भाषा का संयम मत खोयें। -शरद आलोक, ओस्लो, नार्वे
आज भारत में गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सहित बहुत से लोग भाषा के संयम का ध्यान नहीं रख रहे हैं। ऐसा लगता है कि जो भी मन में आता है वह बोल देते हैं। एक विद्वान व्यक्ति को तो और अधिक ध्यान देना चाहिए कि वह कैसी भाषा का प्रयोग करे। हमको अपने सहयोगी और जिनसे सहयोग प्राप्त करना है उनके प्रति विश्वास और संयमित भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो नहीं किया जा रहा है। यह मीडिया में देखने में आया है कि अन्ना हजारे जी और उनके सहयोगीगण अशिष्ट भाषा का प्रयोग कर रहे हैं अपने सहयोगियों के प्रति जिनसे उन्होंने सहयोग लेकर जनता के कार्य करने का बीड़ा उठाया है।
आप यदि मुझसे कार्य कराना चाहते हैं क्या आप हजारों गलियां देकर आयेंगे तब आपका कार्य अच्छी तरह से कर पायेंगे या फिर जब सहयोग भाव से शिष्ट भाषा का प्रयोग और वातावरण को सौहाद्र बनाकर करेंगे।
आदरणीय अन्ना जी को शिष्ट भाषा का प्रयोग स्वयं भी सरकार, जनता और सहयोगियों और प्रतिद्वंदियों से करनी चाहिए ताकि वह मिसाल स्थापित करें। न कि अशिष्ट भाषा के प्रचार को बढ़ावा दें जैसा कि मीडिया में पढ़ने और देखने/ सुनने में मिल रहा है। संसदीय सदस्य और जनता के नेता भी अक्सर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं। जो नहीं होना चाहिए।
जो लोग अपने आपको पूरे देश का प्रतिनिधि कहते हैं एक अलग बात है कि वह भले ही प्रतिनिधि हों या न हों पर भाषा के प्रति उनका रवैया अशिष्ट रहा तो कभी भी जनता के प्रतिनिधि नहीं बन पायेंगे। एक समय बाद मीडिया को नए विषय और चेहरे मिलने के बाद वह भुला दिए जायेंगे। आज अन्ना जी, उनके सहयोगी और बाबा रामदेव जी जिस अशिष्ट भाषा का प्रयोग सरकार, अपने तथाकथित प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध प्रयोग कर रहे हैं जिनसे वह सहयोग भी लेना चाहते हैं, तो यह कहाँ तक उचित है। आम आदमी के लिए भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने के लिए हर जगह अपील करेंकि लोग रिश्वत नहीं ले और रिश्वत नहीं दें । अपने बयानों और बातचीत मनें शिष्ट भाषा का प्रयोग करें। धन्यवाद। आज मीडिया में हमारे प्रतिनिधि नेता और समाजसेवी उस अशिष्ट भाषा का कर रहे हैं, वह निंदनीय है। यह भाषा संसद की भाषा है नहीं है न ही शिष्टाचार कि भाषा हैं जहाँ एक दूसरे का सत्यानाश करने कि बात की जाती है और उनसे सहयोग कि आशा भी रक्खी जाती है। पहले अपने मन की मशीनरी को सही करें।
रामदेव जी, दूसरों को गाली दे रहें है। वह सभी लोगों से अपील क्यों नहीं करते कि आप रिश्वत नहीं दे। आप रिश्वत नहीं लेवें। उसके लिए जनता को जागरूक करें। अच्छे -अच्छे तर्क दें और बाबा रामदेव जी और अन्ना हजारे जी वह केवल सरकार को गाली देते हैं। आम लोगों की बात क्यों नहीं करते। भ्रष्टाचार सभी पार्टियों कि सभी लोगों कि समस्या है इससे किसी एक पार्टी का ही या किसी एक वर्ग का ही सम्बन्ध नहीं है। गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है। संत रैदास जी ने कहा था अपन मन चंगा तो कठौती में गंगा। पहले हम अपना मन साफ़ करें।
आज भारत में गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे और उनके सहयोगी सहित बहुत से लोग भाषा के संयम का ध्यान नहीं रख रहे हैं। ऐसा लगता है कि जो भी मन में आता है वह बोल देते हैं। एक विद्वान व्यक्ति को तो और अधिक ध्यान देना चाहिए कि वह कैसी भाषा का प्रयोग करे। हमको अपने सहयोगी और जिनसे सहयोग प्राप्त करना है उनके प्रति विश्वास और संयमित भाषा का प्रयोग करना चाहिए जो नहीं किया जा रहा है। यह मीडिया में देखने में आया है कि अन्ना हजारे जी और उनके सहयोगीगण अशिष्ट भाषा का प्रयोग कर रहे हैं अपने सहयोगियों के प्रति जिनसे उन्होंने सहयोग लेकर जनता के कार्य करने का बीड़ा उठाया है।
आप यदि मुझसे कार्य कराना चाहते हैं क्या आप हजारों गलियां देकर आयेंगे तब आपका कार्य अच्छी तरह से कर पायेंगे या फिर जब सहयोग भाव से शिष्ट भाषा का प्रयोग और वातावरण को सौहाद्र बनाकर करेंगे।
आदरणीय अन्ना जी को शिष्ट भाषा का प्रयोग स्वयं भी सरकार, जनता और सहयोगियों और प्रतिद्वंदियों से करनी चाहिए ताकि वह मिसाल स्थापित करें। न कि अशिष्ट भाषा के प्रचार को बढ़ावा दें जैसा कि मीडिया में पढ़ने और देखने/ सुनने में मिल रहा है। संसदीय सदस्य और जनता के नेता भी अक्सर अशिष्ट भाषा का प्रयोग करते हैं। जो नहीं होना चाहिए।
जो लोग अपने आपको पूरे देश का प्रतिनिधि कहते हैं एक अलग बात है कि वह भले ही प्रतिनिधि हों या न हों पर भाषा के प्रति उनका रवैया अशिष्ट रहा तो कभी भी जनता के प्रतिनिधि नहीं बन पायेंगे। एक समय बाद मीडिया को नए विषय और चेहरे मिलने के बाद वह भुला दिए जायेंगे। आज अन्ना जी, उनके सहयोगी और बाबा रामदेव जी जिस अशिष्ट भाषा का प्रयोग सरकार, अपने तथाकथित प्रतिद्वंदियों के विरुद्ध प्रयोग कर रहे हैं जिनसे वह सहयोग भी लेना चाहते हैं, तो यह कहाँ तक उचित है। आम आदमी के लिए भ्रष्टाचार से छुटकारा दिलाने के लिए हर जगह अपील करेंकि लोग रिश्वत नहीं ले और रिश्वत नहीं दें । अपने बयानों और बातचीत मनें शिष्ट भाषा का प्रयोग करें। धन्यवाद। आज मीडिया में हमारे प्रतिनिधि नेता और समाजसेवी उस अशिष्ट भाषा का कर रहे हैं, वह निंदनीय है। यह भाषा संसद की भाषा है नहीं है न ही शिष्टाचार कि भाषा हैं जहाँ एक दूसरे का सत्यानाश करने कि बात की जाती है और उनसे सहयोग कि आशा भी रक्खी जाती है। पहले अपने मन की मशीनरी को सही करें।
रामदेव जी, दूसरों को गाली दे रहें है। वह सभी लोगों से अपील क्यों नहीं करते कि आप रिश्वत नहीं दे। आप रिश्वत नहीं लेवें। उसके लिए जनता को जागरूक करें। अच्छे -अच्छे तर्क दें और बाबा रामदेव जी और अन्ना हजारे जी वह केवल सरकार को गाली देते हैं। आम लोगों की बात क्यों नहीं करते। भ्रष्टाचार सभी पार्टियों कि सभी लोगों कि समस्या है इससे किसी एक पार्टी का ही या किसी एक वर्ग का ही सम्बन्ध नहीं है। गेहूं के साथ घुन भी पिस्ता है। संत रैदास जी ने कहा था अपन मन चंगा तो कठौती में गंगा। पहले हम अपना मन साफ़ करें।