सोमवार, 1 फ़रवरी 2021

कोरोना क़ालीन साहित्य-1:हवा का रुख बदलेगा - सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'

 

‘कोरोना क़ालीन साहित्य Vinden
"हवा का रुख बदलेगा:
यह नुकसान सबका है
स्केटिंग रेस की तरह है समाज,
नाटकीय बदलाव देखता है
गैलरी में बैठकर
जहाँ से सब दिखाई देता है।
पवेलियन में बैठे
जो सर उठा-उठाकर देखते हैं,
पीछे बैठे दूसरे उससे ज्यादा
उचक-उचक कर देखते हैं।
ताकि सब नजर आये?
जो वहाँ नहीं हैं वह
गीता में संजय की तरह
आँखों देखा हाल बता रहे हैं।
हम विश्वास कर रहे हैं
यह अर्ध सत्य है या अंधविश्वास?
घर में बच्चे सवाल पूछते हैं
पानी-बिजली और इंटरनेट बन्द है
हम उन्हें डाँटते है, चुपकर!
तभी बिजली आती है,
टीवी पर संजय प्रगट होता है
धृतराष्ट्र को कुछ नहीं पता है,
संजय उन्हें बताता है,
"महाराज वह धुंआं है,
आँधी का दोष है।
कौन आगे है?
मैच अभी भी चल रहा है?
महाराज वहाँ बिजली नहीं है।
इंटरनेट बन्द है।
रिमोट आपकी मुट्ठी में बंद है।
बस हवा का रुख दूसरी ओर है।
बस उसी से द्वन्द्व है।
संवाद के बिना बढ़ रही है दूरी,
हमारी मजबूरी
अपमान से दुखी हैं
लोगों के मरने का उतना गम नहीं है?
फिर भी आँखे कितनी नम हैं।
आया अवसर कौन छोड़ता है?
आत्मा और शरीर के मध्य
परमात्मा को क्यों लाते हो?
इस अंधे को सब्जबाग दिखाते हो?
जेब पर बैंकों से ज्यादा भरोसा है।
जानते हो यह जेब कौन भरता है?"
 
- सुरेशचन्द्र शुक्ल 'शरद आलोक'
01.02.21

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