मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

नार्वे में लौह पुरुष पटेल जयन्ती मनायी गयी - Suresh Chandra Shukla

 नार्वे में पटेल जयन्ती मनायी गयी 















भारतीय दूतावास ओस्लो में लौह पुरुष सरदार पटेल की जयन्ती पर राष्ट्रीय एकता दिवस- सेमीनार में दो फिल्मों का प्रदर्शन किया और राजदूत महामहिम देबराज प्रधान जी ने राष्ट्रीय एकता और नार्वे में भारतीयों की एकता पर प्रेरणात्मक सम्बोधन के साथ संपन्न हुआ.
राष्ट्रीय एकता दिवस एक निबंध प्रतियोगिता आयोजित की थी जिसमें प्रतिभाशाली युवा पुरस्कार विजेता थे: प्रथम स्थान आरुषी मिश्रा, द्वितीय स्थान अवानी खरे और तीसरा स्थान इरीश भवन, विशेष पुरस्कार अमांदा शर्मा को दिया गया लौह पुरुष सरदार पटेल पर सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक ने स्वरचित कविता सुनायी।
 भारतीय दूतावास ओस्लो में लौह पुरुष सरदार पटेल की प्रदर्शनी लगी है.
सरदार पटेल का जन्म 31 अक्टूबर सन 1875 में हुआ था और मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को हुई थी.























सोमवार, 30 अक्तूबर 2017

सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस (31 अक्टूबर) पर राष्ट्रीय एकता दिवस पर एक सेमीनार 30 अक्टूबर को ओस्लो स्थित भारतीय दूतावास में-Suresh Chandra Shukla

निमंत्रण: 














प्रिय मित्रों!
आज 30 अक्टूबर को ओस्लो स्थित भारतीय दूतावास में
पहले गृहमंत्री सरदार बल्लभ भाई पटेल के जन्मदिवस (31 अक्टूबर) पर
एक सेमीनार में राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जा रहा है
शाम चार बजे (kl. 16 :00).
स्थान: Embassy of India, Niels Juels Gate 30, Oslo.
धन्यवाद।
अधिक सूचना के लिए संपर्क करें:http://www.indemb.no

रविवार, 29 अक्तूबर 2017

भाग्य की लकीरें खींच, हिम्मत के बातें करें। अब भावना में न बहें, अपनी खुद हिफाजत करें।। - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'-Suresh Chandra Shukla


हम आज की बातें करें, सब काम की बातें करें। 
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'














चित्र में बायें से कृपाशंकर, विश्वनाथ प्रसाद तिवारी, श्री  पाण्डेय  जी और लेखक शरद आलोक 
दिल्ली में साहित्य अकादमी के भवन में 

जो माँगकर नेता बने,
तिजोरी काला धन भरें।
पुराने नोट के दलाल,
अब जी हुजूरी कम करें।

ये राशन कार्ड है या,
यह दहशत की धमकी है,
शान्ति से सहना समझना,
हमको गीदड़ भपकी है

अब नहीं कार मोटर हो,
ना चापलूस वोटर हो.
हरा-भरा मैदान जहाँ ,
बाल वृद्ध  की बैठक हो.

बे सिर पैर बात करे,
ये नेता नहीं चाहिये।
हर हाथ  में काम हो,
सांत्वना नहीं चाहिये।

परिवारों की सेवा में,
बस टैक्स तुम्हें चाहिये।
तुम बैंक के मालिक बनो,
अब उधार नहीं चाहिये।

गाँव का अपना बैंक हो,
साहूकार प्रतिबन्ध हो.
बिना जनता की मर्जी के
नेता का आना बन्द हो.

मोबाइल अपने बनायेंगे,
अन्यायी को  भगायेंगे।
हम माल खुद बनायेंगे,
हम भूखे ना सोयेंगे।

धर्म के नाम अधर्म है,
राजनीति में कुकर्म है.
खायें और खिलायेंगे,
मानवता का धर्म है.

आओ मौसम की बात कर,
तूफ़ान की दावत करें।
समानता मानवता का,
स्वदेश  में स्वागत करें।

बस लेनिन और गांधी हैं?
जबतक  जमीर पानी है?
पतवार को पकड़ तू अब!
पार नौका  लगानी है.

भाग्य की लकीरें खींच,
हिम्मत के बातें करें।
अब भावना में न बहें,
अपनी खुद हिफाजत करें।।

- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ओस्लो, 29.10. 2017


शनिवार, 28 अक्तूबर 2017

अविकसित देशों में नौजवान समाज सेवा और धर्म सेवा में आगे आयें। - सुरेशचन्द्र शुक्ल

अविकसित देशों में नौजवान समाज सेवा और धर्म सेवा में आगे आयें।
 - सुरेशचन्द्र शुक्ल 











भारत, उसके आसपास देशों और मध्य एशिया एवं अफ्रीकी देशों में धर्म और क्षेत्रीय समुदायों के नेताओं को धर्म की आड़ लेकर नेता बन रहे हैं जिन्हें जनता की सेवा का कम ध्यान है और मनमानी वाली धर्मांध अमानवीय परम्पराओं का सहारा लेकर शक्ति और अर्थ के लिए कुछ भी कर देते हैं.
इन सभी देशों में पर्यावरण और ट्राफिक समस्या बहुत बड़ी है जिसका एक कारण अशिक्षित नेताओं का नेतृत्व करना, जनता न पढ़ा लिखा होना और जनसंख्या का बढ़ना।
यहाँ अनेक देशों के क़ानून भी धर्म के कारण भेदभाव वाले हैं.
भारत में धार्मिक संस्थाओं से ज्यादा विकास के लिए सभी का श्रमदान से सभी को शिक्षित करने और सड़क, तालाब और स्कूल बनाने का कार्य किया जाना चाहिए।
सहकारिता से खेती भी देशों में भुखमरी कम कर सकती है.
इसके अलावा दूसरा चारा नहीं है यह मुझे लगता है.
धर्म और राष्ट्रभक्ति का हवाला दे रही संस्थाओं को मैंने सड़कों का निर्माण करने में समय देने की जगह पूजा-पाठ और समूहों में एकत्र करके एक मत और विचार के लिए उकसाना और शाबासी देना भर से बचना चाहिये।
भारत में ही यदि आर एस एस जैसी विशाल सामजिक संस्था यदि रोज अपने कार्यकर्ताओं को  भाषण देने की बजाये उनसे सड़क मार्ग का निर्माण में योगदान ले  और स्वयंसेवियों से ट्राफिक में अनुशासन बनाये रखने के लिए कार्य करे तो दूसरी संस्थाएं भी आगे आएंगी।
परिणाम स्वरूप देश में सभी जगह आने.-जाने के मार्ग होंगे और ट्राफिक में मरने वालों की संख्या कम होगी।
इन संस्थाओं द्वारा केवल एक पार्टी को चुनाव जिताने और उनकी बैसाखी बनना  छोड़ दे.
वह समस्त देश के लिए संस्था यदि है तो अन्य राजनैतिक पार्टियों को भी सहयोग दें. पूरे देश के हैं तो पूरे देश के लिए कार्य करें. श्रम करें और करायें। बातों और भाषणों से कुछ नहीं होने वाला।
अन्यथा हम डाल के तीन पात की तरह रहेंगे। कारप्रेटरों का कचरा धोते रहेंगे वे हमको लड़ाकर अपना उल्लू सीधा करते रहेंगे। 
प्रजातंत्र में सभी एक दूसरे का आदर करें और सभी पढ़ना लिखना जानते हों यह बहुत जरूरी है.
धन्यवाद। कृपया आप अपना ध्यान रखियेगा।
कर्मयोगी बनना होगा।
दुनिया के साथ चलना होगा।
जय हिन्द।

शुक्रवार, 27 अक्तूबर 2017

मैं बॉलीवुड की रानी अभिनेत्री कंगना Kangna Ranaut को लेकर फिल्म बनाना चाहता हूँ - शरद आलोक Kangna Ranaut -Suresh Chandra Shukla, Oslo

यदि मैं बॉलीवुड का फिल्म निर्माता होता  कंगना को लेकर फिल्म बनाता- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'


 मैंने बहुचर्चित और तीन बार राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता अभिनेत्री  कंगना रनौत द्वारा अभिनीत और हर्षद मेहता द्वारा निर्देशित फिल्म प्रोफ़ेसर निर्मला मौर्या जी के साथ चेन्नई में और प्रोफ़ेसर राजेश श्रीवास्तव जी के साथ मुंबई में देखी थी और मेरे मन में बात आयी कि कंगना में वह सब मौजूद है जो पहले सुपर स्टार राजेश खन्ना में है. 
यदि मैं फिल्म बनाउँगा तो कंगना रनौत मेरी पहली पसंद होंगी। 


  


मैं फिल्मों से कब और कैसे जुड़ा - 'शरद आलोक'

पैसे के अभाव में अपने नगर में फिल्म इंस्टीट्यूट में दाखिला नहीं ले सका
जब मैं लखनऊ में रहकर अध्ययन कर रहा था तब वहां कुछ वर्षों के लिए फिल्म और टेलीविजन इंस्टीट्यूट की स्थापना हुई थी शिवाजी गणेशन के नेतृत्व में. मैंने कार्यालय के इतने चक्कर लगाये कि वहां के लोग मेरी लगन को देखकर प्रभावित हुए और अनेक पोस्टकार्ड के आकर के चित्र बनवाकर आवेदन आदि जमा कर लिया और मुझसे लगभग दो हजार रूपये जमा कराने के लिए कहा.
फैशन के कपड़े (सड़ी सफ़ेद कपडे की सदरी-राजेश खन्ना की स्टाइल की और पुराने पैंट  को नए फैशन रूप में बदलने और सिलने का कार्य किया था फिरोज टेलर, जो डी ए वी कालेज, लखनऊ के पास स्थित था. यह सिलाई बहुत कम पैसे में. पोस्टकार्ड आकार के चित्र खींचने और बनाने में मेरी उधार मदद की थी कैसरबाग में ग्लेमर स्टूडियो, लखनऊ ने. 
 पैसे के अभाव में और रेलवे की नौकरी करते हुए अध्ययन की जिमेदारी ने मुझे ऐक्टिंग या निर्देशन न सीखने दिया।
यह वह दौर था जब मैं गरीबी को दांव देकर काम करता हुआ अध्ययन कर रहा था और साथ ही कभी-कभी लेखन करता था, कवितायें लिखता था.  उसी समय मेरे मोहल्ले में अक्सर होली पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते थे जिसमें एक बार श्री विजय भल्ला, हरीश सूरी,  ओम प्रकाश आदि ने कार्यक्रम कराया था और मंत्री राजेंद्र कुमारी बाजपेयी आयी थीं तब मैंने कैरीकेचर 'हास्य-व्यंय' प्रस्तुत किया था. मेरे पिताजी ने मेरी माताजी से मेरी प्रशंसा  की थी.
पढ़ाई में औसत, और लड़ाई और घुमाई में सदा आगे रहता।  मुझे लगता फिल्म आवारा बेशक राज कपूर ने बनाई थी पर तीन चार साल तक मैंने जमकर दोस्तों के साथ घुमाई और आवारागर्दी की थी. ये सन 1968 से लेकर 1972 के दिन थे.
सेंटर वाली पार्क, पुरानी लेबर कालोनी ऐशबाग, लखनऊ के पार्क में सूचना केंद्र द्वारा श्रमहितकारी केंद्र में दिखाई गयी 'एक के बाद एक' देवानंद द्वारा अभिनीत फिल्म मेरी देखी पहली फिल्म थी.
पहले बॉलीवुड के गीतकार से भेंट
मजे की बात देखिये कि जिस गीतकार कैफ़ी आजमी ने 'एक के बाद एक' फिल्म के गीत लिखे उनके दर्शन हुए एवररेडी फैक्टरी तालकटोरा, लखनऊ के बड़े मैदान में एक बड़े मुशायरे और कविसम्मलेन में हुआ कविसम्मेलन विधिवत शुरू होने के पहले शुरुआत में स्थानीय कवि कृष्ण कुमार चंचल और मैंने अपनी कविता गांधी जी पर पढ़ी. यह कवि सम्मलेन भी शायद दो अक्टूबर 1972 को था (तारीख ठीक से याद नहीं है). कैफ़ी आजमी जी से मेरी दूसरी मुलाक़ात ओस्लो नार्वे में बड़े दायकमान्स्के पुस्तकालय के बाहर हुई थी. वह ओस्लो में मुशायरा और कवि सम्मेलन में भाग लेने आये थे.
 चुम्बन के लिए माँ से बहुत पिटा 
जिस एक लड़की का दोस्तों के बहकावे में आकर खुलेआम चुम्बन लिया और अपनी माँ से बहुत पिटा था. उसके भाई से पता चला कि उसकी कुछ वर्ष पहले उसकी मृत्यु हो गयी है. मुझे बहुत दुःख हुआ. यह खबर सुनकर मेरे पुराने दोस्तों को भी दुःख हुआ.
जो लोग आज भी लखनऊ में रहते हैं और जिन्होंने मेरा वह समय देखा है उन्होंने जरूर मेरे जीवन का जीता जागता चलचित्र देखा होगा।
समय से संघर्ष द्वारा जीता जा सकता है.
एक बार जब मैं सात महीने के लिए सन 1971 में रेलवे अस्पताल, लखनऊ में भर्ती रहा था तब मोहल्ले में अनेक मातायें खुश थीं कि अच्छा है कि मैं मोहल्ले से दूर हुआ. क्योंकि रोज-रोज उनके बच्चों को परेशान करना और उनके साथ घूमना बंद हो गया था. उन माओं के सारे बच्चे मेरे साथ ही हाई स्कूल में फेल हो गये थे.
मैंने प्रसिद्द पत्रकार शेषनारायण सिंह को साक्षात्कार में बहुत कुछ बताया था.
बाद में जब मैं रेलवे में आठ घंटे की नौकरी करते हुए अध्ययन में भी अच्छे नंबरों से पास होने लगा और अखबार में कवितायें भी छपने लगी तो इन्हीं माताओं ने कहना शुरू कर दिया कि लड़का हो तो ऐसा. जीवन में बदलाव होते देर नहीं लगती।  समय से संघर्ष द्वारा जीता जा सकता है. आगे चलकर कादम्बिनी के सम्पादक और जाने माने कथाकार राजेंद्र अवस्थी जी ने मेरे बारे में लिखा था कि समय मेरी मुट्ठी से निकलकर नहीं जा सकता है.
फिल्म देखने के लिए चन्दा
हाँ मैं फिल्म की बात कर रहा था. सन 1968 से लेकर 1972 के दौरान मैंने पार्कों और संस्थानों में निशुल्क दिखाई जाने वाली फिल्मों के अलावा सिनेमाहालों में जी भरकर फ़िल्मी देखीं। फिल्म देखने के लिए चन्दा एकत्र करता था.
व्यस्तता के कारण अपने बचपन के दोस्तों के साथ संवाद कम हो गया था 
सन 19  अक्टूबर 1972  से लेकर सन 15 जनवरी 1980 तक मेरा मोहल्ले में मित्रों के साथ बातचीत /संवाद कम हो गया. विस्तृत चर्चा नहीं कर पाटा था. क्योंकि नौकरी और स्कूल में नये मित्र मिले और  सन 1972 में रेलवे में नौकरी लगने के बाद ज्यादातर मेरे मित्र मेरी आयु से अधिक होते थे. कवितायें लिखने और सांस्कृतिक और सामाजिक कार्यक्रमों में जाने लगा था जिससे मुझे नये-नये सपने दिखाई देते थे. उन सपनों में बहुत तो कल्पनाओं तक ही सिमटकर रह गये थे. जैसे जेब में पैसे कम हों तो महँगा खिलौना नहीं खरीदा जा सकता है.
हम पसंद तो किसी को कर सकते हैं पर उसे छू नहीं सकते। बहुत बार हम उसे कह भी नहीं सकते। अपनी उनकी मर्यादायें होती हैं.  जीवन के जो मापदण्ड होते हैं वे हमको संस्कार में घर से, पड़ोसियों से या फिर पढ़ और लिखकर आ जाते हैं. 
श्री रामकृष्ण परमहंस जी ने कहा है कि उन्होंने अनेक पक्षियों और पशुओं से भी सीखा है.
 जब टेलीफिल्म में अभिनय किया और फिल्म का 'क ख ग' सीखा था.
 सन 1985 में मैं गर्मी के ढाई महीनों तक राजेंद्र अवस्थी जी के नेतृत्व में 'साप्ताहिक हिन्दुस्तान' (उस समय का मशहूर साप्ताहिक पत्र) में हिंदी पत्रकारिता के गुर सीख रहा था और वहाँ पत्रकार के रूप में कार्य किया  था.
उस समय नार्वे में मैं सन 1984 से 1986 तक प्रोफेशनल पत्रकारिता की पढ़ाई कर रहा था. राजेंद्र अवस्थी जी ने मुझे तीन महीन तक अपने घर पर रखा और उनके परिवार ने बहुत स्नेह व् सहयोग दिया था.
1985 में राजेन्द्र अवस्थी जी की कहानी पर उनके पुत्र शिवशंकर अवस्थी जी ने दिल्ली दूरदर्शन के लिए परिवार नियोजन पर आधारित फिल्म बनायी थी जिसका शीर्षक था 'आठवाँ चाचा' जिसमें मैंने निर्दयी दुकानदार का अभिनय किया था. साथ ही व्यवहारशील शिवशंकर जी के साथ रहकर फिल्म निर्माण और व्यवस्था के बारे में सीखा।
ब्रिटेन में कवि सम्मेलनों से जुड़ा डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी की प्रेरणा से 
 लन्दन में भारतीय हाईकमीशन में डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी एक विद्वान विधिवेता और हाईकमिश्नर थे. उन्होंने मुझे ओस्लो में भारतीय दूतावास के जरिये कवि सम्मेलनों में आमंत्रित करना शुरू किया।  चूँकि नार्वे से हिंदी में साहित्यिक- सांस्कृतिक पत्रिका निकालता था अतः उनके स्नेह का भाजन बना. 
लन्दन और मैनचेस्टर में आयोजित कवि  सम्मेलनों में मुझे भारतीय फिल्मों से जुड़े बड़े कलाकारों और गीतकारों से मिलने और साथ बैठने और मंच साझा करने का अवसर मिला।  यहाँ गोपालदास नीरज, मजरूह सुल्तानपुरी, हसरत जयपुरी, सईद जाफरी, गजल गायक जगजीत सिंह, सरोद वादक अजमद अली खान, फ़िल्मी दुनिया के सबसे अधिक लोकप्रिय  कलाकार दिलीप कुमार, सायरा बानो और महानायक अमिताभ बच्चन, भाई अजिताभ, सरिता सबरवाल, डॉ लता पाठक, डॉ रणजीत सुमरा, पंडित रवि शर्मा और अन्य लोगों से मिलना विचार विमर्श करना हुआ. एशिया टी वी और जी टी वी पर मेरे साक्षात्कार शुरू में हुए और कविता पाठ भी. वे दिन भी क्या दिन थे. 
मैंने मुम्बई के चक्कर भी लगाये फिल्म से अधिक जुड़ने को लेकर।  मजरूह सुल्तानपुरी और राजकमल स्टूडियो के किरण शांताराम से परिचय बढ़ा और उनके पास अनेक बार गया. राजकमल स्टूडियो पहले दादर के पास ही था जहाँ मैं अपनी श्रीमती सावित्री बुआ जी को लेकर गया था जो पास में ही रहती थीं. मजरूह सुल्तानपुरीजी के घर एक बार फुफेरे भाई मनीष के साथ गया था
आदरणीय पुष्पा भारती जी द्वारा आयोजित कार्यक्रम में जो धर्मवीर भारती जी की याद में था एक यादगार कार्यक्रम था. वहां जावेद अख्तर जी से और शबाना आजमी जी से दुबारा मिला (पहले नार्वे में मिल चुका था). वहां अमरीश पुरी भारती जी की पुस्तक को नाटकीय ढंग से प्रस्तुत किया था. और डॉ गिरिजाशंकर त्रिवेदी जी की के साथ उसी मंच पर मुझे पुस्तक के लोकार्पण करने का श्रेय दिया गया जो कभी न भूलने वाला क्षण था.
बाद में डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी ने नार्वे से प्रकाशित पत्रिका स्पाइल-दर्पण के बीस वर्ष पूरे होने पर नौ वर्ष पूर्व अपने दिल्ली निवास पर पार्टी की थी.  उनका बहुत बहुत आभार। वह आज दुनिया में नहीं हैं उनसे अंतिम मुलाक़ात अमेरिका में हुई थी. सिंघवी जी की सांस्कृतिक सेवा का कोई मुकाबला नहीं है. उनका जैसा मुझे कोई नहीं मिला।
पहली टेली फिल्म तलाश बनायी सन 1996 में
सन 1996 में पहली टेलीफिल्म तलाश का निर्माण हमने किया था. जिसमें मैंने लेखन, अभिनय और निर्देशन किया था. इस फिल्म में नायिका का अभिनय और सफल मानद निर्देशन डॉ रेखा व्यास ने किया था.
यह फिल्म नार्वे और कोपेनहेगन, डेनमार्क के टी वी पर भी प्रदर्शित हुई थी.
इस फिल्म के नार्वे के ओस्लो टी वी पर प्रसारण से अनेक प्रतिक्रया मिली। नार्वेजीय फिल्म इंस्टीट्यूट के हाल में फिल्म दिखाई गयी. और मुझे नार्वेजीय फिल्म एशोसियशन में सदस्य्ता मिली।

मेरी पहली नार्वेजीय फिल्म 'राइसेन तिल कनाडा' (कनाडा की सैर)
फिल्म के शीर्षक से लग रहा है कि इसका सम्बन्ध देश कनाडा से होगा पर ऐसा नहीं है. यह एक रोचक युवाओं के लिए फिल्म है. इसकी कथा नाटकीय है. इसकी सारी सूटिंग ओस्लो में हुई है. इस फिल्म में मेरे बड़े बेटे अनुराग शुक्ल ने फोटोग्राफी और सम्पादन किया है. 
इसकी मुख्य भूमिका नार्वे में थिएटर में शिक्षा प्राप्त सिराज खान, सोफिया कौशल ने किया है. और लेखन, निर्देशन और सह अभिनेता के रूप में मेरा सहयोग रहा है.  
लखनऊ के आनंद शर्मा से जुड़ा और अनेक लघु यू-ट्यूब फ़िल्में बनीं।
लखनऊ के फिलामाचार्य और नाटकों के निर्देशक से जबसे जुड़ा तो मेरे अंदर नाटककार और लघु फिल्मों की तरफ रुझान बढ़ा. चौराहा, गुमराह और इंटरव्यू इसमें मुख्य हैं. इंटरव्यू को यू ट्यूब पर लोग दस लाख से अधिक लोग देख चुके हैं.
मुम्बई और जालंधर में अनेक टीवी और फिल्म कलाकारों से मुलाक़ात हुई
अपनी गत  माह साहित्यिक यात्रा के दौरान मेरी मुलाक़ात अनेक टीवी और फिल्म कलाकारों से हुई और घंटों साथ बिताये और विचार विमर्श हुआ. 
भारत फिल्मों की दुनिया में एक सागर की तरह है. यहाँ के लोग बहुत प्रतिभाशाली हैं पर अभी भी हर व्यक्ति शिक्षित और जागरूक नहीं है पर यह हमारा कर्तव्य है कि भारत में शिक्षा के क्षेत्र में योगदान करें वह भी बिना सरकारी सहायता के. 
यह मत सोचें कि देश ने आपके लिए क्या किया है यह सोचें कि आपने देश के लिया क्या किया है.  
 फिर मिलेंगे नए विचारों और नयी कहानियों के साथ. धन्यवाद। 
 

 






कांग्रेस के बड़े सेकुलर नेताओं श्रीमती इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि और और सरदार नेता बल्लभ भाई जी का जन्मदिन 31 अक्टूबर है,-

31 अक्टूबर। दो कांग्रेस के बड़े नेताओं का दिन है श्रीमती इंदिरा गांधी की पुण्य तिथि और और सरदार नेता बल्लभ भाई जी का जन्मदिन है, उन्हें नमन. उनकी सेकुलर और राष्ट्र के प्रति निष्ठां को नमन.

1-भारत की शक्तिशाली और पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी जी की पुण्यतिथि 31 अक्टूबर को है. लोकप्रिय प्रधानमंत्री अटलबिहारी बाजपेयी ने उन्हें देवी दुर्गा की उपाधि से सम्बोधित किया था. उनका जन्म 19 नवम्बर 1917 को हुआ था. अगले महीने उनकी जन्मशताब्दी है. उनकी हत्या 31 अक्टूबर १९८४ को हुई थी. विश्व पटल पर देश की सबसे मजबूत महिला प्रधानमंत्री थीं.
चित्र में बायें से स्वयं मैं, श्रीमती इंदिरा गाँधी और तत्कालीन नार्वे के प्रधानमंत्री कोरे विलोक। चित्र 1983 में नार्वे में लिया गया है.

 
















2-31 अक्टूबर को भारतीय कांग्रेस पार्टी के बड़े नेता बल्लभ भाई पटेल का जन्मदिन भी है. उनका जन्म 31 अक्टूबर1875 में हुआ था और मृत्यु 15 दिसंबर 1950 को हुई थी.
Indira Gandhi besøkte Norge i 1983. På bilde er fra venstre meg selv, Kvinnelig statsminister i India Indira Gandhi og davaærende statsminister i Norge Kåre Wiloch.

गुरुवार, 26 अक्तूबर 2017

निर्मल वर्मा मेरे प्रिय कहानीकार -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' - Suresh Chandra Shukla 'Sharad alok'

निर्मल वर्मा  मेरे प्रिय कहानीकार -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
 निर्मल वर्मा की पुण्यतिथि 25  अक्टूबर पर विशेष 

कल 25  अक्टूबर को प्रसिद्द साहित्यकार निर्मल वर्मा जी की पुण्य तिथि थी. वह मेरे प्रिय कहानीकार हैं. 

उनसे मेरा मिलना साहित्य अकादमी दिल्ली में सन 1996 में एक साहित्यिक कार्यक्रम के दौरान हुआ था तब दिल्ली में नेशनल ड्रामा इंस्टीट्यूट के कलाकार श्री खरे जी  ने परिचय कराया था क्योंकि उन दिनों मैं अपनी पहली टेलीफिल्म तलाश बनाने के लिए अक्सर वहाँ आया करता था. साहित्य अकादमी और नेशनल ड्रामा इंस्टीट्यूट का कार्यालय एक ही बिल्डिंग 'रवींद्र भवन, नयी दिल्ली में था.

 मुझे निर्मल वर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया गया
14 सितम्बर 2016 को भोपाल में मध्य प्रदेश के सांस्कृतिक विभाग द्वारा मुझे नकद एक लाख रूपये, प्रमाणपत्र आदि के साथ मुझे निर्मल वर्मा पुरस्कार से सम्मानित किया गया तो बहुत खुशी हुई. इस बहाने निर्मल वर्मा जी की अनुपस्थित में मेरा नाम उनके साथ पुरस्कार के जरिये जुड़ गया. 14 सितम्बर को ही ही उसी दिन मुझे श्री शिव ओम अम्बर जी के सफल संचालन में कवि  सम्मलेन में कश्मीर पर कविता पढ़ने का सौभाग्य भी मिला जिसे उन्होंने बहुत सराहा।

निर्मल वर्मा जी विदेश प्रवास में रहे और मैं भी रहा हूँ. अतः प्रवास में रहकर लिखना यह बात दोनों में सामान है बेशक हम दोनों अलग-अलग देशों में प्रवास कर चुके हैं.  निर्मल वर्मा जी की कहानियां हिंदीसमय पर  पढ़ी हैं.

ज्ञानपीठ पुरस्कार विजेता लेखकों जिनसे मेरा मिलना हुआ
निर्मल वर्मा जी को भारत में ज्ञानपीठ और पद्मभूषण सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है. मजे की बात है कि बहुत से लेखकों से मेरा परिचय बढ़ा था और जिन्हें ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा चुका है. वे हैं: अज्ञेय जी जिनसे मैं 1985 में मिला था हिन्द पॉकेट बुक्स द्वारा पुस्तकों की सीरीज के लोकार्पण के समय. उस समय रघुबीर सहाय, राजेंद्र अवस्थी, मुद्रा राक्षस और बहुत से लेखक मौजूद थे.
महादेवी वर्मा जी से मेरा मिलना डॉ आभा अवस्थी (डॉ बृजेन्द्र अवस्थी जी की पुत्री) के गुड़ियों की प्रदर्शनी में लखनऊ के सूचना केंद्र में हुई थी जब उन्होंने आभा जी की गुड़ियों की प्रदर्शनी का उदघाटन किया था. उअस कार्यक्रम में मशहूर और हरफनमौला लेखक अमृतलाल नागर सञ्चालन कर रहे थे.
क़ुरातुल ऐन हैदर, अमृता प्रीतम से मेरी मुलाक़ात ओस्लो नार्वे में हुई थी जब हमने मंच पर अपनी रचनायें साथ-साथ पढ़ी थीं.
श्रीलाल शुक्ल जी से लखनऊ में मिलता रहा और कुंवर नारायण दिल्ली में मिलते थे. कुंवर नारायण से मेरा परिचय प्रसिद्द कहानीकार कमलेश्वर ने कराया था बाद में दोनों ने अलग-अलग मेरी पुस्तकों का लोकार्पण भी किया था.

निर्मल वर्मा को भूलना आसान नहीं है. यदि आपने उनकी कहानियाँ नहीं पढ़ीं हैं तो उनकी कहानियाँ जरूर पढ़िये।


रविवार, 22 अक्तूबर 2017

"नेता से लुटे जा रहे हम, धमकाए जा रहे हम. सावधान जनता, बैलों से हाँके जा रहे हैं हम." - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ओस्लो, २२-१०-१७ -Suresh Chandra Shukla

 "नेता से लुटे जा रहे हम, धमकाए जा रहे हम.
सावधान जनता, बैलों से हाँके जा रहे हैं हम." - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ओस्लो, २२-१०-१७


प्रिय मित्रों हम भेदभाव वाली राजनैतिक नीतियों को सहारा दे रहे हैं जो न्यायपूर्ण नहीं कही जा सकती।

भारत में कभी सरकार राजनैतिक चंदे को दबाने यानी जनता से छिपाने के लिए संसद में मार्च 2017 में कानून पास करते हैं.  फिर गत  सप्ताह राजस्थान विधान सभा ने एक कानून बनाया है जिसके अंतर्गत किसी विधानसभा सदस्य और अधिकारी के खिलाफ पुलिस में केस दर्ज नहीं हो सकता। यह क्या है?

यह हमेशा होगा जब केवल अमीर लोग और राजे महाराजे सोच वाले लोग देश की बागडोर को सीधे या पीछे से संभालेंगे।  चक्रवृद्धि ब्याज की तरह जनता को बेवकूफ बनाकर नेता, मीडिया को बस में करने की कोशिश से कहीं हम फिर तो आर्थिक रूप से गुलाम होने की तैयारी कर रहे हैं?

केवल जनता जिम्मेदार है?  नेताओं को माफ़ कर देती है. उन्हें फिर वोट दे देती है. नेता बेमतलब बिना तर्क भाषण देते हैं?

अब जरूरी ही है कि भारत और विकासशील और अविकसित देशों की जनता जागरूक हो.


शनिवार, 21 अक्तूबर 2017

लोकसभा टी वी पर मेरा साक्षात्कार देखिये: https://www.youtube.com/watch?v=clA2xi5qcU8&index=14&t=842s&list=PLVwSaSw61aK5DaQ0Sr1ybRbJbbLkkeA5f


चित्र में सबसे काम उम्र की भारतीय संसद सदस्य हिना जी.
 

















 लोकसभा टी वी पर मेरा साक्षात्कार देखिये:
https://www.youtube.com/watch?v=clA2xi5qcU8&index=14&t=842s&list=PLVwSaSw61aK5DaQ0Sr1ybRbJbbLkkeA5f





मेरी भारत यात्रा के सुहावने चित्र (सितम्बर अक्टूबर 2017) - Suresh Chandra Shukla-Sharad Alok

 मेरी भारत यात्रा के सुहावने चित्र (सितम्बर अक्टूबर 2017) - Suresh Chandra Shukla-Sharad Alok
मैंने दिल्ली, भोपाल, जबलपुर,














चित्र में बाएं से डॉ त्रिभुवन नाथ शुक्ल  और दाएं श्री श्रीधर पराड़कर जी.
















श्री प्रवीण आर्य जी के साथ 


 














  

जबलपुर में शोभा यात्रा में घोड़े पर सवार।

लखनऊ,











  
लखनऊ में नाटक अंततः के मंचन के बाद मंच पर बायें से अवर प्रमुख सचिव राजेंद्र कुमार तिवारी, फिल्माचार्य आनंद शर्मा, स्वयं मैं (नाटककार) और दो उदीयमान कलाकार. 
 









डॉ वीरेंद्र यादव शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय लखनऊ में स्थापना दिवस पर अध्यक्षता के लिए धन्यवाद और प्रतीकचिन्ह देते हुए.

चेन्नई,









तमिलनाडु साहित्य अकादमी, चेन्नई द्वारा सामान प्राप्त करते हुए अध्यक्ष प्रो निर्मला एस मौर्य द्वारा











डॉ सुधा त्रिवेदी जी के महाविद्यालय  चेन्नई में.










 साथे कालेज मुंबई, बायें से डॉ प्रदीप सिंह. शर्मा जी, बॉलीवुड अभिनेत्री, स्वयं मैं, डॉ कविता रेगे, और मारीशस की एक विदुषी।













बायें से एक छात्रा, प्रोफ़ेसर विष्णु सरवदे , सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' और एक शोध छात्रा मुंबई विद्यापीठ (मुंबई विश्वविद्यालय में).













सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' और जाने-माने निर्देशक केतन मेहता अमृतसर में 
 लुधियाना














लुधियाना में जब सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' पर डाक टिकट जारी करते हुए बायें से एक आयोजक सदस्य, स्वयं मैं, जाने-माने लेखक और समाजसेवी श्री यशपाल बांगिया और प्रसिद्द लेखक प्रोफ़ेसर हरमोहिंदर सिंह बेदी  जी.

जालंधर और लुधियाना का सुहावना सफर किया और साहित्यिक कार्यक्रमों में भाग लिया।

मेरी भारत यात्रा के सुहावने चित्र (सितम्बर अक्टूबर 2017) - Suresh Chandra Shukla-Sharad Alok

सोमवार, 16 अक्तूबर 2017

चेन्नई में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' सम्मानित -Suresh Chandra Shukla

 चेन्नई में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' सम्मानित

1-डॉ सुधा त्रिवेदी जी के महाविद्यालय में छात्राओं को विदेशों में हिन्दी की संभावनाओं पर वक्तव्य दिया।










2-चेन्नई में तमिलनाडू साहित्य अकादमी द्वारा डॉ निर्मला एस मौर्य की अध्यक्षता में मुझे सम्मानित लिया गया.








सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' पर लुधिआना में डाक टिकट जारी -Suresh Chandra Shukla

सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' पर लुधिआना में डाक टिकट जारी 














































लुधिआना में १ अक्टूबर 2017 को यशपाल बांगिया जी की पुस्तक 'अदब की खुशबू' का विमोचन और डाक टिकट जारी किये गये. १ अक्टूबर को अंतर्राष्ट्रीय वरिष्ठ नागरिक दिवस पर यह कार्यक्रम संपन्न हुआ.
सौ वर्ष के बुजुर्गों के साथ सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' और प्रोफेसर हरमहिन्दर सिंह बेदी के चित्र के साथ डाक टिकट जारी किये गये.

तीन दिवसीय साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठी जबलपुर, मध्य प्रदेश भारत में।-Suresh Chandra Shukla

 तीन दिवसीय साहित्यिक राष्ट्रीय संगोष्ठी 











































अखिल भारतीय साहित्य परिषद के अधिवेशन में 'साहित्य का सामर्थ्य' पर चर्चा हुई जबलपुर, मध्य प्रदेश भारत में।  श्रीधर पराड़कर और श्री प्रवीण आर्य बहुत सक्रिय कार्यकर्ता थे जो साहित्य सम्मेलन में  जमीनी सतह से कार्य कर रहे थे जो प्रेरणाप्रद था.
देश के कोने-कोने से साहित्यकार आये थे. गोवा की राज्यपाल डॉ मृदुला सिन्हा, उत्तर प्रदेश के विधानसभा अध्यक्ष श्री ह्रदय नारायण दीक्षित, प्रोफ़ेसर नन्दकिशोर पांडेय, प्रोफ़ेसर रामेश्वर मिश्र, सुश्री शेषरत्नम जी, डॉ विद्याविन्दु सिंह, डॉ विनोद बब्बर जी, करुणा पांडेय, डॉ महेश दिवाकर, डॉ मीणा कौल, प्रोफ़ेसर त्रिभुवन नाथ शुक्ल और अन्य थे.

शोभा यात्रा
कार्यक्रम के अंतिम दिन बहुत शानदार शोभा यात्रा निकली जिसमें विभिन्न झाँकियाँ सजी हुई थीं.  रानी लक्ष्मी बाई से लेकर भारत माता, घुड़सवार आदि काफी आकर्षक थे. मुझे भी घुड़सवारी का अवसर मिला।
यह कभी न भूलने वाला समय था.
चित्र में ये शामिल हो सकता है: 1 व्यक्ति, बाहर