बुधवार, 31 मई 2017

हमको देश -विदेश में सभी हिन्दी सेवियों की जरूरत है और उनका आभार कि वह हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ की सेवा कर रहे हैं. -Suresh Chandra Shukla, Oslo

 फेसबुक में लालित्य ललित ने आज लिखा:
"कुछ लोग विदेशों में हिंदी की सेवा के लिए बने हैं। अपने देश में उनका हाथ जरा तंग है। लेकिन पइसे वाले ही हिंदी सेवा की सेवा में तल्लीन दिख रहे, बेचारा समर्पित हिंदी सेवी का पासपोर्ट भी नहीं बना।दइया रे दइया।"

 हमको देश -विदेश में सभी हिन्दी सेवियों की जरूरत है और उनका आभार कि वह हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओँ की सेवा कर रहे हैं.
१-मेरे विचार में हिंदी सेवा घर से शुरू होती है. कितने लोग अपने बच्चों को हिंदी माध्यम से पढ़ाते हैं.
२-भारत में बहुत से छात्र और छात्रायें अनुवाद और तुलनात्मक अध्ययन में देश-विदेश के विश्वविद्यालयों में शोध कर रहे हैं उन्हें प्रधानमंत्री कोष और अन्य कोशों से बाहर पढ़ने जाने के लिए स्टीपेन्ड (छात्रवृत्ति भी मिलती है).
३-भारतीय सांस्कृतिक विभाग भी अनेक विद्वानों को हिंदी, भारतीय भाषाएँ और द्विभाषायी सहयोग के लिए  भेजता है  (जैसे आई टी विभाग, भारत सरकार।).

लालित्य ललित जी शायद सही कह रहे हैं. मैं जिक्र कर रहा हूँ एक समाचार का शायद वेब दुनिया में छपा था कि  ३१ मार्च को  हिन्दुस्तान टाइम्स ग्रुप को 10 हजार करोड़ में एक बड़े पूंजीपति ने खरीदा है जिन्हें पत्रकारिता की न समझ है न आदर्श पत्रकारिता स्थापित करने की हिम्मत है. जैसी कि  बिरला ग्रुप को थी. मैंने देखा कि हिन्दुस्तान हिंदी अखबार ३१ मार्च  के बाद अब समाचार से ज्यादा नेट पर पोस्टर नजर आता है.
आदर्श अखबार में पहले पेज पर विज्ञापन नहीं होते हैं.

 काश अखबार में काम करने वाले मालिक होते
काश सहकारिता भाव से यदि वहां काम करने वाले लोग (कर्मचारी-पत्रकार और मैनेजमेंट) सहकारिता भाव से ख़रीदते तो संभव था. क्योकि इस असंस्थान से हजारों लोग जुड़े थे और विज्ञापन से आमदनी भी  कई हजार करोड़ है. पर..? पैसे वाले।।।? एक अखबार के अनुसार
 तो वे हजारों करोड़ उधर गारंटी लेकर खरीद सकते थे. पर ऐसा नहीं होता।  पत्रकारों, लेखकों में सहकारिता का अभाव है.


आपका दिन मंगलमय हो .Poem by Suresh Chandra Shukla

आप सभी धैर्यवान उदार ब्लॉग पढ़ने वालों को नमस्कार।
आपका दिन मंगलमय हो.
Poem by Suresh Chandra Shukla
Life is one of the torrent river
We will run away.
Some will meet in the streets.
Some will remain in the mind.


मंगलवार, 30 मई 2017

क्या तुम्हारा बच्चा वातानुकूल बालवाड़ी (किंडरगार्डेन) में जाता है? Poem by Suresh Chandra Shukla, Oslo, 30.05.17

क्या तुम्हारा बच्चा वातानुकूल बालवाड़ी (किंडरगार्डेन) में जाता है?
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'














क्या तुम्हें ज्ञात है कि तुम्हारा बेटा
जिस बालवाड़ी में जा रहा है
उसमें कितनी सुविधायें हैं?
और तुम्हारे बाल-समय में कितनी थीं.
बेटे की बालवाड़ी में एयरकंडीशन है.
जब गर्मी में तेज धूप होती है
जब जाड़े में तेज ठंडक पड़ती है
वर्षा ऋतु में जब पानी बरसता है
तब तुम्हारा बेटा एयरकंडीशन कमरों में रहता है.
कितने कोमल होते हैं बच्चे!
कितने लचीले होते हैं बच्चे?
सीखने में पारंगत और बहुत सहनशील होते हैं बच्चे.
एयरकंडीशन में बच्चों को रखकर,
आप बच्चों को मौसम बचा रहे हैं?
पृकृति से उसका नाता कम कर रहे हैं?
क्या हम बच्चों को सुकुआर नहीं बना रहे?
विदेश में बालवाड़ी में मेरा बच्चा बरसात में
रोज दो घंटे बाहर रहता है.
जब  बर्फ पड़ती है तब भी वह बच्चों और अध्यापक के साथ
आसमान के नीचे बर्फ से खेलता है.
जब गर्मी और धूप होती  है तो वह बाहर
कृतिम टब में पानी में खेलता है.
जब वर्षा होती है तो बरसाती पहनकर
बच्चों के साथ पानी में खेलता है.
पता है क्यों?
पृकृति ने जो मौसम हमको दिए हैं
बच्चे उसके आदी बन जाते हैं.
पृकृति की गोद में खेलकर
वह ज्यादा खिलखिलाते हैं.
कभी सोचा है तुमने
कि जब तुम बहुत बीमार होंगे?
और घर के बाहर तेज धूप होगी
बर्फ गिर रही होगी
बरसात हो रही होगी तब?
क्या वह दो-तीन घंटे पंक्ति में खड़ा होकर तुम्हारे लिए दवा लायेगा?
और खुले आसमान के नीचे कभी काम कर पायेगा?
suresh@shukla.no

Hindi mazines in Norway. नार्वे से प्रकाशित तीन पत्रिकायें:Suresh Chandra

Den første tidsskrift på hindi i Norge er Parichay ble utgitt i 1979. Og den eksisterende tidsskrift er Speil, stiftet i 1988. 'स्पाइल-दर्पण' नार्वे से प्रकाशित तीन पत्रिकायें: नार्वे की पहली हिंदी पत्रिका 'परिचय' (पहला अंक 1979) 'स्पाइल-दर्पण' (पहला अंक 1988) और 'वैश्विका' (पहला अंक 2007).
इन तीनों पत्रिकाओं के सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल हैं.
 

हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें. 30th mai is the hindi journalism day..-Suresh Chandra Shukla, Oslo


हिन्दी पत्रकारिता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें.
Den første hindi avis 'Udant Mardand' ble trykt den 30. Mai 1826. 
पंडित युगुल किशोर शुक्ल जी ने 30-मई 1826 मे प्रथम हिंदी समाचार पत्र 'उदन्त मार्तण्ड' का प्रकाशन किया था.
जुगल किशोर शुक्ल जी मूलतः कानपुर के थे.

सोमवार, 29 मई 2017

हर आदमी अपने कंधे पर एक गाँव की तरक्की का सपना देखें और जिम्मेदारी लें. सबसे पहले केंद्र सरकार को तीन वर्ष पूरे करने पर हार्दिक बधाई। -Suresh Chandra Shukla

सबसे पहले केंद्र सरकार को तीन वर्ष पूरे करने पर हार्दिक बधाई।
खाली समय शैतान का घर होता है. अपने बहुमूल्य समय का स्वयं और दूसरों के लिए समर्पित कर दीजिये हर युवक और युवती घर की चारदीवारी और बेरोजगारी से निकल कर अपने घर, मोहल्ले समाज ही नहीं पूरे देश को विकास के पथ पर ले जाइये।
स्त्री हो या पुरुष सभी को कंधे से कन्धा मिलाकर घर बाहर दोनों जगह देश के तरक्की में योगदान ईमानदारी से देना होगा।

यदि विदेश में रहने वाले भारतीय मूल का  
हर आदमी अपने कंधे पर एक गाँव की तरक्की का सपना देखें और जिम्मेदारी लें. 
 कि वह उस गाँव में साक्षरता, सफाई, भाईचारा अपनी मदद से और सामूहिक श्रमदान के द्वारा मैनेजमेंट पर्यावरण बच्चों के लिए भोजन और स्वक्छ पानी की व्यवस्था में योगदान दें. यह सब संभव है.
साफ़ पानी से प्लास्टिक की बोतल की जरूरत नहीं होगी। कपडे के थैले और बेंत, ठूंठ और फूस की डलिया, झाबे और गमले बनाये जा सकते हैं. पानी को जमा करने के प्रबंध में सीमेंट के बिना भी संभव है. सहकारिता भाव से हर एक व्यक्ति बच्चा हो या बड़ा सभी की जिम्मेदारी तय हो जायेगी।
हमारा भारत बहुत ही जल्दी हर क्षेत्र में आगे बढ़ रहा है उसमें सभी अपना योगदान दीजिये। धन्यवाद और आभार। आलोचना और राय की जगह यह बताइये कि आप किस गाँव में कार्य करना चाहते हैं. उत्तर प्रदेश सरकार के सम्बंधित विभाग में जानकारी दीजिये और मिलजुलकर कार्य आरम्भ कर दीजिये। पूरे देश में आपकी जरूरत है.
हम सभी को नार्वे में सफाई, धन जमा करना, भाईचारा सिखाना, स्त्री पुरुष की समान भागीदारी और केवल घर में नहीं घर के बाहर ज्यादा जरूरत है. दकियानूसी संकीर्ण विचारधारा को कोई अहमियत नहीं देनी चाहिये। कुरूतियों के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिये।
यदि ऐसा हुआ तो अभी मोदी जी ने दो पुलों का उद्घाटन किया है आसाम और जम्मू और कश्मीर में जब सभी जुटेंगे तो अनेक सड़कें श्रमदान से तैयार हो जायेंगी।
स्त्री हो या पुरुष सभी को कंधे से कन्धा मिलाकर घर बाहर दोनों जगह देश के तरक्की में योगदान ईमानदारी से देना होगा।
Norske modell er best for India og deres kontinent Jeg har anbefalt noen forslag i India etter norske modell for eks. dugnad, deltagelse likestilling og arbaid til alle.Gratuelerer med Indias regjerings tre år dagen.
 

क्या भूलें क्या याद करें प्रिय सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो (क्षमा करें मित्रों अब आप विस्तार से लिखी कविता पढ़ें, शायद आपका बचपन याद आ जाये।)-Suresh Chandra Shukla, Oslo, 29.05.17

क्या भूलें क्या याद करें प्रिय 
       सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो
(अब विस्तार से लिखी  कविता पढ़ें, )

मिलते थे जब बाहें भरकर,
वह कितना प्यारा बचपन था।
तब मित्रों के घर आँगन में ,
जहाँ  प्रेम  पानी-चन्दन था।।

क्या कैसा अहसास करें प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

घर से जब पढ़ने जाते थे,
मग में खेल रचाते जाते।
तब कितने भोले-भोले से,
गेंद खेलते वापस  आते।।

नया रोज उत्साह रहा प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

कागज़ के फूल बनाते थे तब,तकली से सूट कातते थे तब।
 गौ  का चारा पानी करने,
चार बजे उठ जाते थे तब।।

तब बस्ते का भार न था प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

इन्टरवल में बेर शरीफा,
बगिया में शहतूत शहद से।
तिगड़ी टांग खेलते थे जब,
एक दूजे को छूते थे तब।।

सब रंग प्यारे लगते प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

पथ में गाना गाते जाते,
तब दौड़ कूद  धमाल मचाते।
मिसरी कपास  सा तन-मन था.
माँ के  तुलसी दीप जलाते।

ऊँच नीच का भाव नही प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

गलियों में अमरुद तोड़ते,
बिछड़ों को हम पुनः जोड़ते।
मैदानों से कंकड़ चुनते,
जो पावों में कभी चुभे थे।।

पर्यावरण ध्यान बहुत प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

कच्ची माटी के कुल्लड़ थे,
सीधे सादे हम अल्लड़ थे।
दीपक-ओम अमर अन्जू  थे,
कंचे  सम्भू संग खेले थे।।
      
चलते नंगे पाँव बहुत प्रिय,
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।


लट् टू तब हम रोज नचाते,
पतंगबाजी की डोर लूटते
अम्मा रोज पीटती मुझको,
देर रात को जब घर आते।।

इन्तजार अम्मा करती प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

दूर वहाँ तक पैदल जाते,
जहाँ कहीं भी फिल्म दिखाते।
हरफन मौला कब पढ़ते हैं?
अपन फ़िल्मी हीरो समझें थे ।।

कभी फेल व पास हुए प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

किराये की साइकिल ले जाते,
उसमें तीन बैठ कर जाते।
बारी-बारी उसे चलाते,
खूब किये थे सैर सपाटे।।

बचपन में आजाद बहुत प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

 पेड़ पर चढ़ इमली तोड़ते,
टहनी को दातून बनाते।।
भोर भई तब साथी सारे,
लखनऊ की गलियां छाने थे..

होली सब घुल मिल खेले प्रिय      
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

बिजली जब घर से जाती थी,
बाहर शोर मचाकर निकले।
बिजली जब वापस आती थी
घर में शोर मचाकर घुसते।।

लालटेन में कभी पढ़े प्रिय,
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

पानी बरसे बाहर आते,
भीग-भीगकर मौज मनाते।
गलियों सड़कों पर घूमे हम
हो-हो करके शोर मचाते।।

कागज़ के थे नाव बहुत प्रिय।
डूबने का था भाव बहुत प्रिय।।

मन जहाँ बरसात का पानी,
भेदभाव दुनिया ना जानी।
किसके घर में बनी सेवइयां
किसके घर की गुझिया रानी।।

आता था तब स्वाद बहुत प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

कहाँ-कहाँ दुनिया में खेला,
यह दुनिया रंगबिरंगा मेला।
प्रेम के धागे जोड़ सके न
साथ प्रभू  तू चले अकेला।।

भारत सा न ठौर कहीं प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

जल्दी ही भारत आऊँगा,
मतभेद मिटे - लग जाऊंगा।
दलित-सवर्ण यह भेदभाव  जो
हमें बाँटने की साजिस कोई?

षड्यंत्रों की बू आती है प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

पैंग  मारकर संग झूले थे,
तितली सा अकुलाता मन था।।
बाल सखा का हाथ पकड़कर,अनुशासन का तब डर ना था।

कब आएंगे वैसे दिन प्रिय?
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

रविवार, 28 मई 2017

'क्या भूलें क्या याद करें प्रिय' -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो A poem in Hindi by Suresh Chandra Shukla, Oslo

क्या भूलें क्या याद करें प्रिय 
       सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो

मिलते थे जब बाहें भरकर,
वह कितना प्यारा बचपन था।
तब मित्रों के घर आँगन में ,
जहाँ  प्रेम  पानी-चन्दन था।।

क्या कैसा अहसास करें प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

घर से जब पढ़ने जाते थे,
मग में खेल रचाते जाते।
तब कितने भोले-भोले से,
गेंद खेलते वापस  आते।।

नया रोज उत्साह रहा प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

कागज़ के फूल बनाते थे तब,तकली से सूट कातते थे तब।
 गौ  का चारा पानी करने,
चार बजे उठ जाते थे तब।।

तब बस्ते का भार न था प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

इन्टरवल में बेर शरीफा,
बगिया में शहतूत शहद से।
तिगड़ी टांग खेलते थे जब,
एक दूजे को छूते थे तब।।

सब रंग प्यारे लगते प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

पथ में गाना गाते जाते,
तब दौड़ कूद  धमाल मचाते।
मिसरी कपास  सा तन-मन था.
माँ के  तुलसी दीप जलाते।

ऊँच नीच का भाव नही प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

गलियों में अमरुद तोड़ते,
बिछड़ों को हम पुनः जोड़ते।
मैदानों से कंकड़ चुनते,
जो पावों में कभी चुभे थे।।

पर्यावरण ध्यान बहुत प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

कच्ची माटी के कुल्लड़ थे,
सीधे सादे हम अल्लड़ थे।
दीपक-ओम अमर अन्जू  थे,
कंचे  सम्भू संग खेले थे।।
      
चलते नंगे पाँव बहुत प्रिय,
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।


लट् टू तब हम रोज नचाते,
पतंगबाजी की डोर लूटते
अम्मा रोज पीटती मुझको,
देर रात को जब घर आते।।

इन्तजार अम्मा करती प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

दूर वहाँ तक पैदल जाते,
जहाँ कहीं भी फिल्म दिखाते।
हरफन मौला कब पढ़ते हैं?
अपन फ़िल्मी हीरो समझें थे ।।

कभी फेल व पास हुए प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

किराये की साइकिल ले जाते,
उसमें तीन बैठ कर जाते।
बारी-बारी उसे चलाते,
खूब किये थे सैर सपाटे।।

बचपन में आजाद बहुत प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

 पेड़ पर चढ़ इमली तोड़ते,
टहनी को दातून बनाते।।
भोर भई तब साथी सारे,
लखनऊ की गलियां छाने थे..

होली सब घुल मिल खेले प्रिय      
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

बिजली जब घर से जाती थी,
बाहर शोर मचाकर निकले।
बिजली जब वापस आती थी
घर में शोर मचाकर घुसते।।

लालटेन में कभी पढ़े प्रिय,
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

पानी बरसे बाहर आते,
भीग-भीगकर मौज मनाते।
गलियों सड़कों पर घूमे हम
हो-हो करके शोर मचाते।।

कागज़ के थे नाव बहुत प्रिय।
डूबने का था भाव बहुत प्रिय।।


मन जहाँ बरसात का पानी,
भेदभाव दुनिया ना जानी।
किसके घर में बनी सेवइयां
किसके घर की गुझिया रानी।।

आता था तब स्वाद बहुत प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

कहाँ-कहाँ दुनिया में खेला,
यह दुनिया रंगबिरंगा मेला।
प्रेम के धागे जोड़ सके न
साथ प्रभू  तू चले अकेला।।

भारत सा न ठौर कहीं प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

जल्दी ही भारत आऊँगा,
मतभेद मिटे - लग जाऊंगा।
दलित-सवर्ण यह भेदभाव  जो
हमें बाँटने की साजिस कोई?

षड्यंत्रों की बू आती है प्रिय।
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।

पैंग  मारकर संग झूले थे,
तितली सा अकुलाता मन था।।
बाल सखा का हाथ पकड़कर,अनुशासन का तब डर ना था।

कब आएंगे वैसे दिन प्रिय?
क्या भूलें क्या याद करें प्रिय।।

शुक्रवार, 26 मई 2017

"इन्दिरा गाँधी वर्सेज नरेंद्र मोदी" 16.12.2016 को नवभारत टाइम्स नेट पर छपी थी मेरी यह टिप्पणी. -Suresh Chandra Shukla

इन्दिरा गाँधी वर्सेज नरेंद्र मोदी
 16.12.2016 को नवभारत टाइम्स नेट पर छपी थी मेरी यह टिप्पणी
 जिस महान नेता इंदिरा गाँधी जी को अटल जी ने देवी और रणचण्डी कहकर सम्मानित किया उन्हें प्रधानमंत्री मोदी जी पार्टी बैठक में भ्रमात्मक बयां दे रहे हैं. एक प्रधानमंत्री को दूसरे प्रधानमंत्री की इज्जत करनी चाहिये। इंदिरा जी विदेशों में प्रेस कांफ्रेंस में नहीं बोलती थीं और मोदी जी ज्यादातर बोलते हैं. इंदिरा जी के समय 1983 में सरकार ने निशुल्क कंप्यूटर प्रोग्राम उपलब्ध न कराये होते तो पे टी एम, ए टी एम हमारे आप तक आज नहीं पहुँच पाते। उनकी मृत्यु के समय से पहले ही उसका उत्पादन शुरू हुआ था और निशुल्क प्रचार बढ़ा था. मोदी जी विवादित लेखक किसिंगर को भी पढ़ें। इंदिरा जी के समय में देश के अंदर राष्ट्रीय कोष में सबसे अधिक सोना, सरकारी कर्मचारियों के बचत खाते में धन जमा कराया गया था तब नार्वेजीय 0,75 क्रोन में एक रुपया मिलता था अब इसमें दस गुना मिलता है. रेल के सभी कारखाने अच्छा उत्पादन करते थे. रेल समय पर आती थी. मैं रेल में काम करता था आजकल यूरोप संपादक हूँ.- सुरेश चन्द्र शुक्ला, ओसलो

फिल्माचार्य आनन्द शर्मा जी के निर्देशन में नाटक 'अन्ततः' में क्षितिज द्विवेदी और आनंद शर्मा जी ने दिखाया अपना श्रेष्ठ अभिनय।-Suresh Chandra Shukla, Oslo

 फिल्माचार्य आनन्द शर्मा जी के निर्देशन में नाटक 'अन्ततः'  में क्षितिज द्विवेदी और आनंद शर्मा जी ने दिखाया अपना श्रेष्ठ अभिनय।  नाटक ११ मई को लखनऊ में खेला गया था. सुरेशचन्द्र शुक्ल ने इसे लिखा था.
क्षितिज को आगामी प्रोजेक्ट के लिए शुभकामनायें।


बुधवार, 24 मई 2017

Orhan Pamuk i Oslo ओरहान पामुक ओस्लो में आज अपने साहित्य पर बात करेंगे लिटरेचर हाउस ओस्लो में.

Orhan Pamuk i Oslo ओरहान पामुक ओस्लो में आज अपने साहित्य पर बात करेंगे लिटरेचर हाउस ओस्लो में.
 Den 24. mai (i dag) kl. 19:00 på Litteraturhuset i Oslo.


Møtt med Nobelpris-vinner Orhan Pamuk i dag kl. 19:00 på Litteraturhuset i Oslo. आज लिटरेचर हाउस ओस्लो में सात बजे शाम को ओरहान पामुक से प्रोफ हेल्गे यूरहाइम से बातचीत का आनंद लीजिये। Her er mitt eget bilde foran Litteraturhuset.

इस प्रेमनगरी में सभी, छल-कपट, श्याम-राम हैं, A poem in hindi by Suresh Chandra Shukla, Oslo

 A poem in hindi by Suresh Chandra Shukla, Oslo


जो शक्ति के न साथ है,
है निशाने पर है वही.
गीतकार चुपचाप  क्यों
चापलूसी आना नहीं।

देश छोड़ विदेश में हैं,
उनका ध्यान तो नहीं
जो  देशभक्त आज है
क्यों काटते सजा वही?

सत्य का  विरोध कर रही 
राजशक्ति अपने गर्व में.
सदा  नहीं रहा पाले में.
खुशी भी अपने पर्व में..

कल अर्जुनों को चक्रव्यूह,
बांधकर क्या खड़े हुए,
गले का फंदा नहीं बनो,
आज अपने गले ना हो?
निर्धनों की संपत्ति के.
ये पूंजीपति गुलाम हैं,
इस प्रेमनगरी में सभी,
छल-कपट, श्याम-राम हैं,

जनता  के कारण ही अब
जिनके साथ अमीरी  हैं,
घमंडी का सर नीचा हो,
वह समय भी जरूरी है.. 


मंगलवार, 23 मई 2017

'जो न भूला वह याद करूँ' डायरी -23.05.17, ओस्लो Memory-Diary by Suresh Chandra Shukla, Oslo

 'जो न भूला वह याद करूँ'   डायरी -23.05.17, ओस्लो Oslo

बाएं से भारती सिंह, एक साहित्य प्रेमी पीछे खड़े है, स्वयं मैं (सुरेशचन्द्र शुक्ल ), प्रोफ संतोष तिवारी और प्रसिद्द कवि सूर्य कुमार पाण्डेय लखनऊ पुस्तक मेला में.

जब मैने 1970 में पुरानी श्रमिक बस्ती ऐशबाग में समाज सेवा शुरू की थी तब चाहता था कि हर बस्ती के नुक्कड़ पर या मध्य में रिसोर्स सेन्टर बने जहाँ अनपढ़ को साक्षर, स्कूली बच्चों को होमवर्क, महिलाओं के लिये सिलाई-बुनाई और नौकरी के लिये प्रशिक्षण और स्वास्थ्य सम्बन्धी जानकारी दी जाये.
बच्चों और युवा लोगों को स्काउट एवं गाइड प्रशिक्षण.
महिला शक्ति कीर्तन भजन करें पर आज समय के साथ चुनौतियों से निपटने लिए साथ-साथ मिलकर बहुत कुछ करना होगा. पुरानी पीढ़ी से कुछ नहीं होना क्योंकि इस पीढ़ी ने न बदलना है अधिकांश लोग अभी भी दकियानूसी विचार के हैं.
इनके समाधान आज के नयी बदलते परिपेक्ष में खरे नही उतरते.
समय -समय पर अपने समूह लेकर साथ-साथ जैसे 8 मार्च को लखनऊ की सभी महिलाओं के साथ अपनी मांगे, विचार और घर बाहर की समस्या जो सबकी हो उसे सामूहिक मंच पर रखें और उत्सव की तरह साथ-साथ मनायें. तब पुरुष भी साथ दें.
1 मई को सभी कामगर और किसी भी प्रोफ़ेशन में काम करने वाले लोगों का संगठन सम्मिलित हो और अपनी रोजमर्रा की परेशानियों की मांग रखें. ताकि आधारभूत समस्या का हल हो. एकता में शक्ति है और बहुत सी समस्यायें आपस में मिलने से ही हल हो जाती है.
,यह बस्ती नहीं हस्ती है,
जहाँ कभी दुर्गा भाभी, शचीन्द्रनाथ बक्शी
अटल बिहारी आते थे,
शरद आलोक सांस्कृतिक मशाल जलाते थे
रमाशंकर भारतवासी और एल बी वार्षनेय मेला जमाते थे
जहाँ बृजमोहन कोआप्रेटिव में मन्त्री थे.
श्री खरे और दिनेश श्रीवास्तव स्काउट एवं गाइड बनाते थे
पापा जी ईमानदारी सिखाते थे
उनके लगाये वृक्ष पर मन्दिर बन गए हैं
चौराहे पान-चाट मसालों के खोमचो से ढक रहे हैं
बाहर से लोग यहाँ आकर अपनी -अपनी दुकाने चला रहे हैं
हम लोगों के लिये कितना कर रहे हैं?
तब से आज तक वहीं खड़े हैं
जहाँ थे वहीं अड़े हैं.,' - शरद आलोक, ओस्लो, 23.05.17

लघु कथा: "बेघर" - कथाकार: सुरेशचन्द्र शुक्ल, 'शरद आलोक' Mini novelle 'hjemløs' av Suresh Chandra Shukla, Oslo


लघु कथा: "बेघर" - कथाकार: सुरेशचन्द्र शुक्ल, 'शरद आलोक'
कथाकार: सुरेशचन्द्र शुक्ल, 'शरद आलोक'
 जब भी द्वार पर झाड़ू लगाने की आवाज आती तो मैं घर से बाहर निकल आता. हाथ में झाड़ू लिए भैरवी को एक टक देखने लगता।  जैसे-जैसे मैं पास आने की कोशिश करता वह मुझे देखकर और तेजी से झाड़ू लगाने लगती और धूल भी तेजी से चारो तरफ  फैलने लगती।  और मैं रुक जाता। भैरवी कहती बाबूजी मेरे पास नहीं आना. वह शायद मेरे बढ़ते आकर्षण को जान गयी थी. वह नहीं चाहती थी  कि कोई बवाल खड़ा हो. 
दादी को पड़ोसियों से भनक लग गयी कि मैं झाड़ू लगाने वाली भैरवी से बाते करता हूँ.
एक दिन दादी खुले आम सभी को सुनाते हुए मुझे सम्बोधित करते हुए कहा अगर तुम इस भैरवी को छुओगे भी तो मैं तुम्हे घर से निकाल दूंगी।
जब दादी मंदिर गयी थी तो मैंने भैरवी को अपनी चाय पीने को कहा. बहुत कहने पर बहुत मुश्किल से भैरवी  घर के बाहर खड़े रहकर चाय पीने के लिए तैयार  हो गयी. 
जब वह चाय पीकर मुझे प्याली वापस दे रही थी कि दादी वापस आ धमकी और उसने देख लिया।
फिर क्या कहना था  दादी आग बबूला हो गयी. 
दादी ने घर जाकर मेरा गुस्से से बैग फेककर कहा कि जाओ अब इसे जिंदगी भर छुओ पर इस घर में तुम्हारा गुजारा नहीं।"
बैग लेकर मैं भैरवी के पास आ गया.
भैरवी हंसी और कहा कि मैं भी तुम्हें घर में नहीं रख सकती।
मैंने प्यार से कहा मैं बेघर ही सही पर मैं तुम्हें अब छू तो सकता हूँ. साथ-साथ बैठकर चाय तो पी सकता हूँ. 

गुरुवार, 18 मई 2017

 काव्य गोष्ठी थोईएन, ओस्लो में 
एक्टीविटी सेन्टर थोइएन, ओस्लो में  मई को शाम एक कवी गोष्ठी संपन्न हुई जिसका संचालन कर रहे थे इंदरजीत पाल और हिंदी और पंजाबी भाषा में कवितापाठ करने वालों में सुरेशचन्द्र शुक्ल, इन्दर खोसला, खालिद थथाल, राज कुमार, और अन्य थे. जान दित्ता और राजकुमार ने गीत गाये।  
एइविन्द ने बताया कि एक्टीविटी सेन्टर थोइएन एक ऐसा सेंटर है जहाँ अनेक प्रकार की गतिविधियाँ होती हैं. जैसे युवा नौकरी के लिए आपस में राय-विमर्श करते हुए नौकरी के लिए आवेदन तैयार करके भेजते हैं. योगा, नृत्य और गोष्ठियां आदि गतिविधियाँ यहाँ लगातार चलती रहती हैं.


 



 

Norwegian writers had protest against to stop a poetry program 'Diktafon' at NRK P2 to day in Oslo. -Suresh Chandra Shukla


बंधुवर आज रेडियो स्टेशन NRK, Oslo के बाहर लेखकों ने कविता के कार्यक्रम दिक्ताफून Diktafon को बंद करने के विरोध में किया जिसमें लेखकों ने विरोध कविता साथ साथ पढ़ी और सम्बंधित अधिकारी को विरोधपत्र दिया।














धन्यवाद मित्रों। Hei venner. Takk for et flott travelt dag i går. कल का दिन बहुत व्यस्त और सुखद रहा. जैसे भारत में त्योहारों पर रहता है. -Suresh Chandra Shukla

धन्यवाद मित्रों। Hei venner. Takk for et flott travelt dag i går.
कल का दिन बहुत व्यस्त और सुखद रहा. जैसे भारत में त्योहारों पर रहता है.
आपका दिन मंगलमय हो.


चित्र में बायें से डॉ कृष्णा जी श्रीवास्तव, प्रोफ़ेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल, सुरेशचन्द्र शुक्ल (स्वयं मैं) और नेपाल से डा श्वेता दीप्ति। चित्र विश्व हिंदी सम्मलेन भोपाल में लिया गया है.

राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यू एस ए की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ के खर्चों में बड़ी भारी कटौती। - सुरेश चन्द्र शुक्ल Donald Trumps planer om å kutte USAs bidrag til FN by Suresh Chandra Shukla


 राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने यू एस ए की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ के खर्चों में बड़ी भारी कटौती। - सुरेश चन्द्र शुक्ल 
Donald Trumps planer om å kutte USAs bidrag til FN 

संयुक्त राष्ट्र संघ के महामंत्री आंथोनियो गीउतरेस António Guteress पहले ही अनेक विवादित बदलाव कर चुके हैं और अब संयुक्त राष्ट्र अमेरिका USA की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ UN पर होने वाले खर्च में बहुत बड़ी कटौती करने वाले हैं.
इस बड़ी यू एस ए की तरफ से संयुक्त राष्ट्र संघ में होने वाले खर्च में बड़ी आर्थिक कटौती का असर अनेक क्षेत्रों में बहुत बुरा पड़ेगा।
 यू एस ए का सहयोग सेक्टेरिएट में २२ प्रतिशत खर्च पर पडेगा जो २,५ मिलिआर्डेर डालर होता है. इससे यू एस ए का संयुक्त राष्ट्र में असर बहुत काम रह जायेगा। इसके अलावा अनेक वैश्विक कार्यक्रमों पर पड़ेगा।

बुधवार, 17 मई 2017

17 मई को पुराने और नए स्कूल भवन में वाइतवेत स्कूल, ओस्लो का एक दृश्य। -Suresh Chandra Shukla

मेरे घर के पास एक स्कूल है जिसका नाम वाइतवेत स्कूल है जो राजधानी ओस्लो में स्थित है. इस स्कूल को एक नवनिर्मित स्कूल भवन में बदल दिया गया है.
इस बार सत्रह मई 2017 नयी इमारत में मनाया गया शेष ये बच्चे बीच नगर में पार्लियामेंट से लेकर राजमहल का चक्कर लगायेंगे। वहां पहले पार्लियामेंट के अध्यक्ष (स्तूरटिंग्स प्रेसीडेंट) फिर राज परिवार उन्हें झंडा और हाथ हिलाकर अभिवादन करेंगे।
यहाँ नार्वे में राष्ट्रीय दिवस (संविधान दिवस) बच्चों के लिए मनाया जाता है.
नार्वे के राष्ट्रीय दिवस 17 मई को पुराने और नए स्कूल भवन में वाइतवेत स्कूल, ओस्लो का एक दृश्य। 
नये स्कूल के बाहर बच्चे एकत्र हुए हैं:



पुराने स्कूल के सामने चित्र पिछले वर्ष लिया गया है:



I dag er det Norges Konstitusjonsdag, (Nasjonaldag). Gratulerer med dagen. Fin dag. आज नार्वे का राष्ट्रीय दिवस है आप सभी का दिन मंगलमय हो.

आज नार्वे का राष्ट्रीय दिवस है आप सभी का दिन मंगलमय हो.
आज ओस्लो में लाखों लोग एक्टर होंगे. बैभव का विशेषकर स्कूल के बच्चे, बैंड बाजे, और सभी उम्र के लोग एकत्र होंगे।  न भूलने वाला दिन होगा।

मंगलवार, 16 मई 2017

Et dikt av meg på 17. mai på Norges nasjonal dag. मेरी एक कविता 17 मई, नार्वे का राष्ट्रीय दिवस पर. -Suresh Chandra Shukla, Oslo, Norway

नार्वे का राष्ट्रीय दिवस है. 17 मई. संविधान दिवस।  मेरी एक कविता 17 मई पर.
आपका दिन मंगलमय हो.



अपने घर के द्वार ओस्लो में अपने बेटे अनुराग और परिवार के साथ.




Den 17. mai er det norske nasjonal dag. Gratulerer. कल नार्वे का राष्ट्रीय दिवस है. 17 मई. संविधान दिवस। -Suresh Chandra Shukla, Oslo, Norway

कल नार्वे का राष्ट्रीय दिवस है. 17 मई. संविधान दिवस। बहुत-बहुत बधाई।  Norges nasjonal dag, 17. mai. Gratulerer med dagen. Fin dag.


 यहाँ बच्चों के लिए मनाया जाता है. उन्हीं की प्राथमिकता रहती है.

Washington Post ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की रूस के राजदूत और रूस के विदेशमंत्री के साथ बैठक का खुलासा किया -Suresh Chandra Shukla

 अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प पर आरोप लगा है कि उन्होंने चुनाव के दौरान रूस के राजदूत और विदेश मंत्री के साथ बैठक की और गुप्त  सूचना के आदान प्रदान को  नहीं बताया जो  उन्होंने  रूस के राजदूत के साथ बैठक का खुलासा किया था. 


Washington Post   Foto:AP
USA

वाशिंटन पोस्ट ने अभी थोड़ी देर पहले यह सूचना प्रकाशित की है.
राष्ट्रपति ट्रैम्प की मुश्किलें बढ़ सकती हैं. ट्रम्प रूस के लिए अधिक जानकारी की तुलना 
में हम अपने सहयोगी दलों के साथ साझा पता चला,  
एक स्रोत अखबार को बताया।अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प 
गुप्त जानकारी का खुलासा करना चाहिए था आतंकवादी समूह के 
बारे में रूसी विदेश मंत्री और रूस के अमेरिकी राजदूत के साथ एक बैठक में है।
USAs president Donald Trump skal ha avslørt hemmelig informasjon om 
terrorgruppen IS i et møte med den russiske utenriksministeren og 
Russlands USAs ambassadør 

सोमवार, 15 मई 2017

लाक्पा शेरपा Lhakpa Sherpa from Nepal ने सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को आठवीं बार चढ़ाई की। - Suresh Chandra Shukla

 आठ बार एवरेस्ट को आठवीं बार फतह कर नेपाली महिला लाक्पा शेरपा  ने बनाया विश्व रिकॉर्ड

काठमांडू, प्रेट्र। नेपाली पर्वतारोही लाक्पा शेरपा दुनिया की सबसे ऊंची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट को आठवीं बार फतह करने वाली पहली महिला बन गई हैं। सात बार एवरेस्ट पर चढ़ाई का अपना ही रिकॉर्ड तोड़कर उन्होंने नया विश्व रिकॉर्ड बनाया है।
अखबार हिमालयन टाइम्स के मुताबिक, 44 वर्षीय लाक्पा शनिवार सुबह 6.35 बजे तिब्बत की तरफ नॉर्थ कोल से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की। वह निमा दोरजी शेरपा से साथ चोटी पर पहुंचीं। अप्रैल के मध्य में तिब्बत से रवाना होने से पहले लाक्पा ने कहा था कि वह दिखाना चाहती हैं कि मुश्किलों के बावजूद नेपाली महिला में सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का साहस और धैर्य होता है।
पिछले वसंत ऋतु में उन्होंने सातवीं बार तिब्बत की तरफ से माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी। रिपोर्ट के मुताबिक, उन्होंने पहली बेटी के जन्म के आठ महीने बाद और दूसरे बच्चे के लिए दो महीने की गर्भवती होने पर एवरेस्ट पर चढ़ाई की थी। तीन बच्चों की मां लाक्पा ने पर्वतारोहण का औपचारिक प्रशिक्षण नहीं लिया है। साल 2000 में पहली बार उन्होंने माउंट एवरेस्ट को फतह किया था।

Ravindranath Taigore ble feiret i Oslo आज ओस्लो में धूमधाम से रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती मनायी गयी. -Suresh Chandra Shukla

Ravindranath Taigore ble feiret i Oslo

आज 14 मई को ओस्लो में धूमधाम से रवीन्द्रनाथ टैगोर जयन्ती धूमधाम से  मनायी गयी. 


कार्यक्रम का सुन्दर संचालन प्रोफ़ेसर असीम दत्त राय ने किया था. 
कार्यक्रम का आयोजन बंगाली कल्चरल एशोसिएशन ने किया था. 
रवीन्द्र संगीत और नृत्य के साथ नाटक और प्रश्नोत्तर प्रतियोगिता हुई जिसे दर्शकों ने बहुत सराहा।  श्री बरुआ जी ने बांसुरी पर धुन सुनायी। नार्वे में बेस भारतीय लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक ने गुरुदेव रवींद्र नाथटैगोर जी को अपना आदर्श बताया। एक सप्ताह पहले भी भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की तरफ से टैगोर जयन्ती मनाई गयी थी. चित्र: सुरेशचन्द्र शुक्ल  Foto: Suresh Chandra Shukla








रविवार, 14 मई 2017

इस बार आश्चर्य चकित और बीमार रहे पुर्तगाल के सलवादोर सोबराल Salvador Sobral विजयी रहे बहुत-बहुत बधायी। Den historiske seieren til Portugals Salvador Sobral var like overraskende som fortjent.

इस बार आश्चर्य चकित और बीमार रहे  पुर्तगाल के सलवादोर सोबराल Salvador Sobral  यूरोपीय संगीत प्रतियोगिता यूरोविजन -२०१७   में विजयी रहे बहुत-बहुत बधायी। 
Den historiske seieren til Portugals Salvador Sobral var like overraskende som fortjent.  Gratulerer.-Suresh Chandra Shukla, Oslo
यूरोपीय संगीत प्रतियोगिता इस बार राजनीति से प्रेरित रही. क्योंकि उक्रेन ने रूस की गायिका पर प्रतिबन्ध लगा दिया जिसने पारा ओलम्पिक में गीत गाया था.  
इस बार आश्चर्य चकित और बीमार रहे  पुर्तगाल के सलवादोर सोबराल Salvador Sobral विजयी रहे बहुत-बहुत बधायी।
Den historiske seieren til Portugals Salvador Sobral var like overraskende som fortjent.

शनिवार, 13 मई 2017

Livet er en reise -Suresh Chandra Shukla जीवन एक यात्रा है - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' Oslo, 13.05.17

जीवन एक यात्रा है - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' 
जीवन एक यात्रा है जहाँ आपको लोग मिलते हैं और उनके साथ विचारों से कभी साथ हो लेते हैं और कभी छूटते रहते हैं. पिछले वर्ष (अगस्त २०१६ से अभी तक) मैंने कश्मीर, पंजाब, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, से तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र की शैक्षिक यात्रायें की हैं.

उसी तरह फेसबुक, ब्लॉग और ई-मेल के जरिये बहुत से हर उम्र के मित्रों से मिलने का अवसर मिला और थोड़े समय में जो मुझे सानिध्य मिला उसने मेरे संबंधों का और विचारों का विस्तार किया है. विचार विमर्श और दूसरों के विचार जानने और चित्रों को देखने से परिचयबोध बढ़ा है.