कभी-कभी व्यक्ति अपनी बातें, अपने विचार जैसे -तैसे व्यक्त नहीं कर पाता। आज अनेक घटनाएं मेरे सामने घूम रही हैं उन्हीं को लेकर एक वैचारिक चित्र घटनाओं के माध्यम से व्यक्त करने की कोशिश की है। आप भी इसका आनंद लीजिये- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद अलोक'
वह आता है हम रोक नहीं पाते
वह आपको सताता है, जलाता है, पथ पर कांटे बिखराता है,
हर रोज कोई सपने में भी आता है, जैसे उसे नहीं रोक पाते हैं
वह कभी चालक (ड्राइवर) /चतुर समझ
आपकी कार से पेट्रोल चुराकर भी वह आपका मीत कहलाता है,
वह आपका पहरेदार नहीं, वह आपका भाई-बन्धु भले होगा
जो आपके सामान को अनुपस्थित में खिसकाता है.
जब वह बूढा होगा, उसका बेटा/बेटी भी वही करेंगे
जो वह आपके साथ कर रहा है,
वह धन नहीं, ज्ञान भी नहीं,
जो कट्टरता की तरह बेमानी नसों में
अपना दर्शन जी रहा है,
जबकि उसका भविष्य पत्थर के विशाल मकान से
प्रेम मांग रहा है जब वह बीमार है,
वह साथ मांग रहा है,
उसे मलहम नहीं हाँ तिकड़मी पैसा मिल रहा है.
अब बुढ़ापे में कैसे अपने को माफ़ करे
और अपने गुजरे जमाने को याद करे,
जब उसने पैसों के लिए अपने ईमान को गिरवी रख दिया था:
पैसे के लिए अपने ग्राहकों के लिए कभी अपने बच्चों धोखे में रखता,
और दुनिया में भी हैं पैसे के खातिर
अपनों को कभी रेप के झूठे केस में फँसाएगा ,
कभी जिन्दा रहते हुए जीवन बीमा (लाइफ इंसोरेंस) से
पैसे के लिए अपना श्राद्ध तक कर देता है!
वह क्या है, वह कौन है जो अपने रूप बदलता है?
अन्याय पर पर्दा मत डालो!
साथ मिलकर समाज से भेदभाव, ऊंचनीच का विष दूर करो.
अपने घर से श्रीगणेश करो!
आज तुम शक्तिमान हो, पर क्या विचारों के भिखारी तो नहीं?
अभी भी उस ज्योतिषी की तरह तो नहीं,
जो आपका भविष्य बताता है,
पर मंदिर-मस्जिद की चौखट पर
अपने अनिश्चित दिन में दो रोटी के लिए
आपकी बाट (राह) जोहता है?
तुम्हें जरूर याद आयेगी उस चाय बनाने वाले (बालक/बालिका) की,
जब तुम मधुमेह (डायबटीज) के बीमार होगे
तुम शकर की चाय नहीं पी पाओगे!
कभी सोचा है,
कितनी बार तुमने उसे (चाय बनाने वाले ) साथ बैठाकर चाय पिलाई है?
तुम्हें तब हमारी बहुत याद आयेगी
जब गर्मी की तपन में पंखे काम नहीं करेंगे.
सर्दी में गरम कोट तुम्हारी सर्दी नहीं मिटा पाएंगे.
क्योंकि पंखे के लिए बिजली और बटन दबाने वाला चाहिए
और कपडे पहनाने वाला चाहिए.
वृद्धाग्रह में तब तुम्हें भूख बिना खाना होगा,
भूख लगने पर खाना नहीं मिलेगा,
यह प्रकृति का नियम नहीं,
फिर तुम हमसे ऐसा क्यों कह रहे हो?
जवाब तो नहीं मिला,
क्या तुमने अपना मुंह शीशे में देखा है?
संतोष करोगे, कर्मों को दोष दोगे या शीशा ही तोड़ दोगे?
इसका उत्तर भविष्य में खोजोगे? भाग्य को कोसोगे, जो आज में छिपा है.
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