चित्र में बाएं से सुरेशचंद्र शुक्ल, एक प्रतिनिधि, डॉ. रत्नाकर पाण्डेय और एक अन्य प्रतिनिधि लोकार्पण करते हुए
"नार्वे में लिखे जा रहे मेरे हिंदी साहित्य को विश्व की अधिकाँश हिंदी पत्रिकाओं में स्थान मिलने के बावजूद प्रवासी हिंदी साहित्य में उचित स्थान नहीं मिला. स्पाइल -दर्पण पर लखनऊ विश्वविद्यालय में प्रो. योगेन्द्र प्रताप सिंह के निर्देशन में शोध संपन्न हो चुका है और मेरी पत्रकारिता पर डाक्टरेट के लिए भारतीय विश्वविद्यालय में शोध हो रहा है. यह विदेशों में हिंदी लेखन के लिए महत्वपूर्ण जानकारी जुटाएगी. भाई-भतीजेवाद से ऊपर उठकर हिन्दी के आलोचकों को सोचना पड़ेगा. हिन्दी के लेखक खासकर बहुत से दिल्ली निवासी हिंदी लेखक स्वस्थ पत्रिकारिता और स्वस्थ आलोचना से डरते क्यों हैं? इतिहास में वही बचेगा जो तर्कसंगत, प्रायोगिक और सच होगा. " यह विचार मैंने व्यक्त किये 'प्रवासी साहित्य महोत्सव, हंसराज स्नातकोत्तर कालेज दिल्ली में.
ओस्लो, नार्वे से गत 24 वर्षों से प्रकाशित स्पाइल-दर्पण पत्रिका यूरोप की नियमित स्तरीय सांस्कृतिक और पुरानी पत्रिका है. प्रवासी साहित्य महोत्सव 2012 में हिन्दी भाषा को लेकर बहुत ही सार्थक प्रयास किया गया, परन्तु इसमें बेहतरी की बहुत गुंजाइश है. पहले दिन उदघाटन सत्र के अंत में नार्वे से गत २४ वर्षों से प्रकाशित हिंदी पत्रिका स्पाइल-दर्पण का लोकार्पण विख्यात विद्वान डॉ. रत्नाकर पाण्डेय जी ने किया. इस कार्यक्रम के आयोजक अनिल जोशी, सरोज शर्मा और डॉ. रमा जी थीं. इस कार्यक्रम में प्रसिद्द लेखकों में डॉ. अशोक चक्रधर, राजी सेठ, डॉ. श्याम मनोहर पाण्डेय, उषा राजे सक्सेना, शैल अग्रवाल, दिव्या माथुर, उमेश अग्निहोत्री डॉ. कमलकिशोर गोयनका, सरोजनी प्रीतम, दयाशंकर सिन्हा, सीतेश आलोक, हरीश नवल, नरेश शांडिल्य, shashikant और अन्य थे. बाएं से अशोक चक्रधर, आयोजक अनिल जोशी और स्वयं लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल 'शरद आलोक'
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