हम गांधी के वंशज हैं , हम युद्ध न होने देंगे- शरद आलोक
आज भारत की समस्या केवल भारत की नहीं रही। यह पूरे विश्व की समस्या बन गयी है। इस सम्बन्ध में हम आपको एक बात बताते हैं। यह संस्मरण ओस्लो में आयोजित ग्लोबल सम्मलेन २००८ का है, जहाँ मुझे भी भाग लेने का अवसर मिला। यहाँ मुझे एक चीज की बेहद खुशी हुई जब नार्वे की सुंदर युवतियां भारत में सभी को पीने के लिए पानी उपलब्ध कराने के लिए एक अभियान चला रही थीं। सुंदर युवतियों के जागरण अभियान को देखकर लगा की यदि देवियाँ इस दुनिया में हैं तो उनसे ये दूर नहीं। चाहे पाकिस्तान और बांग्लादेश में गरीबी और धर्मान्धता के कारण युवकों को अपराध के लिए भड़काया जाता हो या भारत में या फ़िर सोमालिया अथवा श्रीलंका तथा चीन में मानवाधिकार के लिए लाखों करोड़ों को बलि का बकरा बनाया जाता है तो ये सारी की सारी समस्याएं मेरी दृष्टि में जितनी भौगोलिक हैं उतनी मेरी निजी अपनी हैं क्योंकि ये मानवता और मानवाधिकार से सम्बन्ध रखती है। कुछ साल पहले नेपाल के साहसिक और लोकप्रिय नेता माधव सिंह नेपाल से बात हुई और जब एक सप्ताह पहले नेपाल के शिक्षा सचिव से मिला तो मेरे सामने काठमांडू से लेकर पोखर तक की याद आ गयी। सुंदर प्यारा सा नेपाल बेहाल क्यों है। काठमांडू के मार्ग टूटे थे। चौराहों पर प्याऊ का नामोनिशान नहीं था पर शराब हर चौराहे पर उपलब्ध था। अब भारत में भी कई बस्तियों का हाल का भी यही हाल है। बच्चों के नंगे पैर धुलने वाले, जूते पहनाने वाले तथा उन्हें भरपेट भोजन देने वाले रक्षक कहाँ चले गए।
मुस्लिम आबादी गरीब है। मुझे इस बात का बहुत दुःख है ठीक इसी तरह कि हमारा पड़ोसी, हमारे भाई -बहन गरीब है। मैं इस समस्या के लिए समाज को और सबसे ज्यादा माता-पिता को दोषी मानता हूँ। समाज को इसलिए कि उसने महिला और पुरूष में भेदभाव करके महिलाओं और युवतियों तथा बालिकाओं को क्यों नहीं पढाया ? अशिक्षा के कारण परिवार बड़े हैं और आर्थिक स्थिथि का माताएं ध्यान नहीं दे पातीं और पुरूष औरत को अपनी ज्याजाद समझते हैं। फलस्वरूप बच्चों कि परवरिश ठीक से नहीं हो पाती। स्वामी दयानंद ने कहा था कि महिलाओं को वेदों को पढ़ा दो और पढ़ने दो स्त्रियाँ अपने आप आत्मनिर्भर हो जायेंगी।
कितने मंदिरों में वेदों को पढाया जाता है और क्या सभी धर्मों के लिए सभी धार्मिक स्थानों के दरवाजे खुले हैं?
क्या धार्मिक स्थानों का प्रयोग बच्चों को बेसिक शिक्षा देने और माता पिता को साक्षर बनाने में प्रयोग नहीं किया जा सकता? राजनैतिक नेता और धार्मिक नेता बेसिक शिक्षक नहीं बन सकते? हम जिस देश में रहते हैं उस देश कि भाषा और कानून को मानते हुए मानवाधिकार की रक्षा नहीं कर सकते? आख़िर क्यों? हम सभी को स्वयं आत्मनिर्भर तो बनना ही है साथ ही पधोसी पड़ोसी को भी आत्मनिर्भर बनाना है। पड़ोसी भूखा है तो क्या आप खुश रह सकते हैं? पड़ोसी की चिंता स्वाभाविक है वह दखल नहीं है। (ओसलो , 2८.1२.०८) फ़िर मिलेंगे। अपने विचार भेजिए परन्तु दूसरे के मानवीय विचारों का आदर करें।
रविवार, 28 दिसंबर 2008
विदेश से प्रकाशित स्पाइल-दर्पण भारत में सेमिनार आयोजित करेगी -शरद आलोक
इस लेख में दो बातों पर रौशनी डाल रहा हूँ। १- स्पाइल- दर्पण के २० वर्ष पर ओस्लो में कार्यक्रम। २-भारत में स्पाइल-दर्पण द्वारा विदेशों में हिन्दी साहित्य और पत्रकारिता पर विभिन्न नगरों में कार्यक्रम आयोजित होंगे।
स्पाइल- दर्पण के २० वर्ष पर ओस्लो में कार्यक्रम:
ओस्लो , नार्वे में भारतीय- नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फॉरम और स्पाइल-दर्पण के संयुक्त प्रयास से १२ से १३ दिसम्बर तक दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न हुए। १२ दिसम्बर को लेखक सेमिनार हुआ जिसमें निम्न विषयों पर विद्वानों ने अपने लेख पढे : १) हिन्दी डाटाबेस २) स्पाइल-दर्पण का हिन्दी पत्रकारिता में योगदान। ३) नार्वे में आठवें दशक में नार्विजन भाषा के प्रवासीय साहित्य में सुरेशचंद्र शुक्ल का योगदान। ४) प्रवासी [इतहास में स्पाइल-दर्पण का योगदान। ५) आजादी के बाद का हिन्दी साहित्य। ६) दलित और नारी विमर्श ७) भारत का हिन्दी साहित्य किस तरह विदेशों में प्रसारित किया जाए। ये सभी लेख भारत में नहीं वरन ओस्लो में चार प्रोफेसरों और लेखाखों द्वारा पढ़े गए।
२ भारत में आप यदि किसी विश्वविद्द्यालय से जुड़े हैं या युवा और उदारवादी हैं, हमने विदेश में २५ वर्ष तक नार्वे की नार्वेजीय पत्रकारिता से जुड़े रहकर हिन्दी पत्रकारिता की निशुल्क सेवा की है? आप भी कुछ कीजिये!
स्पाइल- दर्पण के २० वर्ष पर ओस्लो में कार्यक्रम:
ओस्लो , नार्वे में भारतीय- नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फॉरम और स्पाइल-दर्पण के संयुक्त प्रयास से १२ से १३ दिसम्बर तक दो दिवसीय कार्यक्रम संपन्न हुए। १२ दिसम्बर को लेखक सेमिनार हुआ जिसमें निम्न विषयों पर विद्वानों ने अपने लेख पढे : १) हिन्दी डाटाबेस २) स्पाइल-दर्पण का हिन्दी पत्रकारिता में योगदान। ३) नार्वे में आठवें दशक में नार्विजन भाषा के प्रवासीय साहित्य में सुरेशचंद्र शुक्ल का योगदान। ४) प्रवासी [इतहास में स्पाइल-दर्पण का योगदान। ५) आजादी के बाद का हिन्दी साहित्य। ६) दलित और नारी विमर्श ७) भारत का हिन्दी साहित्य किस तरह विदेशों में प्रसारित किया जाए। ये सभी लेख भारत में नहीं वरन ओस्लो में चार प्रोफेसरों और लेखाखों द्वारा पढ़े गए।
२ भारत में आप यदि किसी विश्वविद्द्यालय से जुड़े हैं या युवा और उदारवादी हैं, हमने विदेश में २५ वर्ष तक नार्वे की नार्वेजीय पत्रकारिता से जुड़े रहकर हिन्दी पत्रकारिता की निशुल्क सेवा की है? आप भी कुछ कीजिये!
रविवार, 14 दिसंबर 2008
विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता का स्वर्ण दिन "स्पाइल- दर्पण" ने २० वर्ष पूरे किए- शरद आलोक .
नार्वे में स्पाइल - दर्पण पत्रिका ने प्रकाशन के २० वर्ष पूरे किए। - शरद आलोक
नार्वे से प्रकाशित द्वैमासिक पत्रिका "स्पाइल-दर्पण २० पूरे किए। इस अवसर पर चार दिनों तक नार्वे की राजधानी ओस्लो में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह सिलसिला ११ दिसम्बर को आरम्भ हुआ। १० दिसम्बर को तो विश्व के इतिहास में शान्ति के लिए फिनलैण्ड के पूर्व राष्ट्रपति और स्कांदिनेविया और विश्व में भाईचारा बढाने वाले मथाई को ओस्लो में पुरस्कार लेते देखने का अलग आनंद था। इसीके साथ-साथ स्पाइल-दर्पण के २० वर्ष पूरे होने पर हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में , विशेषकर विदेशों में मील का पत्थर साबित होती हुई पत्रिका ने इतिहास रच दिया।
११ दिसम्बर को स्पाइल -दर्पण के संपादक यानी इस लेख के लेखक और
के लेखक भारत से रूहेलखंड विश्वविद्यालय , के डा महेश दिवाकर ने संयुक्त रूप से पत्रिका के जुबली अंक नार्वे की वित्तमंत्री क्रिसतीन हाल्वूर्सेंन को एस ऐ एस होटल में भेट की।
१२ दिसम्बर २००८ को भारत नार्वे लेखक सेमीनार आयोजित हुआ और १३ दिसम्बर को सेमीनार ने विशाल रूप लिया। इन दोनों कार्यक्रमों में भारतीय राजदूत बी ऐ राय , ओस्लो विश्वविद्द्यालय के प्रो क्लाउस जोलर, नार्वे की राईटर यूनियन की आन्ने , राईटर सेंटर की इन्ग्विल्ड, लखनऊ के कालीचरण स्नेही , महेश दिवाकर , सत्येंदर कुमार सेठी, कैलाश सत्यार्थी , फ्रेंच गयाना के शिक्षा मन्त्री, नार्वे के सांसद , समाचारपत्र के संपादक , प्रो क्नुत शेल स्ताद्ली , नार्वे के बहुत से लेखक, प्रवासी लेखक गन सहित बहुत सी हस्तियों ने अपने विचार , अपने लेख प्रस्तुत किए ।
आगामी २० वर्षों के लिए पत्रिका की संभावनाओं पर विचार किया गया।
शेष आगामी दिनों में इस ब्लाग में देखते रहिये।
नार्वे से प्रकाशित द्वैमासिक पत्रिका "स्पाइल-दर्पण २० पूरे किए। इस अवसर पर चार दिनों तक नार्वे की राजधानी ओस्लो में अनेक कार्यक्रम आयोजित किए गए। यह सिलसिला ११ दिसम्बर को आरम्भ हुआ। १० दिसम्बर को तो विश्व के इतिहास में शान्ति के लिए फिनलैण्ड के पूर्व राष्ट्रपति और स्कांदिनेविया और विश्व में भाईचारा बढाने वाले मथाई को ओस्लो में पुरस्कार लेते देखने का अलग आनंद था। इसीके साथ-साथ स्पाइल-दर्पण के २० वर्ष पूरे होने पर हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास में , विशेषकर विदेशों में मील का पत्थर साबित होती हुई पत्रिका ने इतिहास रच दिया।
११ दिसम्बर को स्पाइल -दर्पण के संपादक यानी इस लेख के लेखक और
के लेखक भारत से रूहेलखंड विश्वविद्यालय , के डा महेश दिवाकर ने संयुक्त रूप से पत्रिका के जुबली अंक नार्वे की वित्तमंत्री क्रिसतीन हाल्वूर्सेंन को एस ऐ एस होटल में भेट की।
१२ दिसम्बर २००८ को भारत नार्वे लेखक सेमीनार आयोजित हुआ और १३ दिसम्बर को सेमीनार ने विशाल रूप लिया। इन दोनों कार्यक्रमों में भारतीय राजदूत बी ऐ राय , ओस्लो विश्वविद्द्यालय के प्रो क्लाउस जोलर, नार्वे की राईटर यूनियन की आन्ने , राईटर सेंटर की इन्ग्विल्ड, लखनऊ के कालीचरण स्नेही , महेश दिवाकर , सत्येंदर कुमार सेठी, कैलाश सत्यार्थी , फ्रेंच गयाना के शिक्षा मन्त्री, नार्वे के सांसद , समाचारपत्र के संपादक , प्रो क्नुत शेल स्ताद्ली , नार्वे के बहुत से लेखक, प्रवासी लेखक गन सहित बहुत सी हस्तियों ने अपने विचार , अपने लेख प्रस्तुत किए ।
आगामी २० वर्षों के लिए पत्रिका की संभावनाओं पर विचार किया गया।
शेष आगामी दिनों में इस ब्लाग में देखते रहिये।
सदस्यता लें
संदेश (Atom)