रविवार, 17 मार्च 2019

सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' 'वेदना' (1976 को प्रकाशित) की कवितायें।, Oslo


सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' के पहले काव्य संग्रह 

'वेदना' (1976 को प्रकाशित) की कवितायें। 

नारी तुम केवल श्रद्धा हो,
कवि प्रसाद ने मान दिया
इतिहास न भूले उनको,
जिसने पथ निर्माण किया

बस कर्म किये जाते थे,
संघर्ष बना जीवन में
वेदना बनी कृति मेरी,
मेरे बचपन -यौवन में

मन मन्दिर की हो माया,
गौरव हो जग में जन में
तिर्यक रेखा सी नभ में
कोपल सी कोमल तन में

अपमान किया नारी का,
इतिहास न क्षमा करेगा
लीक से हटकर जिसने,
प्रतिमान बना जीवन में   

यह प्यार का सौदा है 
मिलजुलकर निभानी है
यहाँ जोर नहीं चलता,
यह प्रेम कहानी है 

शनिवार, 16 मार्च 2019

Hindi writers जैनेंद्र कुमार और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' : Jainedra Kumar and Suresh Chandra Shukla

Hindi writers जैनेंद्र कुमार और सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' : Jainedra Kumar and Suresh Chandra Shukla



जैनेन्द्र कुमार ( 05.01.1905- 24.12.1988) Jainedra Kumaar ( 05.01.1905- 24.12.1988). Den kjente raoman -og novelle forfatter Jainendra Kumars mest kjent roman var Sunita og Tyagpatra. Et bilde sammen med han er fra 1985.
कहानियों की चर्चा जब होती है तब जैनेन्द्र कुमार को भुलाया नहीं जा सकता। बीसवीं सदी के महत्वपूर्ण उपन्यासकार जैनेंद्र कुमार को भूलना आसान नहीं है. उनके उपन्यास 'सुनीता' और 'त्यागपत्र' आज भी लोगों की जबान पर है. वह एक अच्छे इंसान थे और युवाओं को प्रोत्साहित करते थे. उनके घर पर लिया उनके साथ का चित्र सन 1985 का है.


A poem by Suresh Chandra Shukla स्वार्थ में भूले देश समाज - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो

स्वार्थ में भूले देश समाज
कितने सूरवीर थे अशोक, बने थे पराक्रमी महान।
एक युद्ध में मरे इंसान से, टूटा था उनका अभिमान।

शोक-दुःख दर्द देख जानकर, राहुल बने थे महान बुध्द
जीत कर युद्ध हारकर वीर, अशोक हुए तब युद्ध विरुद्ध।

युद्ध-धर्म नहीं है हल!  दुनिया का यह कैसा सवाभिमान?
जहाँ बच्चों न मिले शिक्षा, कर रहे हम किस पर अभिमान।

विदेशी कर्ज से डूबे हुए पहनकर नेता लाखों के सूट.
नहीं चाहिए शस्त्रों की होड़, गरीब जनता का पैसा लूट.

भूखे-अशिक्षित बच्चे-युवा तरसें, युद्ध में धन होता बर्बाद।
भ्रष्टाचार की करें आरती, क्या यही है पूजा का सम्मान?

करते कितना पैसा खर्च, बताओ राष्ट्रीय बजट में देश.
इकतालीस प्रतिशत  बच्चों पर एक प्रतिशत का लेप?

बना मन्दिर और करके युद्ध, क्या नहीं तुम पैसा करोगे एकत्र।
कट्टरता-धर्म  राष्ट्रवाद में घोल, चुनाव में जीतने का कुचक्र।।

कितना घटिया हो जाता मनुज, स्वार्थ में भूले-बिसरे लोग।
इसी को कहते हैं दुष्चक्र, इसी में फँसा है  देश समाज?

- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, 16.03.19

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

युद्ध ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी, बीमारी और आतंकवाद के ख़िलाफ़ होना चाहिए- Suresh Chandra Shukla, Oslo


युद्ध ग़रीबी, अशिक्षा, बेरोज़गारी, बीमारी और आतंकवाद के ख़िलाफ़ होना चाहिए- Suresh Chandra Shukla