शनिवार, 31 मई 2008
ओस्लो स्थित गुरुद्वारे में दोबारा चुनाव १५ जून को
भारत में जहाँ हम बच्चों के जन्मदिन होटलों- रेस्तरां में मनाने लगे हैं। मैंने देखा, कि लोग विदेशों में अपने तीज त्योहारों और जन्मदिन-समारोह आदि को भारतीय परम्पराओं के अनुसार मनाने में विश्वास करते हैं जो इस बात का सबूत है कि भारत के बाहर भी भारतीय लोग अपने आप को अपनी परम्पराओं के अनुरूप ढालने लगे हैं। इसीलिए कोई अपना जन्मदिन मन्दिर में मनाता है और कोई इस अवसर पर अपनी प्रार्थना-अरदास गुरुद्वारे में कराता है । जो लोग सामाजिक रूप से ज्यादा सक्रिय हैं वे अनेक अवसरों पर अपने घरों पर साहित्यिक कार्यक्रम कराते हैं। अपने अलावा लेखकों और ऋषि मुनियों का जन्मदिन मनाते हैं। अपने शहीदों को याद करते हैं जो इस बात का उदाहरण हैं की हम अपनी संस्कृति को अपने बच्चों के द्वारा भविष्य के लिए सुरक्षित रख रहे हैं। हमको संकीर्ण विचारधारा का नहीं होना चाहिए। जिस भी देश में रहते हैं, उसके विकास के बारे में सोचना तो जरूर चाहिए लेकिन अपने मूल देश की संस्कृति , समाज, समारोह व परम्पराओं को कभी नहीं भूलना चाहिए। मैं इस सन्दर्भ में ऐसे लोगों को बधाई देता हूँ जो अपनी संस्कृति और उदार परम्परा को अपनाते हैं।
ओस्लो स्थित गुरुद्वारे में दोबारा चुनाव १५ जून को:
ओस्लो में स्थित श्री गुरुनानक देव जी गुरुद्वारे में १५ जून को दोबारा चुनाव हो रहे हैं। इसमें कई लोग बहुत सक्रिय थे जिसमें एक महिला प्रबंध समिति में मंत्री चुनी गयीं जिनका नाम रणजीत कौर है, उनकी वाणी ने बहुतों का दिल जीत लिया । वे सभी को आदर से बुलाती थीं कोई भेदभाव नहीं रखती थीं। वह पहली महिला मंत्री बनी थीं जिन्हें हमेशा उनके संचालन के लिए याद किया जायेगा। गुरुद्वारा की प्रबंधक समिति भंग कर दी गयी है पूरी कार्यकारिणी ने अपना स्तीफा दे दिया था, जो अपना पूरा साल भी नहीं पूरा कर पायी। इसने केवल पाँच महीने ही पूरे किए जबकि इसे दो साल के लिए चुना था।
अब नए चुनाव १५ जून २००८ को होंगे।-
- शरद आलोक
नेहरू चाचा की पुण्य तिथि पर श्रधांजलि
चाचा नेहरू का जन्मदिन १४ नवम्बर १९८९ को इलाहाबाद में हुआ था। पूरे विश्व में उनकी पुण्य तिथि २७ मई २००८ को श्रधांजलि देकर याद किया गया। नार्वे में हमने बच्चों को एक गोष्टी में उनकी जीवनी सुनाई। वह भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। २७ मई १९६४ को जवाहर लाल नेहरू जी की मृत्यु हुई थी। इस पुण्य दिन उनकी याद करते हैं। देश में उनकी समाधि पर सोनिया गाँधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बहुत से नेताओं और बुद्धिजीवियों ने पुष्प चढाये। शान्ति के पुजारी, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम सभी ने सुना होगा। वे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। जब इनकी मृत्यु २७ मई १९६४ को हुई थी उस समय मैं सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में अपने अपने दादा के पास गया था जो अवकाश प्राप्त करने के बाद भी आरामशीन लगा कर काम कर रहे थे। नेहरू जी की मृत्यु पर बाजार बंद कर दिए गए थे। नेहरू जी को हम श्रधांजलि अर्पित करते हैं। मेरे दादा मन्ना लाल शुक्ल जी को भी बहुत दुःख पहुँचा था जबकि वे समाजवादी विचारधारा के थे।
- शरद आलोक
गुरुवार, 29 मई 2008
उत्सव से परिपूर्ण मई का महीना जिसने किया उत्साह दूना
मई के पुष्प , जीवन को हरा-भरा करने के लिए अपने आप में समर्थ हैं। भारत में युवा अपनी हाईस्कूल, माध्यमिक परीक्षाओं के परिणाम प्राप्त करने के बाद अपने अपने आगामी अध्ययन और प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए के लिए जुटे दिखाई देते हैं तो नार्वे में मई महीने का आने का अपना अलग अंदाज है । मई का प्रथम दिन अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस के रूप में मनाया जाता है। ओस्लो के हर वार्ड में एक सभा या आयोजन होता है जिसमें प्रातकाल का नाश्ता साथ खाया जाता है। चाहे कोई मिनिस्टर हो या बड़ा अधिकारी हो या श्रमिक या सफ़ाई कर्मचारी सभी मिलजुलकर खाते हैं। श्रमिक और सालिडरिटी के गीत गाते हैं। यह सिलसिला सुबह ८ बजे शुरू हो जाता है।
ग्यारह बजे ओस्लो में Youngstorvet में अपनी-अपनी श्रमिक यूनियन और राजनैतिक दल और उसकी विशेष मांग के साथ निकलते हैं ।
८ मई को नार्वे का आजादी दिवस है
नार्वे में १९४० से १९४५ तक नाजी क्रूर तानाशाह हिटलर का शासन रहा। नार्वे की जनता का साँस लेना दूभर हो गया था। इन वर्षों में एक शांतिप्रिय देश बर्बरता का शिकार हो गया था। आज ८ मई को नार्वे की जनता ने आजादी दिवस मनाया। आज जब मैंने ओसलो नगर में कुछ बुजुर्गों से बातचीत की तो उनकी आँखें भर आयीं। उनका कहना था कि ईश्वर किसी को भी गुलामी न दें। युवाओं का कहना था इक उन्हें गुलामी का कोई अनुभव नहीं है इसलिए उनका इस दिवस से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है। वह क्या जाने आजादी की कीमत जिसने गुलामी नहीं देखी है। मेरी कविता की पंक्तियाँ हैं:
" आजादी की महान जयंती , तुमको बहुत बधाई रे ,
आज हमारे मन में भइया , गूँज उठी शहनाई रे।
गांव -गांव में नगर-नगर में, जहाँ -जहाँ भी क्यारी हो,
आजादी के फूल खिले हों, प्राणों से भी प्यारी हो॥
नहीं चाहिए उसकी रोटी , नहीं चाहिए वे डालर ।
जिसके लेने से हो जाएं, मैंले मेरे ये कालर ॥ "
आजादी का अर्थ है स्वाभिमान और शान्ति से जीवन यापन।
दूसरी बधाई है इसराइल देश की ६० वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं
"इसराइल की आजादी मनाना, तब बहुत आँसू भी बहाना।
स्वर्णिम सपनों के महल, यातनाओं की काली यादें ,
नाजी क्या दरिंदे नहीं जो यहूदियों का रक्त बहाया?
नस्लभेद हो, भेदभाव हो या आतंक का निशाना,
अन्याय के खिलाफ सदा आवाज तुम उठाना॥
चंदन भी जलता है जब चिता पर ,
क्या दिया जलाना, क्या अगरबत्ती जलाना ।
न खुशियों में खुशी है, न दुःख में ही मातम।
इसराइल महकता रहे , हम भी महकते रहें।
न दुश्मन बुरा है, न दोस्त कुछ खास।
आज दो कदम चलें हैं, कल जीवन भर का साथ।"
१७ मई राष्ट्रीय दिवस है :
१७ मई २००५ को नार्वे का संविधान आइद्स्वोल्ल नगर में लिखा गया और
लागू हुआ था जिसे एक सप्ताह में लिखा गया था। सत्रह मई को पूरे नार्वे में ऐतिहासिक स्थलों पर और सार्वजनिक स्थलों पर बैंड बाजे को साथ बच्चे, युवा और सभी एकत्र होते हैं, परन्तु इस पर्व को सुबह बच्चे परेड निकालते हैं नार्वे के रास्ट्रीय तिरंगे के साथ । नार्वे का झंडा नीला, लाल और सफ़ेद रंग का होता है।
इस वर्ष बच्चों को नार्वे के झंडे के अलावा दूसरे देश के झंडे भी लाने की इजाजत दी गयी थी परन्तु लोगों ने केवल नार्वे के राष्ट्रीय दिवस पर केवल नार्वे के झंडे को ही शामिल करना उचित और न्यायसंगत समझा। हालांकि राजा के महल के सामने होने वाली ऐतिहासिक बच्चों के स्कूलों की परेड में केवल नार्वेजीय झंडे थे दो-तीन स्कूलों ने संयुक्त राष्ट्र संघ का भी झंडा भी साथ में उठाया हुआ था।
ओस्लो में तीन बजे नार्वेजीय झंडे के साथ बहुत से युवा भान्ग्रा नृत्य करते ढोल बजाते एक अलग उत्साह प्रदर्शित कर रहे थे।
ओस्लो में शाम को वे युवा जिन्होंने माध्यमिक परीक्षा दे दी थी वह अपनी रंग बिरंगी पोषक के साथ मौज मस्ती में अपने अपने झुंड के साथ राजा के महल के सामने से होते हुए यूनीवर्स्टी औला के सामने कार्ल जुहान सड़क से होतो हुए ओस्लो पार्लियामेंट के सामने तक नाचते गाते मौज मनाते रहे।
२७ मई जवाहर लाल नेहरू की पुण्य तिथि
१४ नवम्बर १९८९ को इलाहाबाद में शान्ति के पुजारी, देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का नाम सभी ने सुना होगा। वे बच्चों को बहुत प्यार करते थे। उनका जन्मदिन बाल दिवस के रूप में भी मनाया जाता है। इनकी मृत्यु २७ मई १९६४ को हुई थी उस समय मैं सुल्तानपुर उत्तर प्रदेश में अपने अपने दादा के पास गया था जो अवकाश प्राप्त करने के बाद भी आरामशीन लगा कर काम कर रहे थे। नेहरू जी की मृत्यु पर बाजार बंद कर दिए गए थे। नेहरू जी को श्रधांजलि अर्पित करते हैं।
- शरद आलोक
सोमवार, 12 मई 2008
बहन मायावती का कामकाज, उत्तर प्रदेश की प्रगति का राज
बहन मायावती की उत्तर प्रदेश में जो भी जय जय हो रही है उसकी सफलता ही उसका राज है। मेरी तरफ से तथा हमारी पत्रिका "सपाइल - दर्पण" और "वैश्विका " की तरफ़ से बधाई। मैंने अपने ८ मोतीझील, ऐशबाग लखनऊ भारत में स्थित कार्यालय को भी बधाई सरकार तक पहुँचने के लिए कहा है। बहन मायावती जी और स्वामी प्रसाद मौर्या जी को तथा उनकी टीम को बहुत-बहुत बधाई। मुख्यमंत्री मायावती ने बसपा सरकार के कार्यकाल में विधानसभा के चुनाव के दौरान जनता से किए वायदे पूरे किए हैं। उनकी एक साल की उपलब्धियाँ शानदार हैं।
बसपा सरकार का एक साल का कार्यकाल जनता की कसौटी पर खरा उतरा है। जनता ने बसपा सरकार के कामकाज पर मोहर लगाई है। लोगों का सरकार के राज में विश्वास बढ़ा है।
लखनऊ कार्यालय को सहयोग और सुरक्षा कि गुहार
मुझे पूरा विश्वास है कि बसपा सरकार लखनऊ कार्यालय को सहयोग और सुरक्षा देगी क्योंकि हमारी विश्व में एक मात्र पत्रिका है जो २० वर्षों से प्रवासी भारतीयों कि सेवा कर रही है जिसके संपादक का सम्बन्ध भी लखनऊ , उत्तर प्रदेश से है जो प्रदेश के लिए और हमारे लिए गौरव कि बात है। मैं जयप्रकाश को भी धन्यवाद देता हूँ जो लखनऊ में पत्रिका का कार्य ईमानदारी से कर रहे हैं।
मायावती विश्व का गौरव
विश्व के लिए यह गौरव कि बात है कि विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सबसे बड़े राज्य की एक बहादुर और योग्य दलित नेता मुख्यमंत्री हैं।
१३ मई 2008 को बसपा सरकार को एक साल पूरे हुए।
सुरेशचन्द्र शुक्ल "शरद आलोक"
ओस्लो, १३-०५-०८
गुरुवार, 8 मई 2008
नार्वे का स्वतंत्रता दिवस और इसराइल के ६०वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं
नार्वे में १९४० से १९४५ तक नाजी क्रूर तानाशाह हिटलर का शासन रहा। नार्वे की जनता का साँस लेना दूभर हो गया था। इन वर्षों में एक शांतिप्रिय देश बर्बरता का शिकार हो गया था। आज ८ मई को नार्वे की जनता ने आजादी दिवस मनाया। आज जब मैंने ओसलो नगर में कुछ बुजुर्गों से बातचीत की तो उनकी आँखें भर आयीं। उनका कहना था कि ईश्वर किसी को भी गुलामी न दें। युवाओं का कहना था इक उन्हें गुलामी का कोई अनुभव नहीं है इसलिए उनका इस दिवस से कोई ज्यादा सरोकार नहीं है। वह क्या जाने आजादी की कीमत जिसने गुलामी नहीं देखी है। मेरी कविता की पंक्तियाँ हैं: " न होली के रंग हैं, न दीवाली के धमाके। आई थी आजादी, खूब धूम मचाके।"
दूसरी बधाई है इसराइल देश की ६० वीं वर्षगांठ पर शुभकामनाएं
इसराइल की आजादी मनाना, तब बहुत आँसू भी बहाना।
स्वर्णिम सपनों के महल में हवामहल बनाना।
चंदन भी जलता है जब चिता पर , क्या दिया जलना क्या अगरबत्ती जलना। न खुशियों में खुशी है, न दुःख में ही मातम। इसराइल महकता रहे , हम भी महकते रहें। न दुश्मन बुरा है, न दोस्त कुछ खास। आज दो कदम चलें हैं। कल जीवन भर का साथ। शुभकामनाएं आपको - "शरद आलोक"
सोमवार, 5 मई 2008
नार्वे में प्रकाशित हिन्दी पत्रिकाएं - शरद आलोक
नार्वे में हिन्दी पत्रिका का शुभारम्भ "परिचय" से हुआ था जिसका प्रकाशन १९७८ में शुरू हुआ था।
पिछले वर्ष २००७ और २००८ में केवल दो पत्रिकाएं ही छाप रही हैं। ये हैं सपाइल -दर्पण जो २० साल पहले १९८८ में शुरू हुई थी। और दूसरी नयी पत्रिका "वैश्विका " जिसका प्रकाशन २००७ में आरंभ हुआ जिसका लोकार्पण २००७ में न्यूजर्सी, अमरीका में योगऋषि बाबा रामदेव जी के करकमलों द्वारा छठे हिन्दी महोत्सव में सम्पन्न हुआ था जिसकी प्रतियाँ विश्वहिंदी सम्मेलन में विदेश राज्यमंत्री आनंद शर्मा, राजदूत रोनेन सेन, संयुक्त राष्ट्र संघ में हमारे राजदूत निरुपम सेन, निदेशक इन्द्र नाथ चौधरी, पूर्व राजदूत और सांसद लक्ष्मी शंकर सिंघवी और सभी प्रतिनिधियों को भेंट की गयी और सराही गयी थी।
हम देश की सेवा, साहित्य की सेवा , अपने और उस समाज की सेवा करते हैं जिसमें हम रहते हैं तो उसे प्रोत्साहित करना चाहिए ?
आपके साथ कुछ बातें बाँट रहे हैं। नार्वे में २८ वर्षों में से २५ वर्षों तक हिन्दी पत्रिकाओं "परिचय" और "स्पाइल-दर्पण के माध्यम से निस्वार्थ सेवा करके जो संतोष और जो सुख मिला उसका वर्णन करना मुश्किल है। विदेशों में हमारे भारतीय और अन्य विद्वतजन हिन्दी की सेवा कर रहे हैं ये सुख वही जान सकते हैं।
मैं उन सभी लोगों को हार्दिक धन्यवाद देता हूँ जो देश विदेश में हिन्दी, भारत और अपनी संस्कृति का गौरव बढ़ा रहे हैं। मैंने वही किया जो कोई एक संपादक और भारतीय होकर किया जा सकता है।
१९८० से १९९० तक का समय विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता की स्थापना का समय था। इस समय जब भारत के प्रवासी बाहर परदेश में अपनी जगह बना रहे थे, हिन्दी की पत्रिका शुरू करना कठिन था। मेरे पास का typewriter नही था। फ़िर भी पत्रिका शुरू की और उसे निरंतर जारी रखा। श्री चंद्रमोहन भंडारी जी ने भी "परिचय " में अपने अच्छे विचार व्यक्त किए थे जो एक अच्छे लेखक और नार्वे के भारतीय दूतावास में प्रथम सचिव थे जो आजकल संयुक्त अरब अमीरात में राजदूत हैं।
श्री कमल नयन बक्शी जी को कौन नहीं जानता वह स्वीडैन और नार्वे में भारतीय राजदूतावास में लगभग दस वर्ष रहे होंगे। अनेक यादें अभी भी ताजा हैं। सचिव अशोक तोमर जी ने दूतावास से "भारत समाचार " शुरू किया था जिसमें मैं हिन्दी में अनुवाद करके समाचार दिया करता था।
राजदूत कृष्ण मोहन आनंद जी ने " सपाइल -दर्पण " पत्रिका और "भारतीय -नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फोरम " संस्था का आरंभ कराया था। श्री निरुपम सेन और श्री गोपाल कृष्ण गाँधी जी ने इन पत्रिकाओं और भारतीय संस्थाओं को फलने फूलने का अवसर दिया। सचिव पन्त जी ने भी भरपूर सहयोग दिया है। अभी भी नार्वे में हमारा दूतावास बहुत सहयोग करता है जिसकी प्रशंसा मैंने "सरिता" में की है।
"परिचय" में मेरे लेखों और संपादकीय लेखों की भारत के कई प्रतिष्ठित पत्रों ने प्रशंसा और चर्चा की थी। १९८३ -८४ पंजाब समस्या के समय हमारी भूमिका स्वागत योग्य थी। धर्मयुग, कादम्बिनी ओर स्वतंत्र भारत ने इस सम्बन्ध में बहुत प्रशंसा की थी।
२००७- २००८ में नार्वे से केवल दो साहित्यिक पत्रिकाएं छप रही हैं।
"स्पाईल -दर्पण" और "वैश्विका", जैसा ऊपर लिख चुका हूँ ।
आज इंटरनेट और वेब का जमाना है। सच्चाई अब हम नहीं छिपा पायेंगे। जब केंद्रीय सरकार इंटरनेट से भारतवासियों की सहायता लेगी और विदेशों में भारतीयों को दिए जाने वाले पुरस्कार और सम्मान का पता चलेगा तब- तब सही कदम उठाने में सहायता मिलेगी। जैसे आजतक TV chainal ने असत्य से परदा हटाया है । आप अपने विचार लिखकर सहयोग करें तथा विदेशों में अपने देश का नाम करें। बहुत से लेखकों ने तो यात्रा वृत्तांत और प्रवासी साहित्य पर पुस्तकें भी लिखी।
विदेशों में लिखे साहित्य और क्रियाकलापों का सही मूल्यांकन किया जाना चाहिए। विशेषकर जो भारत की प्रतिष्टा को उजागर करने वाले और सृजनात्मक सत्य को प्रगट करने वाले हों।
सही समाचार की कमी
विदेश में समाचार पत्र भी हमारे देश भारत की अनेक अवसर पर सही तस्वीर नहीं दिखाते। हम लोगों को चाहिए की हम संपादक के नाम पत्र लिखकर भेजें उसमें अपने देश भारत की तरक्की, उसके गौरवमयी कार्यों और उपलब्धियों को लिखकर बताएं और उसे छपाये ।
आप मेरे बारे में जानना चाहते हैं, दिल्ली से प्रकाशित "सरिता" मार्च द्वितीय में मेरे बारें में आपको कुछ सूचना मिल जायेगी। मुझे अनेक पत्र मिले। आपका पत्र के लिए बहुत आभारी हूँ ।
यह जरूर सोचिये की आपने हिन्दी के लिए क्या किया है और हिन्दी का अधिक से अधिक प्रयोग करके और पुस्तकें खरीद कर उसे उपहार में दीजिये ताकि हम अपनी भाषा हिन्दी का प्रसार और विस्तार में सहयोग दें। धन्यवाद।
-शरद आलोक