दिल्ली में
आजकल मैं भारत आया हूँ. दिल्ली तो कई दशकों से साहित्य, संस्कृति और राजनैतिक केंद्र है. रज्जु भैया पर पुस्तक विमोचन प्रतिष्ठित प्रभात प्रकाशन द्वारा हुआ वहां दो बाते और हुई मेरे साथ एक तो हिन्दी के आलोचक और प्रेमचंद के पांचवे दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कमल किशोर गोयनका, डॉ सुरेश गौतम और केंद्रीय मंत्री हर्ष वर्धन जी को को स्पाइल दर्पण का नोबेल अंक भेंट किया।
लखनऊ में
मैं आज लखनऊ में हूँ. कल विश्वविद्यालय में कलाकार लालजीत अहीर की कलाकृतियों का अवलोकन किया लालजीत आजकल राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश और विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं.
इसके अलावा कल लखनऊ विश्वविद्यालय में रिफ्रेशर शिक्षण का समापन था जिसमें संचालन डॉ थापा जी, अध्यक्षता प्रो काली चरण स्नेही और मुंबई से आये थे प्रो सरवदे। महिलाओं के अधिकार देने के लिए हम बहुत कमजोर और विचारधाराओं से ग्रस्त हैं क्या हमने अपनी बेटी और बहन तथा अन्य परिवार की महिलाओं को अपने पिता की जायजाद में हिस्सा दिलाया है. बेटे के अलावा लड़की को भी तैरना सिखाया है ताकि वह डूबने से बच सके और दूसरों को डूबने से बचा सके. आखिर क्यों नहीं यह मेरे विचार मेरे इस सत्र में जवाब देते हुए उठे. विचार विमर्श सभी ने किया और स्नेह दिया।
आजकल मैं भारत आया हूँ. दिल्ली तो कई दशकों से साहित्य, संस्कृति और राजनैतिक केंद्र है. रज्जु भैया पर पुस्तक विमोचन प्रतिष्ठित प्रभात प्रकाशन द्वारा हुआ वहां दो बाते और हुई मेरे साथ एक तो हिन्दी के आलोचक और प्रेमचंद के पांचवे दत्तक पुत्र कहे जाने वाले कमल किशोर गोयनका, डॉ सुरेश गौतम और केंद्रीय मंत्री हर्ष वर्धन जी को को स्पाइल दर्पण का नोबेल अंक भेंट किया।
लखनऊ में
मैं आज लखनऊ में हूँ. कल विश्वविद्यालय में कलाकार लालजीत अहीर की कलाकृतियों का अवलोकन किया लालजीत आजकल राज्य ललित कला अकादमी उत्तर प्रदेश और विश्वविद्यालय में प्राध्यापक हैं.
इसके अलावा कल लखनऊ विश्वविद्यालय में रिफ्रेशर शिक्षण का समापन था जिसमें संचालन डॉ थापा जी, अध्यक्षता प्रो काली चरण स्नेही और मुंबई से आये थे प्रो सरवदे। महिलाओं के अधिकार देने के लिए हम बहुत कमजोर और विचारधाराओं से ग्रस्त हैं क्या हमने अपनी बेटी और बहन तथा अन्य परिवार की महिलाओं को अपने पिता की जायजाद में हिस्सा दिलाया है. बेटे के अलावा लड़की को भी तैरना सिखाया है ताकि वह डूबने से बच सके और दूसरों को डूबने से बचा सके. आखिर क्यों नहीं यह मेरे विचार मेरे इस सत्र में जवाब देते हुए उठे. विचार विमर्श सभी ने किया और स्नेह दिया।
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