मंगलवार, 28 अप्रैल 2020

सुरेशचन्द्र शुक्ल शरद आलोक' की कहानी 'रौब' 'Raub', A short story by Suresh Chandra Shukla


सुरेशचन्द्र शुक्ल की कहानी 'रौब'
"प्रवासी साहित्य पर देश विदेश में जो साहित्यकार कार्य कर रहे हैं  को यह कहानी पढ़नी चाहिये।  दोनों सुधी अध्यापक गण और प्रतिभाशाली शोधार्थियों की कमी महसूस कर रहा हूँ. उन तक सन्देश पहुंचे तो अच्छा है. इन कथाओं के लिए उनसे संवाद भी हो सकता है. आने वाले दिनों की प्रतीक्षा नहीं करें और निसंकोच जुड़ें. सीधे संवाद करें सन्देश बॉक्स में या ई मेल पर भी स्वागत है.
सुरेशचन्द्र शुक्ल  जैसे  साहित्यकार  जो  चालीस सालों से विदेशों में हिन्दी पत्रकारिता और साहित्य पर जानने के लिए ज्यादा लोग नहीं मिलेंगे। समय को मुट्ठी में पकड़ने की कोशिश करें और सहयोग लें. " -
vaishvika.page


गुड्डी ने कहा, " मम्मी! पापा आ गये."
"क्या बात है. दाल में कुछ काला लग रहा है. मैं सोचने लगी आखिर वह शर्मा जी के घर पार्टी में गये थे. और ये पार्टी से देर रात तक आते हैं. आज इतनी जल्दी। मैंने आगे पूछा ,
"मैंने कहा क्या बात हो गयी, आज आप पार्टी से जल्दी क्यों आ गये . उलटे पैर क्यों लौट आये हो."
"अरे कुछ नहीं बेगम, शराब की दूकान ने 500 के और हजार के नोट लेने जो बंद कर दिये।"
"अरे तुम्हें कौन पैसे देने थे वह तो शर्मा जी के यहाँ पार्टी है उन्होंने कोई इंतजाम नहीं किया।" मैंने पूछा।
"हाँ-हाँ, मैं शर्मा जी की पार्टी की ही बात कर रहा हूँ. भला हो शर्मा जी की बीवी का जो उन्होंने शर्मा जी की आँख से बचाकर पांच सौ-और हजार के इतने नोट जमा किये कि लखपति हो गयीं। पर भगवान् को और ही मंजूर था. जब से पता चला कि पुराने नोट बंद हो गये हैं, शर्मा जी की बीवी बीमार हो गयीं। उन्हें सदमा लग गया. पोल खुलने से उनकी ईमानदारी पर शर्मा जी शक करने लगे हैं."
"बैंक वाले ढाई लाख रूपये तक पुराने नोट जमा कर रहे हैं." मैंने अपने पतिदेव से कहा.
"अरे भाई, दहेज़ का सारा रुपया भी तो उनके घर में रखा है. शर्मा जी कहते थे बेटे मनीष की शादी में लिया दहेज़ बेटी पिंकी की शादी जब होगी तब दे देंगे।"
"हाँ बात तो गंभीर है. पर अपनी माँ और पिता के नाम भी ढाई-ढाई लाख जमा कर सकते हैं."
"बहुत खूब कहती हो भाग्यवान! मिसेज शर्मा तो अपनी सास को देखे मुंह तो सुहाती नहीं हैं और अब उनके नाम से लाखों रुपया जमा करना पड़ेगा। यही तो बीमारी की जड़ है." मेरे पति ने मेरी ओर देखकर आगे पूछा, "अरे भाग्यवान तुमने कितने पाँच सौ और हजार के नोट बचा रखे हैं?"
"क्या बात कर रहे हो? तुम मुझे देते ही कितने थे?" मैंने सच्चाई बताते हुए अपने को ठगा हुआ महसूस कर रही थी।
"अरे भाग्यवान, कुछ तो बताओ?
"कसम से मेरे पास केवल तीन हजार बचाये थे सो बैंक से बदलकर ले आयी हूँ. घर में कितना खर्च होता है. जानते हो मैंने बैंक के एकाउंटेंट से कहा बेटा! तुम तो ऐसे काम कर रहे हो जैसे सीमा पर सैनिक कर रहे हैं। " मैंने सफाई दी और मैं सोचती रही. जब लोंगो को पता चलेगा मैंने तीन हजार ही बचाये तो मोहल्ले में नाक कट जायेगी।
"सुनो जी, पड़ोस के सभी लोग सुना रहे हैं कि किसी ने चार लाख रूपये बचाये किसी ने दस लाख रूपये एकत्र किये। और मैंने केवल तीन हजार।" मैंने रद्दी के नोटनुमा गड्डियों की तरफ इशारा करते हुए कहा, इस बोरे (थैले) को आग लगाकर गली के बाहर छोड़ना है." मैंने कहा.
"इसमें क्या है? " उन्होंने पूछा।
" इस थैले में रद्दी की नोटनुमा गड्डियां है. अरे भाई हमारी नाक कट जायेगी जब लोगों को पता चलेगा कि हमारे पास नोट नहीं हैं. इसी लिए मैंने रद्दी काटकर पूरे दिन भर की मेहनत के बाद नोटनुमा गड्डियाँ बनायी हैं. ताकि इज्जत रह जाये। ताकि लोग समझें कि हमारे पास इतने नोट थे कि आग लगाने की नौबत आ गयी."
उन्होंने बोरी देखी और फिर मेरी ओर आश्चर्य से देखा। कुछ ठहर कर बोले,
"तुम हो तो बुद्धिमान। चलो इसे आग लगाकर आता हूँ." वह कहकर घर से बोरी लेकर गली से निकले। सभी की नजर मेरे पति के हाथ में पकडे हुए बोरे पर लगी थी. एक कह रहा था,
" सर्दी आ गयी है ये नोट अब आग तापने के काम आयेंगे।" लोग इधर -उधर देखते रहे पर कोई पास नहीं आया. बुरे वक्त के लिए लोगों ने नोट छिपा कर रखे थे अब पुराने नोटों का ही बुरा समय आ गया।
जैसे ही मेरे पति बोरी को जलाकर आये हैं. लोग कहने लगे, मुरारी बाबू और मेरा नाम लेकर उनकी पत्नी (विमला) ने गृहस्ती अच्छी संभाली थी. कितने संपन्न हैं ये लोग.
मुझे लगा कि समाज में रौब बढ़ गया है। इतने नोट थे कि इन्हें जलाने पड़े।
- सुरेशचन्द्र शुक्ल
"आज सूचना प्राप्त करने के लिए सीधे शोध और संपर्क के लिए प्रयास करना चाहिये।  एक बात का और ध्यान रखें कि साहित्यकार और आलोचक की भूमिका निभाते समय अपने साहित्यकार को अलग रख कर सोंचे जो योग्य, उचित और जरूरी साहित्य है उसे अनदेखा न करें वरना आपकी आलोचना उतनी मान्य नहीं होगी जैसी की सुप्रसिद्ध आलोचकों की आलोचना और पुस्तक।"  - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक' (लेखक)

गुरुवार, 23 अप्रैल 2020

पत्रकारिता के पाँच मुख्य सिद्धांत - - सुरेशचन्द्र  शुक्ल शरद आलोक' Suresh Chandra Shukla


 
 
 
 
 
Anniken Huitfeldt og Suresh Chandra Shukla foran slottet i Oslo

 
नार्वे की वर्तमान विदेश समिति और रक्षा समिति की अध्यक्ष आनिके  ह्यूतवेत और लेखक सुरेशचन्द्र शुक्ल (लेखक) 


पत्रकारिता के पाँच मुख्य सिद्धांत
1. सत्य और सटीकता
पत्रकार हमेशा 'सत्य' की गारंटी नहीं दे सकते, लेकिन तथ्यों को सही साबित करना पत्रकारिता का 
कार्डिनल सिद्धांत है। हमें हमेशा सटीकता के लिए प्रयास करना चाहिए, हमारे पास मौजूद सभी 
प्रासंगिक तथ्य दें और सुनिश्चित करें कि उन्हें जाँच लिया गया है। जब हम जानकारी को पुष्टि 
नहीं कर सकते तो हमें ऐसा कहना चाहिए।
 
2. स्वतंत्रता
पत्रकारों को स्वतंत्र आवाज़ होना चाहिए; हमें राजनीतिक, कॉर्पोरेट या सांस्कृतिक विशेष 
हितों की ओर से औपचारिक रूप से या अनौपचारिक रूप से कार्य नहीं करना चाहिए। हमें 
अपने संपादकों - या दर्शकों - हमारे किसी भी राजनीतिक संबद्धता, वित्तीय व्यवस्था या 
अन्य व्यक्तिगत जानकारी की घोषणा करनी चाहिए जो हितों के टकराव का कारण बन सकती है।
 
3. निष्पक्षता और निष्पक्षता
अधिकांश कहानियों में कम से कम दो पक्ष होते हैं। जबकि हर पक्ष में हर पक्ष को पेश करने 
की कोई बाध्यता नहीं है, कहानियों को संतुलित होना चाहिए और संदर्भ जोड़ना चाहिए। 
निष्पक्षता हमेशा संभव नहीं है, और हमेशा वांछनीय (क्रूरता या अमानवीयता के उदाहरण के 
लिए चेहरे पर) नहीं हो सकती है, लेकिन निष्पक्ष रिपोर्टिंग विश्वास और आत्मविश्वास का 
निर्माण करती है।
 
4. मानवता
पत्रकारों को कोई नुकसान नहीं करना चाहिए। हम जो प्रकाशित करते हैं या प्रसारित करते हैं 
वह दुखद हो सकता है, लेकिन हमें दूसरों के जीवन पर हमारे शब्दों और चित्रों के प्रभाव के 
बारे में पता होना चाहिए।
 
5. जवाबदेही
व्यावसायिकता और जिम्मेदार पत्रकारिता का एक निश्चित संकेत खुद को जवाबदेह रखने 
की क्षमता है। जब हम त्रुटियां करते हैं तो हमें उन्हें सुधारना चाहिए और अफसोस की हमारी 
अभिव्यक्तियों को गंभीर नहीं होना चाहिए। हम अपने दर्शकों की चिंताओं को सुनते हैं। 
हम यह नहीं बदल सकते हैं कि पाठक क्या लिखते हैं या कहते हैं लेकिन जब हम अनुचित 
होंगे तो हम हमेशा उपचार प्रदान करेंगे।

बुधवार, 22 अप्रैल 2020

पत्रकारिता अपराध नहीं है- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक , Suresh Chandra Shukla


प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत 142वें स्थान पर
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स यानी प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत दो पायदान नीचे आ गया है.
मंगलवार को जारी हुए रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स के वार्षिक विश्लेषण के अनुसार वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में 180 देशों में भारत 142वें स्थान पर है.
वैश्विक प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक 2020 के मुताबिक़, साल 2019 में भारत में किसी पत्रकार की हत्या नहीं हुई जबकि साल 2018 में पत्रकारों की हत्या के छह मामले सामने आए थे. ऐसे में भारत में मीडियाकर्मियों की सुरक्षा को लेकर स्थिति में सुधार नज़र आता है.
हालांकि रिपोर्ट इस बात का भी ज़िक्र करती है कि 2019 में इलेक्ट्रोनिक मीडिया पर कश्मीर के इतिहास का सबसे लंबा कर्फ्यू भी लगाया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में लगातार प्रेस की आज़ादी का उल्लंघन हुआ, यहां पत्रकारों के विरुद्ध पुलिस ने भी हिंसात्मक कार्रवाई की, राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर हमले हुए और साथ ही आपराधिक समूहों-भ्रष्ट अधिकारियों द्वारा विद्रोह भड़काने का काम किया गया.
रिपोर्ट ने दो पायदान की गिरावट का कारण हिंदू राष्ट्रवादी सरकार का मीडिया पर बनाया गया दबाव बताया है. सोशल मीडिया पर उन पत्रकारों के ख़िलाफ़ सुनियोजित तरीक़े से घृणा फैलाई गई, जिन्होंने कुछ ऐसा लिखा या बोला था जो हिंदुत्व समर्थकों को नागवार गुज़रा.
पेरिस स्थित रिपोर्टर्स सैन्स फ्रन्टियर्स (आरएसएफ़) यानी रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स एक नॉन-प्रॉफ़िट संगठन है जो दुनियाभर के पत्रकारों और पत्रकारिता पर होने वाले हमलों को डॉक्यूमेंट करने और उनके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का काम करता है.
आमतौर पर दक्षिण एशिया इस सूचकांक में बुरे स्तर पर ही रहा है. एक ओर जहां भारत दो पायदान खिसककर 142वें नंबर पर पहुंच गया है वहीं पाकिस्तान तीन पायदान नीचे पहुंच गया है. तीन स्थान के नुक़सान के साथ ही पाकिस्तान 145वें स्थान पर आ गया है. बांग्लादेश को भी एक स्थान का नुक़सान हुआ है और बांग्लादेश सूची में 151वें स्थान पर है.

आज पृथ्वी दिवस है, लेनिन का भी जन्मदिन है- - सुरेशचन्द्र शुक्ल ' शरद आलोक'

आज पृथ्वी दिवस है, 
 जॉन कोलेन ने पृथ्वी दिवस के विचार को १९६९ में यूनेस्को केसम्मेलन में प्रतुत किया।
21 मार्च 1970 को सं फ्रांसिस्को, अमेरिका के सम्मलेन में यह तय हुआ कि पृथ्वी दिवस मनाया जाये।
22 अप्रैल 1970 को पहली बार विश्व पृथ्वी दिवस मनाया गया.
लेनिन का भी जन्मदिन है, जिसने दुनिया में तहलका मचा दिया था.
22 अप्रैल 1206 में नार्वे में निदारोस का खूनी विवाह हुआ था.

 जार्ज आर. आर. मार्टिन (George R R Martin )
आज इसकी चर्चा वाजिब है कि जार्ज आर. आर. मार्टिन (George R R Martin ) ने रेड वेडिंग किताब (Red Wedding) लिखी थी जो स्कॉट्स के इतिहास पर लिखी गयी थी. सी एन एन के अनुसार ब्लैक डिनर 1440 और ग्लेनको बर्बर हत्याकांड 1692 में जब शादी की पार्टी में हत्याएं की गयी थीं पर उस समय यह नियम था कि मेहमान को नहीं मारेंगे।
 
 
लेनिन का भी जन्मदिन
आज वाल्देमीर लेनिन का भी जन्मदिन है, जिसने दुनिया में तहलका मचा दिया था. जब वाल्देमीर लेनिन सोलह साल का था उसके भाई को मृत्युदंड दिया गया था और जब वह सत्रह साल की अवस्था में छात्र आंदोलन में सम्मिलित हुआ उसे गिरफ्तार करके दूर भेज दिया गया. लेनिन का जन्म 22 अप्रैल सन 1870 को और मृत्यु 21 जनवरी 1924 को हुई थी. हाँ जिस लेनिन के नाम से एक तरह का समाजवाद जाना जाता है वह है अपने समय के रूस के शक्तिशाली नेता वाल्देमीर लेनिन जिन्होंने बहुत से देशों में और लोगों में जगह बनायी थी और पूरा समाज बदल कर रख दिया था. 

 
अनेक राजनैतिक विचारधाराएं हैं
अनेक राजनैतिक विचारधाराएं हैं जैसे समाजवाद जहाँ सभी को समान अवसर मिले और समानता लाने के लिए कार्य हो.
आज जहाँ समाजवादी प्रजातंत्र को सोशल डेमोक्रेसी कहते हैं जो जर्मनी, नार्वे, स्वीडेन, डेनमार्क, फिन लैंड आदि देशों में है. जिस समाजवाद में प्रायोगिक रूप में डेमोक्रेसी कम है वह है रूस, चीन क्यूबा, जहाँ डेमोक्रेसी का नाम निशान नहीं है जैसे उत्तरी कोरिया आदि.
महात्मा गाँधी, नेल्सन मंडेला, अब्राहिम लिंकन, लेनिन, आदि को प्रत्येक लेखक को और राजनैतिज्ञ को जानना और पढ़ना चाहिये।

 भारत में राजनैतिक विचारधारा के मुख्य श्रोत 
भारतीय सन्दर्भ में जवाहरलाल नेहरू, राम मनोहर लोहिया, जय प्रकाश नारायण आदि की अपनी सोच और विजन था.
नेता अनेक हैं जैसे दीनदयाल उपाध्याय जी और श्यामा प्रसाद मुकर्जी जी ये और उनके समर्थक इनके दर्शन को भारतीय संस्कृति और हिन्दू राष्ट्र को समाहित किये दर्शन बताते हैं पर यह धरातल और 'विचारधारा' हिन्दू धर्म में अनेकों संगठनों और उनके विचारों का गुलदस्ता है.
यह आपको तब तक नहीं पता चलेगा जब तक आप सभी को नहीं पढ़ेंगे.

- सुरेशचन्द्र शुक्ल ' शरद आलोक', 22.04.20 ओस्लो, नार्वे।

रविवार, 19 अप्रैल 2020

आज आप 'लाश के वास्ते' कहानी - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'






















सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'  की  प्रसिद्द  'कहानी 
 'लाश के वास्ते' 


गुरुवार, 16 अप्रैल 2020

लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है - कांग्रेस नेता राहुल गाँधी



लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है - कांग्रेस नेता राहुल गाँधी 
 16.04.20, Delhi कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने वीडियो कॉन्फ़्रेंसिंग के ज़रिए पत्रकारों से बात की. राहुल ने कहा कि टेस्टिंग ही कोरोना का सबसे बड़ा हथियार है.
लॉकडाउन कोरोना का इलाज नहीं है - कांग्रेस नेता राहुल गाँधी

कोरोना भारत में सिर्फ़ बुज़ुर्ग लोगों की बीमारी नहीं: राहुल गांधी

राहुल गांधी ने कहा कि भले ही विदेशों में कोरोना वायरस का असर ज़्यादातर बुजुर्ग़ों पर हो रहा है, लेकिन यही बात भारत के लिए नहीं कही जा सकती है.
राहुल गांधी ने कहा कि यहां बहुत सारे लोगों को शुगर और दूसरी बीमारियां हैं, इसलिए यहां बुज़ुर्गों के अलावा नौजवान और बच्चे भी शिकार हो सकते हैं.
लेकिन राहुल ने विश्वास जताते हुए कहा कि ये देश किसी भी बीमारी से बहुत बड़ा है.
आज वायरस से लड़ने का टाइम है: राहुल गांधी
राहुल गांधी ने कहा कि वो नरेंद्र मोदी सरकार के साथ तू-तू मैं-मैं नहीं करना चाहते. उन्होंने कहा कि ये समय सरकार और विपक्ष के बीच लड़ाई का नहीं है बल्कि ये कोरोना वायरस से लड़ने का समय है.
राहुल गांधी ने कहा कि उनका काम सरकार को सुझाव देना है, उनकी सुझाव को मानना या ना मानना सरकार के हाथ में है.
उन्होंने सरकार के ज़रिए जारी किए गए आर्थिक पैकेज को बहुत थोड़ा बताते हुए और पैसे देने की बात की.
उन्होंने प्रवासी मज़दूरों को लेकर रणनीति की आवश्यकता पर ज़ोर दिया. उन्होंने कहा कि गोदाम से सामान लोगों तक नहीं पहुँच रहा है. उन्होंने कहा कि गोदाम में अनाज की कोई कमी नहीं है, सरकार को इसे ग़रीबों में बांट देना चाहिए.
राहुल ने कहा कि कोरोना वायरस से लड़ाई में सबसे महत्वपूर्ण है अपनी सोच.
उन्होंने सरकार को आगाह किया कि जल्दबाज़ी में कोरोना पर विजय पा लेने की बात नहीं करनी चाहिए.

ये लड़ाई अभी शुरू हुई है: राहुल गांधी 

राहुल गांधी ने अधिक से अधिक टेस्ट कराने की मांग करते हुए कहा कि अभी भारत में हर 10 लाख आदमी पर केवल 199 व्यक्तियों के टेस्ट किए जा रहे हैं जिसे बढ़ाने की ज़रूरत है.

राहुल ने कहा कि केंद्र सरकार को राज्य सरकारों की मदद करनी चाहिए.
उन्होंने मज़दूरों और दिहाड़ी करने वालों के लिए खाने का इंतज़ाम करने की वकालत करते हुए कि खाद्य क्षेत्रों को मज़बूत किया जाना चाहिए, ज़रूरतमंदों को राशन कार्ड दिया जाना चाहिए, न्याय स्कीम के तहत ग़रीबों के खाते में सीधे पैसा जाना चाहिए.
राहुल गांधी ने कहा कि कोरोना के ख़िलाफ़ तो लड़ाई अभी शुरू हुई है और ये लड़ाई लंबी चलेगी.