ओस्लो में विशाल नोबेल जनसभा में विश्व शांतिदूत अहिंसा महात्मा गाँधी जी को याद किया गया - सुरेशचंद्र शुक्ल
मीयान्मार (बर्मा ) में 21 वर्षों तक नजरबन्द रहने के कारण प्रजातंत्र के लिए लड़ रही नेता आउन सन सू ची 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार लेने नहीं आ सकी थीं. न ही आउन सन सू ची अपना नोबेल व्याख्यान दे सकीं थीं। उन्होंने ओस्लो के सिटीहाल (रोदहूस) में अपरान्ह (दोपहर) अपना नोबेल व्याख्यान दिया। और शाम को नोबेल शांति केंद्र के बाहर साढ़े चार बजे होने वाली विशाल जनसभा में अपना धन्यवाद भाषण दिया।
नोबेल शांति समिति के अध्यक्ष और यूरोपीय परिषद् के महामंत्री और पूर्व प्रधानमंत्री थूरब्योर्न जागलांद ने कहा कि महात्मा गांधी के अहिंसा के सिद्धांतों पर चलते हुए आउन सन सू ची ने बर्मा में प्रजातन्त्र के लिए संघर्ष किया और कर रही हैं जिसके कारन उन्हें नोबेल पुरस्कार 1991 में दिया गया। जागलांद ने आगे कहा कि महात्मा गांधी, मार्टिन लूथर किंग और नेलसन मंडेला की तरह सू ची भी अपने देश में बर्मा में जनता में सेतु बनाने और प्रजातंत्र लाने के लिए कार्य कर रही हैं। प्रजातंत्र द्वारा ही मानवाधिकारों की रक्षा की जा सकती है जो जनता की सुरक्षा के लिए सबसे जरूरी है।
मुझे (लेखक को) भली भांति स्मरण है 10 दिसंबर 1991 को बर्मा में अपने घर पर नजरबन्द आउन सन सू ची नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं तब नहीं आ सकी थीं तब उनके इंग्लैण्ड में रह रहे बेटे अलेक्जेंडर ने पुरस्कार लिया था। उस समय मैं एक नार्वेजीय पत्र 'Oslo-øst' (ओस्लो ओयस्त) में कालम लिखता था और उसमें मेरी कविता छपी थी। हाल के अन्दर मैं आउन सन सू ची के प्रति सभी उपस्थित जनों का जो समर्थन था वह कई मिनटों तक बजी ताली की गड़ गड़गड़ाहट के स्वर व्यक्त कर रहे थे। और सिटी हाल में दोबारा जब वह आउन सन सू ची स्वयं उपस्थित थीं तो पुनः वही ध्वनि दोबारा गूंजी और इस बार उनका छोटे पुत्र किम ओस्लो सिटी हाल में उपस्थित था।
दुबली पतली किन्तु इरादों की पक्की आउन सन सू ची ने बताया कि बौद्ध धर्म ने उन्हें पीड़ा सहना सिखाया जिससे मेरे इरादे पक्के हुए और अपने और दूसरों के प्रति प्रेम और विनम्रता बड़ी। वह सैनिक शासन से भी घृणा नहीं करतीं पर सभी को नया मिले और प्रजातंत्र बहाल हो या वह चाहती हैं।
मुझे (लेखक को) भली भांति स्मरण है 10 दिसंबर 1991 को बर्मा में अपने घर पर नजरबन्द आउन सन सू ची नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित की गयी थीं तब नहीं आ सकी थीं तब उनके इंग्लैण्ड में रह रहे बेटे अलेक्जेंडर ने पुरस्कार लिया था। उस समय मैं एक नार्वेजीय पत्र 'Oslo-øst' (ओस्लो ओयस्त) में कालम लिखता था और उसमें मेरी कविता छपी थी। हाल के अन्दर मैं आउन सन सू ची के प्रति सभी उपस्थित जनों का जो समर्थन था वह कई मिनटों तक बजी ताली की गड़ गड़गड़ाहट के स्वर व्यक्त कर रहे थे। और सिटी हाल में दोबारा जब वह आउन सन सू ची स्वयं उपस्थित थीं तो पुनः वही ध्वनि दोबारा गूंजी और इस बार उनका छोटे पुत्र किम ओस्लो सिटी हाल में उपस्थित था।
दुबली पतली किन्तु इरादों की पक्की आउन सन सू ची ने बताया कि बौद्ध धर्म ने उन्हें पीड़ा सहना सिखाया जिससे मेरे इरादे पक्के हुए और अपने और दूसरों के प्रति प्रेम और विनम्रता बड़ी। वह सैनिक शासन से भी घृणा नहीं करतीं पर सभी को नया मिले और प्रजातंत्र बहाल हो या वह चाहती हैं।
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