अमृतलाल नागर की पुन्य तिथि आज है
लखनऊ, भारत में रहने वाले हिंदी के जाने माने उपन्यासकार अमृतलाल नागर जी की पुण्यतिथि आज है, यह जानकारी मुझे राजू मिश्र ने दी।
तीन वर्ष पहले २००७ में लखनऊ विश्वविद्यालय के उपकुलपति रामप्रकाश सिंह जी ने मुझे हिंदी विभाग के परिसर में हिंदी के तीन मूर्धन्य विद्वानों की मूर्तियों का अवलोकन कराया. अमृतलाल नगर, भगवती चरण वर्मा और यशपाल.
मुझे अमृतलाल नागर जी के प्रथम दर्शन १९६९ में सूचनाकेंद्र उत्तर प्रदेश में हुए थे जब हिंदी के एक दूसरे विद्वान हरेकृष्ण अवस्थी की बेटी डॉ आभा अवस्थी जी की गुड़ियों की प्रदर्शनी का उद्घाटन मेरी प्रिय कवियित्री महादेवी वर्माजी ने किया था।
उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में लगभग दस वर्ष पहले लेखिका parishad के कार्यक्रम में मुझे भी मंचासीन किया गया तम मेरे साथ स्वर्गीय डॉ रमा सिंह जी के साथ डॉ आभा अवस्थी और नागर जी के पुत्र भी विराजमान थे। तब नागर जी और महादेवी जी की याद आ गयी थी।
लखनऊ नागर के वह ऐसे हस्ताक्षर थे जो पूरे देश में हिंदी के महान साहित्यकार बनकर चमके। उन्हें हमारी श्रद्धांजलि ।
सोमवार, 22 फ़रवरी 2010
शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010
अर्चना पेन्यूली की पुस्तक का लोकार्पण २७ फरवरी २०१० को कोपेनहेगन में
अर्चना पेन्यूली की पुस्तक का लोकार्पण २७ फरवरी २०१० को कोपेनहेगन, डेनमार्क में
27.02.10 को शाम 18:00 से 2o:00 एक संगीत कार्यक्रम में अर्चना पेन्यूली की पुस्तक 'Where do I belong' का लोकार्पण डॉ dr Dr Keneeeth Zysk द्वारा २७ फरवरी २०१० को कोपेनहेगन, डेनमार्क में हो रहा है। इस कार्यक्रम में हिंदी के लेखक सादर आमंत्रित हैं। पुस्तक भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुई है.
स्थान: Sankt Anne Gymnasium, Sjælor Boulevard 135, 2500 Valby
आयोजक : Asien Musik forening
27.02.10 को शाम 18:00 से 2o:00 एक संगीत कार्यक्रम में अर्चना पेन्यूली की पुस्तक 'Where do I belong' का लोकार्पण डॉ dr Dr Keneeeth Zysk द्वारा २७ फरवरी २०१० को कोपेनहेगन, डेनमार्क में हो रहा है। इस कार्यक्रम में हिंदी के लेखक सादर आमंत्रित हैं। पुस्तक भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुई है.
स्थान: Sankt Anne Gymnasium, Sjælor Boulevard 135, 2500 Valby
आयोजक : Asien Musik forening
अर्चना पेन्यूली की पुस्तक का लोकार्पण कोपेनहेगन, डेनमार्क में- शरद आलोक
अर्चना पेन्यूली की पुस्तक का लोकार्पण कोपेनहेगन, डेनमार्क में
एशियन म्यूजिक फोरेनिंग के तत्वाधान में डेनमार्क की लेखिका अर्चना पेन्यूली की पुस्तक 'Where do I belong' का लोकार्पण दिनांक 27.02.10 को 18:00-20:00 बजे Sankt Anne Gymnasium, Sjælor Boulevard 135, 2500- Valby में हो रहा है। सभी हिंदी लेखक आमंत्रित हैं।
एशियन म्यूजिक फोरेनिंग के तत्वाधान में डेनमार्क की लेखिका अर्चना पेन्यूली की पुस्तक 'Where do I belong' का लोकार्पण दिनांक 27.02.10 को 18:00-20:00 बजे Sankt Anne Gymnasium, Sjælor Boulevard 135, 2500- Valby में हो रहा है। सभी हिंदी लेखक आमंत्रित हैं।
गुरुवार, 11 फ़रवरी 2010
शरद आलोक का जन्मदिन धूमधाम से मनाया गया-माया भारती
देश विदेश में शरद आलोक का जन्मदिन मनाया गया-माया भारती
राईटर हॉउस ओस्लो में शरद आलोक जन्मदिन मनाया गया
'रजनी', 'नंगे पांवों का सुख' और 'नीड़ में फंसे पंख' जैसे चर्चित कविता संग्रहों और 'अर्धरात्रि का सूरज' तथा 'प्रवासी कहानियां ' नई कहानियों के के रचनाकार और विदेशों (नार्वे) में गत ३० वर्षों से हिंदी साहित्य कि सेवा कर रहे सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का जन्मदिन १० फरवरी को लखनऊ, दिल्ली, भारत और ओस्लो, नार्वे में मनाया गया।
Veitvet senter, Oslo ओस्लो में लेखक गोष्ठी में शरद आलोक का जन्मदिन मनाया गया।
शरद आलोक का जन्मदिन लखनऊ में 'स्पाइल' के स्थानीय कार्यालय ८ मोतीझील ऐशबाग रोड लखनऊ पर और पश्चिम विहार नई दिल्ली, भारत में और ओस्लो में लेखक गोष्ठी में तथा नार्वेजीय अनुवादक और लेखक संघ की बैठक, लेखक हॉउस में मनाया गया।
आइये सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' के जीवन के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करते हैं
लखनऊ में जन्म हुआ और बचपन बीता
१० फरवरी १९५४ को लखनऊ नगर में हुआ था। उस समय उनकी माँ स्व० किशोरीदेवी और पिता स्व० ब्रिजमोहन लाल शुक्ल और दादा स्व ० मन्ना लाल शुक्ल संयुक्त परिवार में ब्लाक न० ३० पुरानी लेबर कालोनी ऐशबाग, लखनऊ में रहते थे।
पूनम शिक्षा निकेतन से कक्षा ३ और नगरमहापालिका बेसिक पाठशाला ऐशबाग से कक्षा ५ की शिक्षा पायी।
कक्षा ६ से लेकर कक्षा ११ तक आपने गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कालेज लखनऊ में शिक्षा प्राप्त की जहाँ आपका परिचय विद्वान लेखकों डॉ दुर्गाशंकर मिश्र और डॉ सुदर्शन सिंह से हुआ जो इस विद्यालय में प्राचार्य और प्राध्यापक थे। इसी विद्यालय में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक ' जी साहित्य परिषद में उपाध्यक्ष और सांस्कृतिक परिषद के मंत्री थे तथा विज्ञानं परिषद के पुस्तकालयअ पुस्ताकालयाध्यक्ष थे जो यह दर्शाता है कि उनमें बचपन से ही नेतृत्व करने कि क्षमता और सेवा-भावना कूट -कूट कर भरी थी। इसी समय आप भारत स्कॉट एवं गाइड के दल नायक रहकर लखनऊ नगर में आयोजित मेलों में निशुल्क सेवा की।
ख़राब आर्थिक स्थिति
बचपन में ग्रीष्मावकाश में आपने एक साबुन की फैक्ट्री में २ रूपए पचास पैसे प्रतिदिन के हिसाब से काम कार्य किया। अपने पिता की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दृष्टि से आपने सन १९७२ में १५ जनवरी १९८० तक आलमबाग लखनऊ के सवारी और मालडिब्बा कारखाने में नौकरी की। इन्ही दिनों आप ने शाम को ट्यूशन भी पढाया और इसी के साथ अध्ययन और लेखन भी जारी रक्खा।
पहली कविता १४ वर्ष की आयु में छपी
शरद आलोक की पहली कविता चौदह वर्ष की आयु में १९६९ में लखनऊ के समाचारपत्र 'स्वतन्त्र भारत' में छपी। कक्षा में अध्यापक और पिता ने सराहा।
छायावादी प्रभाव आपकी दो आरंभिक कृतियों वेदना (१९७६) और 'रजनी' (१९८४) में आसानी से देखा जा सकता है। 'नंगे पावों का सुख' और 'नीड़ में फंसे पंख' कविता संग्रहों में यथार्त्वाद se लेकर नई , मानवतावादी और विषय पर लिखी रचनाओं ने सभी का ध्यान खींचा।
शेष आगामी अंक में , धन्यवाद।
यह कविता वर्षा पर आधारित थी। आपका पहला कवितासंग्रह 'वेदना' शीर्षक से सन १९७६ में कमल प्रिंटर्स से छपा। आपने साथ-साथ अध्ययन जारी रक्खा।
डी ए वी कालेज से इंटर और लखनऊ विश्वविद्यालय के अंतर्गत बाप्पा श्रीनारायण वोकेशनल डिग्री कालेज से स्नातक की पढाई पूरी की।
राईटर हॉउस ओस्लो में शरद आलोक जन्मदिन मनाया गया
'रजनी', 'नंगे पांवों का सुख' और 'नीड़ में फंसे पंख' जैसे चर्चित कविता संग्रहों और 'अर्धरात्रि का सूरज' तथा 'प्रवासी कहानियां ' नई कहानियों के के रचनाकार और विदेशों (नार्वे) में गत ३० वर्षों से हिंदी साहित्य कि सेवा कर रहे सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' का जन्मदिन १० फरवरी को लखनऊ, दिल्ली, भारत और ओस्लो, नार्वे में मनाया गया।
Veitvet senter, Oslo ओस्लो में लेखक गोष्ठी में शरद आलोक का जन्मदिन मनाया गया।
शरद आलोक का जन्मदिन लखनऊ में 'स्पाइल' के स्थानीय कार्यालय ८ मोतीझील ऐशबाग रोड लखनऊ पर और पश्चिम विहार नई दिल्ली, भारत में और ओस्लो में लेखक गोष्ठी में तथा नार्वेजीय अनुवादक और लेखक संघ की बैठक, लेखक हॉउस में मनाया गया।
आइये सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' के जीवन के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त करते हैं
लखनऊ में जन्म हुआ और बचपन बीता
१० फरवरी १९५४ को लखनऊ नगर में हुआ था। उस समय उनकी माँ स्व० किशोरीदेवी और पिता स्व० ब्रिजमोहन लाल शुक्ल और दादा स्व ० मन्ना लाल शुक्ल संयुक्त परिवार में ब्लाक न० ३० पुरानी लेबर कालोनी ऐशबाग, लखनऊ में रहते थे।
पूनम शिक्षा निकेतन से कक्षा ३ और नगरमहापालिका बेसिक पाठशाला ऐशबाग से कक्षा ५ की शिक्षा पायी।
कक्षा ६ से लेकर कक्षा ११ तक आपने गोपीनाथ लक्ष्मणदास रस्तोगी इंटर कालेज लखनऊ में शिक्षा प्राप्त की जहाँ आपका परिचय विद्वान लेखकों डॉ दुर्गाशंकर मिश्र और डॉ सुदर्शन सिंह से हुआ जो इस विद्यालय में प्राचार्य और प्राध्यापक थे। इसी विद्यालय में सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक ' जी साहित्य परिषद में उपाध्यक्ष और सांस्कृतिक परिषद के मंत्री थे तथा विज्ञानं परिषद के पुस्तकालयअ पुस्ताकालयाध्यक्ष थे जो यह दर्शाता है कि उनमें बचपन से ही नेतृत्व करने कि क्षमता और सेवा-भावना कूट -कूट कर भरी थी। इसी समय आप भारत स्कॉट एवं गाइड के दल नायक रहकर लखनऊ नगर में आयोजित मेलों में निशुल्क सेवा की।
ख़राब आर्थिक स्थिति
बचपन में ग्रीष्मावकाश में आपने एक साबुन की फैक्ट्री में २ रूपए पचास पैसे प्रतिदिन के हिसाब से काम कार्य किया। अपने पिता की आर्थिक स्थिति को सुधारने की दृष्टि से आपने सन १९७२ में १५ जनवरी १९८० तक आलमबाग लखनऊ के सवारी और मालडिब्बा कारखाने में नौकरी की। इन्ही दिनों आप ने शाम को ट्यूशन भी पढाया और इसी के साथ अध्ययन और लेखन भी जारी रक्खा।
पहली कविता १४ वर्ष की आयु में छपी
शरद आलोक की पहली कविता चौदह वर्ष की आयु में १९६९ में लखनऊ के समाचारपत्र 'स्वतन्त्र भारत' में छपी। कक्षा में अध्यापक और पिता ने सराहा।
छायावादी प्रभाव आपकी दो आरंभिक कृतियों वेदना (१९७६) और 'रजनी' (१९८४) में आसानी से देखा जा सकता है। 'नंगे पावों का सुख' और 'नीड़ में फंसे पंख' कविता संग्रहों में यथार्त्वाद se लेकर नई , मानवतावादी और विषय पर लिखी रचनाओं ने सभी का ध्यान खींचा।
शेष आगामी अंक में , धन्यवाद।
यह कविता वर्षा पर आधारित थी। आपका पहला कवितासंग्रह 'वेदना' शीर्षक से सन १९७६ में कमल प्रिंटर्स से छपा। आपने साथ-साथ अध्ययन जारी रक्खा।
डी ए वी कालेज से इंटर और लखनऊ विश्वविद्यालय के अंतर्गत बाप्पा श्रीनारायण वोकेशनल डिग्री कालेज से स्नातक की पढाई पूरी की।
बुधवार, 10 फ़रवरी 2010
नार्वे में लेखक गोष्ठी
नार्वेजीय लेखकों की बैठक में सम्मिलित
नार्वेजीय लेखकों की एक बैठक हुई जिसमें अनुवादकों के दिमाग पर अनुवाद करते समय ई सी जी द्वारा जांच करने पर क्या प्रतिक्रिया होती है और अनुवाद करते समय विभिन्न शब्दों पर दिमाग की kyaa स्थिति और हलचल होती hai एक व्याख्यान के जरिये बताया गया। मेरा जन्म दिन भी १० फरवरी को था अतः सदस्य मित्रों ने जन्मदिन पर बधाई दी।
ओस्लो, नार्वे में लेखक गोष्ठी संपन्न
10 फरवरी को ओस्लो के वाइतवेत सेंटर में नार्वेजीय लेबर पार्टी के नेता और क्षेत्रीय मेयर (बीरोद्स्लेदर) थूर स्ताइन विन्गेर की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस लेखक गोष्ठी में नार्वेजीय, हिंदी और पंजाबी भाषा में कवितापाठ किया गया।
कविता पाठ करने वालों में इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन , राज कुमार भट्टी, इन्दरजीत पाल, राय भट्टी, नीलम, अलका भारत और अनुराग विद्यार्थी प्रमुख थे।
राय भट्टी ने इस अवसर पर कहा कि शरद आलोक जी हुए हैं पचपन पर अब भी है उनमें युवापन। इंदरजीत पाल ने कहा कि जिस साहित्यिक मशाल को गोष्ठियों और साहित्यिक कार्यक्रम के माध्यम से शरद आलोक ने ३० साल से ओस्लो नार्वे में जलाये रखी है और इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक कि शुरुआत भी लेखक गोष्ठी से हुई यह नार्वे में भारतीयों के लिए गर्व और इतिहास के लिए मील का पत्थर है।
जन्मदिन पर हिंदी स्कूल कि संगीता सीमोनसेन, दिव्या और वासदेव भारत, भारतीय दूतावास और नार्वेजीय लेखक संघ कि तरफ से भी शुभकामनाएं दी गयीं।
माया भारती ने धन्यवाद दिया और बताया कि आगामी लेखक गोष्ठी २० मार्च को नार्वे के विश्वप्रसिद्ध नाटककार हेनरिक इबसेन के जन्मदिन पर Stikk innom, Veitvet सेंटर , Oslo में शाम चार बजे संपन्न होगी। जो लोग आगामी गोष्ठी में सम्मिलित होना चाहते हैं वह निम्न ई मेल पर आने कि सूचना देने कि कृपा करें।
माया भारती। mayabharti@gmail.com
नार्वेजीय लेखकों की एक बैठक हुई जिसमें अनुवादकों के दिमाग पर अनुवाद करते समय ई सी जी द्वारा जांच करने पर क्या प्रतिक्रिया होती है और अनुवाद करते समय विभिन्न शब्दों पर दिमाग की kyaa स्थिति और हलचल होती hai एक व्याख्यान के जरिये बताया गया। मेरा जन्म दिन भी १० फरवरी को था अतः सदस्य मित्रों ने जन्मदिन पर बधाई दी।
ओस्लो, नार्वे में लेखक गोष्ठी संपन्न
10 फरवरी को ओस्लो के वाइतवेत सेंटर में नार्वेजीय लेबर पार्टी के नेता और क्षेत्रीय मेयर (बीरोद्स्लेदर) थूर स्ताइन विन्गेर की अध्यक्षता में संपन्न हुई। इस लेखक गोष्ठी में नार्वेजीय, हिंदी और पंजाबी भाषा में कवितापाठ किया गया।
कविता पाठ करने वालों में इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन , राज कुमार भट्टी, इन्दरजीत पाल, राय भट्टी, नीलम, अलका भारत और अनुराग विद्यार्थी प्रमुख थे।
राय भट्टी ने इस अवसर पर कहा कि शरद आलोक जी हुए हैं पचपन पर अब भी है उनमें युवापन। इंदरजीत पाल ने कहा कि जिस साहित्यिक मशाल को गोष्ठियों और साहित्यिक कार्यक्रम के माध्यम से शरद आलोक ने ३० साल से ओस्लो नार्वे में जलाये रखी है और इक्कीसवीं सदी के दूसरे दशक कि शुरुआत भी लेखक गोष्ठी से हुई यह नार्वे में भारतीयों के लिए गर्व और इतिहास के लिए मील का पत्थर है।
जन्मदिन पर हिंदी स्कूल कि संगीता सीमोनसेन, दिव्या और वासदेव भारत, भारतीय दूतावास और नार्वेजीय लेखक संघ कि तरफ से भी शुभकामनाएं दी गयीं।
माया भारती ने धन्यवाद दिया और बताया कि आगामी लेखक गोष्ठी २० मार्च को नार्वे के विश्वप्रसिद्ध नाटककार हेनरिक इबसेन के जन्मदिन पर Stikk innom, Veitvet सेंटर , Oslo में शाम चार बजे संपन्न होगी। जो लोग आगामी गोष्ठी में सम्मिलित होना चाहते हैं वह निम्न ई मेल पर आने कि सूचना देने कि कृपा करें।
माया भारती। mayabharti@gmail.com
मंगलवार, 2 फ़रवरी 2010
गुलजार की रचना पर सवाल उठाना नाजायज-शरद आलोक
गुलजार की रचना पर सवाल उठाना नाजायज-शरद आलोक
बाएं से देवेन्द्र दीपक, गुलजार, शरद आलोक और एक शिक्षक विश्व हिंदी सम्मलेन न्यू यार्क, अमेरिका में
जो लोग किसी रचनाकार पर किसी प्रकार की अंगुली उठाते हैं पहले स्वयं अपने गिरह्बंद में झांकना चाहिए। इब्ने बबूता और जूता का प्रयोग कविता, कहानी या लेख में सर्वेश्वर से पहले कितने लोगों ने किया है? इस पर पड़ताल जरूरी है। बहुत से विद्वान इस लिए चुप हैं क्योंकि जो लोग शायद दो तीन शब्दों को सर्वेश्वर जी के बहाने प्रसिद्ध गीतकार के जरिये अपने मन की छिपी हुई बात या तो बता नहीं रहे हैं या इनके बहाने स्वयं प्रकाश में बिना कुछ योगदान दिए आना चाहते हैं।
मैं प्रश्न करता हूँ उन लोगों से जो चाहे इलाहाबाद में हों या अन्य नगरों में, चाहे देश में हों या विदेश में, और इस चर्चा में सम्मिलित हैं या हो रहे हैं 'कृपया यह बताइए जो आपकी रचना का शीर्षक है वह पहले कभी किसी की रचना का मुख्य वाक्य या शीर्षक नहीं रहा।
शोध के विद्यार्थियों को एक विषय यह मिल गया है की सर्वेश्वर की रचनाएं किनसे प्रेरित और प्रभावित हैं और उनकी रचनाओं के पहले उससे मिलते जुलते शीर्षक किन कथाकारों, कवियों, लोककथाओं और कथन पर आधारित हैं?
यह बेकार की और बेवजह बहस है। प्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने दो घटनाएं अपने गीतों की दो पंक्तियाँ दूसरे गीतकारों के नाम से लिखी देश-विदेश में हूबहू देखा और स्वयम पढ़ा था। एक बार तो उनकी कविता की दो पंक्तियाँ पाकिस्तान में एक बैनर पर दूसरे नए कवि के नाम से लिखी पायी थीं जब वह वहाँ किसी कार्यक्रम में गए थे। यह बात जब उन्होंने बताई थी तब मैनचेस्टर, यू के के कवि सम्मलेन में मेरे अतिरिक्त हजरत जयपुरी और गोपाल दस नीरज जी भी सम्मिलित हुए थे।
आप कितनी पंक्तियाँ रोज दोहराते हैं ? शब्दकोश के निर्माता भी सभी शब्दों का हिसाब एक समय में नहीं रख पते। जो रचनाकार अंगुली उठा रहे हैं दोबारा दोनों अपनी रचनाओं की परख करने के लिए अपने पूर्वर्ती की रचनाएं पढ़े तो उनको आसानी होगी की शब्द किसी की बपौती नहीं है। हाँ यह संभव है कि कोई भी छोटा या बड़ा या मामूली आदमी भी नए शब्द बना सकता है।
मुहावरे, लोकोक्ति, बयान आदि का साहित्यकार बराबर इस्तेमाल करता रहा है और करता रहेगा। वह नक़ल नहीं वरन उसका प्रयोग है.
जो हिंदुस्तान और जागरण में छापा है उसे देखते हुए मझे कतई नहीं दिखाई देता कि सर्वेश्वर अखबार में दी हुई पंक्तियाँ गुलजार की पंक्तियों की न तो छाया लगती हैं न ही प्रेरित लगती हैं। चाहे कोई या रचनाकार स्वयं भी कहे।
अच्छी रचनाएं लिखिए और आगे आइये मैदान में। या शोध करके एक अच्छा वक्तव्य लाइए न कि कीचड़ उछलने या बातों में समय ख़राब कीजिये। मेरी कविता कि पंक्तियाँ हैं। इस तरह कि बात करने वाले जनवादी या प्रगतिवादी हो ही नहीं सकते क्यों कि प्रगतिवादी विचारधारा वचारशील, नए विचारों और प्रयोगों को पचाने कि शक्त और बुद्धि देती है। मैं अपनी दो अति साधारण कविताओं कि कुछ पंक्तियाँ यहाँ नीचे दे रहा हूँ।
' हाथ पर हाथ रखकर कभी कुछ होना नहीं,
काटना क्यों चाहते हो नयी फसल जब तुम्हें बोना नहीं।'
- - - -
'आधुनिक व्यक्ति अपने घर में
कम से कम करता है कूड़ा -कचरा।
अपने मस्तिष्क को खुला रखता है
नए विचारों के लिए!
एक बात अच्छी है कि हम अब चर्चा करने लगे हैं हिंदी में जो एक शुभ संकेत है। चाहे जो विषय चुनें। जो विषय उठाया गया है वह भी बुरा नहीं है।
एक बात और मेरे पास एक रचना स्वीडेन के एक प्रवासी लेखक जिनकी आयु ८० से अधिक है द्वारा आयी और उन्होंने बताया की उन्होंने वह रचना पुरानी एक कथा से ली है। जबकि उससे करीब-करीब मिलती रचना दिल्ली के एक बहुत मशहूर हास्यकवि अपनी मशहूर रचना बताते हैं। ऐसा दिल्ली के एक दूसरे कवि ने मुझे बताया था, एक सम्पादक के नाते शोधार्थी बनने की जरूरत नहीं यह कार्य शिक्षकों का और शोधकर्ताओं का है सत्य को उजागर करना।
-शरद आलोक , 03.02.10
बाएं से देवेन्द्र दीपक, गुलजार, शरद आलोक और एक शिक्षक विश्व हिंदी सम्मलेन न्यू यार्क, अमेरिका में
जो लोग किसी रचनाकार पर किसी प्रकार की अंगुली उठाते हैं पहले स्वयं अपने गिरह्बंद में झांकना चाहिए। इब्ने बबूता और जूता का प्रयोग कविता, कहानी या लेख में सर्वेश्वर से पहले कितने लोगों ने किया है? इस पर पड़ताल जरूरी है। बहुत से विद्वान इस लिए चुप हैं क्योंकि जो लोग शायद दो तीन शब्दों को सर्वेश्वर जी के बहाने प्रसिद्ध गीतकार के जरिये अपने मन की छिपी हुई बात या तो बता नहीं रहे हैं या इनके बहाने स्वयं प्रकाश में बिना कुछ योगदान दिए आना चाहते हैं।
मैं प्रश्न करता हूँ उन लोगों से जो चाहे इलाहाबाद में हों या अन्य नगरों में, चाहे देश में हों या विदेश में, और इस चर्चा में सम्मिलित हैं या हो रहे हैं 'कृपया यह बताइए जो आपकी रचना का शीर्षक है वह पहले कभी किसी की रचना का मुख्य वाक्य या शीर्षक नहीं रहा।
शोध के विद्यार्थियों को एक विषय यह मिल गया है की सर्वेश्वर की रचनाएं किनसे प्रेरित और प्रभावित हैं और उनकी रचनाओं के पहले उससे मिलते जुलते शीर्षक किन कथाकारों, कवियों, लोककथाओं और कथन पर आधारित हैं?
यह बेकार की और बेवजह बहस है। प्रसिद्ध गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी ने दो घटनाएं अपने गीतों की दो पंक्तियाँ दूसरे गीतकारों के नाम से लिखी देश-विदेश में हूबहू देखा और स्वयम पढ़ा था। एक बार तो उनकी कविता की दो पंक्तियाँ पाकिस्तान में एक बैनर पर दूसरे नए कवि के नाम से लिखी पायी थीं जब वह वहाँ किसी कार्यक्रम में गए थे। यह बात जब उन्होंने बताई थी तब मैनचेस्टर, यू के के कवि सम्मलेन में मेरे अतिरिक्त हजरत जयपुरी और गोपाल दस नीरज जी भी सम्मिलित हुए थे।
आप कितनी पंक्तियाँ रोज दोहराते हैं ? शब्दकोश के निर्माता भी सभी शब्दों का हिसाब एक समय में नहीं रख पते। जो रचनाकार अंगुली उठा रहे हैं दोबारा दोनों अपनी रचनाओं की परख करने के लिए अपने पूर्वर्ती की रचनाएं पढ़े तो उनको आसानी होगी की शब्द किसी की बपौती नहीं है। हाँ यह संभव है कि कोई भी छोटा या बड़ा या मामूली आदमी भी नए शब्द बना सकता है।
मुहावरे, लोकोक्ति, बयान आदि का साहित्यकार बराबर इस्तेमाल करता रहा है और करता रहेगा। वह नक़ल नहीं वरन उसका प्रयोग है.
जो हिंदुस्तान और जागरण में छापा है उसे देखते हुए मझे कतई नहीं दिखाई देता कि सर्वेश्वर अखबार में दी हुई पंक्तियाँ गुलजार की पंक्तियों की न तो छाया लगती हैं न ही प्रेरित लगती हैं। चाहे कोई या रचनाकार स्वयं भी कहे।
अच्छी रचनाएं लिखिए और आगे आइये मैदान में। या शोध करके एक अच्छा वक्तव्य लाइए न कि कीचड़ उछलने या बातों में समय ख़राब कीजिये। मेरी कविता कि पंक्तियाँ हैं। इस तरह कि बात करने वाले जनवादी या प्रगतिवादी हो ही नहीं सकते क्यों कि प्रगतिवादी विचारधारा वचारशील, नए विचारों और प्रयोगों को पचाने कि शक्त और बुद्धि देती है। मैं अपनी दो अति साधारण कविताओं कि कुछ पंक्तियाँ यहाँ नीचे दे रहा हूँ।
' हाथ पर हाथ रखकर कभी कुछ होना नहीं,
काटना क्यों चाहते हो नयी फसल जब तुम्हें बोना नहीं।'
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'आधुनिक व्यक्ति अपने घर में
कम से कम करता है कूड़ा -कचरा।
अपने मस्तिष्क को खुला रखता है
नए विचारों के लिए!
एक बात अच्छी है कि हम अब चर्चा करने लगे हैं हिंदी में जो एक शुभ संकेत है। चाहे जो विषय चुनें। जो विषय उठाया गया है वह भी बुरा नहीं है।
एक बात और मेरे पास एक रचना स्वीडेन के एक प्रवासी लेखक जिनकी आयु ८० से अधिक है द्वारा आयी और उन्होंने बताया की उन्होंने वह रचना पुरानी एक कथा से ली है। जबकि उससे करीब-करीब मिलती रचना दिल्ली के एक बहुत मशहूर हास्यकवि अपनी मशहूर रचना बताते हैं। ऐसा दिल्ली के एक दूसरे कवि ने मुझे बताया था, एक सम्पादक के नाते शोधार्थी बनने की जरूरत नहीं यह कार्य शिक्षकों का और शोधकर्ताओं का है सत्य को उजागर करना।
-शरद आलोक , 03.02.10
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