७ सितम्बर को मैं भोपाल रेलवे स्टेशन पर पहुंचा तो मेरे मित्र डॉ संजीव कुमार जैन मेरी प्रतीक्षा कर रहे थे. संजीव जैन जी बहुत सी पाठ्य पुस्तकों के लेखक हैं और इन्होने गंज बासौदा, मध्य प्रदेश में कुछ वर्ष पहले २००८ में 'हिन्दी यपन्यास और भूमंडलीकरण पर राष्ट्रीय सेमीनार था जिसमें मुझे मुख्य वक्त बनाया गया था और तब मेरी पहचान हुई थी. अनेक विद्वानों से मुलाकाट हुई थी. डॉ चौथी राम यादव जी से अभी भी संपर्क बना हुआ है जिनसे वहां पहली बार मिलना हुआ था.
अब ७ सितम्बर २०१५ को पुनः मिला रहे हैं.
जैसा कि पहले से तय था तो हम लोग नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी जी के बचपन के घर गए जो विडिशम में स्थित है. उनके भतीजे डॉ दिनेश कुमार शर्मा से बात हो चुकी थी पर वह इंदौर में थे अतः उन्होंने श्री जगमोहन शर्मा जो सत्यार्थी जी के बड़े भाई भी थे उनसे मिलने ओ कहा.
हम विदिशा पहुंचकर जगमोहन जी से जब मिले तो वह एक नजर के चश्मे की दूकान पर बैठे थे. अध्यापन से सेवा निवृत्त होने के बाद उन्होंने चश्में का कारोबार कर लिया था.
विदिशा के सेंटर से हमने सत्यार्थी जी के घर के लिए प्रस्थान किया। गालियां बनारस की तरह छोटी-छोटी थीं. उनके घर के बाहर एक विशाल बोर्ड(पैट लगा था जिसमें सत्यार्थी जी की तस्वीर बनी थी और लिखा था शांतिदूत कैलाश सत्यार्थी।
घर पर प्रवेश किया तो गाँव की तरह घर था. संयुक्त परिवार रहता था.
चाय पीने के बाद हमने सत्यार्थी जी का कमरा देखने की चाहत राखी तो उन्होंने दिखाया।
एक बिलकुल छोटा कमरा जिसमें अन्धेरा था. सामन अस्त व्यस्त था. जैसे इस कमरे में लोग कम आते हैं. लगता जैसे यह कमरा उपेक्षित है.
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