भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मलेन एक कुम्भ की तरह था
सफलता के लिए मध्य प्रदेश सरकार को बहुत-बहुत बधाई।
सुषमा स्वराज जी को बहुत बधाई!
पूर्व सुझावों को माना गया उसके लिए विदेश विभाग का आभार भी.
१० से १२ सितम्बर तक संपन्न हुआ लाल परेड, भोपाल में १०वां विश्व हिन्दी सम्मलेन
भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन संपन्न हुआ. अनेक विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भाग लेने का अवसर मिला और देश विदेश के प्रतिनिधियों से अध्यापकों और शोधार्थियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
जिन गैर सरकारी प्रतिनिधों को सरकार ने सञ्चालन और अन्य व्यवस्था की जिम्मेदारी के पद दिए इसलिए कि उनमें मुख्य लोग हर सत्र में जाकर वहां देखें और सुनें और देश विदेश के विद्वान विदेशी हिन्दी विद्वानों -मेहमानों का ध्यान दें पर अधिकतर वे सम्मेलन में और भोपाल के मीडिया केन्द्रों में आते जाते रहे और अपना इंटरव्यू बिना किसी नयी सूचना और समन्वय के देते रहे.
अनेक लोग तो हमारे समाचार पत्रों के साक्षात्कार में इतना उलझ गए कि सम्मेलन में मुख्य द्वार पर प्रवेश करने के बाद भी वह किसी सम्मेलन कक्ष में उसी में प्रवेश कर सके जिसमें उन्हें बोलना था.
मध्य प्रदेश सरकार बहुत बधाई की पात्र है. अच्छी और सुव्यवस्थित व्यवस्था के लिए.
जो मध्य प्रदेश सरकार के बस में था उसमें सहायता तुरंत मिल गयी.
हिन्दी केंद्र में थी उसे सभी को रखना चाहिए, यही हिन्दी सम्मेलन की खासियत थी और इसकी ताकत भी.
विदेश विभाग भी चुस्त था?
विदेश विभाग भी काफी सक्रिय और चुस्त था.
पूर्व सुझावों को माना गया उसके लिए विदेश विभाग का आभार भी.
यह भारत सरकार का बहुत बड़ा और अच्छा कार्यक्रम था जिसके लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री सुषमा जी को विशेष बधाई।
अनेकों सुझावों के अनुसार सरकार द्वारा क्रियान्वयन हिन्दी के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
सम्मलेन स्थान के लावा भोपाल और पूरे देश में शाम को पुस्तकों का लोकार्पण, मेल-मिलाप, गोष्ठियों में बहुत से लोगों से मिलना हुआ जिससे भी अनेक सूचनायें और हिन्दी प्रेमी जुड़े यह इस सम्मेलन का अप्रत्यक्ष योगदान था. ऐसे सम्मेलनों में हम सभी एक यज्ञ में उपस्थित होते हैं और देश विदेश में हिन्दी की समस्यायें जानते हैं उनके समाधान के लिए रचनात्मक विचार विमर्श करते है.
आप क्या कर सकते हैं?
विचार विमर्श में आलोचना की गुंजाइश कम होती है क्योंकि यह सोचें कि आप हिन्दी, अपनी संस्कृति और अन्य भारतीय भाषाओँ के लिए आप क्या कर सकते हैं?
जहाँ आप कर सकते हैं तो यह बताइये कि आपने अपने बच्चो, उनके बच्चों को हिन्दी की और भारतीय संस्कृति की शिक्षा बचपन से दी है? और आपका उसमें क्या योगदान है? आपके कितने बच्चे देश विदेश में हिन्दी के शिक्षक हैं या हिन्दी में तकनीकी और वैज्ञानिक पुस्तक लेखन में आपके बच्चे क्या योगदान दे सकते हैं?
ये मेरे विचार है? प्रतिक्रिया देने क लिए आप मेल कर सकते हैं वही पूछिए जो मुझसे सम्बन्ध रखती है हिन्दी को लेकर, यह विचार जरूर ध्यान में रखें। धन्यवाद लेख पढ़ने के लिए.
अक्षर वार्ता द्वारा मुझे पहला विश्व हिन्दी सेवा सम्मान मिला
८ सितम्बर २०१५ , उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग, लोक संस्कृति और हिन्दी पर बने म्यूजियम का अवलोकन करवाया प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा जी ने जो एक अच्छे लेखक और आलोचक हैं तथा 'अक्षर वार्ता' के प्रधान संपादक हैं इन्हीं की प्रेरणा से मेरी उज्जैन यात्रा संभव हुई. प्रो और विभाध्यक्ष चुटैल जी ने प्रतीकचिन्ह दिया और मुझे सम्मानित किया।
शाम को अक्षर वार्ता के कार्यालय में अनेक बुद्धिजीवियों लेखकों और पत्रकारों के मध्य श्री बैरागी जी संपादक अक्षर वार्ता और शैलेन्द्र कुमार शर्मा के हाथों पहला विश्व हिन्दी सम्मान प्राप्त करना मेरे लिए कभी न भूलने वाली और ह्रदय छू लेने वाली बात रही.
बाद में राट्रक को मौनी बाबा के आश्रम गये.
सफलता के लिए मध्य प्रदेश सरकार को बहुत-बहुत बधाई।
सुषमा स्वराज जी को बहुत बधाई!
पूर्व सुझावों को माना गया उसके लिए विदेश विभाग का आभार भी.
१० से १२ सितम्बर तक संपन्न हुआ लाल परेड, भोपाल में १०वां विश्व हिन्दी सम्मलेन
भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन संपन्न हुआ. अनेक विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भाग लेने का अवसर मिला और देश विदेश के प्रतिनिधियों से अध्यापकों और शोधार्थियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा.
जिन गैर सरकारी प्रतिनिधों को सरकार ने सञ्चालन और अन्य व्यवस्था की जिम्मेदारी के पद दिए इसलिए कि उनमें मुख्य लोग हर सत्र में जाकर वहां देखें और सुनें और देश विदेश के विद्वान विदेशी हिन्दी विद्वानों -मेहमानों का ध्यान दें पर अधिकतर वे सम्मेलन में और भोपाल के मीडिया केन्द्रों में आते जाते रहे और अपना इंटरव्यू बिना किसी नयी सूचना और समन्वय के देते रहे.
अनेक लोग तो हमारे समाचार पत्रों के साक्षात्कार में इतना उलझ गए कि सम्मेलन में मुख्य द्वार पर प्रवेश करने के बाद भी वह किसी सम्मेलन कक्ष में उसी में प्रवेश कर सके जिसमें उन्हें बोलना था.
मध्य प्रदेश सरकार बहुत बधाई की पात्र है. अच्छी और सुव्यवस्थित व्यवस्था के लिए.
जो मध्य प्रदेश सरकार के बस में था उसमें सहायता तुरंत मिल गयी.
हिन्दी केंद्र में थी उसे सभी को रखना चाहिए, यही हिन्दी सम्मेलन की खासियत थी और इसकी ताकत भी.
विदेश विभाग भी चुस्त था?
विदेश विभाग भी काफी सक्रिय और चुस्त था.
पूर्व सुझावों को माना गया उसके लिए विदेश विभाग का आभार भी.
यह भारत सरकार का बहुत बड़ा और अच्छा कार्यक्रम था जिसके लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री सुषमा जी को विशेष बधाई।
अनेकों सुझावों के अनुसार सरकार द्वारा क्रियान्वयन हिन्दी के लिए मील का पत्थर साबित होगी।
सम्मलेन स्थान के लावा भोपाल और पूरे देश में शाम को पुस्तकों का लोकार्पण, मेल-मिलाप, गोष्ठियों में बहुत से लोगों से मिलना हुआ जिससे भी अनेक सूचनायें और हिन्दी प्रेमी जुड़े यह इस सम्मेलन का अप्रत्यक्ष योगदान था. ऐसे सम्मेलनों में हम सभी एक यज्ञ में उपस्थित होते हैं और देश विदेश में हिन्दी की समस्यायें जानते हैं उनके समाधान के लिए रचनात्मक विचार विमर्श करते है.
आप क्या कर सकते हैं?
विचार विमर्श में आलोचना की गुंजाइश कम होती है क्योंकि यह सोचें कि आप हिन्दी, अपनी संस्कृति और अन्य भारतीय भाषाओँ के लिए आप क्या कर सकते हैं?
जहाँ आप कर सकते हैं तो यह बताइये कि आपने अपने बच्चो, उनके बच्चों को हिन्दी की और भारतीय संस्कृति की शिक्षा बचपन से दी है? और आपका उसमें क्या योगदान है? आपके कितने बच्चे देश विदेश में हिन्दी के शिक्षक हैं या हिन्दी में तकनीकी और वैज्ञानिक पुस्तक लेखन में आपके बच्चे क्या योगदान दे सकते हैं?
ये मेरे विचार है? प्रतिक्रिया देने क लिए आप मेल कर सकते हैं वही पूछिए जो मुझसे सम्बन्ध रखती है हिन्दी को लेकर, यह विचार जरूर ध्यान में रखें। धन्यवाद लेख पढ़ने के लिए.
अक्षर वार्ता द्वारा मुझे पहला विश्व हिन्दी सेवा सम्मान मिला
८ सितम्बर २०१५ , उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग, लोक संस्कृति और हिन्दी पर बने म्यूजियम का अवलोकन करवाया प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा जी ने जो एक अच्छे लेखक और आलोचक हैं तथा 'अक्षर वार्ता' के प्रधान संपादक हैं इन्हीं की प्रेरणा से मेरी उज्जैन यात्रा संभव हुई. प्रो और विभाध्यक्ष चुटैल जी ने प्रतीकचिन्ह दिया और मुझे सम्मानित किया।
शाम को अक्षर वार्ता के कार्यालय में अनेक बुद्धिजीवियों लेखकों और पत्रकारों के मध्य श्री बैरागी जी संपादक अक्षर वार्ता और शैलेन्द्र कुमार शर्मा के हाथों पहला विश्व हिन्दी सम्मान प्राप्त करना मेरे लिए कभी न भूलने वाली और ह्रदय छू लेने वाली बात रही.
बाद में राट्रक को मौनी बाबा के आश्रम गये.