बुधवार, 20 जून 2012

राजेश खन्ना के बहाने हिन्दी सिनेमा की लोकप्रियता। - सुरेशचंद्र शुक्ल

राजेश खन्ना बीमार हैं उन्हें दुआ चाहिए 



राजेश खन्ना बीमार हैं। उनकी देखरेख उनकी पत्नी डिम्पल मुंबई में उनके निवास 'आशीर्वाद' में कर रही है। हिन्दी फिल्म  के  प्रथम महानायक के स्वस्थ होने की हम दुआ करते हैं।  राजेश खन्ना जी से एक बार हाथ मिलाकर अभिवादन करने का मौका मिला था दिल्ली में जब वह चुनाव लड़ रहे थे और वह अपनी पत्नी कलाकार डिम्पल के साथ चुनाव प्रचार लाजपत नगर, दिल्ली में कर रहे थे। उन्हें देखने के लिए भीड़   लग जाती थी।  राजेश खन्ना के बहाने मैं  अपनी फिल्मों के प्रति रुझान पर भी प्रकाश डाल रहा हूँ।
मेरी एनी फिल्मों में महानायक अमिताभ बच्चन से दिली में हुई थी उस समय उनके साथ थे प्रधानमंत्री राजीव गांधी।  कांग्रेस नेता और तत्कालीन कांग्रेस महामंत्री भगवत झा आजाद के पुत्र की शादी थी।  उसी में पहली बार हाथ मिलकर अभिवादन किया था।  जोरदार रक्षा कवच के बावजूद दोनों महानुभावों से हाथ मिलाने में सफल रहा था ऐसा राजेंद्र अवस्थी जी का कहना था जिनके साथ मैं गया था।  बाद में अमिताभ जी से मुलाकात लन्दन में हुई थी जब महाकवि  हरिवंश राय बच्चन को समर्पित एक कविसम्मलेन डॉ लक्ष्मीमल सिंघवी जी ने करवाया था वहां वह मंच पर वह लगभग दो घंटे बैठे थे।  उसक कवि  सम्मलेन में कवितापाठ करने वाला मैं भी एक कवि  था जिसका प्रसारण टीवी पर भी हुआ था।  दिलीप कुमार को लखनऊ में एक क्रिकेट टूर्नामेंट में देखा था और पास से मिलने का अवसर मिला मैनचेस्टर, यू.के. में एक कविसम्मेलन में उस समय मेरे साथ डॉ गंगा प्रसाद विमल जी भी थे।  बाद में तो अनेक कलाकारों, गीतकारों और फिल्मकारों से मिला और स्वयं भी पांच टेली लघुफिल्मों का लेखक और फिल्मकार हूँ।
 जीवन का हिस्सा हिन्दी सिनेमा 
भारतीयों के जीवन का हिस्सा है सिनेमा। वृत, त्यौहार से लेकर चाहे जन्मदिन हो, कोई उत्सव हो या शादी सभी अवसरों पर फिल्मों ने प्रभाव और उपस्थिति दर्ज करा रखी थी।  बिना फिल्म के हमारा मनोरंजन पूरा नहीं होता। वह भी हिंदी सिनेमा/बालीवुड  के बिना।  रेडियो में विभिन्न कार्यक्रम हिन्दी सिनेमा के गीतों पर आधारित होते थे।  राजेश खन्ना को रेडियो पर गीतमाला कार्यक्रम में सुना था जहाँ तक मुझे स्मरण है वह वह होली का अवसर था।
बचपन में ही मेरी चलचित्र देखने की शुरुआत हो गयी.
मैंने जब फिल्म देखना आरम्भ किया मैं कक्षा तीन में पढ़ता था।  आरंभिक फिल्मे मोहल्ले के पार्क में देखीं। परिवार नियोजन और देशभक्ति पर आधारित फ़िल्में सार्वजनिक स्थलों पर दिखाई जाती थीं इनमें:  एक के बाद एक, आशीर्वाद, ऊंचे लोग, नास्तिक, परिवार और प्रथम फिल्म सिनेमाहाल में सपरिवार देखी थी, 'बेटी बेटे' और  बाद में  माता-पिता और भाई बहन के साथ 'गंगा जमुना, आदमी, और संघर्ष।
पुरानी श्रमिक बस्ती में ब्लाक नंबर चार में  6 नंबर माकन में रहते थे एक सक्सेना जी.   सक्सेना जी  सेना में कार्य करते थे वह सेना से फ़िल्में ले आते थे और अपनी छत पर  उसे हम सभी को दिखाते थे। 
अपने मित्र मनोज के साथ फिल्म देखी 'एन इवनिंग इन पेरिस', दुनिया की सैर' और 'जीवन-मृत्यु'. मदर इण्डिया और 'आराधना' अकेली देखी।  आराधना फिल्म देखने के बाद मेरे पैर सिनेमाहाल की तरफ आसानी से मुड़ जाते थे. राजेश खन्ना ने उस समय मेरे मित्रों पर बहुत प्रभाव डाला था।  मेरा एक सहपाठी तो राजेश खन्ना की तरह बाल काढ़ता. उस समय राजेश खन्ना का प्रभाव्  बहुतों पर पड़ा था। डागकट कालर वाली कमीज, जीन की जैकेट, बेलबाटम आदि का बहुत चलन था और दर्जियों की बन आयी थी क्योंकि वह फैशन के हिसाब से पैसे लेते थे। जितने का कपड़ा होता उसी के आस-पास ही सिलाई होती थी।
लखनऊ के जिन सिनेमाहाल में फिल्म अक्सर देखने जाता था वह मुनासिब दाम पर टिकट बेचते थे, ये सिनेमाहाल थे नाज, मेहरा, ओडियन और अशोक।  आगे चलकर लिबर्टी और नाज में पास मिलने शुरू हो गए थे। जिससे कभी टिकट निशुल्क मिलता तो कभी कम दामों पर. यह सुविधा  छात्र नेता होने के कारण थी।
आगामी पचास वर्ष तक छाया रहेगा हिंदी सिनेमा।
आने वाले पचास वर्षों में हिंदी फिल्मों की लोकप्रियता नहीं घटेगी।  वर्तमान समय में जब सामजिक मीडिया जैसे फसबुक, ब्लॉग, ट्विटर आदि बेशक अपना अस्तित्व बढ़ा  रहे हैं परन्तु अभी भी भारतीय लोगों और अविकसित देशों सहित विकाशशील देशों में भी हिन्दी सिनेमा का वर्चस्व बरकरार है। अब आवश्यक है कि हिन्दी सिनेमा कुछ सामजिक विषयों पर शोधपरक, यात्रा संबंधी और ज्ञान संबंधी फ़िल्में भी बनायी जाएँ और  उनका प्रदर्शन भी आम आदमी के लिए आसानी से सुलभ हो।
लखनऊ में  फिल्म और टेलीविजन संस्थान की स्थापना हुई थी शिवाजी गणेशन के नेतृत्व में मुझे दाखिले की पूरी उम्मीद भी थी पर मेरे पास फीस में देने के लिए पैसे नहीं थे।  टेलीफिल्म में अभिनय का अवसर सन 1985 में  शिवशंकर अवस्थी जी की फिल्म जो राजेंद्र अवस्थी जी की कहानी पर आधारित थी में मिला जो दिल्ली दूरदर्शन की भेंट थी ।  टेली  फिल्म निर्देशन और निर्माण का अवसर मिला सन 1994 में  जिसमें मेरा भरपूर सहयोग दिया डॉ रेखा व्यास ने जो स्वयं मेरी फिल्म तलाश में नायिका थीं तथा उनहोंने  मानद निर्देशन भी किया था.  फिल्माचारी आनंद शर्मा जी के सहयोग से  यूट्यूब के लिए कुछ लघु फ़िल्में बनाईं।
 

रविवार, 17 जून 2012

Oslo, Norway नोबेल जनसभा में महात्मा गाँधी जी को याद किया गया

ओस्लो में विशाल नोबेल जनसभा में विश्व शांतिदूत अहिंसा महात्मा गाँधी जी को याद किया गया - सुरेशचंद्र शुक्ल 

मीयान्मार (बर्मा ) में 21 वर्षों तक नजरबन्द रहने के कारण प्रजातंत्र के लिए लड़ रही नेता आउन  सन सू ची 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार लेने नहीं आ सकी थीं. न ही आउन  सन सू ची अपना नोबेल व्याख्यान दे सकीं थीं। उन्होंने ओस्लो के सिटीहाल (रोदहूस) में अपरान्ह (दोपहर) अपना नोबेल व्याख्यान दिया।  और शाम को नोबेल शांति केंद्र के बाहर साढ़े चार बजे होने वाली विशाल जनसभा में  अपना धन्यवाद भाषण दिया।  
नोबेल शांति समिति के अध्यक्ष और यूरोपीय परिषद् के महामंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री थूरब्योर्न जागलांद ने कहा कि महात्मा गांधी के अहिंसा  के सिद्धांतों पर चलते हुए आउन  सन सू ची  ने बर्मा में प्रजातन्त्र के लिए संघर्ष किया और कर रही हैं जिसके कारन उन्हें नोबेल पुरस्कार 1991 में दिया गया। जागलांद  ने आगे कहा कि महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेलसन  मंडेला की तरह सू ची भी अपने देश में बर्मा में जनता में सेतु बनाने और प्रजातंत्र लाने के लिए कार्य कर रही हैं।  प्रजातंत्र द्वारा ही मानवाधिकारों की रक्षा की जा सकती है जो जनता की सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी है।

मुझे (लेखक को) भली भांति स्मरण है 10 दिसंबर 1991 को बर्मा में अपने घर पर नजरबन्द आउन  सन सू ची नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं तब नहीं आ सकी थीं तब उनके इंग्लैण्ड में रह रहे बेटे अलेक्जेंडर ने पुरस्कार लिया था।  उस समय मैं एक नार्वेजीय पत्र 'Oslo-øst' (ओस्लो ओयस्त) में कालम लिखता था और उसमें मेरी कविता छपी थी।  हाल के अन्दर मैं आउन  सन सू ची के प्रति सभी उपस्थित जनों का जो समर्थन था वह कई मिनटों तक बजी ताली की  गड़ गड़गड़ाहट के स्वर व्यक्त कर रहे थे। और सिटी हाल में दोबारा जब वह आउन  सन सू ची स्वयं उपस्थित थीं तो पुनः वही ध्वनि  दोबारा गूंजी और  इस बार उनका  छोटे पुत्र किम ओस्लो सिटी हाल में उपस्थित था।
दुबली पतली किन्तु इरादों की पक्की आउन  सन सू ची  ने बताया कि बौद्ध धर्म ने उन्हें पीड़ा सहना सिखाया जिससे मेरे इरादे पक्के हुए और अपने और दूसरों के प्रति प्रेम और विनम्रता बड़ी।  वह सैनिक शासन से भी घृणा नहीं करतीं पर सभी को नया मिले और प्रजातंत्र बहाल हो या वह चाहती हैं। 

वह आता है हम रोक नहीं पाते -- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद अलोक'


कभी-कभी व्यक्ति अपनी बातें, अपने विचार जैसे -तैसे व्यक्त नहीं कर पाता। आज अनेक घटनाएं मेरे सामने घूम रही हैं उन्हीं को लेकर एक वैचारिक चित्र घटनाओं के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है। आप भी इसका आनंद लीजिये- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद अलोक'
वह आता है हम रोक नहीं पाते
वह आपको सताता है, जलाता है, पथ पर कांटे बिखराता है,
हर रोज कोई सपने में भी आता है, जैसे उसे नहीं रोक पाते हैं 
वह कभी चालक (ड्राइवर) /चतुर समझ
आपकी कार से पेट्रोल चुराकर भी वह आपका मीत कहलाता है,
वह आपका पहरेदार नहीं, वह आपका भाई-बन्धु  भले होगा
जो आपके सामान को अनुपस्थित में खिसकाता है.

जब वह बूढा होगा, उसका बेटा/बेटी भी वही करेंगे
जो वह आपके साथ कर रहा है,
वह धन नहीं, ज्ञान भी  नहीं,
जो कट्टरता की तरह बेमानी नसों में
अपना दर्शन जी रहा है,
जबकि उसका भविष्य पत्थर के विशाल मकान से
प्रेम मांग रहा है जब वह बीमार है,
वह साथ मांग रहा है,
उसे मलहम नहीं हाँ तिकड़मी पैसा मिल रहा है.

अब बुढ़ापे में कैसे अपने को माफ़ करे
और अपने गुजरे जमाने को याद करे,
जब उसने  पैसों के लिए अपने ईमान को गिरवी रख दिया था:
पैसे के लिए अपने ग्राहकों के लिए कभी अपने बच्चों  धोखे में रखता,  
और दुनिया में  भी हैं पैसे के खातिर
अपनों को कभी रेप के झूठे केस में फँसाएगा  ,
कभी जिन्दा रहते हुए जीवन बीमा (लाइफ इंसोरेंस) से
पैसे के लिए अपना श्राद्ध तक कर देता है!

वह क्या है, वह कौन है जो अपने रूप बदलता है?
अन्याय पर पर्दा मत डालो!
साथ मिलकर समाज से भेदभाव, ऊंचनीच का विष दूर करो.
अपने घर से श्रीगणेश करो!

आज तुम शक्तिमान हो, पर क्या विचारों के भिखारी तो नहीं?
अभी भी उस ज्योतिषी की तरह तो नहीं,
जो आपका भविष्य बताता है,
पर मंदिर-मस्जिद की चौखट पर
अपने अनिश्चित दिन में दो रोटी के लिए
आपकी बाट (राह) जोहता है?

तुम्हें जरूर याद आयेगी उस चाय बनाने वाले  (बालक/बालिका) की,
जब तुम मधुमेह (डायबटीज) के बीमार होगे  
तुम शकर की चाय नहीं पी पाओगे!
कभी सोचा है,
कितनी बार तुमने उसे (चाय बनाने वाले ) साथ बैठाकर चाय पिलाई है?

तुम्हें तब हमारी बहुत याद आयेगी
जब गर्मी की तपन में पंखे काम नहीं करेंगे.
सर्दी में गरम कोट तुम्हारी सर्दी नहीं मिटा पाएंगे.
क्योंकि पंखे के लिए बिजली और बटन दबाने वाला चाहिए
और कपडे पहनाने वाला चाहिए.

वृद्धाग्रह में तब तुम्हें भूख बिना खाना होगा,
भूख लगने पर खाना नहीं मिलेगा,
यह प्रकृति का नियम नहीं,
फिर तुम हमसे ऐसा क्यों कह रहे हो?
जवाब तो नहीं मिला,
क्या तुमने अपना मुंह शीशे में देखा है?

संतोष करोगे, कर्मों को दोष दोगे या शीशा ही तोड़ दोगे?
इसका उत्तर भविष्य में खोजोगे? भाग्य को कोसोगे, जो आज में छिपा है.

रविवार, 10 जून 2012

लेखक गोष्ठी में मार्टिन लूथर किंग को याद किया गया

8 जून को वाइतवेत सेंटर में लेखक गोष्ठी संपन्न हुई. इसमें नार्वे और स्वीडेन के संगठन टूटने पर Unionoppløsningen (7. जून)  पर चर्चा की गयी  तथा गोष्ठी में मार्टिन लूथर किंग को याद किया गया.  अंत में कवि गोष्ठी संपन्न हुई जिसमें राज कुमार भट्टी, चरण सिंह सांगा, इंदरजीत पाल, जान दित्ता 'दीवाना',  मलेशिया के कवी दित्ता तथा नार्वेजीय मूल की इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन, दित्ता सिआउ, मरते बर्ग एरिक्सन और सुरेशचन्द्र  शुक्ल ने अपनी रचनाएं पढ़ीं.
भारतीय-नार्वेजीय  सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम के तत्वावधान में आयोजित इस गोष्ठी में नार्वे में हिंदी कविता और मार्टिन लूथर किंग के विचारों पर परिचर्चा संपन्न हुई।
सुरेशचन्द्र  शुक्ल ने अपनी नयी ताजी कविता सुनायी:
'हम वाइतवेत पर
शांति पर चर्चा करते हैं
जबकि थोइएन, ओस्लो में
पुलिस गोली चलने की पहेली की
खोजखबर ले रही है। '
उन्होंने आगे नार्वेजीय अखबारों पर अपने विचार प्रगट करते हुए कहा:
'नार्वेजीय अखबार 22 जुलाई के आतंकवादी पर
बेसुमार लिख रहे हैं
जबकि वे ग्रुरुददालेन (ओस्लो) में
बहुमुखी गतिविधियों
सांस्कृतिक पुरुषों के योगदान से बने इन्द्रधनुष
के बहुरंगों और खिलाये हुए
अनगिनत गुलदस्तों को भूल गयी हैं।'
सुरेशचन्द्र शुक्ल  ने अपनी लघु और प्रभावी कविताओं के लिए नार्वे में जाने जाते हैं। इनकी कवितायें ओस्लो के वाइतवेत  और लिंदेरूद क्षेत्रों में सड़क के किनारे लगी लों की  लटकती फुलवारियों
में लगी हुई  हैं। चरण सिंह सांगा  ने अपनी कवितायें सुनाईं और मार्टिन लूथर किंग के विचार पढ़े। कार्यक्रम के अंत में परिचर्चा हुई जिसमें जीत सिंह, प्रगट सिंह और यादविंदर सिंह ने भी हिस्सा लिया। माया भर्ती ने सभी का आभार व्यक्त किया और गोष्ठी का समापन जलपान से हुआ।

गुरुवार, 7 जून 2012

आज 8 जून को लेखक गोष्ठी संपन्न हुई इसकी रिपोर्ट शीघ्र ही इसी ब्लॉग पर पढ़िए। 
आमंत्रण Invitasjon 
ओस्लो नार्वे में लेखक गोष्ठी
शुक्रवार 8 जून 2012  को शाम छ: बजे (18:00)
 कविता, व्याख्यान और परिचर्चा 
स्थान : Stikk innom, Veitvetsenter i Oslo
आयोजक: भारतीय- नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम 


Velkommen til forfatterkafe på Veitvet
fredag den 8. junikl. 18:00
 Sted : Stikk innom, Veitvetsenter i Oslo
Arrangør: Indisk-Norsk Informasjons -og kulturforum