अमृत महोत्सव पर
‘जेल से माँ का ख़त बेटी-बेटे के नाम’
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक
मेरे बेटी-बेटे मुझे माफ़ करना
मुफ़्त में तिरंगा नहीं लेना
मुझे मुफ़्त में खाना खिलाकर
मेरा बलात्कार किया गया।
थाने गयी शिकायत लेकर
वहाँ भी नहीं छोड़ा?
मेरे बेटी-बेटे!
मुफ़्त में कहीं नहीं खाना।
धर्म के नाम पर चन्दा नहीं देना
मैं मन्दिर के आश्रम में लायी गयी
वहाँ भी हवस का शिकार बनायी गयी।
मेरे बेटी - बेटे!
किसी मन्दिर में भी मुफ़्त नहीं खाना
खुद पैदा करना,
खुद खाना और गरीब को खिलाना।
धर्म एक राजनीति में धंधा बन गया है।
भगवान जी नहीं खाते, उन्हें चढ़ा रहे हैं;
जबकि अस्पताल के सामने
बहुत से गरीब बिना इलाज मर रहे हैं।
कोबिद 19, कोरोना में 47 लाख मर गये।
बोलो देश में तीन साल में
कितने सरकारी अस्पताल बन गये।
मेरे बेटे-बेटी!
विश्व के सूचकांक में
हम कहाँ हैं
देश के विकास में हम कहाँ हैं?
क्या गर्व करूँ कि
देश का भुखमरी में 101वाँ स्थान है।
प्रेस स्वतंत्रता में 150वाँ स्थान है।
पर्यावरण में विश्व में सबसे ख़राब हैं?
पत्रकारों के लिए मेरा देश
सबसे ज़्यादा ख़तरनाक है।
मैं तो जेल में हूँ,
फिर गरीब हूँ,।
सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी भी बेबस है,
फिर हमारी क्या औक़ात है?
सरकार के ख़िलाफ़ बोलने पर जेल
सरकार के इशारे पर चल रही ई डी
जो संविधान और देश का क्या हाल है?
यही वर्तमान सत्ता का कमाल है।
मेरे बेटे-बेटी!
किसी समारोह में नहीं जाना,
भूखे नहीं रहना!
अपने घर के भीतर और मनमन्दिर में
ध्वज फहराना
आज़ादी के दिन भी काम करके
देश का क़र्ज़ चुकाना।
श्री लंका की तरह कहीं
दिवालिया न हो जायें।
हम भी जेल में झण्डे सिल कर बना रहे हैं
इसलिए जो देश में आज़ाद हैं
वे अमृत महोत्सव मनायें।
सुरेशचन्द्र शुक्ल ‘शरद आलोक’
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