मनचली कोसी कहर ढा रही। - शरद आलोक
सोया सारा नगर, गाँव
जीवन की नौका
खे रही नाव
डूब गई नैया, कौन है खिवैया
दूर तक खोजती हैं, अपनों की आहट
चाहत के नयनों में खून लकीर
मिटा गई कोसी उनकी तक़दीर।
खोजते हैं द्वार-द्वार
गूंजती पुकार
आ जा मेरे प्रिय
आसरा तुम्हार।
नेपाल से निकली
मनचली कोसी
धधक् बरपे कहर
पुकारता हूँ बार-बार
लोटो तुम एक बार।