अगर प्रजातंत्र बचाना,घर से निकलना तो पड़ेगा।
खबरदार मंत्री, कौन जाने तुम कल सड़क पर,
पुलिस और मिलेट्री से, जनतंत्र चले न गजभर।
आपातकाल का भोगी, तुम क्या जानों क्या बेवाईं,
राजा भी रंक बने हैं, भूचाल सह सकोगे पलभर।
एकता में अनेकता का पाठ पढ़ायें यहाँ पर गांधी।
किसी की न चलेगी जब जनता की चलेगी आँधी।
अहिंसा के बने परवाने, तब जलना तो पड़ेगा।
अगर प्रजातंत्र
बचाना,घर से निकलना तो पड़ेगा।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', 16.12.19
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