शनिवार, 4 अप्रैल 2015

Aam Admi, A shortstory by Suresh Chandra Shukla

आम आदमी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  



चित्र में लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल  की पुस्तक पर  हस्ताक्षर करते हुए  1996 में  नोबेल शांति पुरस्कार विजेता 
José Ramos-Horta  जोसे रामोस होर्ता   हस्ताक्षर  करते हुए 

आम आदमी  (लघु कथा)- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 
"यह धनीराम लातूर जिला के गाँव से आया है सरकार।  बहुत सूखा पड़ा है. आदमी जानवर सब बेहाल हैं.  एक किसान के लिए आपही माई बाप है हुजूर। किसानों के लिए नेताजी ने वायदे किये थे इसलिए  सोचा सरकार राजा बन गए हैं तो उनके द्वारे गोहार लगाई। इसी लिए आये हैं."
द्वार पर खड़े चौकी दार को  धनीराम ने आने का कारण बताकर नेताजी से मिलने की जरूरत बताई।
चौकीदार ने ऊपर से नीचे तक देखा मैले-कुचैले कपड़ों में टायरसोल चप्पल पहने हाथ में एक मटमैला झोला लिए हुए उस अधेड़ आयु के आदमी को देखा और पूछा,
"तुमने नेता जी से समय लिया है, ऐसे तुम उनसे नहीं मिल सकते।"
"अरे साहब! जब चुनाव में आये थे सरकार कह रहे थे कि हमारे दरवाजे सभी के लिए खुले हैं. जब कोई जरूरत हो तो जनता -जनार्दन सभी मिलने आ सकते हैं, सो हम आ गये." धनीराम ने अपनी बात जारी रखते हुए पुनः गिड़गिड़ाकर कहा,
"बहुत दूर से आये हैं महाराज। दिल्ली बहुत दूर थी तो सोचा कि हम ही चलकर आ जायें। दो दिन में यहाँ पहुँच पाये हैं साहेब! हमका नेताजी  से मिलवा देव."
चौकीदार अंदर गया और उसने समाचार दिया कि  कोई किसान नेताजी से मिलना चाहता है.  चौकीदार बाहर आकर बोला,
"तुम नेताजी से नहीं मिल सकते।  किसी की सिफारिश लेकर आये हो?"
"जनता को अपने नेता से मिलने के लिए सिफारिश की जरूरत है हुजूर!", धनीराम ने बहुत आतुरता से चौकीदार से पूछा।
"हाँ भैया,  बिना सिफारिश कुछ नहीं होगा। नेता जी एक दिन में किससे -किससे मिलेंगे।  बिना भोग के तो भगवान भी खुश नहीं होते।" चौकीदार ने नजर फेरकर कहा.
"मालिक से मिलकर हम भी उनके पांवों पर पड़ जाएंगे, जैसे हम मंदिर में भगवान के आगे सभी कुछ अर्पित कर देते हैं."
"उससे क्या होगा, भैया। भगवान कौन बोल सकते हैं या देख सकते हैं कि वह फैसला करें कि तुमने कितना भोग  मंदिर में  चढ़ाया है?", चौकीदार ने उत्तर दिया।
"भैया जिनके पास नहीं होता उनकी भी भगवान सुनते हैं?" देखकर धनीराम आशा से देखने लगा.    
"मालिक पूजा कर रहे हैं।  उसके बाद वह बंगलूर जाएंगे, वहां देश की समस्या पर विचार करेंगे। पूरे देश से कार्यकर्ता इकठ्ठा होंगे।  पार्टी की बहुत भारी मीटिंग है."
"हम भी बहुत दूर से आये हैं हुजूर । हमका निराश न करो.", कहकर धनीराम ने हाथ जोड़ लिये।
"पहले तुम अपने गाँव-ज्वार के नेता से बात करो, प्रधान से बात करो फिर एम एल ए लोग भी जनता के सेवक है.  उनसे कहो सुनो! "
"सूखा देखकर प्रधान गाँव छोड़कर चले गये. गाँव में केवल गरीब लोग बचे हैं. बाकी सब छोड़कर भाग गये. अगर वहाँ हमारी बात सुनी जाती तो हम यहाँ गुहार लगाने क्यों आते!" धनीराम ने चौकीदार को हकीकत  बयान किया.  बहुत अनुनय-विनय करने पर चौकीदार एकबार फिर अंदर गया. अब अंदर से गुस्से में किसी की आवाजें आ रही थी,
"तुमको समझाया था कि किसी से नहीं मिलना है मुझे. जाने कहाँ-कहाँ से आ जाते हैं. एक बार अगर इन लोगों की मदद करेंगे तो दुबारा आएंगे। तिबारा आएंगे और इसी तरह सिलसिला चलता रहेगा। पार्टी के लिए समय कहाँ बचेगा?  अगर कोई खास आदमी होता तो और बात थी. न तो दानदाता न ही कोई कॉर्पोरेटर जो चुनाव जिताने में मदद करता।  सा.. रे.…गा... मा...     आम  आदमी।
चौकीदार आकर जवाब देता  तब वहाँ कोई नहीं था.  उसने  गेट के  बाहर आकर देखा, तो वह किसान कुछ दूर तक जा चुका था.
(वैश्विका २०१४ से साभार)
                  

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