काठमांडू १ १ जून २०१३
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाये- अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और कला मंच
आशा पाण्डेय को पुरस्कृत करते हुए
चित्र में बाएं से तीर्थंकर विश्व विद्यालय के कुलपति, आनंद सुमन सिंह, इलाहाबाद विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो हरिराज सिंह, आशा पाण्डेय, शरद आलोक, शेर बहादुर सिंह और डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल
काठमांडू, शंकर होटल में ९ से १ १ जून तक अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मलेन और पुरस्कार समारोह संपन्न हुआ जिसमें ५० पुस्तकों और पत्रिकाओं का लोकार्पण हुआ। इस सम्मलेन में एक दिन में जितने शोधपत्र और लेख प्रस्तुत किये गये उतने पहले एक साथ कभी प्रस्तुत नहीं किये गये। शोधपत्रों और लेखों का स्तर ऊंचा था और सभी लेख सामयिक थे। कार्यक्रम में नार्वे, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, सिंगापुर और यू के के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया और हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
'हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य' शीर्षक पुस्तक में उन अधिकाँश लेखों को प्रकाशित किया गया था जो यहाँ पढ़े और प्रस्तुत किये गये थे।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ महेश दिवाकर थे। मीडिया देख रहे थे मयंक पवार।
सभी भाग लेने वाले प्रतिनिधिगण या तो हिन्दी के अध्यापक, लेखक और सम्पादक तथा हिन्दी सेवी थे।
इस तीन दिन के कार्यक्रम में एक कवि सम्मलेन का आयोजन भी किया गया था जिसमें नेपाल, भारत, सिंगापुर, नार्वे, यू एस ए और यू के के बहुत से कवियों ने अपनी रचनाओं से भाव विभोर कर दिया जिसका सफल सञ्चालन मनोज कुमार मनोज ने किया और जिसमें देवेन्द्र सफल, राजेश्वर नेपाली, करुणा पाण्डेय, मीना कॉल, आशा पाण्डेय ओझा, कमलेश अग्रवाल, सुरेशचन्द्र शुक्ल और बहुत से कवियों ने हिस्सा लिया था।
प्रसिद्द साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल, डॉ महेश्वेता चतुर्वेदी, शेर बहादुर सिंह, सावित्री, प्रो. बाबूराम डॉ विनय कुमार शर्मा, राम कठिन सिंह, राजा आनंद सुमन सिंह, चन्द्रकान्त मिसाल, राम गोपाल भारतीय और बहुत से विद्वानों ने कार्यक्रम को सफल बनाया।
कार्यक्रम के मीडिया प्रभारी ने मुझसे मेरे कैमरे का मेमोरी कार्ड कार्यक्रम के चित्र कापी करने के लिए माँगा जिसमें मेरे भोपाल, दिल्ली और नार्वे के बहुत जरूरी चित्र थे, पर जब मेमोरी कार्ड वापस मिला तो उसका कोना टूटा था, अतः भोपाल, दिल्ली आदि के चित्र आपके साथ साझा नहीं कर सका। कभी-कभी ऐसा भी होता है। काठमांडू में एक फोटो-कैमरे की दूकान से दूसरा मेमोरी कार्ड और एक पेन ड्राइव खरीदा, मेरे साथ डॉ रामगोपाल भारतीय भी थे।
संयुक्त राष्ट्र संघ में हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा का दर्जा दिया जाये- अंतर्राष्ट्रीय साहित्य और कला मंच
आशा पाण्डेय को पुरस्कृत करते हुए
चित्र में बाएं से तीर्थंकर विश्व विद्यालय के कुलपति, आनंद सुमन सिंह, इलाहाबाद विश्व विद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो हरिराज सिंह, आशा पाण्डेय, शरद आलोक, शेर बहादुर सिंह और डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल
काठमांडू, शंकर होटल में ९ से १ १ जून तक अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी सम्मलेन और पुरस्कार समारोह संपन्न हुआ जिसमें ५० पुस्तकों और पत्रिकाओं का लोकार्पण हुआ। इस सम्मलेन में एक दिन में जितने शोधपत्र और लेख प्रस्तुत किये गये उतने पहले एक साथ कभी प्रस्तुत नहीं किये गये। शोधपत्रों और लेखों का स्तर ऊंचा था और सभी लेख सामयिक थे। कार्यक्रम में नार्वे, संयुक्त राष्ट्र अमेरिका, सिंगापुर और यू के के प्रतिनिधियों ने भी भाग लिया और हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा बनाने पर अपने विचार प्रस्तुत किये।
'हिन्दी का वैश्विक परिदृश्य' शीर्षक पुस्तक में उन अधिकाँश लेखों को प्रकाशित किया गया था जो यहाँ पढ़े और प्रस्तुत किये गये थे।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ महेश दिवाकर थे। मीडिया देख रहे थे मयंक पवार।
सभी भाग लेने वाले प्रतिनिधिगण या तो हिन्दी के अध्यापक, लेखक और सम्पादक तथा हिन्दी सेवी थे।
इस तीन दिन के कार्यक्रम में एक कवि सम्मलेन का आयोजन भी किया गया था जिसमें नेपाल, भारत, सिंगापुर, नार्वे, यू एस ए और यू के के बहुत से कवियों ने अपनी रचनाओं से भाव विभोर कर दिया जिसका सफल सञ्चालन मनोज कुमार मनोज ने किया और जिसमें देवेन्द्र सफल, राजेश्वर नेपाली, करुणा पाण्डेय, मीना कॉल, आशा पाण्डेय ओझा, कमलेश अग्रवाल, सुरेशचन्द्र शुक्ल और बहुत से कवियों ने हिस्सा लिया था।
प्रसिद्द साहित्यकार डॉ गिरिराज शरण अग्रवाल, डॉ महेश्वेता चतुर्वेदी, शेर बहादुर सिंह, सावित्री, प्रो. बाबूराम डॉ विनय कुमार शर्मा, राम कठिन सिंह, राजा आनंद सुमन सिंह, चन्द्रकान्त मिसाल, राम गोपाल भारतीय और बहुत से विद्वानों ने कार्यक्रम को सफल बनाया।
कार्यक्रम के मीडिया प्रभारी ने मुझसे मेरे कैमरे का मेमोरी कार्ड कार्यक्रम के चित्र कापी करने के लिए माँगा जिसमें मेरे भोपाल, दिल्ली और नार्वे के बहुत जरूरी चित्र थे, पर जब मेमोरी कार्ड वापस मिला तो उसका कोना टूटा था, अतः भोपाल, दिल्ली आदि के चित्र आपके साथ साझा नहीं कर सका। कभी-कभी ऐसा भी होता है। काठमांडू में एक फोटो-कैमरे की दूकान से दूसरा मेमोरी कार्ड और एक पेन ड्राइव खरीदा, मेरे साथ डॉ रामगोपाल भारतीय भी थे।
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