स्पाइल-दर्पण (विदेशों में हिंदी पत्रकारिता में मिसाल) की रजत जयन्ती पर -Suresh Chandra Shukla
Speil fyller 25 år. Jeg deler et dikt om denne anledningen på hindi.
स्पाइल-दर्पण (विदेशों में हिंदी पत्रकारिता में मिसाल) की रजत जयन्ती पर
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ऐश और आराम के खातिर कितने जीते हैं,
मस्ती भरे क्षणों में मधुरस, कितने पीते हैं
अपनी भाषा बिना यहाँ हम कितने रीते हैं
भाषायी संवाद बढ़े, हम रचनाएं सीते हैं.
विदेश में हिंदी को हम घर-घर पहुंचाते है
विदेशों में मातृभाषा की हम यह शिक्षा देते हैं.
अपने धन से सीच रहे पत्रकारिता की क्यारी,
हिंदी पर मरने वालों पर हम भी मरते हैं.
भाषा और साहित्य को घर-घर पहुंचाना है,
अपनी बातों को समाज में हर पल पहुँचाना है,
कभी घटे न संवाद पीढ़ियों का शरद आलोक!
देश-विदेश में हिंदी का परचम लहराना है.
स्पाइल-दर्पण की आज रजत जयन्ती है,
कविता और कहानी से खूब अपनी छनती है,
खुद भी पढ़े और बच्चों को हिंदी रोज पढ़ायें.
दुतकारो या प्यार करो मेरी सबसे बनती है.
रजत जयन्ती वर्ष कह रहा हिंदी फ़ैल रही
मिशन भाव हिंदी शिक्षा से भाषा बेल बड़ी.
स्पाइल-दर्पण से कितने रसाले 25 वर्ष हुए?
कविता-कहानी के विकास का युग ले आये.
जिसने भी सहयोग दिया उसको नमन करूं।
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