कल हम सपरिवार अनुराग के घर गये. अनुराग मेरे बड़े बेटे का नाम है और कल उसने अपनी बेटी के नामकरण पर हम सभी को बुलाया था. संगीता, माया भारती और मेरे बड़े भाई भी आये थे.
पुरानी बातें ताजी हुईं।
मुझे अपनी माँ के याद आयी और उन्हें हम दोनों ने याद किया तो संगीता ने भाई की साइकिल यात्रा के संस्मरण पूछे। उन्होंने संछिप्त में बताया भी. अपनी गोदावरी बुआ जी को भी याद किया जिनका निधन सत्तर दशक में हुआ था. हम लोगों से बहुत स्नेह रखने वाली बुआ जो मेरी बड़ी बुआ रामरती से छोटी थीं और निर्धनता के कारण वह परिवार के बहुत लोगों का स्नेह न पा सकीं।
बड़ी चाची को भी दोनों भाइयों ने स्मरण किया। बड़ी चाची बहुत सुन्दर, सरल स्वभाव की थीं अरु बहुत परिश्रमी थीं. बड़े चाचा के फक्कड़ स्वभाव के होने के कारण और साधुओं की सांगत में घूमने के कारण मेरी स्वर्गीय बड़ी चाची ने जीवन का सुख नहीं जाना। अभी कुछ महीने पहले मार्च २०१४ के एक दिन जब मैं जबलपुर से लखनऊ की यात्रा पर जा रहा था तब कानपुर के पहले कठारा रोड स्टेशन जो भीमसेन का पड़ोसी स्टेशन है पर रेल रुकी थी मैं वहां उतरा था वहां से मेरी माँ का गाँव सात किलोमीटर और चाची का गाँव ९ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है. बड़ी चाची ने दूसरों की सेवा में जीवन गुजार दिया। मेरी माँ उन्हें अक्सर कुछ समय के लिए अपने पास बुला लेती थीं.
मेरा परिवार उत्तर प्रदेश की जीवन जीवन शैली जानने का एक प्रतीकात्मक उदाहरण है. जहाँ उच्च शिक्षा के बावजूद सामयिक-तार्किक और न्यायिक सीमित समझ केवल शक्ति और अर्थ के आस-पास सिमट कर रह गयी है. हाँ व्यक्तिगत स्वाभिमान में कमी नहीं है.
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