गाय के वास्ते (लघुकथा )
सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक', ओस्लो, नार्वे से
सड़क के एक ओर मंदिर है और दूसरी ओर मस्जिद है। सड़क के एक किनारे सब्जी की दूकान है और वहां लोग जमा हो रहे हैं. चारो तरह हाहाकार मचा हुआ है. भीड़ अनवरत बढ़ती जा रही है. लोग आश्चर्यचकित हैं कि आखिर क्या हो गया है. सभी जानना चाहते हैं भीड़ क्यों लग रही है. आने-जाने वाले आपस में संवाद करने की जगह खुद अपनी आँखों से देखना चाहते हैं आखिर क्या हुआ है ताजा समाचार जानने की होड़ में सभी खोजी पत्रकार बनने के चक्कर में हैं.
सब्जी की दूकान के अलावा मंदिर और मस्जिद की तरफ भी लोग अलग-अलग समूह में जमा हो रहे हैं, बिना यह जाने हुए कि आखिर क्या बात है? सड़क पर हमेशा एक साथ चलने वाले लोग मंदिर और मस्जिद के नाम पर दोनों ओर भी जमा हो रहे हैं, जैसे पतंगबाजी के दो समूह। पर ये पतंगबाजी वाले लोग नहीं वरन आस्थावान हैं. आज असल से ज्यादा दिखावा का जमाना है भले ही ढोल में पोल हो, बस ढोल बजना चाहिये।
मैंने सोचा मैं ही क्यों दूर रहूँ भीड़ से और जानूँ कि आखिर माजरा क्या है?
पास में जाकर देखा तो एक बहुत दुबली -पतली गाय सब्जी के दूकान के आगे अधमरी हालत में पड़ी है. लोगों ने सब्जी वाले को पकड़ रखा है.
'तुमने गाय की जान ले ली.'
'साहब मैंने जान नहीं ली. गाय मेरी सब्जी पर जैसे ही टूट पड़ी तो मैंने उसे डंडे से भगाना चाहा और डंडे को सड़क पर जोर-जोर से पटका तो वह गाय घूम कर भागना चाहती थी और मुड़ते ही जमीन पर वह गिर पढ़ी.'
'तुम्हें गोहत्या का पाप चढ़ेगा, जानते हो, 'एक ने कहा.
'साहब यह अभी मरी नहीं है, देखिये उसकी आँखे खुली हैं और हाफ रही है.'
'थोड़ी सब्जी खा लेती तो क्या हो जाता?' भीड़ में खड़े दूसरे व्यक्ति ने प्रश्नचिन्ह लगाया।
'साहेब अभी हमारी बोनी तक नहीं हुई. बची-खुची सब्जियां और पत्ते इन्हीं जानवरों को तो ही खिलाते हैं दूकान बंद करने के पहले।
उस सब्जी वाले ने आगे कहना शुरू किया, 'यह गाय पहले कभी नहीं दिखी बाबूजी! आप रुकिए हम अभी गाय को पानी पिलाते हैं!'
उसने सब्जियों पर छिड़कने वाला पानी गाय के मुख में देना शुरू किया, गाय हरकत में आने लगी. गाय के मुख से जबान मुख के ऊपर फिरने लगी.
'भीषण गर्मी की वजह से गाय बहुत प्यासी है, बाबूजी! देखो सूख कर दुबली हो गयी है. इसे पानी, भोजन और आराम की जरूरत है.' सब्जी वाले ने गीले टाट को गाय पर ओढ़ा दिया था.
सब्जी वाले ने गौर से देखा उसे लगा कि गाय को इलाज की जरूरत है.
मैंने भी बीच में कहा, '
'शायद तुम ठीक कहते हो, गाय को इलाज की जरूरत है.' मैंने सब्जी वाले की तरफ देखते हुए सोचा कि कुछ पुण्य-कार्य हो जाये और लगे हाथ सलाह दे डाली,
'भाइयों इसके इलाज के लिए चन्दा एकत्र करते हैं. और एक पशु-चिकित्सक को यहाँ बुलाते हैं. गाय इलाज से ठीक हो जाएगी और पुण्य भी मिलेगा।'
मैंने अपना गमछा गाय के बगल में बिछा दिया और लोगों से अपील करने लगा,
'गाय के इलाज के लिए कुछ दे दो'. गाय के वास्ते कुछ दे दो.
पहले लोग कुछ रुके, कुछ ने अपनी साड़ी और जेब से कुछ सिक्की फेके और चल दिये। जो भीड़ में खड़े थे उनमें कुछ बिना पैसे दिए ही लोग लौट गये.
धीरे-धीरे भीड़ छटने लगी. जब मंदिर और मस्जिद की तरफ देखा तो इक्का -दुक्का लोग ही सुनकर आये और सिक्के डालकर चलते बने. जून का महीना था. शाम होने लगी थी .
आने जाने वालों के मोटरसाइकिल, रिक्शे, साईकिल की घंटियों की आवाज के बीच आवाज गूँज रही थी
कुछ पैसे गमछे में और कुछ बाहर बिखरे पड़े थे. वातावरण में आवाज गूँज रही थी,
'गाय के वास्ते। गाय के वास्ते।'
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Cow's sake (short story)
By Suresh Chandra Shukla Oslo, Norway
One side of the road is tempel and the other side of the street is a mosque . Vegetable shop and there is a side of the road people are gathering. Such is the cry around. Congestion is increasing constantly. What the hell is that people are surprised. Want to know why you look crowded. Commuters to communicate among themselves rather want to see with their own eyes what has happened to know the latest news in the race to become the investigative journalist are staggering.In addition to vegetable shop side of the temple and the mosque, people are gathering in different groups, without knowing what the hell is that? People on the street, always walk together in the name of temple and mosque are gathering both sides, the two groups such as kite flying. The kite flying and not on those who are faithful. Actually, even if today is the age of the formal drum pole, just drums should jiggle.I wondered why I stay away from the crowd and know exactly what's wrong?So I went and looked at the vegetable shop next to a very thin thin cow is lying in Admri condition. People who's holding the vegetable."You took the life of the cow.""Sir, I did not know. As soon as I had broken my vegetable cow on a stick and tried to shoo poles knocked loudly on the street if he wanted to flee, and turn around the cow on the ground, he read down. ""You will ascend into the sin of cow slaughter, you know," said one."Sir, it is not dead yet, see his eyes were open and half.""So what is eat a vegetable?" Another person in the crowd standing into question.'Saheb was not just our Bonnie. If these animals surviving fragments vegetables and leaves before closing the feed store.The minister said that the vegetable began, "This cow never seen before Papa! You just wait, we are taken to drink cow! ' He sprinkled on vegetables with cow's mouth began to water, the cow came into action. Home from Home of cow tongue was moving up."Cow very thirsty because of the heat, Father! Slim look has dried. Water, food and comfort needs. " The cow was covered on the wet sackcloth vegetable.She looked carefully at the vegetable that cow needs treatment.I also said in the middle, ""Maybe you're right, the cow needs to be treated." I have given thought to the vegetable that has some merit and should be working hand-advised,'Brothers collect fruit for its treatment. And call a veterinarian here. Cow treatment will recover, and virtue would be. "I laid next to his Gamchha cow and began to appeal to the people,"Give some to treat the cow. ' Give something for the sake of the cow.Those first few stayed, and some of her pocket and walked some Siki Feke. Some of those who stood in the crowd and returned without having to pay people.Ctne crowd began slowly. Ace looked at the shrine and mosque -dukka hear people come and put coins became due. June was the month. The evening had started.Commuters motorcycles, rickshaws, bicycle bells ringing voice was the voice ofScarves out of some money and some were scattered. The voice was echoing in the atmosphere,"In order to cow. Cow's sake. "
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