शनिवार, 26 सितंबर 2015

भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मलेन एक कुम्भ की तरह था 
सफलता के लिए मध्य प्रदेश सरकार को बहुत-बहुत बधाई।
सुषमा स्वराज जी को बहुत बधाई! 
पूर्व सुझावों को माना गया उसके लिए विदेश विभाग का आभार भी. 
१० से १२ सितम्बर तक संपन्न हुआ लाल परेड, भोपाल में १०वां विश्व हिन्दी सम्मलेन  




भोपाल में विश्व हिन्दी सम्मेलन संपन्न हुआ. अनेक विश्व हिन्दी सम्मेलनों में भाग लेने का अवसर मिला और देश विदेश के प्रतिनिधियों से अध्यापकों और शोधार्थियों से मिलकर बहुत अच्छा लगा.


जिन गैर सरकारी प्रतिनिधों को सरकार ने  सञ्चालन और अन्य व्यवस्था की जिम्मेदारी के पद दिए इसलिए कि उनमें मुख्य लोग हर सत्र में जाकर वहां देखें और सुनें और देश विदेश के विद्वान  विदेशी हिन्दी विद्वानों -मेहमानों का ध्यान दें पर अधिकतर वे  सम्मेलन  में और भोपाल के मीडिया केन्द्रों में आते जाते रहे और अपना इंटरव्यू बिना किसी नयी सूचना और समन्वय के देते रहे.

अनेक लोग तो हमारे समाचार पत्रों के साक्षात्कार में इतना उलझ गए कि सम्मेलन में मुख्य द्वार पर प्रवेश करने के बाद भी वह किसी सम्मेलन कक्ष में उसी में  प्रवेश कर सके जिसमें  उन्हें बोलना था.



मध्य प्रदेश सरकार बहुत बधाई की पात्र है. अच्छी और सुव्यवस्थित व्यवस्था के लिए.
जो मध्य प्रदेश सरकार के बस में था उसमें सहायता तुरंत मिल गयी.
हिन्दी केंद्र में थी उसे सभी को रखना चाहिए, यही हिन्दी सम्मेलन  की खासियत थी और इसकी ताकत भी.

विदेश विभाग भी चुस्त था? 

विदेश विभाग भी काफी सक्रिय और चुस्त था.
पूर्व सुझावों को माना गया उसके लिए विदेश विभाग का आभार भी.
यह भारत सरकार का बहुत बड़ा और अच्छा कार्यक्रम था जिसके लिए प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और विदेश मंत्री सुषमा जी को विशेष बधाई।



अनेकों सुझावों के अनुसार सरकार द्वारा क्रियान्वयन हिन्दी के लिए मील का पत्थर साबित होगी।

सम्मलेन स्थान के लावा भोपाल और पूरे देश में शाम को पुस्तकों का लोकार्पण, मेल-मिलाप, गोष्ठियों में बहुत से लोगों से मिलना हुआ जिससे भी अनेक सूचनायें और हिन्दी प्रेमी जुड़े यह इस सम्मेलन का अप्रत्यक्ष योगदान था. ऐसे सम्मेलनों में हम सभी एक यज्ञ में उपस्थित होते हैं और देश विदेश में हिन्दी की समस्यायें जानते हैं उनके समाधान के लिए रचनात्मक विचार विमर्श करते है.
आप क्या कर सकते हैं?
विचार विमर्श में आलोचना की गुंजाइश कम होती है क्योंकि यह सोचें कि आप हिन्दी, अपनी संस्कृति और अन्य भारतीय भाषाओँ के लिए आप क्या कर सकते हैं?
जहाँ आप कर सकते हैं तो यह बताइये कि आपने अपने बच्चो, उनके बच्चों को हिन्दी की और भारतीय संस्कृति की शिक्षा बचपन से दी है? और आपका उसमें क्या योगदान है? आपके कितने बच्चे देश विदेश में हिन्दी के शिक्षक हैं या हिन्दी में तकनीकी और वैज्ञानिक पुस्तक लेखन में आपके बच्चे क्या योगदान दे सकते हैं?


ये मेरे विचार है? प्रतिक्रिया देने क लिए आप मेल कर सकते हैं वही पूछिए जो मुझसे सम्बन्ध रखती है हिन्दी को लेकर, यह विचार जरूर ध्यान में रखें। धन्यवाद लेख पढ़ने के लिए.










अक्षर वार्ता द्वारा मुझे पहला विश्व हिन्दी सेवा सम्मान मिला 

८ सितम्बर २०१५ , उज्जैन में विक्रम विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग, लोक संस्कृति और हिन्दी पर बने म्यूजियम का अवलोकन करवाया प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा जी ने जो एक अच्छे लेखक और आलोचक हैं तथा 'अक्षर  वार्ता' के प्रधान संपादक हैं इन्हीं की प्रेरणा से मेरी उज्जैन यात्रा संभव हुई. प्रो और विभाध्यक्ष चुटैल जी ने प्रतीकचिन्ह दिया और मुझे सम्मानित किया।
शाम को अक्षर वार्ता के कार्यालय में अनेक बुद्धिजीवियों लेखकों और पत्रकारों के मध्य श्री बैरागी जी संपादक अक्षर वार्ता और शैलेन्द्र कुमार शर्मा के हाथों पहला विश्व हिन्दी सम्मान प्राप्त करना मेरे लिए कभी न भूलने वाली और ह्रदय छू लेने वाली बात रही.
बाद में राट्रक को मौनी बाबा के आश्रम गये.



शनिवार, 19 सितंबर 2015

Valg i Oslo

Tvilen forandrer med
usikkerhet..
sikkerhet..
eller midt i mellom?
Politikken er en søt potet
tilpasser det med flere retter.
Lutefisk eller kebab
det du bestemmer
ikke jeg?
Valget er ditt..
jeg er en tilskuer
i politikens forhandlinger
mellom dam og elve

SURESH CHANDRA SHUKLA

शुक्रवार, 18 सितंबर 2015

विक्रम विश्व विद्यालय,उज्जैन -Suresh Chandra Shukla

विक्रम विश्व विद्यालय,उज्जैन

मेरा अनूठा अनुभव रहा विक्रम विश्व विद्यालय,उज्जैन, मध्य प्रदेश में जाकर देखा तो अविभूत हो गया. 



जहाँ लेखक आलोचक प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा प्रोफ़ेसर हैं और हिन्दी और लोक कला के म्यूजियम के निदेशक हैं. जहाँ बहुत सी तस्वीरें पुस्तकें और लोक कलाओं के दुर्लभ और आकर्षक नमूने देखे जा सकते हैं.



हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष श्रीमती चुटैल और प्रो शैलेन्द्र कुमार शर्मा जी ने मुझे प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया, 


Jeg besøkte Ujjan og holdte foredrag. Jeg fikk statue og blomster der. Bilder er fra Vikram University i Ujjain, MP i India. Bilder er fra Vikram University i Ujjain, MP i India.

७ सितम्बर को मैं भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो मेरे मित्र डॉ संजीव कुमार जैन मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. संजीव जैन जी बहुत सी पाठ्य पुस्तकों के लेखक हैं और इन्होने गंज बासौदा, मध्य प्रदेश में कुछ वर्ष पहले २००८ में 'हिन्दी यपन्यास और भूमंडलीकरण  पर राष्ट्रीय सेमीनार था जिसमें मुझे मुख्य वक्त बनाया गया था और तब मेरी पहचान हुई थी. अनेक विद्वानों से मुलाकाट हुई थी. डॉ चौथी राम यादव जी से अभी भी संपर्क बना हुआ है जिनसे वहां पहली बार मिलना हुआ था.
अब ७ सितम्बर २०१५ को पुनः मिला रहे हैं.
जैसा कि पहले से तय था तो हम लोग नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी के बचपन के घर गए जो विडिशम में स्थित है. उनके भतीजे डॉ दिनेश कुमार शर्मा से बात हो चुकी थी पर वह इंदौर में थे अतः उन्होंने श्री जगमोहन शर्मा जो सत्यार्थी जी के बड़े भाई भी थे उनसे मिलने ओ कहा.
हम विदिशा पहुंचकर जगमोहन जी से जब मिले तो वह एक नजर के चश्मे की दूकान पर बैठे थे. अध्यापन से सेवा निवृत्त होने के बाद उन्होंने चश्में का कारोबार कर लिया था.
विदिशा के सेंटर से हमने सत्यार्थी जी के घर के लिए प्रस्थान किया। गालियां बनारस की तरह छोटी-छोटी थीं. उनके घर के बाहर एक विशाल बोर्ड(पैट लगा था जिसमें सत्यार्थी जी की तस्वीर बनी थी और लिखा था शांतिदूत कैलाश सत्यार्थी।
घर पर प्रवेश किया तो गाँव की तरह घर था. संयुक्त परिवार रहता था.
चाय पीने के बाद हमने सत्यार्थी जी का कमरा देखने की चाहत राखी तो उन्होंने दिखाया। 


               
एक बिलकुल छोटा कमरा जिसमें अन्धेरा था. सामन अस्त व्यस्त था. जैसे इस कमरे में लोग कम आते हैं. लगता जैसे यह कमरा उपेक्षित है.