नार्वे के सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' उत्तर प्रदेश प्रवासी रत्न से सम्मानित
4 जनवरी 2017 को ताज होटल, लखनऊ में प्रवासी दिवस पर मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जी से भारतीय प्रवासी रत्न पुरस्कार प्राप्त करते हुए
4 जनवरी को लखनऊ में संपन्न हुए उत्तर प्रदेश भारतीय प्रवासी दिवस के अवसर पर प्रदेश की ओर से मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने नार्वे में भारतीय लेखक और स्पाइल-दर्पण पत्रिका के सम्पादक सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' को भारतीय प्रवासी रत्न से सम्मानित किया.
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' गत 37 वर्षों से नार्वे में रह रहे हैं. नार्वे में रहकर उन्होंने हिंदी, भारतीय संस्कृति के प्रचार-प्रसार , हिंदी स्कूल नार्वे की स्थापना, राजनीती में सक्रिय भाग लेकर भारत और नार्वे के मध्य सांस्कृतिक सेतु का कार्य कर रहे हैं.
ओस्लो में सन 2001 में नार्वीजन राइटर यूनियन ने उनके लेखन के लिए और 2015 में उन्हें कविता में इंट्रीग्रेशन के लिए 'बियरके बीदेल पुरस्कार-2015 दिया जा चुका है.
मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी ने सन 2014 में उनके कविता संग्रह 'गंगा से ग्लोमा तक' को भवानी प्रसाद मिश्र पुरस्कार और पिछले वर्ष 2016 को निर्मल वर्मा भाषा पुरस्कार दिया गया है.
भारतीय संस्कृति, हिंदी भाषा और राजनैतिक भागीदारी के द्वारा अपने देश भारत और नार्वे के मध्य सांस्कृतिक संबंधों को मजबूत बनाने का कार्य कर रहे हैं.
चर्चित कविता संग्रहों 'रजनी', नंगे पांवों का सुख', 'नीड में फंसे पंख', 'गंगा से ग्लोमा तक' और चर्चित कहानी संग्रहों 'अर्धरात्रि का सूरज', 'प्रवासी कहानियाँ' और 'सरहदों के पार' तथा प्रसिद्द नाटक 'अंतर्मन के रास्ते' एवं नार्वे, स्वीडन तथा डेनमार्क की कविताओं और कथाओं का अनुवाद समय-समय पर करने वाले रचनाकार सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' ने हेनरिक मशहूर नाटककार इब्सेन के नाटकों 'गुड़िया का घर', 'मुर्गाबी' और 'समुद्र की औरत' के अलावा क्नुत हामसुन की 'भूख' तथा एच सी अन्दरसन की कथाओं का भी अनुवाद किया है और हिंदी साहित्य को समृद्ध किया है.
शरद आलोक का कहना है कि हिंदी साहित्य में असत्य और अन्याय का विरोध करने के कारण अनेक साहित्यिक गुटबाजी के पुरोधा उनसे नाराज रहते हैं. अनेक साहित्यिक पत्रिकायें उनका पक्ष नहीं छापती हैं पर उनका असत्य और अन्याय के लिए सभी के लिए संघर्ष जारी रहेगा।