शुक्रवार, 19 अप्रैल 2013

Verdens bokdag 2013 / विश्व पुस्तक दिवस 2013

Verdens bokdag ble feiret på forsudd av Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
 på fredag  den 19. april 2013 på Stikk innom på Veitvetsenter i Oslo.




विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल को मनाया जाता है, परन्तु भारतीय -नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा चार दिन पूर्व ही विश्व पुस्तक दिवस 19  अप्रैल 2013 को  शाम छ: बजे 18:00  वाइतवेत सेन्टर, ओस्लो में मनाया गया।  इस कार्यक्रम में व्याख्यान, कविता और गीत संगीत का कार्यक्रम संपन्न हुआ।

बुधवार, 17 अप्रैल 2013

लेखक गोष्ठी Forfatterkafe

Forfatterkafe

Den 19. april 2013 - kl 18:00
På Stikk Innom på Veitveitsenter, Oslo
Verdens bokdag blir markert på forskudd av indisk-norsk informasjons- og kulturforum.
Det blir opplesning av dikt og noveller på denne "stikk-innom" på Veitvetsenteret.

For mer informasjon ta kontakt på tlf. 90 07 03 18 eller på epost: speil.nett@gmail.com

लेखक गोष्ठी

आप सादर आमंत्रित हैं।
19 अप्रैल 2013 को शाम छ:बजे 18:00
Stikk Innom, Veitvetsenter में
(विश्व पुस्तक दिवस 23 अप्रैल को होता है पर हम पूर्व ही
शुक्रवार 19 अप्रैल 2013 को  शाम छ:बजे 18:00 मना रहे हैं।) 
भवदीय
भारतीय-नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम
Indisk-Norsk Informasjons -og Kulturforum
Postboks 31, Veitvet, 0518 Oslo

शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

Lech Wałęsa लेक वालेसा

नोबेल शांति पुरस्कार विजेता पोलैंड के लेक वालेसा Lech Wałęsa  और हन्ना क्वामू के साथ सुरेशचन्द्र शुक्ल नोबेल समारोह, ओस्लो में














På bilde fra venstre er Lech Wałęsa, sønnen til Elie Wiesel, Hanna Kvanmo og Suresh Chandra Shukla

 Lech Wałęsa og Suresh Chandra Shukla i Oslo

शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

शरद आलोक साहित्य गौरव सम्मान

शरद आलोक  का वक्तव्य साहित्य गौरव सम्मान प्राप्त करने पर 




नार्वे के लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' को राज्य कर्मचारी साहित्य संस्थान द्वारा साहित्य गौरव सम्मान से पुरस्कृत किया गया था, परन्तु  'शरद आलोक' सम्मान लेने नहीं आ सके थे, अतः ३० मार्च को विधान सभा के साहित्य संस्थान के सभागार में एक गोष्ठी में उनका वक्तव्य हुआ। उन्होंने कहा कि चूँकि वह लखनऊ में  पले और बड़े हुए इसलिए उस नगर और प्रदेश के लोगों ने सम्मानित किया वह ह्रदय छू लेने वाली बात है।  उन्होंने आगे कहा कि हमको अपनी भाषा हिंदी पर गर्व करना चाहिये और इस गलतफहमी से दूर रहना चाहिए कि अंग्रेजी बोलने वालों को नौकरी मिलती है।  उन्होंने कहा कि यदि तकनीकी शिक्षा हिन्दी में दी जाये और उसके शैक्षिक संस्थान और स्कूल अधिक संख्या में खोले जाएँ तो भारत में हम कुशल कारीगर (स्किल्ड और सेमी स्किल्ड) बड़ी तादात में बढ़ा सकते है। तब हम विश्व के सबसे बड़े हार्डवेयर उत्पादकों में सम्मिलित हो सकते हैं। चीन हमसे पांच गुना ज्यादा कंप्यूटर और हार्डवेयर का उत्पादन करता है क्योंकि वहां इसकी शिक्षा चीनी  भाषा  में होती है।  उन्होंने यह भी कहा कि जो युवा अंग्रेजी माध्यम से निजी स्कूलों में शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं वे नगर और प्रदेश के युवा और अन्य सांस्कृतिक गतिविधियों से कटे हैं क्योंकि उनके स्कूल, कालेज और संस्थान भी नगर और प्रदेश के सांस्कृतिक और राजनैतिक गतिविधियों से कटे हैं जो मेरी दृष्टि में दुर्भाग्य की बात है।  आपस में मिलना जुलना और नगर और प्रदेश की गतिविधियों में सभी के न जुड़ने के कारण कुछ लोग ही वहां के विकास में अपना योगदान दे सकेंगे और दूसरे  अछूते रह जायेंगे।  अफ्रीका में अंग्रेजी जानने वालों की संख्या बहुत है पर उनको नौकरियां मिलने में अंग्रेजी सहायक नहीं होती है। दक्षिण अफ्रीका इसका बहुत बड़ा उदाहरण है। 

लखनऊ में लेखन नाट्य रूपांतर संगोष्ठी

लेखन नाट्य  रूपांतर संगोष्ठी 

नार्वे की हिंदी पत्रिका स्पाइल-दर्पण द्वारा लखनऊ में संगोष्ठी आयोजित

२५ मार्च २०१३, उमानाथ रायबली प्रेक्षागृह (जयशंकर सभागार), कैसरबाग, लखनऊ में होली की पूर्व संध्या पर स्पाइल-दर्पण पत्रिका द्वारा लखनऊ के रंगकर्मियों के साथ संगोष्ठी आयोजित की गयी।
जिसमें फिल्माचार्य आनंद शर्मा, रंगकर्मी ज्ञानी, लखनऊ विश्व विद्यालय के प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह,  डॉ कृष्णा जी श्रीवास्तव  और स्पाइल-दर्पण के सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल ने संबोधित किया। यहाँ लखनऊ रंगकर्मियों के संग हुए इस संगोष्ठी में लखनऊ के रंगकर्मियों के विदेश में रंगकर्मियों के साथ जोड़ने और सांस्कृतिक आदान-प्रदान पर चर्चा की गयी। साहित्यिक कृतियों पर नाटक और लघु फिल्मों के निर्माण पर जोर दिया गया और कुछ लघु फ़िल्में भी प्रदर्शित की गयीं जो साहित्यिक कहानियों पर आधारित थीं।  फिल्माचार्य आनंद शर्मा ने लखनऊ के थिएटर के लिए अच्छी कहानियों और नाटकों के लेखन की आवश्यकता पर बल दिया। ज्ञानी जी ने घोषणा की की वह कहानी 'अंतर्मन के रास्ते' पर आधारित एक नाटक का मंचन करेंगे।
उपस्थित लेखकों और रंगकर्मियों ने अपने विचार रखे।