ओस्लो में कवितापाठ एक सुखद अनुभव - सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
चित्र में कविता पढने के बाद मेरा धन्यवाद अदा करती कार्यक्रम संचालिका किन्तिका तथा बाएं खड़ी थ्रुदे मेत्तेऔर दायें मेरे कविता पाठ में साथ दिया ब्रेंत बर्ग ने
१० मार्च, ओस्लो, नार्वे. यहाँ ओस्लो में स्थित घाटी ग्रुरुददाल के नाम से केंद्र सरकार के सहयोग से 'संस्कृति बागवान' नाम से एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी और चार कवियों को इस अवसर पर आमंत्रित किया गया जिसमें मुझे भी अपनी कवितायें पढने का अवसर मिला. भारत की धरती से आकर यहाँ की धरती में एक लेखक के रूप में प्रतिष्ठित होने और यहाँ पर अपनी कविताओं के माह्यम से ओस्लो की संस्कृति को पास से देखकर जो यहाँ की भाषा में कवितायें लिखीं उसे पढ़ा जिसे औरों की कविताओं की तरह सराहा गया. एक खुला मंच जो अन्य कार्यक्रमों के लिए भी उतना ही अच्छा है. मन में संकल्प लिया क्यों न ऐसा मंच उत्तर प्रदेश के नगर लखनऊ या वाराणसी या दिल्ली में क्यों न बनाया जाये और उसका उपयोग खुले मंच की तरह हो और सभी की भागीदारी भी हो सके. सभी सहयोग प्राप्त करने के लिए सहयोग ही करें. कभी विस्तार से चर्चा करेंगे जब इसे क्रियान्वयन किया जाएगा.
चित्र में कविता पढने के बाद मेरा धन्यवाद अदा करती कार्यक्रम संचालिका किन्तिका तथा बाएं खड़ी थ्रुदे मेत्तेऔर दायें मेरे कविता पाठ में साथ दिया ब्रेंत बर्ग ने
१० मार्च, ओस्लो, नार्वे. यहाँ ओस्लो में स्थित घाटी ग्रुरुददाल के नाम से केंद्र सरकार के सहयोग से 'संस्कृति बागवान' नाम से एक पुस्तकालय की स्थापना की गयी और चार कवियों को इस अवसर पर आमंत्रित किया गया जिसमें मुझे भी अपनी कवितायें पढने का अवसर मिला. भारत की धरती से आकर यहाँ की धरती में एक लेखक के रूप में प्रतिष्ठित होने और यहाँ पर अपनी कविताओं के माह्यम से ओस्लो की संस्कृति को पास से देखकर जो यहाँ की भाषा में कवितायें लिखीं उसे पढ़ा जिसे औरों की कविताओं की तरह सराहा गया. एक खुला मंच जो अन्य कार्यक्रमों के लिए भी उतना ही अच्छा है. मन में संकल्प लिया क्यों न ऐसा मंच उत्तर प्रदेश के नगर लखनऊ या वाराणसी या दिल्ली में क्यों न बनाया जाये और उसका उपयोग खुले मंच की तरह हो और सभी की भागीदारी भी हो सके. सभी सहयोग प्राप्त करने के लिए सहयोग ही करें. कभी विस्तार से चर्चा करेंगे जब इसे क्रियान्वयन किया जाएगा.
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