नार्वे के प्रसिद्द दर्शनशास्त्री स्वर्गीय Arne Næss आर्ने नेस का जन्म 27 जनवरी 1912 को हुआ था. 12 जनवरी 2009 को उनकी मृत्यु हुई थी.
वह हमेशा चर्चा में रहते थे. वह महात्मा गांधी जी से प्रभावित थे. २७ वर्ष की आयु में वह प्रोफ़ेसर के पद पर नियुक्त हुए थे.
हरफनमौला आर्ने नेस से मेरी अनेकों मुलाकातें हुई थीं. पहली बार उनसे मिलना ओस्लो विश्वविद्यालय में हुआ था. उसके बाद उनसे अनेकों बार मिलना हुआ. उन्होंने तीन बार शादी की. अनेकों पुस्तकें लिखीं. वह एक अच्छे पर्वतारोही थे. उन्होंने मुक्केबाजी भी की. वह नार्वे की पर्यावरण पार्टी Grønne में भी सम्मिलित हुए. भारतीय राजदूत के घर पर कार्यक्रमों में भी उनसे मिलना हुआ था. उन पर लिखी एक कविता :
यायावर आर्ने नेस के लिए
मंजिल की तलाश में
खोजते हुए किसी मार्ग में
कोई दूसरा मिल जाये,
कुछ दूर चलने के लिए कहे,
क्या तुम चलोगे?
रुकने के लिए कोई नहीं कहता
पर रुकना पड़ता है,
मरने के लिए कोई नहीं कहता
पर जीने के लिए वह भी करना पड़ता है.
क्या कभी जब प्रश्नों का उत्तर
एक प्रश्न बन जाए
तुम निरुत्तर होते हुए
उसे बूझ रहे होते हो,
उसी क्षण प्रश्न बदल जाता है
घड़ी की सुई की तरह
कलंडर का एक पृष्ट पलट जाता है
एक वर्ष बाद कलंडर
बचपन - जवानी में बदलते हुए
पेड़ के सूखे पत्ते सा सब कुछ बिखर जाता है
तब उत्पन्न होता है उसका इतिहास
बिखरे हुए पत्तों में
चिड़िया के चुने हुए दानों में
दूर सुदूर एक बीज गिरता है
जन्म लेती है एक इकाई.
तुम इंसान हो,
तुम समाज रचते हो.
पर नष्ट नहीं कर सकते हो,
वह निरंतर बढ़ता रहता है,
विकसित होता हुआ
कभी अणु सा छोटा और कभी
शक्तिशाली विस्फोटक बनकर
तुम्हें दिखा जाता है
बीज की शक्ति
हम अंकुर बने फूटते रहते हैं
यहाँ वहां.
- ओस्लो, २७ जनवरी २०१२