राजनैतिक डेमोक्रेटिक मुद्दे और पारदर्शिता आज क्यों गायब हैं?
Demokratiske prinsiper er lite i politikk i India?
आज प्रसिद्द लेखक सुधाकर अदीब जी ने अपनी पोस्ट पर आवाज उठाई है उसे आगे बढ़ा रहा हूँ. भारत देश में राज कर रहे राजनेताओं के कारण सबसे बड़ी कमी आयी है,वह है पारदर्शिता पर बहुत बड़ा पर्दा कानूनी और नैतिक जिसने विश्वसनीयता पर सवाल उठाये हैं जो आने वाले दशकों तक इनका पीछा नहीं छोड़ेंगे? सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग नया नहीं है पर अब अंधाधुंध बढ़ा हुआ लगता है? हमको आज सभी से मिलकर चलना होगा। विश्व एक गाँव है. पड़ोसी भूखा हो तो हम सुखी नहीं रह सकते? यह मेरा विचार है.
आज हमारे फेसबुक, अन्य सोशल मीडिया पर चुनाव को लेकर ज्यादातर सही बात नहीं हो रही है? व्यक्तिवादी, तर्कहीन, प्रोपागेंडा का शिकार हो चुके हैं.
सबसे बड़ी चुनौतियाँ और समस्यायें हैं: बेरोजगारी, शिक्षा, साफ़ पानी, जनसंख्या, पर्यावरण समस्या (ट्राफिक और कूड़ा प्रबंधन से लेकर नदियों और पर्वतों तक गैरकानूनी निमार्ण और उन्हें सरकारी संरक्षण), प्रवासियों का घटता और विदेशी निवेश.
आज सुधाकर अदीब जी ने अडानी और अम्बानी पर आवाज उठायी उनके ईमानदार होने परंतु विशेषकर रफाल से ये लोग नजर में आ गये. सीधे चोर तो नहीं पर टैक्स चोर तो बहुत बड़े हैं? हमारे नेताओं ने अपने घर में सेंध लगवा दी, जान पड़ता है? टीवी डिबेट इसका श्रोत है, पर बिना सरकार और सिस्टम की सहायता के चोरी संभव नहीं थी. बस देश में सभी को लिखना-पढ़ना आ जाये और हमारे नेता अपने आफिस में और जनता की समस्या में भी समय लगायें पर ऐसा बहुत से वर्षों से नहीं हो रहा है?
हम और आप खुद हिसाब लगायें बहुत से नेता नेता जी रैली और विदेश यात्राएं (अपने साथ ले गए लोगों की सूची बिना जनता को बताये) और केवल कुछ निजी फायदे के लिए कार्पोरेटर ग्रुप की बैकडोर से सहायता सबसे बड़ा दोष रहा है. यह राजनैतिक ही नहीं सभी क्षेत्रों में भी रहा है? कहीं कम, कहीं ज्यादा। (देश के व्यापारियों के समूह की सहायता करना अच्छा है, पर चन्द/कुछ लोगों के लिए नहीं।)
डेमोक्रेसी की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं जिसके लिए जागरूक न होने के लिए बुद्धिजीवी और युवाओं पर भी जिम्मेदारी आती है. कोई इस लिए आदरणीय नहीं हो सकता कि वह राजनैतिक ताकतवर है, चाहे पद से हो या संसाधनों से. कई मामले में हमारा चुनाव आयोग उन्हीं पर कार्यवाही करता है जब आप कोर्ट में शिकायत करो और फिर वहां से आदेश आये? वोट देते समय भूल जाते हैं किसको चुनें। यदि चयन में आपको दुविधा हो रही है तो बदलाव को चुनिये।
पर ध्यान रखिये कि चुनाव के बाद भी अपने काम करते हुए, उत्पादन बढ़ाते हुए सड़क, गलियों और चौराहों तथा विधानसभा और लोकसभा के बाहर और अन्दर जो हों उन्हें जागते रहना होगा। अब सोने का वक्त जा रहा है. जो काम नहीं कर सकते वह हटें और जो करना चाहते हैं उनके लिए जगह खाली करें। इस चुनाव के बाद जनता को संगठित, शांतिपूर्वक, श्रमदान, सहकारिता भाव से आपसी सहायता और अन्याय के लिए विरोध और प्रदर्शन करना है (अपने काम करते हुए, उत्पादन बढ़ाते हुए ) तभी डेमोक्रेसी बचेगी वरना हमारे पैसे रैलियों में फूँके जाएंगे और नेता जिन्हें काम करना है वे देश-विदेश में कारपोरेटरों के लिए कार्य करके जनता को चूना लगाते रहेंगे?
Demokratiske prinsiper er lite i politikk i India?
आज प्रसिद्द लेखक सुधाकर अदीब जी ने अपनी पोस्ट पर आवाज उठाई है उसे आगे बढ़ा रहा हूँ. भारत देश में राज कर रहे राजनेताओं के कारण सबसे बड़ी कमी आयी है,वह है पारदर्शिता पर बहुत बड़ा पर्दा कानूनी और नैतिक जिसने विश्वसनीयता पर सवाल उठाये हैं जो आने वाले दशकों तक इनका पीछा नहीं छोड़ेंगे? सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग नया नहीं है पर अब अंधाधुंध बढ़ा हुआ लगता है? हमको आज सभी से मिलकर चलना होगा। विश्व एक गाँव है. पड़ोसी भूखा हो तो हम सुखी नहीं रह सकते? यह मेरा विचार है.
आज हमारे फेसबुक, अन्य सोशल मीडिया पर चुनाव को लेकर ज्यादातर सही बात नहीं हो रही है? व्यक्तिवादी, तर्कहीन, प्रोपागेंडा का शिकार हो चुके हैं.
सबसे बड़ी चुनौतियाँ और समस्यायें हैं: बेरोजगारी, शिक्षा, साफ़ पानी, जनसंख्या, पर्यावरण समस्या (ट्राफिक और कूड़ा प्रबंधन से लेकर नदियों और पर्वतों तक गैरकानूनी निमार्ण और उन्हें सरकारी संरक्षण), प्रवासियों का घटता और विदेशी निवेश.
आज सुधाकर अदीब जी ने अडानी और अम्बानी पर आवाज उठायी उनके ईमानदार होने परंतु विशेषकर रफाल से ये लोग नजर में आ गये. सीधे चोर तो नहीं पर टैक्स चोर तो बहुत बड़े हैं? हमारे नेताओं ने अपने घर में सेंध लगवा दी, जान पड़ता है? टीवी डिबेट इसका श्रोत है, पर बिना सरकार और सिस्टम की सहायता के चोरी संभव नहीं थी. बस देश में सभी को लिखना-पढ़ना आ जाये और हमारे नेता अपने आफिस में और जनता की समस्या में भी समय लगायें पर ऐसा बहुत से वर्षों से नहीं हो रहा है?
हम और आप खुद हिसाब लगायें बहुत से नेता नेता जी रैली और विदेश यात्राएं (अपने साथ ले गए लोगों की सूची बिना जनता को बताये) और केवल कुछ निजी फायदे के लिए कार्पोरेटर ग्रुप की बैकडोर से सहायता सबसे बड़ा दोष रहा है. यह राजनैतिक ही नहीं सभी क्षेत्रों में भी रहा है? कहीं कम, कहीं ज्यादा। (देश के व्यापारियों के समूह की सहायता करना अच्छा है, पर चन्द/कुछ लोगों के लिए नहीं।)
डेमोक्रेसी की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं जिसके लिए जागरूक न होने के लिए बुद्धिजीवी और युवाओं पर भी जिम्मेदारी आती है. कोई इस लिए आदरणीय नहीं हो सकता कि वह राजनैतिक ताकतवर है, चाहे पद से हो या संसाधनों से. कई मामले में हमारा चुनाव आयोग उन्हीं पर कार्यवाही करता है जब आप कोर्ट में शिकायत करो और फिर वहां से आदेश आये? वोट देते समय भूल जाते हैं किसको चुनें। यदि चयन में आपको दुविधा हो रही है तो बदलाव को चुनिये।
पर ध्यान रखिये कि चुनाव के बाद भी अपने काम करते हुए, उत्पादन बढ़ाते हुए सड़क, गलियों और चौराहों तथा विधानसभा और लोकसभा के बाहर और अन्दर जो हों उन्हें जागते रहना होगा। अब सोने का वक्त जा रहा है. जो काम नहीं कर सकते वह हटें और जो करना चाहते हैं उनके लिए जगह खाली करें। इस चुनाव के बाद जनता को संगठित, शांतिपूर्वक, श्रमदान, सहकारिता भाव से आपसी सहायता और अन्याय के लिए विरोध और प्रदर्शन करना है (अपने काम करते हुए, उत्पादन बढ़ाते हुए ) तभी डेमोक्रेसी बचेगी वरना हमारे पैसे रैलियों में फूँके जाएंगे और नेता जिन्हें काम करना है वे देश-विदेश में कारपोरेटरों के लिए कार्य करके जनता को चूना लगाते रहेंगे?
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