२३ अप्रैल को नार्वे में विश्व पुस्तक दिवस (Verdens bokdag) मनाया गया।
चित्र में बाएं से प्रगट सिंह, शरद आलोक, इंदरजीत पाल, राजकुमार भट्टी और सुखदेव सिद्धू
निम्नलिखित लिंक में पढ़िए
http://vaishvika.blogspot.com/
शनिवार, 24 अप्रैल 2010
हिंदी स्कूल नार्वे का सांस्कृतिक कार्यक्रम
नार्वे में विश्व पुस्तक दिवस - माया भारती
पुस्तकों की कोई जगह नहीं ले सकता-शरद आलोक
भारतीय - नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में वाइतवेत सेंटर ओस्लो में विश्व पुस्तक दिवस मनाया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि स्थानीय सर्वोच्च नेता थूरस्ताइन विन्गेर ने कहा कि हमें गर्व है कि फोरम के माध्यम से सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' और उनके सहयोगी राष्ट्रीय, अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय कार्यक्रम आयोजित करते हैं और स्वयं भी रचनात्मक सहयोग पत्रकारिता और लेखन के माध्यम से करते हैं जो बहुत सराहनीय है। इंट्रीग्रेशन और सद्भाव के कार्य के लिए यह जरूरी है जिसे ये भली भांति कर रहे हैं। हेनरिक इबसेन, ब्योर्नस्त्यारने ब्योर्नसन, विश्व पुस्तक दिवस, ८ मई नार्वे का स्वतंत्रता दिवस, ७ जून को यूनियन मुक्त दिवस आदि कार्यक्रम सहित अनेकों अच्छे उदहारण हैं ।
कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने विश्व पुस्तक दिवस पर बधाई देते हुए उन लोगों को याद किया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, शब्द अभिव्यक्ति के कारण दुनिया के कोने-कोने में बहुत यातनाएं सह रहे हैं और उनमें से बहुत से लोग जेलों में बंद हैं। उन्होंने सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की वकालत करते हुए पुस्तकों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पुस्तकों कि अपनी जगह ही उसकी जगह कोई नहीं ले सकता।
कार्यक्रम में जिन लोगों ने अपने उद्गार व्यक्त किये और कवितायें पढ़ी उनमें इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन , राज कुमार भट्टी, शाहेदा बेगम, सुखदेव सिद्धू, अनुराग विद्यार्थी, अलका और वासदेव भरत, बलबीर सिंह, प्रगट सिंह, माया भारती, इन्दरजीत पाल और आलमगीर वसीम थे।
कार्यक्रम कि अध्यक्षता करते हुए सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने विश्व पुस्तक दिवस पर बधाई देते हुए उन लोगों को याद किया जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए, शब्द अभिव्यक्ति के कारण दुनिया के कोने-कोने में बहुत यातनाएं सह रहे हैं और उनमें से बहुत से लोग जेलों में बंद हैं। उन्होंने सभी बच्चों के लिए निशुल्क और अनिवार्य शिक्षा की वकालत करते हुए पुस्तकों के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि पुस्तकों कि अपनी जगह ही उसकी जगह कोई नहीं ले सकता।
कार्यक्रम में जिन लोगों ने अपने उद्गार व्यक्त किये और कवितायें पढ़ी उनमें इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन , राज कुमार भट्टी, शाहेदा बेगम, सुखदेव सिद्धू, अनुराग विद्यार्थी, अलका और वासदेव भरत, बलबीर सिंह, प्रगट सिंह, माया भारती, इन्दरजीत पाल और आलमगीर वसीम थे।
बुधवार, 21 अप्रैल 2010
'मधुरम', हिंदी स्कूल नार्वे का कार्यक्रम
मधुरम, हिंदी स्कूल नार्वे का कार्यक्रम
दूतावास से आये विशिष्ट अतिथि अशोक कुमार जी को फूल भेंट करते शिक्षार्थी
स्कूल की अध्यापिकाएं व्यंजनों का स्वाद लेती हुई
दूतावास से आये विशिष्ट अतिथि अशोक कुमार जी को फूल भेंट करते शिक्षार्थी
स्कूल की अध्यापिकाएं व्यंजनों का स्वाद लेती हुई
२१ अप्रैल २०१०, वाईतवेत कल्चर सेंटर, ओस्लो में हिंदी पढ़ने वाले छात्र -छात्राओं ने हिंदी स्कूल नार्वे द्वारा आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम 'मधुरम' में बहुत सुन्दर कार्यक्रम प्रस्तुत किया जिसने दर्शकों का मन मोह लिया। कार्यक्रम में स्वागत किया हिंदी स्कूल की संस्थापिका संगीता शुक्ला सिमोन्सेन और तरु जी ने तथा अतिथियों का परिचय दिया जैनेन्द्र पराशर ने और सञ्चालन किया अर्जुन ने अपने साथी के साथ। निशु पराशर ने अपने उद्गार व्यक्त किये। कार्यक्रम में सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने भी शुभकामनाएं दीं
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि थे भारतीय दूतावास के श्री अशोक कुमार जी।
कार्यक्रम का आयोजन अविभावकों के सहयोग से किया गया।
सभी बच्चों ने संस्कृत और हिंदी में अपनी रचनाएं सुनाईं।
-माया भारती , ओस्लो
गुरुवार, 15 अप्रैल 2010
लियर, नार्वे में सबसे बड़ा गुरुद्वारा
लियर, नार्वे में सबसे बड़ा गुरुद्वारा
पिछले सप्ताह नार्वे में ओस्लो और द्रामिन नगर के पास बसे नगर 'लिएर' में नार्वे का अब तक का सबसे बड़ा गुरुद्वारा नए भवन में बनाया गया है। यहाँ लगभग एक हजार भारतीय भक्तजनों ने शुरुआत के विशेष भजन -शब्द कीर्तन और अखंड पाठ में हिस्सा लिया। इसके अलावा द्रामिन और ओस्लो नगर में भी गुरुद्वारा स्थित है।
इन सभी गुरुद्वारों में बैसाखी धूमधाम से मनाई गयी.
पिछले सप्ताह नार्वे में ओस्लो और द्रामिन नगर के पास बसे नगर 'लिएर' में नार्वे का अब तक का सबसे बड़ा गुरुद्वारा नए भवन में बनाया गया है। यहाँ लगभग एक हजार भारतीय भक्तजनों ने शुरुआत के विशेष भजन -शब्द कीर्तन और अखंड पाठ में हिस्सा लिया। इसके अलावा द्रामिन और ओस्लो नगर में भी गुरुद्वारा स्थित है।
इन सभी गुरुद्वारों में बैसाखी धूमधाम से मनाई गयी.
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