'अनफिट प्रधानमन्त्री' कहानी
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
'अनफिट प्रधानमन्त्री' कहानी
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
'लोकतन्त्र और तख्तापलट ' कहानी
सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
यह इक्कीसवीं सदी है। अब ग्राहक मालिक का फर्क मिट गया है। मजदूर और मालिक या ग्राहक और दुकानदार प्रश्न करने लगे हैं। वह कोल्हू के बैल नहीं रह गए हैं।
"सर यह लोकतन्त्र क्यों पटरी से उतर रहा है?" कम्प्यूटर ठीक करते हुए मनोज ने ग्राहक से पूछा।
"तुम भैया मेरा कम्प्यूटर ठीक करो तुम्हें इससे क्या लेना देना।"
"सर, तुम चिंता न करो। क्या बताया था आपने अपना नाम?"
"राम चौधरी"।
"हाँ, तो चौधरी साहेब, मेरा नाम मनोज तिवारी है। हम लोकतंत्र में रहते हैं हम सभी को देश समाज से लेना देना है। तुम्हारा काम अपना समझ कर अच्छी तरह करूँगा। उसमें कमी नहीं आयेगी। ' मनोज ने जवाब दिया।
"तुम ही बताओ कम्प्यूटर मनोज; मेरा मतलब मनोज! लोकतन्त्र पर कहाँ खतरा है ? मुझे तो ज्यादा राजनीति समझ में नहीं आती", राम चौधरी ने कहा।
"चौधरी साहेब! लोकतन्त्र का विकास उल्टी तरफ चल पड़ा है. जानते हो , सूडान में तख्तापलट हुआ तो माली और ट्यूनिशिया की जनता भी अपने को असुरक्षित महसूस करने लगी है।"
"क्यों क्या माली और ट्यूनीसिया पडोसी देश हैं सूडान के, जैसे हमारा पड़ोसी पाकिस्तान है?" राम चौधरी ने पूछा।
"ये सब अफ्रीका महाद्वीप में बसे देश हैं। ट्यूनीसिया अफ्रीका महाद्वीप के उत्तर में बसा है और माली थोड़ा पश्चिम में है। इक्कीसवीं सदी के दो दशकों तक तो यहाँ डेमोक्रेसी/ लोकतन्त्र (डेमोक्रेसी ) बेहतर था। पहले माली, गियाना, चाड में तखता पलट हो चुका है। ट्यूनीसिया में भी तख्तापलट के साधारण प्रयास हुए हैं।"
"अच्छा।", चौधरी को तिवारी की बातें अच्छी लग रही थीं, जिन देशों के उसने नाम कम सुने, वह सब वह कम्प्यूटर कारीगर बता रहा है, जिससे वह अपना कम्प्यूटर ठीक कराने आया है। मनोज ने अपनी बात जारी रखी,
"मालूम है चौधरी साहेब, 1956 से 2001 तक अफ्रीका महाद्वीप में 80 तख्तापलट हुए, जबकि कुल 108 तख्तापलट के प्रयास हुए। पर इक्कीसवी सदी 2001 के बाद बहुत कम हुआ है तख्तापलट। 1901 से 1920 तक लोकतंत्र में आस्था बढ़ी है। लेकिन लगता है कि फिर से दोबारा तख्तापलट की तरफ बढ़ेंगे। कोविड-19 महामारी ने आर्थिक संकट खड़ा कर दिया है।"
"अच्छा तुम्ही बताओ कि लोग असुरक्षित क्यों महसूस कर रहे हैं? क्या डेमोक्रेसी में भी तख्तापलट होता है," कहते हुए चौधरी ने पास पड़ी कुर्सी अपनी ओर खींचकर कुर्सी पर बैठ गया।"
"लोकतन्त्र में तख्तापलट होना तो नहीं चाहिये; क्योंकि यहाँ तो जनता चुनाव में सत्ता बदल देती है और उन प्रतिनिधियों को चुनती है जो जनता की आवाज पार्लियामेंट और विधानसभाओं में उठा सकें।" कहकर मनोज की दृष्टि द्वार के बाहर पड़ी, तभी एक आदमी केतली और कागज़ के गिलास निकला। मनोज ने आवाज दी,
"अरे भाई चाय पिला देना, दो चाय।" मनोज ने अपनी बात आगे जारी रखी. ऐसा लग रहा है कि वह हर पल अपने देश में लोकतन्त्र ज़िंदा रखना चाहता है. इसीलिए वह एक जागरूक चिंतक की तरह काम के साथ जागरूकता की बातें भी कर रहा है। राम चौधरी सब कुछ बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उन्होंने पूछ लिया,
"हमारा देश तो प्रजातंत्र है फिर तो सब अपने आप व्यवस्था दुरुस्त रहनी चाहिये।"
"नहीं चौधरी साहेब! लोकतन्त्र को कायम रखने के लिए हर घंटे हमको जागरूक रहना चाहिए। लगातार बिना प्रयासों और सरकार की निगरानी के लोकतन्त्र सही ढंग से कार्य नहीं करता। कभी-कभी सत्ता यानि शक्ति पाकर निरंकुश होकर अपने निजी लाभ के लिए मनमानी करती है. तब जनता को सरकार को बताना चाहिए, जो गलत हो रहा हो। लोकतांत्रिक तरीके से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चलते अख़बार के जरिये, सभाओं के जरिये, प्रदर्शन के द्वारा सदन के अंदर और सड़क पर आवाज उठानी चाहिए।"
" चौधरी साहेब, जब से महामारी का प्रकोप है; अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी है। आर्थिक संकट बढ़ गया है। युवा पीढ़ी को शासन पर भरोसा नहीं रहा है। नौकरियों को लेकर, सुरक्षा को लेकर, अधिकार और विकास को चिन्ता बड़ी है।"
राम चौधरी सोचने लगा कि आखिर इसे इतना सब कैसे मालुम है? उसने पूछ लिया, " तुम्हें यह सब कैसे मालुम है?"
मैं एक मल्टी नेशनल कम्पनी में काम करता था। वह अनेकों देशों में मुझे वेब पोर्टल बनवाते थे और उसे देखरेख करने का काम देते थे। मैं अफ्रीका महाद्वीप के अनेक देशों में गया हूँ। समाचार संपादन करते-करते दुनिया के बारे में पता लगने लगा। पर अभी सितम्बर 2021 की बात है कि जब मैं दक्षिण अफ्रीका में एक भारतीय मूल के व्यापारी के पास काम कर रहा था जिसके पूर्वज सौ साल पहले भारत से दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहाँ के मूल लोगों ने बेरोजगारी, भुखमरी के चलते भारतीय मूल के लोगों की दुकानों और फैक्टरियाँ लूटने लगे और दुकानों में आग लगाने गये। किसी तरह अपनी जान बचाकर आया हूँ।"
मनोज ने कहा, "लो चौधरी साहेब। आपका कंप्यूटर ठीक हो गया। कोई समस्या हो तो निसंकोच दोबारा आ जाइएगा।"
राम चौधरी अपने बेटे से परेशान थे, जो खुद घर पर पढ़ाई और नौकरी के लिए परीक्षाओं की तैयारी के बावजूद नौकरी न पाने से परेशान रहता था। कभी बेरोजगारी, मँहगी शिक्षा, भर्ती में धाँधली की बात करता था। कुछ दिनों से उसका बेटा धरनों प्रदर्शनों में जाने लगा था। कम्प्यूटर मरम्मत करने वाले मनोज की बातें सुनकर उसकी परेशानी कम हो गयी। उसे लगा युवा खुद अपना रास्ता बना लेंगे। वह सोचने लगा क्या तख्तापलट समाधान होता है। क्या प्रजातन्त्र में तख्तापलट किया जा सकता है।
वह हाथ में चाय का प्याला लिए पड़ोसी से बातचीत कर रहा था कि तभी उसके बेटे की फोन काल आयी। उसके बेटे और उसके सैकड़ों साथियों को शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने पर गिरफ्तार कर लिया गया है।
उसे लगा सरकार और व्यवस्था भी माँ की तरह होती है। जैसे माँ पहले उस बच्चे को दूध पिलाती है जो शोर मचाता है। उसके हाथ से चाय का प्याला छूटा और जमीन पर गिरते ही चकनाचूर गया। वह सोचने लगा महात्मा गाँधी की तरह युवा निहत्थे लड़कर जीत सकेंगे?
उसे याद है। जब राम चौधरी ने अपने बेटे से पूछा था कि उसने व्यवस्था ठीक करने के लिए प्रदर्शन का रास्ता क्यों अपनाया तो उसके बेटे ने कहा था कि यह केवल उसका मामला नहीं है वरन आने वाली अनेकों पीढ़ियों का मामला है। मानवाधिकार, नौकरी और आर्थिक व्यवस्था पटरी पर लाने के लिए प्रयास नहीं करेंगे तो व्यवस्था चरमरा जाएगी।
टी वी पर सदन में बैठक चल रही है. विपक्ष जनता के मुद्दे बेरोजगारी, शिक्षा में अनियमियता, महँगाई, किसानों की खाद के दाम और 700 किसानों के किसान आंदोलन में मरने पर उन्हें मुआवजा देने पर सवाल उठा रही है। पूरी दुनिया में जहाँ रोज लाखों नये कोविड के मरीजों की संख्या बढ़ रही है लोग परेशान है। पर सरकार विपक्ष की निन्दा में लगा है। चौधरी बुदबुदाता है जैसे वह अपने से बात कर रहा है,
"पद पाने के बाद कैसे नेता सरे आम झूठ बोलता है और चाहता है कि उसके झूठ को सच माना जाए और हमेशा के लिए उसे सत्ता के लिए न हटाये।"
चौधरी कम्प्यूटर में कभी वॉट्सऐप के भड़काऊ वीडियो देखता तो कभी सरकार की विफलता पर प्रश्न उठाता डेढ़ मिनट का वीडियो वायरल हो रहा है, वह देखता है ' यू पी में काबा'। जिसको जहाँ मौका मिल रहा है अपनी बात कह रहा है। उसने आखिरी समाचार पढ़ा था कि 'भारत में एक लाख से अधिक लोगों को एक दिन में कोविड महामारी, कोरोना संक्रमण हुआ और एक हजार साथ लोग मरे। पर संसद की बहस में विपक्ष के पूछे जाने पर भी सही जवाब नहीं दिया। सरकार के किसी मंत्री ने कोविड से मरने वाले मरीजों, किसान आंदोलन में सात सौ किसानों की मौत का मुआवजा और आंदोलन में हजारों को गिरफ्तार किया उन्हें छोड़ने की बात नहीं की। यह संसद है?
उसने द्वार पर देखा। वहां कोई नहीं है। उसका बेटा गिरफ्तार हो गया था। एक चिन्ता और बढ़ गयी है। कल दिन में जमानत के लिए गोहार लगाएगा। उसे पता नहीं चला कि कब सोया और जब अखबार वाले ने द्वार पर अखबार फेका और उसकी नींद खुली। उसने देखा कि अखबार के पहले पेज से संसद की बहस गायब है पहला पेज तीन चौथाई विज्ञापन से भरा है और केवल मंत्री का झूठा बयान छपा है जो उसने विपक्ष को गरिआया था। अब वह डेमोक्रेसी समझने लगा है। हाथ पर हाथ रखकर कुछ होने वाला नहीं है? तभी टेलीफोन की घंटी बजती है कि जिलाधीश के घर के बाहर प्रदर्शन है, अनेक राजनैतिक पार्टियाँ भी युवाओं समर्थन दे रही हैं। राम चौधरी ने बेटी और पत्नी को बुलाकर कहा कि तुम लोग घर संभालो हम देश में लोकतंत्र को बचाते हैं। लगता है कि उसका इशारा खुद युवाओं के संघर्ष में शामिल होने के लिए था।
उसने खिड़की से परदा हटाया। सूरज चमक रहा था। अँधियारा गायब हो गया था। आकाश में पक्षियों का झुण्ड चहचहाते स्वच्छन्द उड़ रहा था। वह तैयार होने लगा था।
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मेरी नार्वे डायरी, 6 फरवरी 2022
आज अशोक कौशिक जो वैज्ञानिक रहे हैं उनसे बातचीत के बाद पुनः अपनी डायरी लिखना शुरू कर रहा हूँ, जो धीरे-धीरे परवान चढ़ेगी.
भारत से
आज लता जी का देहान्त हुआ; पूरी दुनिया में शोक की लहर दौड़ गयी. उनका अंतिम संस्कार हो गया. भारत सरकार ने दो दिन के शोक की घोषणा की है.
नार्वे से लता मंगेशकर जी के सम्मान में एक साहित्यिक सभा आयोजित होगी जिसकी सूचना शीघ्र ही दी जायेगी।
नार्वे से
येन्स स्तूलतेनबर्ग बने नार्वे के बैंक के चीफ. उनका सिक्का चलता है: उनकी नियुक्ति प्रधानमंत्री के दखल के बिना हुई. येन्स स्तूलतेनबर्ग लेबर पार्टी के नेता रहे हैं और नार्वे के पूर्व प्रधानमंत्री और वर्तमान में अक्टूबर 2022 तक नाटो ( यूरोप के कुछ देशों का सुरक्षा समूह) के मुखिया हैं. नार्वे के रिजर्व बैंक के मुखिया का कार्यभार अक्टूबर 2022 से संभालेंगे।
मेरे घर में अखबार
नार्वे में जिनके घर घर अखबार बंधे हैं, वह बहुत सस्ते होते हैं 1 /3 दाम में मिल जाते हैं पर दुकान या स्टोर से महंगे मिलते हैं. आज मैंने एक और अखबार ख़रीदा दागब्लादे (Dagbladet) इस टैब्लॉइड अखबार का दाम है 49 क्रोनर।
जो अखबार मेरे घर पर रोज सुबह साढ़े तीन बजे आता है उसका नाम है क्लासेकाम्पेन ( Klassekampen). एक अखबार केवल सप्ताह में दो बार आता है; बुधवार और शुक्रवार को, जिसका नाम है आकेर्स आवीस ग्रूरूददालेन ( Akersavis Groruddalen). मासिक अखबार आता है जो फ़्रांस के मशहूर अखबार का नार्वेजीय भाषा में मासिक संसलकरण है जो ओस्लो नार्वे में छापता है.
नार्वे में कोई अखबार अंगरेजी में नहीं छपता है.
नार्वे में पत्रकार की शिक्षा प्राप्त करने वाला पहला भारतीय
मुझे नार्वे में पत्रकार की शिक्षा प्राप्त करने वाले पहले भारतीय के रूप में अवसर मिला। मैंने नार्वे में पत्रकारिता की शिक्षा पायी और नार्वे में नार्वेजीय जर्नलिस्ट यूनियन और इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ जर्नलिस्ट का सन् 1982 से सदस्य हूँ.
मुझे अखबार को लेकर अनेक अनुभव हैं जैसे: मैंने नार्वे में घर-घर अखबार बांटने, पैकिंग करने और पत्रकार का काम किया है.
भारत में देशबंधु दिल्ली, राष्ट्रीय समाचार पत्र में यूरोप संपादक हूँ और अनेक शोध पत्रिकाओं में सलाहकार और संपादकमंडल का सदस्य का भी दायित्व निभा रहा हूँ.
अमेरिका की सौरभ सौरभ से भी जुड़ा हूँ.
आज अनेक देश विदेश की घटनाओं पर ध्यान गया. ओस्लो नार्वे में मौसम साफ़ था. सूरज निकला था. तापमान - 2 रहा. रात में तापमान - 4 हो जाता है.
आज दैनिक कार्यों में ट्रेनिंग सेंटर में ट्रेनिंग की. अपने छोटे बेटे अर्जुन के डॉगी जिसका नाम डॉ. विस्की है उसे तीन बार भाहर घुमाने ले गया. अभी भी सड़क पर कहीं -कहीं बर्फ हिम बनकर फिसलन ले आयी है. नन्हें- नन्हें कंकड़ों की रोड़ी डेल जाने के बावजूद फिसलन है.
- सुरेशचन्द्र शुक्ल, 6 फरवरी, 2022