीलाल जी मुझे दिल्ली एयरपोर्ट पर छोड़ने आये थे.
ओस्लो में एयरपोर्ट पर श्री आर पी शुक्ल (भाई), साहेब सिंह देवगन  लेने आये थे. 
Gratulerer med Den indiske grunnlovsdagen.Invitasjon:गणतंत्र दिवस पर हार्दिक शुभकामनायें। आज ओस्लो में भारतीय दूतावास में प्रातः 9:00 बजे और शाम 18:00 बजे स्टिक इन्नोम Stikk Innom वाइतवेत सेन्टर ओस्लो में गणतंत्र दिवस के शुभ अवसर पर आप सादर आमंत्रित हैं. 
Invitasjon til Den indiske nasjonaldagen, Republic day of India, både på Den Indiske ambassaden i Oslo kl. 9:00 og på Stikk Innom på Veitvetsenter kl. 18:00. Velkommen. 
सुरेशचन्द्र शुक्ल, अध्यक्ष Leder
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
Postbox 31, Veitvet
0518 Oslo

शनिवार, 23 जनवरी 2016

संस्मरण - Suresh Chandra Shukla

संस्मरण - सुरेशचन्द्र शुक्ल
घर की दीवारों से तस्वीरें हट गयीं - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


(चित्र में बायें से स्वयं (सुरेशचन्द्र शुक्ल ),  ए स  पी शुक्ल (आई पी एस) और उनके पिता वरष्ठ लेखक, वीरेंद्र मिश्रा और नीरज बाजपेयी 8-मोतीझील ऐशबाग लखनऊ में. चित्र एक दर्जन वर्ष पुराना  है. )
ओस्लो, २३ जनवरी 2016.
लखनऊ में जन्म हुआ, बचपन बीता, सत्य और परिश्रम से जिस शहर ने अपने और औरों के लिए संघर्ष करना सिखाया उस लखनऊ को कोटि-कोटि नमन.
मेरे जिस माता-पिता (श्रीमती किशोरी देवी और श्री ब्रिज मोहन शुक्ल) ने अंगुली पकड़कर चलना सिखाया आज भी उनकी तस्वीर ओस्लो में स्थित अपने पूजा के सिंघासन के पास देखकर बहुत खुशी मिलती है. 
पर इस बार जब मैं अपने बचपन के उस कमरे में 8-मोतीझील ऐशबाग रोड लखनऊ पर गया जहाँ सदा से मेरे मातापिता, बच्चों और भाई की तस्वीर लगी थी वह दीवार से उतर गयी है. यहीं पर प्रदेश और देश के नेता, लेखकगण मुझसे मिलने और कार्यक्रम में भाग लेने आते रहे हैं. यहाँ मेरी पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' का स्थानीय कार्यालय Lucknow भी एक तहखाने के कमरे में स्थित है. 
हमारे चित्र और मेरे माता के चित्र भले ही किसी ने बचपन के लखनऊ के घर से हटा दिए हों या हटवा दिए हों पर इसकी जगह अब हमारे जैसे हिन्दी सेवियों के चित्रों को भारत और नार्वे के उच्च शिक्षण संस्थानों, सामजिक प्रतिष्ठानों  की अपनी दीवारों पर ज़िंदा रहते जो जगह दी जा रही है वह वास्तव में दिल छू लेने वाली बात है.
ओस्लो स्थित मेरे निवास में सिंघासन और भोजन के स्थल पर मेरे आलावा जब मेरे बच्चे जो सभी बालिग़ हैं श्रद्धा से दिये और अगरबत्ती जलाते हैं तो यहाँ दीवार पर टंगा वह अपने बाबा और दादी के चित्र को भी देख लेते हैं. 
हम हों या न हों पर हमारी यादें और बच्चों को सिखायें संस्कार और शिष्टाचार कुछ हद तक उनके साथ रह जायेंगे।
मेरे जीवन पर नामवर शायर मुनव्वर राना की कविता सही उतरती है उसकी पंक्तियाँ कुछ इस तरह से हैं यदि सही न हो तो सुधार लीजियेगा।
"किसी के हिस्से में मकान और किसी को दुकान आयी मेरे हिस्से में माँ आयी." मेरे बड़े बहन-भाइयों  को ज्यादा पता है कि मैं क्या बात कर रहा हूँ. 'बोया पेड़ खजूर का आम कहाँ से होय'. 
आज यही बात पूरे समाज में दोहराई जा रही है. आदमी दूसरों से ईमानदारी की आशा करता है और स्वयं अंदर से बेईमान रहता है. अच्छे समाज के लिए सभी के लिए ईमानदार और सच्चा होना जरूरी है. भेदभाव, बेईमानी आदि हम बचपन से सीखते हैं. खासकर पर्यावरण, कर भुगतान, टिकट लेकर यात्रा करना आदि यह कुछ बातें हैं जो बहुत जरूरी हैं, दूसरों की इज्जत करना। ईमानदारी  से ही आप अच्छे इंसान बनते हैं.

कल और अन्य संस्मरणों  के साथ उपस्थित होंगे।  चाहता हूँ की यह सिलसिला चले. आपसे कुछ-बाते साझा करता चलूँ। धन्यवाद। शुभ रात्रि!