गुरुवार, 13 अक्तूबर 2016

विदेशी माल (लघुकथा)-सुरेशचन्द्र शुक्ल Mini novelle av Suresh Chandra Shukla

विदेशी माल (लघुकथा)-सुरेशचन्द्र शुक्ल

Mini novelle av Suresh Chandra Shukla

विदेशी माल
सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक
देसी बनाम विदेशी की चर्चा ज़ोरों पर थी। अचानक देशभक्ति को देसी और विदेशी के बीच बाट दिया गया। जब से पिताजी ने अवकाश प्राप्त किया है कोई न कोई मुद्दा उठा लेते हैं और अम्मा से ऐसे उलझ  जाते हैं की जैसे वह ही मुद्दे के केंद्र में हैं।
अम्मा ने जब पूछा, क्यों आसमान सर पर उठाए हुए हो?’
अरे भाग्यवान, तुम्हारा बेटा मोबाइल फोन की रट लगाये है। और ये मोबाइल फोन विदेश के बने हैं। विदेशी चीजें हमें पसंद नहीं। 
चलो अच्छा है कि तुम भी विदेशी वीवी की फरमाइश नहीं करते। अम्मा ने पिताजी से तंज़ करते हुए कहा।
तुम हर बात को हवा बना देती हो, चाहे जितनी गंभीर बात क्यों न हो। जानती हो इस बार दीवाली में पड़ाके नहीं लेने हैं ये सारे पड़ाके, आतिशबाज़ी विदेशी है। ये चीन के बने होते हैं।
देखो जी, बाहिष्कार करना है तो सभी विदेशी चीजों का करो। और खुद भी वह सब बनाना शुरू करो जो विदेशी बनाते हैं। पत्नी ने नहले पर दहला दे दिया था। पिताजी ने आव न देखा ताव और उन्होने कहा,
हाँ-हाँ, लो आज से मैं घड़ी नहीं पहनूंगा। यह घड़ी विदेशी है और यह चश्मा अभी नहीं उतारूँगा जब तक भारतीय फ्रेम वाला चश्मा ना बनवा लूँ।‘, कहकर पिताजी कुछ चिंतित दिखे जैसे कहावत है कि नाई के बाल सामने आते हैं।
अम्मा ने मुझे आवाज दी, सुनो शरद! खबरदार! आज से घर में विदेशी चीजों का प्रयोग नहीं होगा। तुम भी विदेशी चीजें यहाँ लाकर जमा करो। तुम्हारे पिताजी ने विदेशी वस्तुओं के खिलाफ असहयोग आंदोलन चला रखा है। 
हाँ-हाँ, ठीक है अम्मा। कहकर मैंने भी अपना थैला, लैपटाप मेज पर रख दिया। मन ही मन मेरे मुख से हंसी निकालने को बेताब थी। पर पिताजी के असहयोग आंदोलन का हिस्सा बन गया था।
अब बारी आई मेरे बहन माधवी की। माधवी बड़े तैश में थी। उसने अपना प्यारा चश्माँ, जूते और बेल्ट मेज पर जमा कर दिये और सर झुकाकर खड़ी हो गई।
अम्मा ने पूछा, क्या बात है? मुंह लटकाए क्यों खड़ी हो?’
मेरी बहन माधवी कुछ न बोली। मैं भाँप गया कि क्या बात है? माधवी माडलिंग करती है और उसने विदेशी पोशाक पहन रखी थी। माँ ने पूछा बता बेटी क्या बात है। पिताजी के विदेशी सामान के बाहिष्कार में भाग लेने में कोई अड़चन है?’, 
मैंने कहा माँ! यह क्या बतायेगी, मैं बताता हूँ। पिताजी का विदेशी सामान के बाहिष्कार का आंदोलन हमको नंगा करके रहेगा।
पिताजी नंगे होने वाले नहीं, बोल बेटा क्या बात है?’ माँ ने पूछा।
माँ तुम्हारी बेटी यानि मेरी बहन ने विदेशी पोशाक जो पहन रखी है। वह नंगी हो जायेगी माँ। घर की ईज्जत?’ और माँ – मैं कुछ बोलता कि माँ बीच में ही बोल पड़ीं,
मैं तो कहती हूँ अब विदेशी माल के बाहिष्कार की बात छोड़ो अपनी ईज्जत बचाने की बात सोचो?’
पिताजी चुपचाप बैठे तमाशा देख रहे थे और मानो उनका मौन ही सबसे सुंदर जवाब था।
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सोमवार, 10 अक्तूबर 2016

अर्थशास्त्र के लिए वर्ष २०१६ के लिए नोबेल पुरस्कार Nobel prize in economice Suresh Chandra Shukla

Bengt Holmström बेंग्त होल्मस्ट्रोम और  Oliver Hart  ओलिवर हार्ट को अर्थशास्त्र के लिए वर्ष २०१६ के लिए नोबेल पुरस्कार संयुक्त रूप से दिए जाने की घोषणा आज स्टॉकहोल्म में भारतीय समय ढाई बजे दिन में की गयी. विजेताओं को हार्दिक बधाई।                सोसायटी के कई संविदात्मक रिश्तों शेयरधारकों और शीर्ष कार्यकारी प्रबंधन, एक बीमा कंपनी और कार मालिकों, या एक लोक प्राधिकरण और इसके आपूर्तिकर्ताओं के बीच उन लोगों में शामिल हैं। जैसा कि आम तौर पर इस तरह के रिश्तों हित के संघर्ष करना पड़ेगा, अनुबंध ठीक से सुनिश्चित करने के लिए कि पार्टियों पारस्परिक रूप से लाभप्रद निर्णय लेने तैयार किया जाना चाहिए। इस साल के पुरस्कार विजेताओं अनुबंध सिद्धांत, आला अधिकारियों, deductibles और बीमा में सह-भुगतान के लिए प्रदर्शन आधारित वेतन की तरह संविदात्मक डिजाइन में कई विभिन्न मुद्दों का विश्लेषण करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा, और सार्वजनिक क्षेत्र की गतिविधियों के निजीकरण का विकास किया है।