ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता -
सुरेश चन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
ग़ाज़ा में नरसंहारी सत्ता,
राष्ट्रद्रोही सत्ता पर बैठे,
जनता पर बमबारी करके,
लोकतंत्र का क़त्ल कर रहे हैं।
अपने-अपने देश लूटकर,
व्यापारियों को मालामाल कर रहे हैं।
कॉरपोरेट के क़ब्ज़े में मीडिया,
लोकतंत्र का गला घोंट रहे हैं।
क्या सत्ता में बैठे लोग राष्ट्रद्रोही हो गए हैं?
क्या वे विदेशी ताक़तों के ग़ुलाम बन गए हैं?
कौन इन्हें बेनकाब करेगा?
अब तो देश के दुश्मन आम हो गए हैं।
हम पर युद्ध थोपने की तैयारी है,
सत्ताधारी शोर मचा रहे हैं।
लोकतंत्र को धता बताकर,
प्रखर आवाज़ों को दबा रहे हैं।
भारत में क्यों कायर पैदा होते हैं,
जो सत्ता में पहुँचते ही चुप हो जाते हैं?
जब नेतृत्व ही अक्षम है,
तो विदेश और आंतरिक नीति विफल ही होगी।
दूर देशों में बैठे प्रवासी,
जैसे पिंजरे में बंद परिंदे बोलते हैं।
न खुलकर बोलते हैं,
सिर्फ लोकतंत्र के टूटने को देखते हैं।
हर रोज़ मरकर कब तक
हम अन्यायों से लड़ पाएंगे?
बीरबल की खिचड़ी पकाते रहेंगे,
या प्रवासी बनकर काँव-काँव करते जाएंगे?
अगर सत्य जानकर भी न जागे,
तो सत्ता हमें ग़ाज़ा जैसा बना देगी।
लोकतंत्र में चुनकर सत्ता में आए,
पर क्या वे मुसोलिनी-हिटलर बन जाएंगे?
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