रविवार, 19 मई 2013

डेनमार्क की एमिलिये दी फोरेस्त ने यूरोविजन 2013 जीती - Suresh Chandra Shukla

 डेनमार्क की एमिलिये दी फोरेस्त ने यूरोविजन 2013 जीती


मशहूर यूरोपीय संगीत  प्रतियोगिता यूरोविजन 2013 में नार्वे, फिनलैंड, उक्रेन और अब्रजान के कलाकारों का बहुत अच्छा प्रदर्शन रहा पर डेनमार्क का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ था और उसने यह प्रतियोगिता कल रात १ ८ मई को जीत ली। नार्वे की प्रतियोगी मार्गारेत ने कहा  कि उसने इस प्रतियोगिता में अपनी छाप छोड़ दी है। 
मारग्रेत बरगेर ने कहा जरा सोचिये मुझे चौथा स्थान मिला है।  यूरोप के कोने-कोने से मुझे वोट मिले हैं। यह मेरे जीवन का बहुत अच्छा क्षण था।  वह अपने प्रदर्शन से बहुत संतुष्ट हैं और कहती हैं की इससे उनके जीवन में बहुत असर पड़ेगा।
डेनमार्क की यूरोविजन 2013 की विजेता एमिलिये दी फोरेस्त पहले से ही विशेषज्ञों की पसंद थीं।  उन्होंने अपने देश डेनमार्क में भी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में बहुत अंक पाये थे।  विजयी देश इस प्रतियोगिता का आगामी कार्यक्रम अपने देश में करता है अतः अगले वर्ष यूरोपीय संगीत  प्रतियोगिता यूरोविजन 2014 डेनमार्क में आयोजित होगी।


ऊपर चित्र में नार्वे की मारग्रेत बरगेर चौथे स्थान पर।


ऊपर क्रिस्ता, फिनलैंड की प्रतियोगी अपनी महिला मित्र का चुम्बन लेने के कारन चर्चा में रहीं। 



शुक्रवार, 17 मई 2013

आज 17 मई है। नार्वे का राष्ट्रीय दिवस। आज के दिन नार्वे का संविधान दिवस है। आपको बहुत-बहुत बधायी और बधाई देने के लिये धन्यवाद।
प्रो. शैलेन्द्र कुमार शर्मा जी से फोन पर बात हुई। उन्हें आपको बहुत बहुत धन्यवाद स्मरण रखने के लिये। आज 17 मई है। नार्वे का राष्ट्रीय दिवस। आज के दिन नार्वे का संविधान दिवस है। आपको बहुत-बहुत बधायी और बधाई देने के लिये धन्यवाद दिया।
आज वाइतवेत स्कूल, ओस्लो गया जहाँ निकिता, आलाक्सान्देर पढ़ते हैं और संगीता और माया भारती भी आयी थीं। अवसर था 17 मई, नार्वे के राष्ट्रीय दिवस पर ध्वजारोहण कार्यक्रम। प्रधानाचार्य और पत्रकार मित्र टॉम एवेनसेन सहित सभी को बधाई दी।
दो बच्चों ने कार्यक्रम का सञ्चालन किया और दो बच्चों ने संबोधित किया।  बाद में बच्चों ने कुछ गीत गाये और नगर के केंद्र में राज महल के सामने होने वाली बाल परेड में भाग लेने चले गए।

शनिवार, 11 मई 2013

नार्वे में ८ मई मुक्ति दिवस मनाया गया।

 नार्वे में  Frigjøringsdagen 8 मई मुक्ति दिवस दो दिन बाद 10
  मई को  मनाया गया। 

यह दिवस नार्वे में १९४० से १९४५  में  जर्मनी के क्रूर नाजी राज्य के आधीन रहा और ८ मई १९४५ को यह दिन मुक्ति दिवस और स्वतंत्रता दिवस के रूप में मनाया जाता है।   
ओस्लो में भारतीय नार्वेजीय सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम की और से शुक्रवार १० मई को वाइतवेत सेंटर, ओस्लो में लेखक गोष्ठी में मनाया गया। 
Frigjøringsdagen i Norge 8. mai 1945 er dagen da tyske militære styrker kapitulerte etter fem år med okkupasjon. Det nasjonalsosialistiske Tyskland kapitulerte betingelsesløst, og ut over sommeren 1945 ble de tyske styrkene sendt tilbake til Tyskland. De allierte fryktet at den tyske hæren i Norge skulle nekte å kapitulere og sette opp et fanatisk forsvar på norsk jord. At Tyskland frivillig ville oppgi kontrollen av Norge, som var sterkt befestet og hvor de hadde nesten en halv million soldater stående, var på ingen måte gitt. Men øverstkommanderende i Norge fikk ordre fra den nye rikspresidenten Dönitz om dette. 
कार्यक्रम में एक गोष्ठी का आयोजन हुआ जिसमें लोगों ने अपने विचार रखे और कवितायें पढीं।  कार्यक्रम में भारतीय दूतावास के सीलेश कुमार ने शुभकामनायें  दीं और अपनी कवितायें पढ़ीं। विचार व्यक्त करने और कवितायें पढ़ने वालों में  राजकुमार और जावेद भट्टी, अलका भरत, मीना मुरलीधरन, हेमलता, नोशीन, इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन, आर्यन और अन्य थे।  लेखक सुरेशचंद्र शुक्ल ने इस दिवस पर जानकारी दी और अपनी कवितायें पढ़ीं। 


 रुसिस्क-नोर्श्क फोरेनिंग ने मनाया Frigjøringsdagen 8 मई मुक्ति दिवस

रविवार ९ मई को रुसिस्क-नोर्श्क फोरेनिंग ( रूसी-नार्वेजीय संस्था) ने ९ मई को टोलबू गाता ओस्लो में नार्वे में यह दिन संगीत के साथ मनाया गया।  इस कार्यक्रम में नारव में रहने वाले रूसी कलाकारों के अलावा संत पीतार्बर्ग से आये कलाकारों ने भी हिस्सा लिया। 

शनिवार, 4 मई 2013

भारत में शिक्षा और चिकित्सा सभी के लिए एक जैसी हो-सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla

भारत में शिक्षा और चिकित्सा सभी के लिए एक जैसी हो और अमीरों से अधिक टैक्स /कर लिया जाये और भ्रष्टाचार की ज़रा सी भी गुंजाइश न हो -

सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो, नार्वे  (01.05.13)
 
   Torstein Winger थूरस्ताइन विन्गेर


Prof Per Fugli   प्रो पेर फ्यूग्ली स्पाइल-दर्पण की प्रति संपादक सुरेशचंद्र शुक्ल Suresh Chandra Shukla से प्राप्त करते हुए 


पहली मई को क्रिस्तियानिया होटल, ओस्लो में एक जनसभा हुई, ठीक पहली मई के परम्परात्मक मार्च के बाद।  प्रो.  पेर फूगली मुख्य वक्ता थे।  इस बार 30.000 (तीस हजार ) लोगों ने जुलुस में सम्मिलित होकर श्रमिक दिवस मनाया। लाल झंडों, बैनरों जिसमें श्रमिकों के नारे लिखे थे साथ ही अनेक प्रसिद्ध बैंड, श्रमिक संगठनों के प्रतिनिधिगण  उपस्थित थे।  मेरे साथ इस बार मेरे साथ क्षेत्र के पूर्व स्थानीय मेयर थूरस्ताइन  विन्गेर थे। मैं भी नार्वेजीय लेबर पार्टी के स्थानीय इकाई में चयन समिति का सदस्य हूँ, नार्वे में पत्रकार और  गत 25 वर्षों से प्रकाशित हिन्दी और नार्वेजीय पत्रिका 'स्पाइल-दर्पण' का संपादक हूँ। 
थूरस्ताइन  विन्गेर के साथ मैंने  सामूहिक भोजन किया।  सभी लोगों ने काफी समय एक पंक्ति में पंक्तिबद्ध होकर  भोजन खरीदा।  एक बहुत बूढ़े नेता ने कहा कि लेनिनग्राद की याद आ गयी वहां बहुत देर लगी थी और सभी एक पंक्ति में लगकर भोजन प्राप्त करते थे।
 पेर फूगली सोशल मेडिसिन  के प्रोफ़ेसर रह चुके हैं उन्होंने जीवन, समाज, मानवीय मूल्य, सुरक्षा, पूंजीवाद और सोशल डेमोक्रेटिक मूल्यों पर चर्चा की। यैसे वक्ताओं के वक्तव्य काश भारत के हमारे नेताओं ने सुनकर उसे गृहण  किया  होता तो भारत में गरीबी कम होती, विकास अधिक होता, मानवीय मूल्यों को पूंजीवाद की जगह स्थान मिलता।  भ्रष्टाचार कम हो सकता था और कोआपरेटिव द्वारा श्रमिकों के अधिकारों और कर्तव्यों का  ध्यान दिया  जाता और गरीबों  तथा अमीरों के मध्य आर्थिक और वैचारिक अंतर कम होता। तब राजनीति से जुडा कोई भी व्यक्ति स्वयं और अपने परिवार के सदस्य को पूंजीपति बनाने की बात न सोंचता अपितु कोआपरेटिव भाव से श्रमिक संगठनों और कामगरों द्वारा संचालित और सोशल डेमोक्रेटिक राजनैतिक
ढाँचे को मजबूत करने में मदद मिलती। 
इसी के साथ भारत की अभी तक की सभी सरकारें जिन्होंने टैक्स /कर के लिए मजबूत पैमाना तैयार नहीं किया।  लोगों को टैक्स देने के लिए जागरूक नहीं किया।  कर का सीधे गरीब, श्रमिकों के साथ सभी को सुविधाओं और आधारभूत अधिकार नहीं मिले।
एक भारतीय नेता ने ओस्लो नार्वे में अपने भाषण में कहा था कहा था,  
"आये दिन निजी /प्राइवेट संस्थाओं और पूंजीपतियों को अस्पताल, स्कूल और बचत बैंक का अधिकार देकर मनमानी लूट की छूट दे दी है जिससे बहुत से गरीबों को बेइलाज रहना पड़ रहा है।" 
चिकित्सा और शिक्षा में सामान सुविधा और एक जैसी सुविधा सभी को होनी चाहिए।  जैसा की नार्वे में है।  जो जितना कमाए उसे उतना अधिक कर भी देना चाहिए। शासन ऐसा हो भ्रष्टाचार की गुंजाइश ही नहीं हो।
मैंने 01.05.13 मई के इण्डिया टुडे में पढ़ा है जिसमें 50 ताकतवर लोगों में पूंजीपतियों को दिखाया गया है जो लोगों को बहकाने वाली और पूंजीपतियों को आवश्यकता से अधिक इज्जत देने की कोशिश की गयी है।  इससे अच्छा होता की अपनी सांस्कृतिक धरोहर लोकगीत,  लोक नाटक,  हस्तकला, भाषा, संगीत  और वास्तुकला  आदि को सुरक्षित रखने और उसका प्रचार करने में लगे लोगों के बारे में लिखकर कहा जाता कि इन्हें प्रोत्साहित करने और लुप्त होने के लिए बचाने में कार्य करने वाले लोगों की प्रशंसा  की जाती।  कहा जाता है कि भारत और गरीब देशों में  अच्छे टैक्स सिस्टम के अभाव में और जो है उसका दुरूपयोग,  और राजनैतिक भर्ष्टाचार के कारण देश को सही कर नहीं मिल पाता।
काश देश की बड़ी पत्रिकाएं कभी यह भी छापें कि 100 देश के सबसे अमीरों के दादा के पा क्या 50 वर्ष पहले वाजिब जूते थे? इसका पता पत्रिकाएं अपने श्रोत से पता लगाती तो कुछ रहस्य जरूर खुलते?
आइये श्रमिक दिवस पर  हम शपथ लें कि गरीब देशों और भारत में अपना तन -मन -धन लगायेंगे।  जिस देश में भी रह रहे हैं वहां ईमानदार होकर कार्य करेंगे  और टैक्स देंगे तथा राजनीति  में सक्रिय हिस्सा लेंगे ताकि अपनी भाषा और संस्कृति के लिए भी कार्य किया जा सके।  राजनीतिज्ञों की राजनैतिक शिक्षा आज के समय के अनुसार नहीं होने का कारण, और ईच्छाशक्ति की कमी के कारण  देश की योजनाओं को दीर्घजीवी नहीं बनाया जा सक रहा है।  असमान वितरण और अधिक नौकरियों की कमी भी कोआपरेटिव प्रोजेक्टों की कमी/अनदेखी करना भी बड़ा कारन है।
कोआपरेटिव किसी प्राइवेट मालिक द्वारा संचालित करना ठीक नहीं है इसे जब चाहे पूंजीपति किसी को बेच सकता है।  जनता का कोआपरेटिव जिसमें उसे प्रतिनिधित्व से लेकर संचालन करने का अधिकार हो तभी देश विशेषकर गरीब देशों के पक्ष में और उन्हें नौकरी के बहुत अधिक अवसर दिए जा सकते हैं, कामगार कर देकर उसे मजबूत बना सकते है।
अनेक आर्थिक एक्सपर्ट/विशेषज्ञों का कहना है कि गरीब देशों  में प्रति वर्ष 15 हजार रूपये वर्ष  कमाई पर टैक्स होना चाहिये।  इससे पूरे देश में निशुल्क और एक जैसी शिक्षा मिल सकेगी। आज गरीब देशों में सभी को स्कूली शिक्षा नहीं मिल पाती कारण जो भी हो, सरकारी स्कूलों में पढाई पर प्रश्नचिन्ह लगाए जाते हैं। भ्रष्टाचार बहुत आसान है।  निजी भाषा में शिक्षा न मिलने के कारण हम उचित और अधिक संख्या में स्किल्ड वर्कर नहीं पैदा कर पा रहे हैं।  निजी संस्थान इतनी फीस लेते हैं की गरीब के लिए प्रवेश लेना नामुमकिन है।    
काम  देने  वाले को भी टैक्स और मजदूर के पेंशन की कटौती करके देश का धन बढाया जाना चाहिये। लेखक को भारत के टैक्स सिस्टम की जानकारी नहीं है। पर यह पता है कि  अमीर और गरीब में तेजी से अंतर और दूरी बढ़ रही है जो देश की अर्थ व्यवस्था और के लिए अच्छा नहीं है।  

                                              - सुरेशचन्द्र  शुक्ल 'शरद आलोक' , ओस्लो, नार्वे  (01.05.13)
 

बुधवार, 1 मई 2013

स्पाइल-दर्पण पत्रिका 25 वर्ष, हाइकी होलमोस संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल से स्पाइल- दर्पण की प्रति प्राप्त करते हुए


 बायें से माया भारती, बलविंदर कौर हाइकी होलमोस संपादक सुरेशचन्द्र शुक्ल से स्पाइल- दर्पण की प्रति प्राप्त  करते हुए और पीची खडीं हैं वासुकी जयपालन 

परसों 29 अप्रैल को मेरे घर के पीछे स्थित वाइतवेत  सेंटर और यूथ क्लब में नार्वे के  विदेश विकास मंत्री हाइकी होलमोस आये और अपना वक्तव्य दिया तथा लोगों की समस्याओं को सुना। भारतीय-सूचना एवं सांस्कृतिक फोरम द्वारा लिटरेचर हाउस ओस्लो में आयोजित   भारत-नार्वे लेखक सेमीनार में हाइकी होलमोस भी भाग ले चुके हैं जिसमें भाग लेने भारत से प्रो निर्मला  एस मौर्य, डा रामाश्रय सविता और प्रो योगेन्द्र प्रताप सिंह आये थे।
 इस साल स्पाइल-दर्पण पत्रिका अपने 25  वर्ष पूरे कर रही हैं।  इस अवसर पर मैंने
नार्वे के  विदेश विकास मंत्री हाइकी होलमोस को अपनी पत्रिका स्पाइल-दर्पण पत्रिका की प्रति भेंट की।  मेरे साथ पंजाबी स्कूल की प्रधानाचार्य बलविंदर कौर, माया भारती और वासुकी जयपालन थीं। इसी वाइतवेत  सेंटर में मैंने उनके लिए दो बैठकें आयोजित की थीं।
आज एक मई, अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस है,
आप सभी को अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस पर हार्दिक बधाई।
एक मई, अन्तर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस यहाँ ओस्लो, नार्वे  में धूमधाम से मनाया जाता है।

 दुनिया के मजदूर धन्य हैं 

- सुरेशचन्द्र शुक्ल 

 सर पर ढो रहे ईंट - गारा
निर्माण को दे रहे आयाम
भवनों-कर कारखानों का
श्रमजीवी कर रहे निर्माण।   

श्रमिक दिवस मुबारक श्रमवीर,
दूर नहीं दुनिया की शिक्षा,
जब होंगे तुम्हारे हाथों  में
क्रेन, मशीन और ढेर काम।।  




हमें गर्व है भारतीय मजदूरों पर,
जिन्दगी को दे रहे अर्थ
विकास को गति
ढो रहे ईंटों को अपने सर पर।

अपने शरीर को होम करके
बन रहे समाज की प्रगति के वाहक
बढ़ा रहे हौंसला मालिकों का
मशीनी प्रगति को कर गए चित्त

दिखा रहे अपने घर के उद्योगपतियों को रास्ता
जो अपने समाज का धन लगा रहे विदेशों में
मशीनी पुर्जों में
भर रहे धन अपने एकाउंट में
अपने घर में कर नहीं देते
विदेशों में निवेश कर देकर
बना रहे अपने अड्डे
क्या ये मजदूर भी कभी
उन उद्योगपतियों के साथ देश-विदेश घूमकर
करेंगे समाज के धन में और बढ़ोत्तरी!
हाँ जरूर करेंगे,
जब हम नहीं सोयेगें
और इन मजदूरों को पहले साक्षर
फिर स्किल्ड  कारीगर बनायेंगे
और दुनिया में सबसे अधिक मजदूरी करके
श्रमवीर कहलायेंगे
अपने देश में तो प्रगति के साथ-साथ
दूसरे गरीब-अमीर मुल्कों में
सच्चा लोकतंत्र-रामराज्य लायेंगे।
                                                                     (ओस्लो, 01.05.13)