६ मार्च को संगीता शुक्ल का जन्मदिन है. संगीता का जन्म ६ मार्च को ८ मोतीझील, ऐशबाग रोड, लखनऊ में घर पर ही हुआ था। इसी दिन अनेक सुधि जनों का जन्म हुआ था। जिसमें स्तोवनेर, ओस्लो की निवासी सविन्दर कौर भी हैं। जिनका भी जन्मदिन है उन सभी को बधायी।
संगीता पर अपनी एक कविता साझा कर रहा हूँ, जो इस अवसर पर लिखी है। जन्मदिन पर बहुत बधायी।
विजय पथ पर
शिवरात्रि अठत्तर, की वह शुभ घड़ी,
बृजमोहन-किशोरी घर रौनक लगी।
माया ने जन्म देकर धन्य किया
अंगना हमारे उतर आयी एक परी।।
दुलार, चंचल, चपल, मन भावना,
देखना सपने किसे भाता नहीं।
जीवन के पथ पर करवट बदल,
लौटकर बचपन कभी आता नहीं।।
गर्व पुत्री का किसे भाता नहीं।।
दादा का जो नयन तारा बनी।
संस्कृति परिवार को अर्थ देकर,
संकरी परंपरा तोड़कर नेत्री बनी।।
कितना मुश्किल है त्यागना,
सुने ताने और कितनी उलाहना।
जिन्दगी की धूप-छाँव में पली,
अपनी गोदी में दादी का पालना।।
८ मोतीझील में जन्मी जहाँ,
वह लखनऊ की कोमल कंचना।
जिन्दगी से दो कदम आगे बढ़ी,
भेदभाव को मिटा संभावना।
जो लीक से हटकर बढे हैं,
उनके मार्ग में भले कांटे चुभें,
वे दूसरों को राह दिखलाते सदा,
अपनी निशानी पद पर छोड़ दें।
करें पथी भाव सागर पार,
देखकर बढ़े थके जो आज।
तोड़कर बंधन सारे व्यूह,
खोलकर नयी पीढ़ी के द्वार।।
अरे संगीता तेरा जो मोल,
चुका नहीं सकता परिवार।
सीखकर नयी पीढ़ी की पौध,
तुम्हें न भूलेगा संसार।।
निकीता और अलेक्सान्दर अरुण,
दे परिवारों को अपना नाम।
इसी से भारत बसे नार्वे में,
पूर्वजों को सब करें प्रणाम।।
पथ कठिन हो, मार्ग पर चलते रहो,
मत झुको, अन्याय से लड़ते रहो।
संसार में जीना जहाँ संघर्ष है,
विजय पथ पर सदा बढ़ते रहो।।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो Suresh Chandra Shukla, Oslo, Norway
संगीता पर अपनी एक कविता साझा कर रहा हूँ, जो इस अवसर पर लिखी है। जन्मदिन पर बहुत बधायी।
विजय पथ पर
शिवरात्रि अठत्तर, की वह शुभ घड़ी,
बृजमोहन-किशोरी घर रौनक लगी।
माया ने जन्म देकर धन्य किया
अंगना हमारे उतर आयी एक परी।।
दुलार, चंचल, चपल, मन भावना,
देखना सपने किसे भाता नहीं।
जीवन के पथ पर करवट बदल,
लौटकर बचपन कभी आता नहीं।।
गर्व पुत्री का किसे भाता नहीं।।
दादा का जो नयन तारा बनी।
संस्कृति परिवार को अर्थ देकर,
संकरी परंपरा तोड़कर नेत्री बनी।।
कितना मुश्किल है त्यागना,
सुने ताने और कितनी उलाहना।
जिन्दगी की धूप-छाँव में पली,
अपनी गोदी में दादी का पालना।।
८ मोतीझील में जन्मी जहाँ,
वह लखनऊ की कोमल कंचना।
जिन्दगी से दो कदम आगे बढ़ी,
भेदभाव को मिटा संभावना।
जो लीक से हटकर बढे हैं,
उनके मार्ग में भले कांटे चुभें,
वे दूसरों को राह दिखलाते सदा,
अपनी निशानी पद पर छोड़ दें।
करें पथी भाव सागर पार,
देखकर बढ़े थके जो आज।
तोड़कर बंधन सारे व्यूह,
खोलकर नयी पीढ़ी के द्वार।।
अरे संगीता तेरा जो मोल,
चुका नहीं सकता परिवार।
सीखकर नयी पीढ़ी की पौध,
तुम्हें न भूलेगा संसार।।
निकीता और अलेक्सान्दर अरुण,
दे परिवारों को अपना नाम।
इसी से भारत बसे नार्वे में,
पूर्वजों को सब करें प्रणाम।।
पथ कठिन हो, मार्ग पर चलते रहो,
मत झुको, अन्याय से लड़ते रहो।
संसार में जीना जहाँ संघर्ष है,
विजय पथ पर सदा बढ़ते रहो।।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल, ओस्लो Suresh Chandra Shukla, Oslo, Norway
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