किसान आन्दोलन के सौ दिन
- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
किसान आन्दोलन के सौ दिनों में भारतीय और विदेशी लेखकों का मौन खूब खला।
भारत में हमारी संसद का अभी पता नहीं कि कब किसान आन्दोलन पर अलग से संसद बुलायी जायेगी या अलग से बैठक होगी या नहीं, पता नहीं है।
सुना है 8 मार्च को ब्रिटेन की संसद में भारतीय किसानों पर बैठक हो रही है।
सोचिये जब सौ साल पहले के स्वराज के आन्दोलन का हाल कैसा होगा? उस समय भारत में अंग्रेजों का शासन था। आज हमारा शासन है? भारतीय टी वी पर एक विद्वान कह रहे थे अब ऐसे दिन आ गये हैं कि हम अपनी समस्या पर कम बोलते हैं, डरते हैं और विदेश में हमारी समस्या पर, दुखदर्द पर सहानुभूति विचार कर रहे हैं।
चिन्तन लेखक के लिए ज़रूरी है। इसी से पता चलेगा कि अभी भी थोड़ा बहुत प्रवासी लेखक जागरुक है।
एक सर्वे के अनुसार भारत और अनेक देशों में लोकतंत्र के मूल्यों में गिरावट आयी और भारत को लोकतंत्र के देशों की सूची से हटाकर ‘कम लोकतंत्र’ के देशों में सुमार किया गया। अमेरिका के विदेशमंत्री ने भी अपने देश पर चिन्ता जताई है। एक कविता पढ़िए :
सत्य कहने वाले हैं कम,
देखो यह कैसा सन्नाटा है।
कहीं सन्नाटे ने तो नहीं,
सत्य और असत्य में बाँटा है।
कहीं सन्नाटा तूफ़ान का संकेत?
छिपी हों इसमें गहरी चाल।
लड़ते हैं अपने ग़ौरिल्ला युद्ध,
कूटनीति फैलाती अपने जाल?
“मौन रहने का अपराध,
भुगतना लगता सुन्दर आज।
मौन से भरने देता घट-अन्याय,
बचाने कौन आयेगा आप?
किसान आन्दोलन के सौ दिन,
सैकड़ों बलिदान हुए कृषक वीर।
कोटि नमन किसानों को, जिन्हें
करना पड़ा बलिदान शरीर।
राजनीतिक दलबदल के पीछे,
कहीं लोकतंत्र हुआ कमजोर।
ग़रीबी-बेरोज़गारी और अन्याय,
क्यों असली मुद्दों को गये भूल?”
- सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’ 6 मार्च , 2021
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