८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है।
८ मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। दिये की तरह हम अपने
आसपास नहीं देख पाते। देख पाते भी हैं तो नजरअंदाज करते हैं।
कभी-कभी जब हम दर्पण में भी ठीक से देख नहीं पाते और आशा करते हैं कि
सामने मिलने वाले जाने-अनजाने लोग हमको देखें, आह या वाह नजरों से ही कहें,
पर ऐसा नहीं होता। आइये महिला दिवस पर एक कविता, विचार आपके साथ
साझा करते हैं। आप भी इसे पढ़िये:
कोख की बहने नहीं तो क्या हुआ,
मेरा रक्षा बंधन हर साल मनता है,
कैलाश देवी और विद्या विन्दु हैं,
उस्माना सुल्ताना और सुखबीर कौर हैं,
घर-घर बर्तन मांजती मेरी बहन,
बारातों में लिए प्रकाश के गमले खड़ी,
मेरी माँ के आँखों का काजल लिए,
अशिक्षित बहन, भाई के द्वार पर खड़ी,
उसकी उम्र की दुहाई में आयु चार करती है,
दुत्कारकर हम अनदेखा करके चल दिये।
सड़क पर जो शिशुओं संग भीख मांगती,
ध्यान से देखो शक्ल अपनी बहन से मिलती।
सरहदों पर हमारे भाई रक्षा कर रहे,
घर-खेत-खलियानों में बहनें मोर्चा लिये।
फर्ज के नाम पर केवल नारे नहीं,
हर एक को रोटी शिक्षा और इलाज चहिये।
महिला दिवस मुबारक हो दुनिया की हर बहन को,
उन्हें आर्थिक आजादी और शिक्षा पहुंचाइये।
पचास प्रतिशत जब तक संसद में नहीं पहुँची,
बराबरी का ढोंग अब मत कीजिये।
बचपन बचायें बाल-बालिकाओं के कैलाश सत्यार्थी की तरह,
अपनी जीवन गाड़ी हांक सकें सफल सारथी की तरह।।
बचपन बचायें बाल-बालिकाओं के कैलाश सत्यार्थी की तरह,
अपनी जीवन गाड़ी हांक सकें सफल सारथी की तरह।।
शरद आलोक, ओस्लो
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