आखिरी कदम से पहले
- सुरेश चंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
सैलानियों और यहाँ के निवासियों का दिन रात आबाद रहने वाला ओस्लो में कार्ल युहान गाता (मार्ग)।
कार्ल युहान गाता (मार्ग) एक ओर सेन्ट्रल रेलवे स्टेशन जो दोम शिर्के (स्टेट चर्च), पार्लियामेंट, नेशनल थिएटर होता हुआ दूसरी ओर राज महल तक जाता है।
कार्ल युहान गाता (मार्ग) के मध्य में एक ओर पार्लियामेंट स्थित है और दूसरी ओर पास में स्थित प्रसिद्ध ग्रांड होटल है। पार्लियामेंट के सामने आइद्स्वोल प्लेस पर आये दिन यहाँ देश-विदेश की समस्याओं के लिए लोग प्रदर्शन करने आते हैं। नार्वे के किसानों, गाजा में नरसंहार के खिलाफ, अध्यापकों और पत्रकारों की सभाएं हो चुकी थीं। कहा भी गया है कि लोकतंत्र और अपने अधिकारों की रक्षा के लिए हमको हर घंटे जागते रहना चाहिए और प्रयास करते रहना चाहिए। बिना प्रयास के और संघर्ष के कुछ नहीं मिलता। यह भी प्रचलित है कि माँ छोटे बच्चे के रोने और चिल्लाने पर उसे दूध पिलाती है या भोजन कराती है।
आज पार्लियामेंट के सामने आइद्स्वोल प्लेस पर लोग एकत्र हो रहे हैं। थोड़ी देर में देखते ही देखते भीड़ एक सभा में बदल गयी है। गाजा में नरसंहार, उक्रेन में युद्ध, कई देशों में सूखा पड़ने से भुखमरी आदि अनेक त्रासदियां मानवता के आगे सुरसा राक्षसी जैसे मुँह खोले कड़ी हैं।
पता चला कि इस भीड़ में सबसे ज्यादा रंग बिरंगे वस्त्रों में दूर से ही दिख जाने वाले भारतीय मूल के लोग एकत्र हुए हुए हैं। भारत में पहलगाँव, जम्मू एवं कश्मीर में आतंकी हमले के बाद विदेशों में प्रवासियों में रोष है। नार्वे के पार्लियामेंट के सामने बहुत लोग एकत्र हो गए हैं। कुछ बैनर हवा में लहरा रहे थे। दुनिया से आतंक बंद हो, आतंकवाद मुर्दाबाद, दोषियों को सजा मिले। निर्दोष लोगों को न्याय मिले। रोहन इस सभा का नेतृत्व कर रहा था।
इस सभा में रोमानिया से आये रोमा महिलायें हाथ में ग्लास लिए और पत्रिकाएं पकड़े भीख के लिए ग्लास सामने करके याचना करती नजर आ रही हैं। रोमा लोग हजार साल पहले भारत से घूमते-घूमते आये थे। आज ये यूरोप के नागरिक हैं। गरीबी के कारण ये रोमा तीन महीने के लिए विकसित देशों में भीख मांगते, अपनी स्वनिर्मित हस्तकला बेचते हैं। अभी भी रोमा लोग भारतीय परिधान और संस्कृति अपनाये हुए हैं।
क्या यह लोकतंत्र का सबसे अच्छा उदाहरण नहीं कि जहाँ मांगने वाला भी बिना रोक टोक के पार्लियामेंट के सामने सभाओं में आ जा सके और भीख मांग सके। कुछ दिनों पहले की बात है कि जब पार्लियामेंट के सामने एकत्र सभा को पार्लियामेंट के अध्यक्ष सम्बोधित कर रहे थे, तब एक रोमा महिला बिना रोक टोक उनके आगे ग्लास आगे बढ़ाकर भीख माँग रही थी। ये रोमा भी क्या करें इन्होंने अपनी भारतीय संस्कृति अपनाये रखी, समय और देशकाल के साथ नहीं बदले, शिक्षा नहीं प्राप्त की तब दूसरे देशों में घूम -घूम कर किसी तरह गुजारा करते हैं।
रोहन ओस्लो में टैक्सी चलाता है। भारतीयों की इस सभा में रोहन ने सम्बोधित किया,
"यह समय आपस में लड़ने का नहीं है। धोखे से कोई भी आज दूसरों के लिए महाभारत में वर्णित लाक्षागृह बनाएगा तो वह ही उसमें जल जायेगा। आज की तकनीकि से सभी कुछ पता चल जाता है कि आग किसने लगाईं है। भारत शांतिप्रिय देश है। भारत ने हमेशा दुनिया को शान्ति का सन्देश दिया है। विश्व बंधुत्व का सन्देश हमारी रग-रग में भरा हुआ है। वासुदेव कुटुंभ्कम, यानी पूरी दुनिया हमारा परिवार है। पड़ोसी भूखा, बीमार या किसी कष्ट में है तो दूसरा पड़ोसी चैन से नहीं रह सकता। हम पड़ोसी नहीं बदल सकते। हाँ हम अच्छा व्यवहार और सद्भावपूर्ण व्यवहार रख सकते हैं। यहाँ देखो जहाँ नार्वे, स्वीडेन, फिनलैंड और डेनमार्क आपस में कितने जुड़े हैं। इन देशों के नागरिक एक दूसरे के देश में बिना किसी रोकटोक के आ-जा सकते हैं। नौकरी और व्यापार कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं कर सकते हैं। पर आतंकियों को सजा मिलनी चाहिए। दुनिया से आतंक बंद हो, आतंकवाद मुर्दाबाद, दोषियों को सजा मिले। निर्दोष लोगों को न्याय मिले।"
बीच में लोग नारे भी लगाते जा रहे थे जो कानों में अभी भी गूँज रहे थे।
रोहन वही प्रवासी भारतीय है जिसने भारत में किसान आंदोलन के समर्थन में ओस्लो, नार्वे में तीन सौ टैक्सियों को धीमी गति से चलाकर जाम लगाया था, पर पूरा प्रदर्शन शांतिपूर्ण था।
प्रदर्शन सभा समाप्त होने के बाद, रोहन पार्लियामेन्ट के सामने से होता हुआ पार्किंग पर अपनी टैक्सी लेने आया तभी उसकी मुलाकात एक पाकिस्तान मूल के टैक्सी चालक सलीम से हुई। उसने भी आतंकी हमले की कड़ी निंदा की और ईश्वर से मारे गए लोगों की आत्मा की शांति के लिए दुआ की।
"यार हम भी कब तक आपस में लड़ते रहेंगे", सलीम ने कहा।
"हाँ, सलीम! देखो यहां हम सभी आपस में मिलजुल कर कितने प्यार से रहते हैं।" कहकर रोहन ने एक गहरी साँस ली।
सलीम ने अपनी टैक्सी से बाहर निकलते हुए जवाब में कहा,
"मैं जानता और मानता हूँ कि हमारे मुल्क पाकिस्तान में गरीबी है और शासन सेना के हाथ में है। सेना ही सरकार चलाती और बनाती है। भ्रष्टा चार भ्र्ष्टाचार /करप्शन के चलते सेना खुद सम्पति और पैसा बाँट लेती है और अधिकतर जनता गरीब की गरीब रहती है। चार पैसे के लिए, कभी धर्म के नाम पर भड़काकर दंगे फसाद कराना मुश्किल नहीं है। लोग बहकावे में आ जाते हैं।"
रोहन ने कहा,
"बंधु! हमारी संस्कृति एक है, भाषा एक है, कल्चर एक है, फिर भी लड़ते रहते हैं। यहाँ सभी साथ मिलकर रहते हैं, यहाँ से सीखना चाहिए। नफरत और हेट (घृणा) स्पीच के लिए इस मुल्क में कोई जगह नहीं है।"
सलीम के मन में विचारों का गुबार फूट पड़ा। वह एक दार्शनिक सा कहने लगा,
"हम दोनों एक कौम हैं। गरीबी के कारण और मुगलों को अपनी संख्या बढ़ानी थी उन्होंने गरीब लोगों को लालच देकर मुस्लिम बनवा दिया। लोग अपनी मर्जी से भी धर्म परिवर्तन करते हैं, अभी भारत में भी सभी आजाद हैं। मैंने सुना है बहुत से लोग भारत में अभी शांति और भेदभाव से बचने के लिए भी धर्म परिवर्तित कर रहे हैं, बड़ी संख्या में लोग बौद्ध धर्म अपना रहे हैं।
हमारे मुल्कों में डेमोक्रेसी चाहिये। सेना जनता पर शासन नहीं कर सकती। वह पड़ोसी देशों में और अपने देशों में भी आतंकवादी हरकतें करती है। जो पहलगाँव में हुआ बहुत बुरा हुआ। जो गाजा में हो रहा है, वह भी बहुत बुरा हुआ। भगवान से मनाओ कि हमारे देशों में डेमोक्रेसी हो जाये। भारत हमारा बड़ा भाई है। हमारी संस्कृति एक है। भारत की पूरी दुनिया में सुनी जाती है।"
"भारत में भी बहुत कुछ अच्छा नहीं चल रहा। प्रमुख मीडिया भी नफरत फ़ैलाने और फेक न्यूज के प्रचार-प्रसार में कम नहीं है। विपक्षी दलों के नेताओं से अछूत की तरह व्यवहार किया जाता है, जो डेमोक्रेसी में ठीक नहीं है। लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि है। जनता किसी को सत्ता में बिठाती है तो उसे सत्ता से हटा भी देती है, वह भी खून खराबे के बिना," रोहन ने कहा।
सलीम ने कहा,
"मेरे प्यारे मित्र रोहन! भारत दूसरे मुल्कों से भी सहायता लेकर पाकिस्तान में डेमोक्रेसी के लिए पहल करे, मदद करे तो वहाँ डेमोक्रेसी हो सकती है। सेना की ज़्यादतियाँ खत्म हो जायेंगी। आतंकवाद भी ख़त्म हो जायेगा।
जब सच्ची डेमोक्रेसी होगी, हम अपनी सरकार का चुनाव कर सकेंगे।"
रोहन ने एक राजनैतिक दलील दी,
"हाँ, देखो नार्वे में कितनी डेमोक्रेसी है। यहाँ सत्ता पक्ष और विपक्ष कोई हो मानवता और देश को सर्वोपरि समझते हैं। यहाँ विपक्ष के नेता को यूरोप समुदाय संगठन में और नाटो का चीफ बनाने के लिए यहाँ की सरकार भेजती हैं। एक हम हैं कि विपक्ष और विरोधियों के खिलाफ गंदे हमले करते हैं, नफरत फैलाते है। संसद में ही नेता सभापति तक अपने कर्तव्य का सही व्यवहार नहीं करते?"
सलीम ने कहा,
"भारत में डेमोक्रेसी है, स्वतंत्रता है। तुम्हारे ख्यालात बहुत अच्छे हैं। तुम चुनाव क्यों नहीं लड़ते? बेशक पाकिस्तान में नार्वे जैसी तो डेमोक्रेसी तो नहीं हो सकती, पर डेमोक्रेसी में कोई भूखा नहीं मरेगा सभी को आंटा तो मिलेगा। लोग रोटी तो बनाकर खा सकेंगे। भारत हमारी मदद करे कि हमारे मुल्क में भी सही डेमोक्रेसी हो। "
रोहन ने आगे कहा "आओ काफी पीते हैं सामने वाले रेस्टोरेंट में"
दोनों रेस्टोरेंट में चले जाते हैं और सामने एक बड़ा शीशा लगा है।
दोनों शीशे के सामने आते हैं तभी रोहन अपने मित्र सलीम से कहता है,
"देखो सलीम! आओ शीशे में देखो। हमारी और तुम्हारी शक्ल में क्या अंतर है? हमारी शक्लें एक जैसी मिलती दिखाई देती हैं। कोई अन्तर दिखता है।"
"हाँ, बंधु! बिलकुल सही", रोहन ने कहा।
दोनों मित्र एक दूसरे के गले लगते हैं और एक खाली मेज के दोनों ओर पड़ी कुर्सियों पर बैठ जाते हैं। जब दो मित्रों की चाय काफी पर चर्चा शुरू होती है, तो कितनी देर चर्चा चलेगी पूर्व अनुमान लगाना कठिन है। सौहाद्रपूर्ण वातावरण है। रेस्टोरेंट में संगीत की मधुर धुन बज रही है।
सलीम ने कहा,
"पहले तो भारत एक मुल्क था। दोनों धर्मों के कट्टरपंथियों को क्या सूझा कि देश का बटवारा हो गया। महात्मा गांधी जी की नहीं सुनी। गाँधी जी ने कहा था कि बटवारा उनकी लाश पर होगा। सभी पर गाँधी जी का प्रभाव था, पर उनकी बात नहीं माने। मानो अंग्रेज पहले से सोच कर रखे थे कि इन्हें एक नहीं रहने देना है।"
रोहन ने बात को आगे बढ़ाते हुए कहा,
"अंग्रेजों के बारे में यह कहावत प्रसिद्ध है, डिवाइड एन्ड रूल/ बाँटो और राज्य करो। अब लोग समझने लगे हैं। नयी पीढ़ी नया सोचती है। वह दुनिया के साथ चलना चाहती है। वह शिक्षा चाहती है। वह नौकरी चाहती है। शान्ति चाहती है। अच्छे शहरी की तरह जीना चाहती है।"
सलीम ने गहरी सांस ली और अतीत की बातें करने लगा,
"जानते हो रोहन! मेरे दादा लखनऊ के हैं। वह लखनऊ में ठाठ से अपना ताँगा चलाते थे। तांगे की सवारी भी किसी नवाबी सवारी से कम नहीं थी। वह लखनऊ में ठाठ से ताँगा चलाते थे। वह अपने तांगे की तारीफ़ करते थकते नहीं थे। तांगे में कढ़ी हुई झालर, बटवारे के समय अच्छी नौकरी का लालच दिया गया। उन्हें सब्जबाग दिखाया गया था। कट्टरवादी धार्मिक नेताओं के बहकावे में आ गये। मेरे दादा जी को हमेशा दोयम नागरिक की तरह देखा गया। वह लखनऊ की बहुत याद करते हैं।"
दादा जी की स्मृतियों को साझा करते हुए सलीम ने अपनी बात जारी रखी।
"मेरा दादा लखनऊ के दशहरी आम की कलम के पौधे बेसुमार यहाँ मंगवाकर बहुत से आम के बाग़ आबाद किये।
जब वह बटवारे के समय आये थे तब वह लखनऊ से पानदान और न जाने क्या-क्या लाये थे।"
"अब पछताये होत क्या, जब चिड़िया चुग गयी खेत", कहकर रोहन ने सलीम को सांत्वना दी।
"काश दादा जी ने बटवारे के समय एक बार और सोचा होता, अपने आखिरी कदम से पहले विचार किया होता तो आज उनसे उनका मुल्क भारत और शहर लखनऊ नहीं छूटता, ", कहकर सलीम उदास हो गया था।
अक्सर हम आवेश में कोई ऐसा कदम उठा लेते हैं तो पछताना पड़ता है। आखिरी कदम से पहले एक बार पुनर्विचार करें तो शायद अनेक आने वाली विपदाओं को रोका जा सकता है।
दोनों ने एक दूसरे को धन्यवाद दिया। दोनों मित्रों को टैक्सी चलानी है। चाय पीकर दोनों अलग हुए। अपनी-अपनी टैक्सी लेकर निकल पड़े सवारी की तलाश में।
संवाद बहुत जरूरी है। यही मात्र साधन है जुड़ने और जोड़ने का।
"हा दे ब्रा (नमस्ते)।"
"खुदा हाफिज।"
"हार दे ब्रा (अलविदा)"
"नमस्ते, फिर मिलेंगे।"