खेतों की हरियाली रहने दो- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
लोकपाल की बात न करना,
भारत स्वराज की बात न करना।
अन्ना हों या अग्निवेश हों,
उनसे अब अन्याय न करना॥
खेतों को खेत ही रहने दो,
अब जमीन अधिग्रहण की बात न करो,
गावों में खुशियों के खातिर,
हरियाली - खुशहाली की बात करो।।
मंत्री-सांसद करें मनमानी,
उनकी सजा की बात न करना।
आम आदमी के तलवों की
खिसकी जमीन की बात न करना॥
संसद-राज्यसभा, दिल्ली में
विधान सभायें ऐसी गूंगी,
काम की बातें कुछ कम करती।
सबसे ज्यादा छुट्टी करती।
सड़क- खेत, कर्मशालाओं में,
जनता अधिकार की बातें करना।
संसद और सभाओं में तुम
जनजन के सर्वहारे बनना॥
शासन गद्दी पर बैठाया,
प्रतिनिधि हो, मालिक नहीं समझना।
लोकपाल का यही इरादा,
लोकलाज मर्यादा रखना॥
प्रधान मंत्री बस प्रतिनिधि हैं,
वे राजा हैं सपना मत पालें।
जनता की ही जय-जय गायें,
न अपनी जयकार कराएं।
मालिक नहीं, प्रतिनिधि नेता,
देश की खातिर सब कुछ देता।
जो भी नेता कुछ नहीं देता,
उसे कुर्सी का हक़ नहीं होता।
भूमि अधिग्रहण से पहले तुम
हरियाली की बातें सोचो
जनसँख्या विस्फोट
साथ में सड़कों का अभाव,
खेतों- बागानों को कटवाकर
कैसा पर्यावरण प्रभाव।।
गावों को गावं रहने दो,
खेतों में फसलें होने दो।
रोटी कपड़ा नहीं दे सके,
शान्ति से उनको रहने तो दो।
नगर में सड़क, सड़क पर धुंआ
दूषित पानी, वाहन असंख्य,
सामूहिक यातायात कमीं,
कारों में केवल एक चले,
दूषित वायु से बीमार शहर,
घने-घने, बनते मकान।
कानून को धता दिखा बिल्डर,
जनता-शासन की आखों में धुल झोंक
खेतों की हरियाली छीन रहे,
गावों की सौम्यता का उड़ा रहे मजाक,
जनता की धैर्य परीक्षा को ललकार रहे।
भूखे प्यासे जब विरोध करें किसान -मजदूर
अपनी जमीन के लिए,
अपने पेट के लिए
बच्चों के अधिकारों के खातिर
लगा रहे गुहार,
कहीं डंडे खाते,
गोली खाते,
कितनी हिम्मत की परीक्षा लेगा समय
जो किसी का नहीं हुआ।
समय तो उसी का है
जिसने सर उठा कर चलना सीखा।
ओस्लो, ३०.०५.११
सोमवार, 30 मई 2011
बुधवार, 18 मई 2011
१७ मई की यादगार शाम चित्रों के साथ -सुरेशचन्द्र शुक्ल
१७ मई की यादगार शाम चित्रों के साथ -सुरेशचन्द्र शुक्ल
१७ मई को कुछ सर्दी थी। मौसम में नमी थी। बच्चों -युवाओं और बड़ों सभी के मन में एक नया उत्साह था। नार्वे का राष्ट्रीय पर्व तो था ही साथ ही एक मेला और आनन्द का दिन था बच्चों के लिए। आइसक्रीम, नयी और राष्ट्रीय पोषक और परिधान हर जगह रंग बिरंगे नजर आ रहे थे। स्कूलों और पार्कों में मेला लगा हुआ था। ओस्लो में राजा के परसात के सामने तो और भी भव्य नजारा था। स्कूल के बच्चे, बचे, युवा और बड़ों के बैंड बाजा का समूह अपनी-अपनी धुन- तान से वातावरण को मनोरम बना रहा था।
१७ मई को कुछ सर्दी थी। मौसम में नमी थी। बच्चों -युवाओं और बड़ों सभी के मन में एक नया उत्साह था। नार्वे का राष्ट्रीय पर्व तो था ही साथ ही एक मेला और आनन्द का दिन था बच्चों के लिए। आइसक्रीम, नयी और राष्ट्रीय पोषक और परिधान हर जगह रंग बिरंगे नजर आ रहे थे। स्कूलों और पार्कों में मेला लगा हुआ था। ओस्लो में राजा के परसात के सामने तो और भी भव्य नजारा था। स्कूल के बच्चे, बचे, युवा और बड़ों के बैंड बाजा का समूह अपनी-अपनी धुन- तान से वातावरण को मनोरम बना रहा था।
नार्वे का राष्ट्रीय दिवस पर स्वीडेन के टी वी पर बिरंची और बुधिया की कहानी - सुरेशचन्द्र शुक्ल
बुधिया के कोच बिरंची दास को कोई नहीं भुला पायेगा-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
कोच दास और और मैराथन धावक बालक बुधिया
१७ मई को नार्वे का राष्ट्रीय दिवस था जो बच्चों के लिए अर्पित होता है। इस दिन स्वीडेन के टी वी चैनल पर विश्व प्रसिद्ध सबसे कम आयु का मैराथन धावक बालक जो उड़ीसा प्रान्त, भारत का रहने वाला है।) उसकी और उसके गुरु बिरंची की सत्य कथा को बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया एक रिपोर्ताज के रूप में। कथा का आरम्भ बुधिया की माँ का गरीबी से तंग आकर उसे ८०० रुपये में बेचे जाने के बाद से लेकर उसके गुरु बिरंची ने बुधिया को मैराथन का धावक बना दिया और बुधिया विश्व का सबसे कम आयु का मैराथन धावक बालक बन गया। बिरंची के दृढ़ इरादे और खेल के भविष्य को लेकर चिंता आदरणीय और सराहनीय थी। वह बुधिया को भारत की तरफ से ओलम्पिक के लिए तैयार करना चाहता था। पर बुधिया और जूडो के श्रेष्ठ गुरु बिरंची दास की हत्या से रिपोर्ताज के अन्त में दिल ऐसा दहला कि रोंगटे खड़े हो गए। भारत में आम आदमियों को प्रोत्साहन देने का कार्य दूसरे शब्दों में गुदडी से लाल पैदा करने का काम को प्रोतसाहन दिया जाना चाहिए। बिरंची बहुत लोगों के दिल में बसा रहेगा
India's marathon boy, aged three
By Sandeep Sahu BBC News, Bhubaneswar (13 September 2005)
He runs seven hours at a stretch, sometimes as much as 48km (30 miles). On a daily basis.
And Budhia Singh is just three and a half years old.
When Budhia's father died a year ago, his mother, who washes dishes in Bhubaneswar, capital of the eastern Indian state of Orissa, was unable to provide for her four children.
She sold Budhia to a man for 800 rupees ($20).
But the young boy came to the attention of Biranchi Das, a judo coach and the secretary of the local judo association.
Mr Das said he noticed Budhia's talent when scolding him for being a bully.
"Once, after he had done some mischief, I asked him to keep running till I came back," Mr Das told the BBC.
"I got busy in some work. When I came back after five hours, I was stunned to find him still running." Siesta Mr Das, also the president of the residents' association of the run-down area where Budhia used to live, summoned the man who had bought Budhia and paid him his 800 rupees back. Then started a strict diet and exercise regimen that saw Budhia adding a few kilometres to his daily marathon every few days.
कोच दास और और मैराथन धावक बालक बुधिया
१७ मई को नार्वे का राष्ट्रीय दिवस था जो बच्चों के लिए अर्पित होता है। इस दिन स्वीडेन के टी वी चैनल पर विश्व प्रसिद्ध सबसे कम आयु का मैराथन धावक बालक जो उड़ीसा प्रान्त, भारत का रहने वाला है।) उसकी और उसके गुरु बिरंची की सत्य कथा को बहुत ही रोचक तरीके से प्रस्तुत किया गया एक रिपोर्ताज के रूप में। कथा का आरम्भ बुधिया की माँ का गरीबी से तंग आकर उसे ८०० रुपये में बेचे जाने के बाद से लेकर उसके गुरु बिरंची ने बुधिया को मैराथन का धावक बना दिया और बुधिया विश्व का सबसे कम आयु का मैराथन धावक बालक बन गया। बिरंची के दृढ़ इरादे और खेल के भविष्य को लेकर चिंता आदरणीय और सराहनीय थी। वह बुधिया को भारत की तरफ से ओलम्पिक के लिए तैयार करना चाहता था। पर बुधिया और जूडो के श्रेष्ठ गुरु बिरंची दास की हत्या से रिपोर्ताज के अन्त में दिल ऐसा दहला कि रोंगटे खड़े हो गए। भारत में आम आदमियों को प्रोत्साहन देने का कार्य दूसरे शब्दों में गुदडी से लाल पैदा करने का काम को प्रोतसाहन दिया जाना चाहिए। बिरंची बहुत लोगों के दिल में बसा रहेगा
India's marathon boy, aged three
By Sandeep Sahu BBC News, Bhubaneswar (13 September 2005)
He runs seven hours at a stretch, sometimes as much as 48km (30 miles). On a daily basis.
And Budhia Singh is just three and a half years old.
When Budhia's father died a year ago, his mother, who washes dishes in Bhubaneswar, capital of the eastern Indian state of Orissa, was unable to provide for her four children.
She sold Budhia to a man for 800 rupees ($20).
But the young boy came to the attention of Biranchi Das, a judo coach and the secretary of the local judo association.
Mr Das said he noticed Budhia's talent when scolding him for being a bully.
"Once, after he had done some mischief, I asked him to keep running till I came back," Mr Das told the BBC.
"I got busy in some work. When I came back after five hours, I was stunned to find him still running." Siesta Mr Das, also the president of the residents' association of the run-down area where Budhia used to live, summoned the man who had bought Budhia and paid him his 800 rupees back. Then started a strict diet and exercise regimen that saw Budhia adding a few kilometres to his daily marathon every few days.
मंगलवार, 17 मई 2011
८ मई, नार्वे की नाजी मुक्ति के बहाने अपनी यादों के गहरे में- सुरेशचन्द्रा शुक्ल 'शरद आलोक'
संगीतकार श्री लाल जी से २४ जनवरी १९८० से ८ मई २०११ तक के सफ़र की चार बातें
मुझे आज भी स्मरण है
रविवार, 15 मई 2011
नार्वे में युवा 95% फेसबुक का प्रयोग करते हैं.-सुरेशचन्द्र शुक्ल
Ingeborg Volan hilser på indiskvis इन्गेबोर्ग हाथ जोड़कर सुरेशचन्द्र शुक्ल का अविभादन करते हुए
नार्वे में युवा 95% फेसबुक का प्रयोग करते हैं। - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
नार्वे में युवा 95% फेसबुक का प्रयोग करते हैं। - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ओस्लो, १५ मई 2011 अभी पिछले सप्ताह में मैं नार्वेजीय पत्रकार यूनियन द्वारा अपने सदस्यों के लिए हुई बैठक में इन्गेबोर्ग वोलन Ingeborg Volan ने अपने वक्तव्य में बताया की नार्वे में 29 वर्ष से कम आयु के ९५ प्रतिशत लोग इन्टरनेट पर फेसबुक का प्रयोग करते हैं। नार्वे में ट्विटर का प्रयोग दो प्रतिशत किया जाता है। और लिनकेन का प्रयोग व्यावसायिक लोगों के द्वारा अधिक किया जाता है। फेसबुक की तरह ट्विटर में अपना सन्देश देने या बहस में हिस्सा लेने के लिए किसी का मित्र होने की आवश्यकता नहीं होती। यह कम समय में अधिक लोगों तक अपनी बात पहुंचाने का सशक्त माध्यम है। पत्रकार यूनियन की ओस्लो शाखा की तरफ से गुरी हरम (Guri Haram) ने स्वागत किया।
इस बैठक में आपसी सहयोग बढाने पर विचार हुआ। और पत्रकारों ने अपने विचार एक दूसरे के साथ साझा किये।
हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप -सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' (ओस्लो नार्वे)
डॉ वेस्लर, डॉ विष्णु सरवदे, इंदिरा गाजीइवा, प्रो काली चरण स्नेही, डॉ. रतन पाण्डेय, मारिये नेजियेसी और अलेक्जन्द्रा कान्सोलारी
दिन पर दिन हिंदी का प्रसार हो रहा है। विदेशों में रहने वाले प्रवासियों ने अपने बच्चों को भी हिंदी सिखाना शुरू कर दिया है। हिंदी अब गर्व की भाषा बन रही है और विदेशों में धीरे -धीरे रोजगार की भाषा भी बन रही है।
मार्च में मुंबई विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई और प्रो विष्णु सरवदे और प्रो कालीचरण स्नेही के साथ संपर्क करके उनकी बातचीत के आधार पर मैंने निम्न रिपोर्ट बनाई है। स्वागत है:
'हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप' 7 और 8 मार्च को मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग द्वारा 'हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय द्विदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी के उद्घाटन उपसाला विश्व विद्यालय स्वीडेन के एशियाई भाषा विभाग के प्रो डॉ. हेंज वेर्नर वेस्लर के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी आज केवल मात्र भारत कि ही नहीं पूरे विश्व कि भाषा बनने जा रही है. हिंदी विश्व के २५१ देशों में बोली जा रही है. इतना ही नहीं इस आधुनिक युग में अंग्रेजी चीनी के बाद हिंदी का ही प्रथम स्थान है. उन्होंने नार्वे से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' के योगदान का भी जिक्र किया. इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो काली चरण स्नेही ने अपनी विदेशों में साहित्यिक यात्राओं का वर्णन करते हुए कहा कि विदेशों में जो हिंदी का प्रचार हो रहा है उसकी जितनी प्रशंसा कि जाए कम है. उन्होंने नार्वे में सुरेशचन्द्र शुक्ल एवं स्पाइल-दर्पण तथा संगीता सीमोनसेन द्वारा चलाये जा रहे हिंदी स्कूल की हिंदी की मजबूत भूमि बनाये जाने की सराहना की. उन्होंने अपने नार्वे, अमरीका और यू के से जुड़े संस्मरण भी सुनाये. विदेश से आये विद्वानों ने अपने सूझबूझ भरे और तथ्यपरक वक्तव्य में हिंदी के वैश्वीय्करण पर प्रकाश डाला. इनमें प्रमुख हैं: मास्को विश्व विद्यालय की इंदिरा गाजीइवा, टोरिनो विश्व विद्यालय इटली की अलेक्जन्द्रा कान्सोलारी, हंगरी से पधारीं मारिये नेजियेसी और हमबर्ग विश्व विद्यालय के डॉ. राम प्रसाद भट्ट थे. मुंबई विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ. राजन वेलुकर और एस जे टी विश्व विद्यालय के कुलपति विनोद तिम्बरेवाला के साथ-साथ अपनी शुभकामनाओं और विचारों से लाभान्वित किया उनमें प्रमुख थे डॉ. विलास शिंदे, आर एस हांडे, डॉ. माधव पंडित, डॉ आर के उपाध्याय और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रतन पाण्डेय. इस सफल अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी के संयोजक थे प्रो विष्णु सरवदे. डॉ. रतन पाण्डेय ने सभी को गोष्ठी को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया और प्रो विष्णु सरवदे जी ने आगामी वर्ष में भी संगोष्ठी आयोजित करने की इच्छा जताई.
डॉ वेस्लर, डॉ विष्णु सरवदे, इंदिरा गाजीइवा, प्रो काली चरण स्नेही, डॉ. रतन पाण्डेय, मारिये नेजियेसी और अलेक्जन्द्रा कान्सोलारी
दिन पर दिन हिंदी का प्रसार हो रहा है। विदेशों में रहने वाले प्रवासियों ने अपने बच्चों को भी हिंदी सिखाना शुरू कर दिया है। हिंदी अब गर्व की भाषा बन रही है और विदेशों में धीरे -धीरे रोजगार की भाषा भी बन रही है।
मार्च में मुंबई विश्वविद्यालय में अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न हुई और प्रो विष्णु सरवदे और प्रो कालीचरण स्नेही के साथ संपर्क करके उनकी बातचीत के आधार पर मैंने निम्न रिपोर्ट बनाई है। स्वागत है:
'हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप' 7 और 8 मार्च को मुंबई विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग द्वारा 'हिंदी साहित्य का अंतर्राष्ट्रीय स्वरूप' विषय पर अंतर्राष्ट्रीय द्विदिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया. इस गोष्ठी के उद्घाटन उपसाला विश्व विद्यालय स्वीडेन के एशियाई भाषा विभाग के प्रो डॉ. हेंज वेर्नर वेस्लर के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ. उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि हिंदी आज केवल मात्र भारत कि ही नहीं पूरे विश्व कि भाषा बनने जा रही है. हिंदी विश्व के २५१ देशों में बोली जा रही है. इतना ही नहीं इस आधुनिक युग में अंग्रेजी चीनी के बाद हिंदी का ही प्रथम स्थान है. उन्होंने नार्वे से प्रकाशित होने वाली पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' के योगदान का भी जिक्र किया. इस संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रो काली चरण स्नेही ने अपनी विदेशों में साहित्यिक यात्राओं का वर्णन करते हुए कहा कि विदेशों में जो हिंदी का प्रचार हो रहा है उसकी जितनी प्रशंसा कि जाए कम है. उन्होंने नार्वे में सुरेशचन्द्र शुक्ल एवं स्पाइल-दर्पण तथा संगीता सीमोनसेन द्वारा चलाये जा रहे हिंदी स्कूल की हिंदी की मजबूत भूमि बनाये जाने की सराहना की. उन्होंने अपने नार्वे, अमरीका और यू के से जुड़े संस्मरण भी सुनाये. विदेश से आये विद्वानों ने अपने सूझबूझ भरे और तथ्यपरक वक्तव्य में हिंदी के वैश्वीय्करण पर प्रकाश डाला. इनमें प्रमुख हैं: मास्को विश्व विद्यालय की इंदिरा गाजीइवा, टोरिनो विश्व विद्यालय इटली की अलेक्जन्द्रा कान्सोलारी, हंगरी से पधारीं मारिये नेजियेसी और हमबर्ग विश्व विद्यालय के डॉ. राम प्रसाद भट्ट थे. मुंबई विश्व विद्यालय के कुलपति डॉ. राजन वेलुकर और एस जे टी विश्व विद्यालय के कुलपति विनोद तिम्बरेवाला के साथ-साथ अपनी शुभकामनाओं और विचारों से लाभान्वित किया उनमें प्रमुख थे डॉ. विलास शिंदे, आर एस हांडे, डॉ. माधव पंडित, डॉ आर के उपाध्याय और हिंदी विभाग के अध्यक्ष डॉ. रतन पाण्डेय. इस सफल अंतर्राष्ट्रीय गोष्ठी के संयोजक थे प्रो विष्णु सरवदे. डॉ. रतन पाण्डेय ने सभी को गोष्ठी को सफल बनाने के लिए धन्यवाद दिया और प्रो विष्णु सरवदे जी ने आगामी वर्ष में भी संगोष्ठी आयोजित करने की इच्छा जताई.
गुरुवार, 12 मई 2011
८ मई, नार्वे की नाजी मुक्ति के बहाने अपनी यादों के गहरे में- सुरेशचन्द्रा शुक्ल 'शरद आलोक'
संगीतकार श्री लाल जी से २४ जनवरी १९८० से ८ मई २०११ तक के सफ़र की चार बातें
मुझे आज भी स्मरण है
रविवार, 8 मई 2011
अंतर्राष्ट्रीय लेखक गोष्ठी ओस्लो, नार्वे में देवी नागरानी सम्मानित - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
अंतर्राष्ट्रीय लेखक गोष्ठी में स्वतन्त्रता दिवस और रवीन्द्र नाथ टैगोर का जन्मदिन मनाया गया
बाएँ से शरद आलोक, स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विंगेर और बी के श्रीराम देवी नागरानी को शाल द्वारा सम्मानित करते हुए
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में ओस्लो वाइतवेत कल्चर सेंटर, ओस्लो में यू एस ए में हिंदी कि सशक्त गजलकार और समीक्षक देवी नागरानी को सम्मानित किया गया। उन्हें स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम ने शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
रवींद्र नाथ टैगोर (7 May 1861 – 7 August 1941) का आज 7 मई को 150वां जन्मदिन था। वह एक लेखक, पेंटर, चित्रकार, संगीतकार और लेखक थे उनका जन्मशती वर्ष पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया। वह विश्व के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनके गीतों को तीन देशों के राष्ट्रगान होने का सम्मान मिला है।
नार्वे को आज ८ मई १९४५ को नार्वे को नाजी साम्राज्य से छुटकारा मिला था और नाजी जर्मनी शासन समाप्त हुआ था और नार्वे के माननीय राजा होकुन सप्तम अपने परिवार के साथ स्वदेश लौटे थे।
कार्यक्रम का आरम्भ दोनों देशों के राष्ट्रीय गान से आरम्भ हुआ जिसे प्रस्तुत किया निकीता, आलेक्संदर शुक्ल सीमोनसेन, अरविन्द सीवेर्टसेन और कुनाल भरत ने। उसके बाद सम्मानित किया गया देवी नागरानी और परमेश्वरी जसवानी को।
लेखक गोष्ठी में जिन्होंने गीत और कवितायें सुनाईं उनमें देवी नागरानी (यू एस ए) , परमेश्वरी जसवानी (स्वीडेन) और नार्वे के राज कुमार भट्टी, जसबीर कौर, माया भारती, राय भट्टी, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, रूचि माथुर, सिगरीद मारिये रेफ्सुम, लीव एवेन्सेन, नीलम लखनपाल और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' आदि थे।
बाएँ से शरद आलोक, स्थानीय मेयर थूरस्ताइन विंगेर और बी के श्रीराम देवी नागरानी को शाल द्वारा सम्मानित करते हुए
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में ओस्लो वाइतवेत कल्चर सेंटर, ओस्लो में यू एस ए में हिंदी कि सशक्त गजलकार और समीक्षक देवी नागरानी को सम्मानित किया गया। उन्हें स्थानीय मेयर थूर स्ताइन विंगेर और भारतीय दूतावास के सचिव बी के श्रीराम ने शाल ओढ़ाकर सम्मानित किया।
रवींद्र नाथ टैगोर (7 May 1861 – 7 August 1941) का आज 7 मई को 150वां जन्मदिन था। वह एक लेखक, पेंटर, चित्रकार, संगीतकार और लेखक थे उनका जन्मशती वर्ष पूरे विश्व में धूमधाम से मनाया गया। वह विश्व के एकमात्र ऐसे कवि हैं जिनके गीतों को तीन देशों के राष्ट्रगान होने का सम्मान मिला है।
नार्वे को आज ८ मई १९४५ को नार्वे को नाजी साम्राज्य से छुटकारा मिला था और नाजी जर्मनी शासन समाप्त हुआ था और नार्वे के माननीय राजा होकुन सप्तम अपने परिवार के साथ स्वदेश लौटे थे।
कार्यक्रम का आरम्भ दोनों देशों के राष्ट्रीय गान से आरम्भ हुआ जिसे प्रस्तुत किया निकीता, आलेक्संदर शुक्ल सीमोनसेन, अरविन्द सीवेर्टसेन और कुनाल भरत ने। उसके बाद सम्मानित किया गया देवी नागरानी और परमेश्वरी जसवानी को।
लेखक गोष्ठी में जिन्होंने गीत और कवितायें सुनाईं उनमें देवी नागरानी (यू एस ए) , परमेश्वरी जसवानी (स्वीडेन) और नार्वे के राज कुमार भट्टी, जसबीर कौर, माया भारती, राय भट्टी, इंगेर मारिये लिल्लेएन्गेन, रूचि माथुर, सिगरीद मारिये रेफ्सुम, लीव एवेन्सेन, नीलम लखनपाल और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' आदि थे।
रविवार, 1 मई 2011
1. mai feiring i Oslo. ओस्लो में पहली मई - Suresh Chandra Shukla
1. mai 2011 i Oslo ( På hindi og norsk)
ओस्लो में पहली मई २०११, अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस
आज से अपने मित्रों की सलाह पर अपना ब्लाग हिंदी के साथ-साथ नार्वेजीय भाषा में लिखना शुरू कर दिया है।
ओस्लो में हमेशा की तरह हर वर्ष पहली मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया। श्रमिक परेड में हिस्सा लिया, आपस में बधाई दी और नेताओं के विचार सुने। आज मेरी मुलाकात २६ वर्ष बाद अपनी सहपाठी मित्र आन्ने हेस से हुई जो मेरे ओस्लो विश्वविद्यालय से सम्बद्ध 'नेशनल कालेज आफ जर्नलिज्म' में पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त कर रही थीं। बातचीत हुई यादें ताजी कीं। मेरे एक अन्य राजनैतिक मित्र ओस्लो विश्वविद्यालय में प्रो क्नुत शेलस्तादली दो वर्ष बाद अपनी पत्नी के साथ मिले जो विश्व के जाने-माने सोशलिस्ट विचारक और इतिहासकार हैं। जब मैं ओस्लो नगर पार्लियामेंट में सं २००३ से २००७ तक सदस्य था तब हम लोगों को अक्सर बैठकों, सेमिनारों और पार्टियों में मिलना होता था। मैं पहले ओस्लो में स्थानीय लेबर पार्टी का बियेर्के क्षेत्र का महामंत्री रह चुका हूँ। बाद में सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी में आया जिससे मैं चुनाव द्वारा चुना गया था। मैं गाँधीवादी विचारधारा का सोशल डेमोक्रेट हूँ। मेरे एक और राजनैतिक मित्र और नार्वे की सबसे बड़ी और सरकार में पार्टी के नेता रुने गेरहार्डसेन से चार वर्ष बाद मुलाकात हुई जिनके पिता नार्वे के प्रधानमंत्री रह चुके हैं जिन्हें नार्वे का राष्ट्रपिता का भी दर्जा हांसिल था और इनकी बेटी मीना नार्वे के प्रधानमंत्री की सलाहकार भी है। रुने गेरहार्डसेन के नेतृत्व में हमने साथ-साथ जर्मनी की राजनैतिक यात्रा की थी जो एक यादगार यात्रा थी। आज जब कार्यक्रम के अन्त में एक रेस्टोरेंट में गया वहाँ मेरी मुलाकात एक टीवी फोटोग्राफर से दोबारा हुई जिन्होंने नार्वेजीय राष्ट्रीय टीवी के लिए मेरा साक्षात्कार शूट किया था। बहुत अच्छा लगा। पुरानी बाते पूना ताजा हो गयीं। इस दिन मुझे भारत के श्रमिकों की बढती तरक्की और संभावना पर अपनी प्रतिबद्धता स्मरण हो आयी। मैंने भी भारत में १६ अक्टूबर १९७२ से २१ जनवरी १९८० तक भारतीय रेलवे के 'सवारी और मालडिब्बे कारखाना' में कार्य किया था। श्रमिक से लेकर, स्किल्ड कारीगर तक और बाद में श्रमिक शिक्षक तक का सफ़र। कार्य करते हुए ही इंटर, बी ए और श्रमिक शिक्षक का अध्ययन भी किया था। इसी के साथ कवितायें और समाचार भी 'स्वतन्त्र भारत समाचार पत्र में छापते रहते थे। समय का अच्छा प्रयोग हो रहा था। अतीत की बातें वर्तमान में प्रवेश करते हुए भविष्य की ओर प्रस्थान कर चुकी हैं। आज श्रमिक दिवस पर सब याद है और भविष्य में अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुआ हूँ अब लेखन के जरिये अपनी प्रतिबद्धता निभा रहा हूँ।
Marianne Borgen, Libe Rieber Mohn og Vestvik i midten
Fra venstre en Ap-representant, Fru Gerhardsen, Jan Bøler, Suresh Shukla og Rune Gerhardsen på Yongstorget i Oslo
Det var strålende dag med sol og sommer. Det var forsatt litt kaldt men deilig. Det var tusenvis mennesker som gikk på 1. mais tog og markerte den internasjonale arbeidsdagen. Arbeid, sysselsetting og økonomisk stabilitet er de viktigste kampsakene for norsk fagbevegelse i dag og flere av parolene var preget av disse budskapene på 1. mais markering i dag på Youngs torget i Oslo.
Libe Rieber-Mohn holdt appell på Youngstorget
Oslo Aps byrådslederkandidat Libe Rieber-Mohn holdt appell på Youngstorget 1. mai. Hun sa at alle sykehjem som i dag drives av private selskaper, skal bli overført til offentlig drift, dersom de rødgrønne får flertall i Oslo bystyre etter valget.
Hun sa videre at høyresiden har vært en bremsekloss i arbeidet for et mer anstendig arbeidsliv. Det er mer overtid, flere midlertidige ansettelser og det er framfor alt privatisering for enhver pris, som et prinsipp og et mål i seg selv, sa Oslo Aps byrådslederkandidat.
Jeg møte gamle venner på Youngstorget
Anne Hess og Suresh Chandra Shukla
Jeg har møtt min gamle kollega Anne Hess etter 26 år. Det var gledelig å trffe henne og Knut Kjelstadli. Anne Hess og jeg gikk på Norsk Journalisthøgskole på Frysjaveien i Oslo i 1985. Og Knut Kjelstadlig og jeg var tidligere aktive i politikken for SV og Arbeiderparti i Olso.
Jeg har møtt også Rune Gerhardsen og han var sammen med sin kone og Jan Bøhler. Rune Gerhardsen var leder av Miljø og transport komite i Bystyre i Oslo hvor jeg var vara medlem og vi reiste sammen til Tyskland.
ओस्लो में पहली मई २०११, अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस
आज से अपने मित्रों की सलाह पर अपना ब्लाग हिंदी के साथ-साथ नार्वेजीय भाषा में लिखना शुरू कर दिया है।
ओस्लो में हमेशा की तरह हर वर्ष पहली मई को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस मनाया। श्रमिक परेड में हिस्सा लिया, आपस में बधाई दी और नेताओं के विचार सुने। आज मेरी मुलाकात २६ वर्ष बाद अपनी सहपाठी मित्र आन्ने हेस से हुई जो मेरे ओस्लो विश्वविद्यालय से सम्बद्ध 'नेशनल कालेज आफ जर्नलिज्म' में पत्रकारिता की शिक्षा प्राप्त कर रही थीं। बातचीत हुई यादें ताजी कीं। मेरे एक अन्य राजनैतिक मित्र ओस्लो विश्वविद्यालय में प्रो क्नुत शेलस्तादली दो वर्ष बाद अपनी पत्नी के साथ मिले जो विश्व के जाने-माने सोशलिस्ट विचारक और इतिहासकार हैं। जब मैं ओस्लो नगर पार्लियामेंट में सं २००३ से २००७ तक सदस्य था तब हम लोगों को अक्सर बैठकों, सेमिनारों और पार्टियों में मिलना होता था। मैं पहले ओस्लो में स्थानीय लेबर पार्टी का बियेर्के क्षेत्र का महामंत्री रह चुका हूँ। बाद में सोशलिस्ट लेफ्ट पार्टी में आया जिससे मैं चुनाव द्वारा चुना गया था। मैं गाँधीवादी विचारधारा का सोशल डेमोक्रेट हूँ। मेरे एक और राजनैतिक मित्र और नार्वे की सबसे बड़ी और सरकार में पार्टी के नेता रुने गेरहार्डसेन से चार वर्ष बाद मुलाकात हुई जिनके पिता नार्वे के प्रधानमंत्री रह चुके हैं जिन्हें नार्वे का राष्ट्रपिता का भी दर्जा हांसिल था और इनकी बेटी मीना नार्वे के प्रधानमंत्री की सलाहकार भी है। रुने गेरहार्डसेन के नेतृत्व में हमने साथ-साथ जर्मनी की राजनैतिक यात्रा की थी जो एक यादगार यात्रा थी। आज जब कार्यक्रम के अन्त में एक रेस्टोरेंट में गया वहाँ मेरी मुलाकात एक टीवी फोटोग्राफर से दोबारा हुई जिन्होंने नार्वेजीय राष्ट्रीय टीवी के लिए मेरा साक्षात्कार शूट किया था। बहुत अच्छा लगा। पुरानी बाते पूना ताजा हो गयीं। इस दिन मुझे भारत के श्रमिकों की बढती तरक्की और संभावना पर अपनी प्रतिबद्धता स्मरण हो आयी। मैंने भी भारत में १६ अक्टूबर १९७२ से २१ जनवरी १९८० तक भारतीय रेलवे के 'सवारी और मालडिब्बे कारखाना' में कार्य किया था। श्रमिक से लेकर, स्किल्ड कारीगर तक और बाद में श्रमिक शिक्षक तक का सफ़र। कार्य करते हुए ही इंटर, बी ए और श्रमिक शिक्षक का अध्ययन भी किया था। इसी के साथ कवितायें और समाचार भी 'स्वतन्त्र भारत समाचार पत्र में छापते रहते थे। समय का अच्छा प्रयोग हो रहा था। अतीत की बातें वर्तमान में प्रवेश करते हुए भविष्य की ओर प्रस्थान कर चुकी हैं। आज श्रमिक दिवस पर सब याद है और भविष्य में अपने कर्तव्य से विमुख नहीं हुआ हूँ अब लेखन के जरिये अपनी प्रतिबद्धता निभा रहा हूँ।
Marianne Borgen, Libe Rieber Mohn og Vestvik i midten
Fra venstre en Ap-representant, Fru Gerhardsen, Jan Bøler, Suresh Shukla og Rune Gerhardsen på Yongstorget i Oslo
Det var strålende dag med sol og sommer. Det var forsatt litt kaldt men deilig. Det var tusenvis mennesker som gikk på 1. mais tog og markerte den internasjonale arbeidsdagen. Arbeid, sysselsetting og økonomisk stabilitet er de viktigste kampsakene for norsk fagbevegelse i dag og flere av parolene var preget av disse budskapene på 1. mais markering i dag på Youngs torget i Oslo.
Libe Rieber-Mohn holdt appell på Youngstorget
Oslo Aps byrådslederkandidat Libe Rieber-Mohn holdt appell på Youngstorget 1. mai. Hun sa at alle sykehjem som i dag drives av private selskaper, skal bli overført til offentlig drift, dersom de rødgrønne får flertall i Oslo bystyre etter valget.
Hun sa videre at høyresiden har vært en bremsekloss i arbeidet for et mer anstendig arbeidsliv. Det er mer overtid, flere midlertidige ansettelser og det er framfor alt privatisering for enhver pris, som et prinsipp og et mål i seg selv, sa Oslo Aps byrådslederkandidat.
Jeg møte gamle venner på Youngstorget
Anne Hess og Suresh Chandra Shukla
Jeg har møtt min gamle kollega Anne Hess etter 26 år. Det var gledelig å trffe henne og Knut Kjelstadli. Anne Hess og jeg gikk på Norsk Journalisthøgskole på Frysjaveien i Oslo i 1985. Og Knut Kjelstadlig og jeg var tidligere aktive i politikken for SV og Arbeiderparti i Olso.
Jeg har møtt også Rune Gerhardsen og han var sammen med sin kone og Jan Bøhler. Rune Gerhardsen var leder av Miljø og transport komite i Bystyre i Oslo hvor jeg var vara medlem og vi reiste sammen til Tyskland.
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