अपने में मस्त अभिमन्यु अनथ को बहुत बधायी - शुभकामनायें
अपने में मस्त रहने वाले लेखक हैं अभिमन्यु अनथ. चाहे वह १९ ९३ में मारीशस की अपनी धरती पर या वह लन्दन, यू के में सम्पन्न संपन्न विश्व हिन्दी सम्मलेन हो.
विश्व हिंदी पत्रिका- दीप्ति गुप्ता के ई-पत्र से समाचार
प्राप्त कर अति प्रसन्नता हुई कि मारीशस के मशहूर साहित्यकार साथी
अभिमन्यु अनत को भारत में साहित्य अकादमी द्वारा मानद महत्तर सदस्यता का
सर्वोच्च सम्मान दिया गया है जो इसके लिए सम्माननीय पात्र हैं.
महान
मारीशस की भूमि सदा ही हिन्दी के लिए उर्वरा रही है और महात्मा गांधी
संस्थान, मोका और वसंत इसके अनेक उदाहरणों में से एक है. आगे चलकर कुछ
वर्षों से विश्व हिन्दी सचिवालय ने भी हिन्दी के लिए अनेक उपक्रम कर रही
हैं. जो लोग मारीशस गए हैं या जो मारीशस के हिन्दी प्रेमियों से मिले हैं वे
जानते हैं कि मारीशस के संस्कृतिकर्मियों और राजनीतिज्ञों में हिन्दी और
भारत के प्रति सम्मान है हम भारतीय लोग भी मारीशस को बहुत सम्मान से देखते
हैं. श्री राजनारायण गति जी, मुकेश्वर चुन्नी जी, भी अभिमन्यु जी की तरह अनेको
कार्यक्रमों में मिले हैं और पूरी सहानभूति और स्नेह दिया है. सरिता बुधू को भी भूलना आसान नहीं है. जगदीश गोबर्धन भी भाषा को लेकर गतिशील रहते हैं.
भारत से बाहर रहकर विदेशी जमीन पर बैठकर हिन्दी में साहित्य सृजन हिन्दी और में करना सराहनीय और नयी चुनौतियों से भरा है. पर नार्वे में हमको वह स्थिति और वातावरण नहीं मिला फिर भी हिन्दी साहित्य के सृजन के साथ-साथ हिन्दी की शिक्षा देकर नयी पीढी को हिन्दी से अवगत कराना तथा पत्रिकाएं निकाल कर उसमें सभी हिन्दी और नार्वेजीय भाषियों को जोड़ना उन्हें अभिव्यक्ति देना कुछ हमारी निजी गतिविधियों में से है. नार्वे में हमारी पत्रिका स्पाइल-दर्पण इस वर्ष अपने २५ वर्ष पूरे कर रही है तब और भी सुखद लगता है कि भारत के बाहर हिन्दी की सेवा में लगे रहना कितना सुखकर मिशन है.
भारत से बाहर रहकर विदेशी जमीन पर बैठकर हिन्दी में साहित्य सृजन हिन्दी और में करना सराहनीय और नयी चुनौतियों से भरा है. पर नार्वे में हमको वह स्थिति और वातावरण नहीं मिला फिर भी हिन्दी साहित्य के सृजन के साथ-साथ हिन्दी की शिक्षा देकर नयी पीढी को हिन्दी से अवगत कराना तथा पत्रिकाएं निकाल कर उसमें सभी हिन्दी और नार्वेजीय भाषियों को जोड़ना उन्हें अभिव्यक्ति देना कुछ हमारी निजी गतिविधियों में से है. नार्वे में हमारी पत्रिका स्पाइल-दर्पण इस वर्ष अपने २५ वर्ष पूरे कर रही है तब और भी सुखद लगता है कि भारत के बाहर हिन्दी की सेवा में लगे रहना कितना सुखकर मिशन है.
सन १९९० में जब मैंने एक अंतर्राष्ट्रीय समारोह में भाग लिया था तब
राजेन्द्र अवस्थी के पुत्र और वर्तमान में आथर्स गिल्ड आफ इंडिया के
महामंत्री शिव शंकर अवस्थी के साथ उनके मारीशस में स्थित निवास पर गया था. राजेन्द्र अवस्थी जी वहां पहले से उपस्थित थे. साथ-साथ भोजन भी
किया और विचार-विमर्श भी हुआ था. उनके आँगन में बागीचे में कुछ चित्र भी खींचे गये. एक चित्र उर्दू की
पत्रिका 'बाजगश्त' में सन १९९० में छपा था उसी पत्रिका में जैनेद्र कुमार
के साथ लिया गया चित्र भी सन १९८५ में छपा था जिसमें मैं और ऐनक लगाए
जैनेन्द्र जी कोकाकोला साथ पी रहे थे. अभिमन्यु अनत से अनेक साहित्यिक समारोहों में मिला
जिसमें लन्दन में हुए सन १९९९ में हुए विश्व हिन्दी सम्मेलन और एक वर्ष
पूर्व फोन पर मुम्बई में फोन पर कपिल कविराय के निवास पर फोन से बात हुई
थी.
अपने मित्र अभिमन्यु अनत और साहित्य अकादमी को बहुत बधायी-शुभकामनायें और
धन्यवाद देता हूँ उनके सहयोग और योगदान के लिए. शेष आगामी ब्लाक में पढ़िये।
सुरेशचन्द्र शुक्ल ´शरद आलोक´
सम्पादक, स्पाइल-दर्पण
POSTBOX 31, VEITVET
0518- OSLO
NORWAY