रविवार, 31 जनवरी 2010
गोपियो नार्वे की वार्षिक बैठक संपन्न -शरद आलोक
आज मोहन सिंह वर्मा जी की अध्यक्षता में गोपियो नार्वे की बैठक में गोपियों की गतिविधियों और उसके उद्देश्यों की चर्चा करते हुए इसे प्रवासी भारतीयों के लिए महत्वपूर्ण बताया।
कार्यक्रम में गोपियों के अध्यक्ष बलविंदर सिंह ने स्वागत किय। उन्होंने अपने बैठकों में कम उपस्थिति की समस्याओं पर प्रकाश डाला। सभी को मिलकर कार्य करने के लिए निवेदन किया। दिल्ली में आठवें प्रवासी दिवस में नार्वे से भाग लेने वाले प्रवासी भारतीयों सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' , देवास (टेडी) और बलजीत सिंह के भाग लिए जाने की सराहना की गयी। सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने प्रवासी भारतीय दिवस को एक बहुत मत्वपूर्ण और आवश्यक पर्व बताया। उन्होंने प्रवासी कार्य मंत्री वालायर रवि और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित से मिलना और उनके प्रयासों को सफलता का श्रेय दिया।
Welcome to Gopio Norway
DEAR MEMBERS, PLEASE NOTE THE FOLLOWING :
INFORMATION
REGARDING ELECTION 2010:
TIME : 14 .30 , DATE: SUNDAY 31.ST JANUAY.97 PLACE: NOVA LOKALENE I HAUSMANNSGATE-8 , 0182 OSLO ( OPPOSIT UDI , HAUSMANNSGATE )
With Regards/Med HilsenOn behalf of Gopio.Norway
Mohan Singh Varma
Spokesman
00 47 91888819
शनिवार, 30 जनवरी 2010
Prime Minister, Dr. Manmohan Singh inaugurates 8th Pravasi Bharatiya Divas
शुक्रवार, 29 जनवरी 2010
राजेंद्र अवस्थी जी ने कभी भूत नहीं देखा-शरद आलोक
मध्य प्रदेश के जबलपुर में 25 जवनरी 1930 को पैदा हुए राजेंद्र अवस्थी ने बुधवार ३० दिसंबर को दिल्ली के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया था। ५ महीने पहले उनका ह्रदय का आपरेशन हुआ था।
वह अपने पीछे तीन बेटे और दो पुत्रियाँ छोड़ गए हैं। उनके बड़ा बेटा मुन्ना हिंदुस्तान टाइम्स में कार्यरत है और मझला बेटा शिवशंकर अवस्थी डी ए वी स्नाकोत्तर महाविद्द्यालय में राजनीति शास्त्र में प्रोफ़ेसर, कवि और फ़िल्मकार है।
राजेन्द्र अवस्थी जी ने मंडला में प्रारंभिक शिक्षा व जबलपुर में उच्च शिक्षा अर्जित की। शिक्षा के दौरान ही साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँचाइयों को उन्होंने स्पर्श किया। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में पत्रकारिता की शुरूआत की। वे नवभारत में सहायक संपादक भी रहे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल की।
राजेन्द्र अवस्थी ने कादंबिनी के 'कालचिंतन' कॉलम के माध्यम से अपना एक खास पाठक वर्ग तैयार किया था।
3० दिसंबर को, वर्ष के अंत में कादम्बिनी के चर्चित संपादक पत्रकारिता का एक सितारा राजेंद्र अवस्थी हमेशा के लिए दुनिया से विदा हो गया। उनकी जगह कोई नहीं ले सकता। उनकी तेरहवीं पर मैं उनके घर गया था पर जंगपुरा एक्सटेंशन में उनके निवास पर ताला लगा हुआ था।
भारतीय दिवस में हम दोनों के मित्र डॉ मोहन कान्त गौतम के साथ उनकी यादें ताज़ा कीं।
जब लखनऊ विश्वविद्यालय में अपने सम्मान और कवि सम्मलेन समारोह में बैठा था तब लखनऊ के लेखक और कादम्बिनी के पूर्व उप-संपादक श्रीराम शुक्ल ने बताया कि राजेंद्र अवस्थी जी नहीं रहे। मुझे यह समाचार सुनकर बहुत दुःख हुआ। उनके साथ मेरे लेखक-संपादक के नाते तो सम्बन्ध तो थे ही पर उनके परिवार के साथ भी मेरे सम्बन्ध रहे हैं। उनके बड़े बेटे मुन्ना, मझिले बेटे मुन्नू और बेटी कोको से एक समय काफी बातचीत हुआ करती थी। वह अपने छोटे बेटे के साथ जंगपुरा एक्सटेंसन, नई दिल्ली में रहते थे।
गंगा प्रसाद 'विमल' और डॉ सुरेश ढींगरा उनके अच्छे मित्रों में से थे। सरोजनी प्रीतम और डॉ सुधा पाण्डेय के साथ उनके लेखकीय सम्बन्ध थे।
वह दो बार नार्वे भी आ चुके हैं हमारे कार्यक्रमों में एक बार भारतीय पत्रकारिता पर आयोजित सेमिनार में और दूसरी बार अंतर्राष्ट्रीय लेखक सेमिनार और सांस्कृतिक महोत्सव में। उनके साथ पहली बार डॉ सत्य भूषण वर्मा और दूसरी बार डॉ गिरिजा शंकर त्रिवेदी आये थे।
मारीशस और लन्दन में वह हिंदी सम्मेलनों में भी मिले और मेरे कमरे में जमी साहित्यकारों की महफ़िलों में भी भाग लिया था। लन्दन में तो कमलेश्वर जी, विजय प्रकाश बेरी जी भी थे।
अवस्थी जी एक रंगीन मिजाज के, उदार पर लेखन में सूचनाओं देने में कंजूस थे। यदि गुटबंदी वाली राजनीति से अवस्थी जी अलग होते तो बात ही कुछ और होती। निजी झगड़ों को साहित्यिक मंच पर नहीं लाना चाहिए।
साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी के कार्यालय में
उनके साप्ताहिक हिंदुस्तान और कादम्बिनी के कार्यालय में सब मिलाकर छे महीने साथ कार्य किया या यह कहूं कि पत्रकारिता का अभ्यास किया तो सही होगा। वह मुझसे इतना प्रभावित थे कि उन्होंने मेरे लिए साप्ताहिक हिंदुस्तान में काम दिलाने के लिए कोशिश भी की थी। वह बहुत उदार थे अपने घर पर मुझे अनेकों बार रुकाया एक बार तो मैं उनके घर पर तीन महीने रह चुका हूँ । मेरे लिए उनका परिवार शिष्ट और उदार रहा। घर- बाहर खाने पीने में उनका कोई सानी नहीं था।
उनका जन्म जबलपुर के उपनगरीय क्षेत्र गढा के ज्योतिनगर मोहल्ले में हुआ था। उन्होंने मंडला में प्रारंभिक शिक्षा व जबलपुर में उच्च शिक्षा अर्जित की। शिक्षा के दौरान ही साहित्य व पत्रकारिता संसार से इतना गहरा जुड़ाव हुआ कि अंतत: इसी क्षेत्र की ऊँचाइयों को उन्होंने स्पर्श किया। पंडित द्वारका प्रसाद मिश्र के मार्गदर्शन में पत्रकारिता की शुरूआत की। वे नवभारत में सहायक संपादक भी रहे। उन्होंने अपनी कलात्मक सोच और चमत्कारिक लेखनी से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति हासिल की। प्रभाष जोशी के बाद उनके जाने से कर्मठ संपादकों के आकाश का एक और भव्य सितारा अस्त हो गया।
बड़े साहित्यकारों से परिचय
उनके साथ रहकर मुझे बहुत बड़े-बड़े और वरिष्ठ साहित्यकारों से मिलने का अवसर मिला था। अज्ञेय जी, रघुवीर सहाय , अश्क जी, भिक्खु जी, गंगा प्रसाद 'विमल', बालेश्वर अग्रवाल, ब्रिज नारायण अग्रवाल, दुर्गाप्रसाद शुक्ल, मंथान्नाथ गुप्त, जय प्रकाश भारती और अन्य से कराया था।
अवस्थी जी के साथ ही मुझे हाथ मिलाकर राजीव गांधी और अमिताभ बच्चन से पहली बार मिलने का अवसर मिला था। दो बार भारतीय संपादक सम्मलेन में भाग लेने का अवसर उन्हीं की कृपा से मिला था।
पहली फिल्म में अभिनय
पहली फिल्म जिसमें मुझे एक खलनायक की भूमिका करने अवसर मिला था जिसे शिव शंकर अवस्थी जी ने निर्देशित किया था वह राजेन्द्र अवस्थी जी की कहानी पर आधारित थी जो दूरदर्शन के लिए बनी थी। वह मेरे लिए एक यादगार समय था। अब तक तो मेरी चार कथाओं पर टेलीफिल्में बन चुकी हैं।
अवस्थी जी ने कभी भूत नहीं देखा था
राजेंद्र अवस्थी कादम्बिनी में तंत्र, ज्योतिषी और भूत-प्रेत की कथाओं का विशेषांक निकलते थे जो बहुत पसंद किये जाते थे। हालाँकि बुद्धिजीवी भूत-प्रेत पर विश्वास नहीं करते हैं। पाठकवर्ग अन्धविश्वासी था। स्वयं अवस्थी जी भूत प्रेत पर विश्वास नहीं करते थे पर कहते थे यदि कोई कहानी भूत प्रेत पर हो तो छापने के लिए दो। चाहे कितना कठिन विषय या नया विषय हो वह छापने के तरीके निकालने में माहिर थे। उन्हें जो कहानी पसंद आ जाए चाहे वह अन्य जगह छप चुकी हो अच्छे संपादक की तरह प्रकाशित कर देते थे। 'आसमान छोटा है' कहानी 'सारिका' के बाद कादम्बिनी में छपी थी। बड़े-बड़े साहित्यकार कादम्बिनी पढ़ते थे।
अनेक लेखकों से उनके मतभेद भी थे। आथर्स गिल्ड आफ इण्डिया के वह दशकों पदाधिकारी रहे हैं।
उनके पुत्र शिवशंकर अवस्थी और बहू जो लखनऊ की गीतकार माधुरी बाजपेई की पुत्री हैं कवितायें लिखती हैं। हिमांशु जोशी की तरह अवस्थी जी परिवारवाद और पहाढवाद का सहारा नहीं लेते थे । मेरी तरह उनके भी पूरे भारत से हर धर्म और प्रान्त के मित्र रहे हैं।
राजेंद्र अवस्थी कभी मुड़कर नहीं देखते थे और अपने मालिक का बहुत सम्मान करते थे।
उन्होंने एक बार जबलपुर से मुंबई व दिल्ली का रुख करने के बाद कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।
साप्ताहिक हिन्दुस्तान, सरिता, नंदन और कादम्बनी जैसी चर्चित पत्रिकाओं का संपादन बखूबी संभाला। उनका कॉलम 'कालचिंतन' पाठकों में बेहद लोकप्रिय था। संघ लोक सेवा आयोग सहित कई प्रतिष्ठित संस्थाओं के सदस्य रहे। उन्होंने अनेक उपन्यासों, कहानियों एवं कविताओं की रचना की। वह ऑथर गिल्ड आफ इंडिया के अध्यक्ष भी रहे। दिल्ली सरकार की हिन्दी अकादमी ने उन्हें 1997-98 में साहित्यिक कृति सम्मान से नवाजा था। उनके उपन्यासों में सूरज-किरण की छाँव, जंगल के फूल, जान कितनी आँखें, बीमार शहर, अकेली आवाज और मछली बाजार शामिल हैं। मकडी के जाले, दो जोडी आँखें, मेरी प्रिय कहानियाँ और उतरते ज्वार की सीपियाँ, एक औरत से इंटरव्यू आदि कथा साहित्य है।
उन्होंने कई यात्रा वृतांत भी लिखे हैं।
कुछ भूले बिसरे क्षण
शायद यह सन् १९८५-८६ की घटना है। हिंदी के प्रसिद्ध व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी जी की पुस्तक छापने वाली थी।
गोपाल चतुर्वेदी जी आजकल लखनऊ में संस्कृति संसथान उत्तर प्रदेश में अध्यक्ष हैं। किसी पांच सितारा होटल में पार्टी दी गयी थी। रात का समय था। हम सभी लोग साहित्यिक बातचीत में सराबोर थे। वहाँ से निकलने में रात काफी हो गयी थी। पार्टी में अवस्थी जी के कुछ ज्यादा पैक लग गए थे। रास्ते में एक जगह कार अँधेरे में दिखाई नहीं पड़ा और कार एक गाय से टकरा गयी थी। गाय और हम लोग बाल-बाल बच गए थे।
दूसरी घटना सन् १९९० की मुंबई की है। मुझे अवस्थी जी अंतर्राष्ट्रीय आयुर्वेदिक सम्मलेन में मारीशस ले गए थे। दिल्ली से हम लोग मुंबई पहुंचे। शाम को हम सभी का सार्वजनिक सम्मान होने के बाद बांद्रा में एक ऐसे डांस बार में चले गए जिसका नाम था सीजर्स। हमारे कैमरे जमा करा लिए गए थे। वहां जाकर देखते ही हैरान रह गया कम आयु से लेकर युवा लड़कियां कम कपड़ों में बहुत संख्या में नृत्य कर रही थीं। बाद में पता चला की होटल- बार एक स्मगलर का है जिसका क़त्ल हो गया और वह होटल बंद हो गया।
उनको मेरी विनम्र श्रद्धांजलि।
I will start elektronic multimedia college for women impowermant in Madhya Pradesh-Suresh Chandra Shukla
Reiterating his resolve to take Madhya Pradesh on the path of progress and development, Chief Minister Shri Chouhan said that the Madhya Pradesh government will have an integrated
While inviting NRIs to Madhya Pradesh,
Industry Minister Shri Kailash Vijayvargi
Pravasi Bhartiy Divas was exelent experience- Suresh Chandra Shukla
-Suresh Chandra Shukla
from 7th of jan. to 9th of jan 2010
First day 7th of jan. 2010 at Vigyan Bhavan, New Delhi
Valayar Ravi reciving the magazine 'Speil' from editor Suresh Chandra Shukla
Cheif minister Sheela Dikshit with Pravasi Bhartiy
President of India HE Pratibha Patil with pravasi-award vinner at Vigyan Bhawan on 9th of Janauary 2010
New Delhi: A plethora of issues ranging from cheating by builders to complexities involved in succession and inheritance of properties dominated the first day of the annual Pravasi Bharatiya Divas here attended by nearly 1,500 delegates from over 40 countries.
Red tape in approval of investment proposals and bottlenecks in acquiring land for projects were also raised strongly by the delegates who called for simplifying procedures to facilitate their involvement in India’s development.
A group of non-resident Indians (NRIs) from the U.S., the U.K., Australia and some Gulf countries raised the issue of non-delivery of flats sold to them by Maytas Properties, real estate firm promoted by kin of disgraced Satyam founder B. Ramalinga Raju.
“More than one year has passed but not a single brick moved into Maytas Hill County in Hyderabad. Over 300 NRIs are trapped into this tragedy and the government has done nothing,” said Srinivas Reddy, an NRI from Britain.
Assuring the diaspora of all possible help, Overseas Indian Affairs Minister Vayalar Ravi, Corporate Affairs Minister Salman Khursheed and Minister of State for External Affairs Preneet Kaur said the government would address all grievances of the NRIs and the PIOs (Persons of Indian Origin). They were speaking at a conference on property-related disputes of the diaspora community.
On the complaint of non-delivery of flats by Maytas, Mr. Khursheed said he was “confident of finding a solution to the problem as soon as possible.”
Taking note of problems such as illegal occupation and encroachment of their properties in India, Mr. Ravi said his Ministry had asked the State governments to address the grievances of the diaspora on priority basis.
“Most of the issues relating to property and land are under the jurisdiction of the State governments and we are regularly asking them to extend maximum help to the diaspora,” Mr. Ravi said in his address to the eighth edition of the annual flagship event of his Ministry.
Assurance
Mr. Khursheed said: “We are really concerned about your problems. Please go back with full confidence that your watchman [government] is here, your properties are fully safe.”
Most of the complaints were related to real estate sectors and some delegates even urged the government to set up a regulatory body or grievance redress system to address the problem.
“My lifetime savings and future savings in the form of loan are in my house in Maytas Hill County in Hyderabad. I request the government to immediately address the problem,” said Srinivas Rao, an NRI based in Washington.
Prime Minister Manmohan Singh will address the event on Friday while President Pratibha Patil will deliver her valedictory address on Saturday.
गुरुवार, 28 जनवरी 2010
पहले राजेंद्र अवस्थी और अब महादेव अवस्थी जी नहीं रहे-शरद आलोक
अब महादेव अवस्थी जी २८ जनवरी को २ बजे नहीं रहे-शरद आलोक
राजेंद्र अवस्थी जी ३० दिसंबर को और महादेव अवस्थी आज २८ जनवरी को दो बजे हमसे हमेशा के लिए विदा हो गए। दोनों ही उन्नाव जिले के थे ।
हमारी दोनों महानुभावों को श्रद्धा सुमन अर्पित हैं ।
लखनऊ नगर का महान कारीगर दुनिया से विदा
कैसरबाग, लालबाग ही नहीं पूरा लखनऊ श्री महादेव अवस्थी जी को रायल इन फील्ड मोटर साईकिल के गुरु कारीगरों के रूप में सदा याद रखेगा। उनके पास देश और विदेश से मोटरसाइकिल के शौक़ीन लोग मिलने और सलाह लेने आते थे। आज वह हम सबको छोड़कर चले गए तब उनकी दो बातें हमें सदा याद आएँगी: एक तो कर्म पूजा है और कोई काम छोटा और बड़ा नहीं है। उन्होंने अपने बेटों और तमाम लोगों को मोटरसाइकिल की कारीगरी का हुनर सिखाया।
श्री राम प्रसाद अवस्थी (पिता) और श्रीमती बिटटी (माता) के घर महादेव अवस्थी जी का जन्म २० मई १९५१ को गाँव में हुआ था और मृत्यु २८ जनवरी २०१० को लखनऊ में हुई थी। वह अपने पीछे अपनी पत्नी कांती दो पुत्रों अनूप और आनन्द तथा तीन पुत्रियों: सीमा, उमा और स्नेहा को छोड़ गए हैं। वह अपनी साली की बेटी रेनू को पुत्री की तरह और मुझे छोटे भाई से ज्यादा मानते थे। मुझे कई बार लगता है की सम्बन्ध रक्त से अधिक अहसासों के होते हैं। अवस्थी जी ने आजीवन करके दिखाया। वह बात के धनी थे।
आदमी को अपने जीवन में सब कुछ नहीं बताना होता है क्योकि खुली किताब की तरह जीवन जीना बहुत मुश्किल कार्य है। बहुत कुछ छिपाना होता है। आप उसी के साथ अपनी निजी बातें साझा कर सकते हैं जिस पर विस्वास हो, आपके निजी जीवन में दखल न दे और वह आपको सहयोग दे सके। ऐसे ही अवस्थी जी बहुत सी पारिवारिक और निजी बातें मुझसे साझा करते थे। वह बेटे और बेटियों और बहुओं पूजा जी और संध्या को समान सम्मान देते थे जो भारत में कम लोग ही देते हैं। अपने व्यक्ति के लिए वह सब कुछ करने को तैयार थे और इन्हीं बातों के लिए वह परिवार और परिवार के बाहर जाने जाते थे। उन्होंने जमीन हो या जायजाद, अपने चचेरे भाइयों, सम्बन्धियों आदि से कभी शिकायत नहीं की वह सदा उन सभी को अपने ह्रदय का हिस्सा समझते रहे और मरते दम तक उनसे प्यार करते थे उनके भाई की बेटी राधा जी हों या अन्य अपने घर में पढ़ने और रहने की अनुमति ही नहीं दी उन सभी को अपने बच्चों की तरह रक्खा।
उनकी बड़ी साली स्व श्रीमती स्वतन्त्र मिश्रा ने उन्हें और उनके परिवार को खजुहा में अवस्थी जी के व्यवहार और स्नेह को देखते हुए और स्वयं भी स्वतन्त्र जी बहुत उदार थी, ने अपने साथ रक्खा जहाँ वह अपने परिवार के साथ जीवन भर रहते रहे और घर की रक्षा करते रहे ।
लम्बे कद के, दुबले-पतले स्मार्ट से दिखने वाले, मोटर साईकिल चलाने में जादूगर, मुख में पान, संयम में जबान, आदर-सत्कार में जान रखने वाले महादेव अवस्थी जी के साथ मोटरसाइकिल पर अनेक बार ससुराल जाने का अवसर मिला और आनन्द उठाया। मेरे लिए गर्मी हो या सर्दी का ध्यान नहीं रखते थे। पीठ पीछे भी मेरे हित के बारे में सोचते थे ऐसे थे मेरे प्रिय सम्बन्धी अवस्थी जी। अवस्थी जी को एक सद्यरचित कविता अर्पित कर रहा हूँ। आपके जो भाव उस समय मन में होते हैं कविता में आने से नहीं चूकते। लीजिये प्रस्तुत है यह कविता:
तेरी बाहों की छाया हम अपने घर में पायेंगे
' सूनी आज मुंडेरों पर या घर-आँगन
जब पक्षी उड़कर आएंगे?,
बिखरे अन्न के दाने चुनकर जायेंगे
तेरे बाहों की छाया
हम अपने घर में पायेंगे।
जिन्हें समझते गैर, मगर जो प्रेम करें
वह संबंधों की तिर्यक रेखा काट चुके।
अगर चाहते नभ में उड़ना
और दूसरो के हित जीना,
आंधी-तूफानों के पस्त होंसले,
क्या रोक सके हैं
नित नभ में पक्षी का निर्भय उड़ना
सच को कभी न झुठला पाए
क्यों सदा छिपाते अपने अंतर में
अपने आत्मकथ्य के चेहरे।
जो दिखे वह भी सच है
महसूस करे तो वह भी सच है।
तेरा अपना मेरा अपना-अपना सच है।
संकोच-दोहरी, लोग कहेंगे?
अपने घर को जला रहे हम
दूसरों की कानाफूसी के बस में
हम हैं कितने दकियानूसी
इंसान से ज्यादा भूत-प्रेत
जो सत्य नहीं होते हैं!
आओ मिलकर याद करें
अपने प्रिय के उन बीते हुए पलों को
जीवन के संघर्षों को,
मन के प्रेम कलश को।
कर्म पूजा
तो क्या ज्योतिष एक छलावा ?
संस्कार की कुरूतियों का स्वाहा।
तर्क संगत और न्यायिक हो
अपना जीवन-दर्शन !
अपने-अपने मार्ग बनाओ।
अकेला मनुज आया दुनिया में
समाज बनाकर जाता।
प्रणाम, अर्पित हैं श्रद्धा सुमन,
नयन के तारे, अनमोल रतन।
सत्य नहीं झुटला पायेंगे
नहीं लौट पाओगे फिर से
जितने करूँ जतन?
उड़ते रहें पखेरू मन के
जब तक सांस भरूं।
प्रेम में किया नहीं समझौता
कैसी आस धरु
क्या न त्याग करूँ ॥
पक्षी से उच्च हौंसले
अब नयी उड़ान उड़ें,
लेखन साथ किया समझौता
चलचित्र सा चक्र चले।।'
- शरद आलोक
ओस्लो, नार्वे दिनांक २९.०१.१०
मंगलवार, 26 जनवरी 2010
नार्वे में गणतंत्र दिवस मनाया गया -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
आज गणतंत्र दिवस पर बधाई-शरद आलोक
आज हमारा भारत का गणतंत्र दिवस है। देश विदेश में रहने वाले सभी प्रवासी भारतीय या भारतीय मूल के लोग जो अपने देश और धरती से जुड़े हैं अपने देश के पर्वों पर गर्व करते हैं। सभी को नमन और गणतंत्र दिवस राष्ट्रीय पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं।
देश की आन्तरिक सुरक्षा और सीमा पर शहीदों का नमन।
देश की एकता अखंडता में जुटे पुरोधाओं को नमन
देश -विदेश के जागरूक शुभचेतकों, संचेत्कों और शुभ्चिंतों को नमन।
विदेश में सभी राजदूतावासों और उनके परिवारों को नमन।
शुभकामनाओं सहित
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ओस्लो, नार्वे
आठवाँ प्रवासी दिवस संपन्न
वालायर रवि संबोधित करते हुए
राष्ट्रपति महामहिम प्रतिभा पाटिल जी पुरस्कृत प्रवासी भारतीयों के साथ
दिल्ली की माननीय मुख्यमंत्री शीला दीक्षित जी प्रवासी भारतीयों के साथ
संपादक परनीत कौर (केन्द्रीय राज्य मंत्री) को पत्रिका भेंट करते हुए
-प्रधानमंत्री ने प्रवासी भारतीयों को भारतीय चुनाव में वोट देने का अधिकार देने की बात कही।
-राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट कार्य करने वाले भारतीयों को पुरस्कृत किया।
-केन्द्रीय मंत्रियों ने और दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित ने प्रवासी भारतीयों से सार्थक बातचीत की।
-प्रवासी कार्यमंत्री वालायर रवि ने बहुत अच्छा सहयोग दिया और भारतीय-नार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक फोरम के अध्यक्ष सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने नार्वे में रहने वाले प्रवासी भारतीयों को दोहरी नागरिकता के लिए निवेदन किया और वालायर रवि ने इस पर कार्यवाही करने काआश्वाशन दिया।
-निवेश को लेकर विभिन्न प्रदेशों के मुख्यमंत्री आशावान और सहयोग का वायदा।
-मध्य प्रदेश के मुक्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश में प्रवासी सेल बनाने की घोषणा करते हुए प्रवासी भारतीयों को निवेश और समाजसेवी कार्य करने के लिए सहयोग का आश्वाशन दिया।
सुशीला वर्मा बाएं से प्रथम ने अपनी जायजाद के गैरकानूनी कब्जे की बात उठाई
वालायर रवि को पत्रिका भेंट करते स्पाइल के संपादक
बाएं से खड़े श्री रावत, वाशिंटन यू एस ए के PIO-TV की हेमा वीरानी स्पाइल संपादक का साक्षात्कार लेते हुए
सोमवार, 11 जनवरी 2010
शरद आलोक भोपाल के प्रवासी सम्मेलन में
नार्वे के प्रवासी साहित्यकार सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' दिल्ली में प्रवासी फिल्म महोत्सव और प्रवासी भारतीय दिवस में भाग लेने के बाद भोपाल में मध्यप्रदेश द्वारा आयोजित प्रवासी सम्मलेन(1२ जनवरी ) में भाग लेने ११ जनवरी को भोपाल पहुँच गए। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह पाटिल जी ने एन आर आई सेल बनाने और प्रवासी भारतीयों को समाजसेवा और निवेश में प्रदेश की उन्नति के लिए सहयोग देने का आश्वासन दिया और कहा की प्रवासी पहले भारतीय हैं चाहे वह किसी प्रदेश के हों उनका मध्य प्रदेश में स्वागत है। सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने कहा कि वह मध्य प्रदेश में गरीबों के लिए शिक्षा के लिए एक इलेक्ट्रानिक मल्टी मीडिया स्कूल खोलना चाहते हैं और महिला सशक्तिकरण के लिए रोजगार परक कार्य करना चाहते हैं। पर यह सहयोग के बिना संभव नहीं है। मुख्यमंत्री ने आश्वासन दिया कि वह प्रोजेक्ट आने पर सहयोग करेंगे।
चित्र में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान प्रवासी भारतीयों के साथ
बुधवार, 6 जनवरी 2010
पहला प्रवासी फिल्म समारोह संपन्न.
नई दिल्ली में पहला प्रवासी फिल्म समारोह (२ जनवरी से ६ जनवरी) धूमधाम से संपन्न
नई दिल्ली के इंडिया हैबिटेट सेंटर में २ जनवरी को प्रारंभ हुआ पहला प्रवासी फिल्म समारोह ६ जनवरी को संपन्न हो गया । इस समारोह में अनेक देशों से आये प्रवासी फिल्मकारों के अतिरिक्त भारत के फ़िल्मी दुनिया के लोगों की उपस्थिति भी आकर्षण का केंद्र थी। इस फिल्म समारोह को पद्मेश गुप्त द्वारा सम्पादित मासिक पत्रिका प्रवासी टुडे, अनिल शर्मा और मारीशस की सरकार का भी सहयोग महत्वपूर्ण था जिसके मिनिस्टर राजदूत आदि कार्यक्रम में उपस्थित रहे। भारत सरकार की राज्य मंत्री श्रीमती , उतरांचल के मुख्यमंत्री, के अलावा जिन फ़िल्मी हस्तियों ने इसमें चार चाँद लगाये उसमें मीरा नायर, मनोज बाजपेई, सतीश कौशिक, शर्मीला टैगोर और बहुत से लोग थे।
मारीशस के डिप्टी स्पीकर ने फिल्म फेस्टिवल को उत्कृष्ट बताया। नार्वे से आये सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने कहा की यह फिल्म फेस्टिवल प्रवासियों की फिल्म प्रतिभा को प्रोत्साहित करेगा। यू के से आये पुरस्कृत डॉ निखिल कौशिक ने इसे आवश्यक फिल्म फेस्टिवल बताया।
हिंदी के अनेक लेखक और संपादक इसमें मौजूद थे। व्यंग यात्रा के संपादक और व्यंगकार प्रेम जन्मेजय, गगनांचल के संपादक अजय कुमार गुप्ता आदि ने भी फिल्म समारोह की सराहना की।
शरद आलोक का लखनऊ विश्वविद्द्यालय में सम्मान
लखनऊ विश्व विद्यालय मेंi ३१ दिसंबर को स्पाइल के संपादक शरद आलोक को शाल, पदक और पुष्पों से सम्मानित किया गया। सम्मान समारोह और कवि सम्मलेन की प्रो अध्यक्षता हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो प्रेमशंकर की और सञ्चालन किया डॉ कृष्णा श्रीवास्तव ने। संयोजक प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह, डॉ रामाश्रय सविता ने और प्रो काली चरण स्नेही ने शरद आलोक की साहित्यिक सेवाओं की चर्चा की और अपने नार्वे के संस्मरण सुनाये। परशुराम पल जी ने हिंदी सेवा की सराहना की और समापन पर धन्यवाद ज्ञापन दिया।
स्पाइल-दर्पण पत्रिका ने गुड़िया का घर के रंगकर्मियों को सम्मानित किया
स्पाइल-दर्पण पत्रिका ने लखनऊ भारत में विश्व प्रसिद्ध नार्वेजीय नाटककार हेनरिक इबसेन की सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' द्वारा हिंदी में अनुदित नाटक 'गुड़िया का घर' के रंगकर्मियों को लखनऊ के उमानाथ राय बल़ी हाल में एक समारोह में संपादक द्वारा सम्मानपत्र, पदक और पुष्पों द्वारा सम्मानित किया गया।
सम्मानित रंगकर्मियों में मुख्य थे: निदेशक आनन्द शर्मा, सूर्या रंगमंडल की रमा जायसवाल, जमील खान, प्रिया मिश्रा, नदीम खान, योगेन्द्र विक्रम सिंह, रत्ना अग्रवाल, साधना वर्मा आदि थे।
लखनऊ विश्विद्द्यालय के प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह, कृष्ण जी श्रीवास्तव सहित अनेक लोगों ने अपने विचार अनुवाद और नाटक की प्रस्तुति पर व्यक्त किये।
बहुत संख्या में पत्रकार मौजूद थे।
शनिवार, 2 जनवरी 2010
नव वर्ष पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं -शरद आलोक
नव वर्ष पर आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं
आप सभी अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करें।
विश्व प्रदूषण मुक्त हो ।
सप्रेम
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'